Sunday, 14 July 2013

महाबोधि ब्लास्ट, एक बड़ी साजि़श

महाबोधि ब्लास्ट, एक बड़ी साजि़श पटना (गया)-मुस्लिमों को फंसाने के लिए एक और ड्रामा रच दिया गया। देश में किये गये दूसरे धमाकों की तरह ही रविवार सुबह बिहार राज्य के बोधगया में महाबोधि मंदिर के पास एक के बाद एक 8 सीरियल ब्लास्ट किये गये। इन धमाकों में 5 लोगों के मामूली घायल होने की खबर है। हालांकि मंदिर को इन धमाकों से कोई बड़ा जानी माली नुकसान नहीं हुआ है। यह हमला किसने कराया, अभी धमाके से उत्पन्न राख और मलवा भी ठण्डा नहीं हुआ था, लेकिन मीडिया, आईबी और भाजपा उपासक नितिश पुलिस से उम्मीद है कि इन धमाकों के असल कर्ताधर्ताओं को बचाने के लिए अपने ही दिमागों की उपज इस्लामी नामों वाले संगठनों में से इण्डियन मुजाहिदीन के नाम की घोषणायें शुरू कर दीं, जाहिर है कि हमेशा की ही तरह थोकभाव में मुस्लिमों को उठाया जायेगा। बोधगया के महाबोधि मंदिर के बाहर रविवार सुबह 6 बजकर 5 मिनट पर पहला धमाका हुआ और इसके बाद लगातार 7 और धमाके हुए. पुलिस ने धमाकों की पुष्टि करते हुए कहा है कि मंदिर सुरक्षित है। अजीब सी बात है कि कोई मुस्लिम धमाके करे लेकिन इसका पूरा ध्यान रखे कि कोई जानी माली नुकसान भी न हो, मन्दिर को भी किसी तरह की हानि न पहुंचे, ऐसा कैसे हो सकता है कि सिर्फ आवाज़ वाले पटाखे छोड़े गये, किसी मुस्लिम को मन्दिर को बचाने की या उसमें मौजूद लोगों को बचाकर धमाके करने की क्या जरूरत होगी, क्यों करेगा कोई पाकिस्तानी ऐसा? वह भी तब जबकि इतना आसान मौका मिला हो कि आराम और तसल्ली से मन्दिर परिसर में जगह जगह बम लगा दिये? हर समय भरे रहने वाले मन्दिर परिसर में कोई बाहरी व्यक्ति बम लगाता हो, एक दो नहीं बल्कि पूरे आठ बम फिर भी उसे किसी ने देखा नहीं? क्या बम लगाने वाला, नांदेड बम धमाके करने वाले संघ कार्यकर्ता राजकोंडवार जैसा था कि उसके पास से नकली दाढ़ी, शेरवानी, कुर्ता पायजामा बरामद हुआ। गौरतलब यह भी है कि हर धमाके की तरह ही इस धमाके की खबर आईबी को थी कि इस मन्दिर पर हमला हो सकता है लेकिन किसी तरह की सुरक्षा का कोई बन्दोबस्त नहीं किया गया, क्यों? और आईबी तो बड़ी बात है मीडिया का कहना है कि ‘‘ इसकी सूचना मन्दिर के मुख्य पुजारी को भी थी’’ इसी को बहाना बनाते हुए उसने ‘‘ हथियार की मांग भी की थी,’’ अजीब सी बात है कि आतंकी हमले की सूचना पर एक पुजारी (धार्मिक व्यक्ति) हथियार की मांग करता है नाकि पुलिस सुरक्षा की, क्यों? आखिर क्या खेल खेला जा रहा था। धमाके हुए बमों की आवाज सुनाई पढ़ने से पहले ही गुजरात व संघ पोषित मीडिया ने जिम्मेदारों के नाम की घोषणा करदी। आईबी का भी इशारा इसी तरफ है यह अलग बात है कि स्थानीय पुलिस मौके पर मौजूद सबूतों के मुताबिक जांच के कदम बढ़ा रही है जोकि काफी सही दिशा में चल रही है। हांलाकि अमरीका और गुजरात पोषित मीडिया और आईबी अभी भी अपने दिमागों की उपज मुस्लिम नामों वाले संगठनों का ही राग अलाप कर मालेगांव, अजमेर शरीफ, मक्का मस्जिद, समझौता एक्सप्रेस के मामलों की तरह ही एक सोची समझी साजिश को कामयाब कराने की जुस्तजू में दिखाई पड़ रही है। यह हकीकत लगभग सारी दुनिया ही जान चुकी है कि भारत में धमाके करता कौन है और फंसाया किसे जाता है इस बार भी यही कोशिशें की जा रही है कुछ अखबार तो बाकायदा एलान करने में लगे हैं कि ये धमाके आईएम ने किये हैं यहीं तककि कुछ अखबारों ने तो यह तक बता दिया कि आईएम ने जिम्मदारी लेली है, मज़े की बात तो यह है कि बार भी साईबर का सहारा लिया जा रहा है। सभी को याद होगा कि दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर धमाकों की धमकियों और बाद में जिम्मेदारी लेने के ईमेल संघ पोषित एक न्यूज़ चैनल के पास आने की चीख पुकार की जा रही थी। ईमेल, या किसी भी सोशल नेटवर्क साइट पर अपना एकाउण्ट बनाने के लिए किसी तरह के पहचान-पत्र को प्रमाणित कराकर देना नहीं होता। सभी जानते है कि कोई भी किसी के भी नाम पते से अकाउण्ट बना लेता है, ऐसे में इस बात का क्या सबूत है कि जिस ईमेल पते से उस चैनल के पते पर ईमेल भेजी गयी थी वह वास्तव में ही किसी मुसलमान का था, हो सकता है कि संघ या संघ पोषित कोई सरकारी या गैरसरकारी अमला मुस्लिम नामों से अकाउण्ट चलाता है, या फिर चैनल ही खुद इस तरह की आईडी बनाकर काम दिखाता हो? इसी तरह इस बार ईमेल की जगह ‘‘ ट्वीटर ’’का सहारा लिया जा रहा है। जिस तरह ईमेल आईडी में इसका बात का कोई प्रमाण नहीं होता कि जो अकाउण्ट बनाने और चलाने वाला अपने ही नाम पते से बना व चला रहा है इसी तरह ट्वीटर व अन्य दूसरी नेटवर्किंग साइटों पर भी अकाउण्ट बनाने व चलाने के समय किसी तरह के पहचान प्रमाणित करने की जरूरत नहीं होती। हम यहां ईमेल, ट्वीटर, फेसबुक की एक एक आई लिख रहे है। क्या कोई यह प्रमाणित कर सकता है कि इन तीनों अकाउण्ट को बनाने व चलाने वाला हिन्दू है या मुसलमान, शरीफ है या अपराधी? देखिये और बताई, जवाब के लिए नीचे हमारी ईमेल लिखी जा रही है। Email- kadwi.baat@gmail.com, Facebook A/c- Ramesh Gupta, Twiter A/c- Adil Shamsi@MERI_CHUNAUTI - क्या कोई बता सकता है कि ये अकाउण्ट किस किस व्यक्ति के हैं इन अकाउण्टों में दी गयी जानकारियां सही है या झूठी? हम दावे के साथ कह सकते है कि किसी भी ईमेल, ट्वीटर, फेसबुक अकाउण्ट को बनाने इस्तेमाल करने वाले की वास्तविक पहचान कोई नहीं बता सकता केवल यह जरूर पता लगाया जा सकता है कि किस क्नैक्शन (फोन नम्बर) से चलाया जा रहा है वह भी तब जबकि प्रयोग कर्ता एक ही नम्बर से चलाये लेकिन कैफे सुविधा के दौर में यह बताना भी नामुम्किन है कि किस नम्बर से चलाया जा रहा। साथ ही हम चैलेंज के साथ कह सकते है कि देश में आज भी 50 फीसद से ज्यादा मोबाइल क्नैक्शन फर्जी पहचान-पत्रों से चल रहे हैं ऐसी स्थिति में असल गुनाहगार की पहचान करना मुम्किन ही नहीं। इन सारी सच्चाईयों को जानने के बाद भी दिल्ली हाईकोर्ट ब्लास्ट के सम्बन्ध में सिर्फ एक ही चैनल को मिलने वाली मेल का विस्वास कैसे किया जा सकता है? अब बोधगया के मामले में ट्वीटर अकाउण्ट की बात की जा रही है तो क्या गारन्टी है कि यह अकाउण्ट फर्जी नहीं है ब्लास्ट करने कराने वाले ने ही यह अकाउण्ट बनाया हो जिससे कि मुस्लिमों को आसानी से फंसाया जा सके, जैसा कि मीडिया, संघ, आईबी कोशिशें करती नज़र आ भी रही है। संघ लाबी ने कहा कि म्ंयामार के बदले में किये गये धमाके। क्या बात है सारे अन्तरयामी इकटठे हो गये संघ लाबी में। म्यांमार आतंकवाद का बदला अब एक साल बाद लेगें मुसलमान? चलिये इन अन्तरयामियों की बात ही मान लेते है तो याद करे कि म्यांमार में आतंकियों ने सैकड़ों बेगुनाह मुसलमानों का कत्लेआम किया था बोधगया में तो एक भी नहीं मारा गया, क्यों? क्योंकि पिछले सभी धमाकों की तरह ही ये धमाके भी मुसलमानों को फंसाने और इस्लाम को बदनाम करने के लिए पूरी सूझबूझ व एहतियात के साथ किये गये जिससे कि न मन्दिर को नुकसान पहुंचे ओर न ही वहां आने वाले श्रद्धालुओं को। इसी तरह गुजरे दिनों अफजल गुरू के कत्ल के बाद मोके का फायदा उठाते हुए हैदराबाद में भी धमाके किये गये ओर बड़ी ही आसानी से मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराकर जुल्म शुरू कर दिये गये। मालेगाँव के बम धमाके आतंकी कर्नल श्रीकांत, आतंकी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और उसके गैंग ने किये शुरू में ही दर्जनों मुस्लिमों को फंसाया गया, लेकिन हेमन्त करकरे ने बेनकाब कर दिया। अजमेर दरगाह में बम विस्फोट आतंकी असीमानंद, आतंकी इंद्रेश कुमार (आरएसएस का सदस्य), आतंकी देवेंद्र गुप्ता, आतंकी प्रज्ञा सिंह, आतंकी सुनील जोशी, आतंकी संदीप डांगे, आतंकी रामचंद्र कलसांगरा उर्फ रामजी, आतंकी शिवम धाकड, आतंकी लोकेश शर्मा, आतंकी समंदर, आतंकी आदित्यनाथ ने किये शुरू में इन धमाकों की जिम्मेदारी मुसलमानों पर थोपने की भरपूर कोशिशें की गयीं लेकिन ईमानदार अफसर ने जल्दी ही साजिश से पर्दा उठा दिया। इसी तरह मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस के बम विस्फोट भी आतंकी असीमानंद ओर उसके गिरोह ने किये। नांदेड बम विस्फोट संघ कार्यकर्ता राजकोंडवार ने किये उसके पास से नकली दाड़ी और शेरवानी , कुरता , पायजामा भी बरामद हुआ। गोरखपुर का सिलसिलेवार बम विस्फोट को आफताब आलम अंसारी पर थोपा गया लेकिन इशरत जहां ओर अफजल गुरू के मामलों में तेयार किये गये सबूत और अस्लाह बारूद का इन्तेजाम न कर पाने की वजह से पुलिस अंसारी को पूरी तरह नहीं फंसा सकी, बाइज्जत बरी कर दिये गये। असल जिम्मेदारों को बचाने के लिए मामला अज्ञात में तरमीम कर दिया। मुंबई ट्रेन बम विस्फोट काण्ड, घाटकोपर में बेस्ट की बस में हुए बम विस्फोट, वाराणसी बम विस्फोट, में किसी मुस्लिम को फंसाने के लिए पूरा इन्तेजाम नहीं हो सका तो अज्ञात में दर्ज करके दबा दिया गया। कानपुर बम विस्फोट बजरंग दल कार्यकर्ता आतंकी भूपेन्द्र सिंह छावड़ा और राजीव मिश्रा ने किया। गौरतलब बात यह है कि इन सभी आतंकियों सरकार दस-दस साल से सरकारी महमान बनाकर पाल रही है आजतक अदालतें सजा सुनाने तक नहीं पहुंची जबकि कस्साब ओर अफजल गुरू के मामलों दो साल के अन्दर ही सजा सुना कर ठिकाने लगा दिया गया। दरअसल देश में धमाके करने वाले यह जानते है कि अब कोई दूसरा हेमन्त करकरे पैदा नहीं होगा जो इनके चेहरो से नकाब हटाकर दूध का दूध पानी का पानी करके दिखा दे, और हरेक मामले की जांच भी सीबीआई से नहीं कराई जाती इसलिए साजिशें करने वालों सभी रास्ते पूरी तरह आसान हो गये हैं, पूरे इत्मिनान के साथ बम लगाकर धमाके कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि मुसलमानों के खिलाफ की जा रही साजिशों में सिर्फ आरएसएस, आईबी, मीडिया ही शामिल हो बल्कि इसमें कांग्रेस भी पूरी तरह से शामिल है। गुजरात आतंक के हाथों किये गये मुस्लिम कत्लेआम से खुश होकर मास्टरमाइण्ड को सम्मानन व पुरूस्कार दिये जाने की कांग्रेसी करतूत को देख लें या इशरत जहां के कत्ल का मामला ही उठाकर देखें, ‘‘ आईबी ’’ सोनिया गांधी नामक रिमोट से चलने वाले केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार के नियन्त्रण में है और इसके बावजूद आईबी ने बेगुनाह लड़की इशरत जहां के कत्ल की साजिश रचकर उसका कत्ल करा दिया, हैदराबाद ब्लास्ट को लेकर भी मुस्लिमों को फंसाने के साथ ही अब बोधगया मन्दिर में ब्लास्ट करने वालों को बचाने के लिए मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया, और केन्द्र सरकार आईबी की कारसाजि़यों को देखकर गदगद हो रही है। क्यों नहीं रोक रही आईबी को मुसलमानों के खिलाफ संघ लाबी के साथ मिलकर साजिशें रचने से? क्योंकि कांग्रेस आरएसएस का ही दूसरा रूप है और सोने पर सुहागा कांग्रेस की लगाम हमेशा से ही नेहरू परिवार के हाथों में रही है नेहरू की मुसलमानों के खिलाफ साजिश का ही नतीजा है कि देश का बटंवारा हुआ। खैर, अब बात करें बोधगया मन्दिर में किये गये धमाकों की। सवाल यह है कि बोधगया में धमाके करने का उद्देश्य क्या था? हम बताते हैं इन धमाकों का उद्देश्य क्या है। धमाके कराने के दो मुख्य उद्देश्य हैं पहला यह कि मन्दिर जैसे धार्मिक स्थान पर धमाके होने से हिन्दू वोट का एकीकरण होगा जिसका पूरा पूरा फायदा आगामी लोकसभा चुनावों में आरएसएस यानी (बीजेपी) को होना तय है और बीजेपी की सीटें बढ़ने का मतलब है प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल करके पूरे देश में गुजरात आतंकवाद को दोहराये जाने की योजना। दूसरा मकसद यह कि मन्दिर में धमाके की जिम्मेदारी आईबी ओर मीडिया के साथ मिलकर मुसलमानों पर थोंपकर मुसलमान और इस्लाम को पूरी तरह से आतंकी मजहब घोषित कर देने की योजनायें। धमाके करने वालों की मजबूती यह है कि वे जानते हैं कि न तो इन धमाकों की जांच सीबीआई से कराई जायेगी और न ही अब हेमन्त करकरे वापिस आकर असल आतंकियों को बेनकाब करेंगे। कुल मिलाकर अब मुसलमान को सोचना होगा कि उसे क्या करना है? वोटों के सौदागर मुल्लाओं के झांसे में आकर वोट बर्बाद करके पूरे देश में गुजरात कायम कराना है या फिर गुजरे उ0प्र0विधानसभा चुनावों की तरह ही लोकसभा चुनावों में भी मुस्लिम वोट की ताकत का एहसास कराना है। हमारा मतलब यह नहीं कि इस लोकसभा चुनावों में भी सपा को ही चुना जाये बल्कि मतलब यह है किअपने अपने क्षेत्र में सिर्फ उस प्रत्याशी को एकजुट होकर वोट करें जो बीजेपी प्रत्याशी को हराने की स्थिति में हो, साथ ही कांग्रेस से बच कर रहने में ही मुसलमान की भलाई है।

Sunday, 7 July 2013

दोराहे पर खड़ा कानून

       
इशरत जहां बेगुनाह तो थी ही साथ ही आतंकी भी नहीं थी, यह बात कई बार जांचों में सामने आ चुकी है तमाम सबूतों के बावजूद हर बार की जांच रिर्पोटों को दफ्नाकर नये सिरे से जांच कराई जाने लगती है। इस बार सीबीआई ने शहीद हेमन्त करकरे की ही तरह हकीकत को बेनकाब कर दिया हालांकि सीबीआई ने अभी प्रारम्भिक रिपोर्ट ही पेश की है और सबूत इकटठा करने के लिए समय भी मांगा है। सीबीआई की रिपोर्ट को सूनकर नासमझ लोग मानने लगे कि अब इशरत को इंसाफ मिलेगा। मिलेगा क्या?
कम से कम हमें तो उम्मीद नहीं कि इशरत को इंसाफ मिलेगा। इंसाफ का मतलब है कि उसके कातिलों यानी कत्ल करने और करवाने वालों को सज़ायें दी जाए, जोकि किसी भी हाल में सम्भव नहीं, हां दो एक प्यादों को जेल में रखकर दुनिया को समझाने की कोशिश जरूर की जायेगी। जैसा कि देश के असल आतंकियों के मामलों में आजतक किया जाता रहा है। हां अगर मकतूल इशरत की जगह कोई ईश्वरी होती और कातिलों के नाम मोदी, कुमार, सिंह, वगैरा की जगह खान अहमद आदि होते, तब तो दो साल भी नहीं लगते और फांसी पर लटकाकर कत्ल कर दिये गये होते जैसा कि सोनिया गांधी नामक रिमोट से चलने वाली कांग्रेस बाहुल्य मनमोहन सिंह सरकार के इशारे पर कानून मुस्लिम बेगुनाहों के साथ करता रहा है। इशरत जहां को बेवजह ही कत्ल कराया गया, किसने कराया उसे कत्ल? जाहिर सी बात है कि मोदी ने ही कराया। इस बात को खुद कातिलों की रिपोट में कहा जा चुका है। कातिलों ने रिपोट में कहा था कि इशरत जहां मोदी की हत्या करने आई थी, बड़े ही ताआज्जुब की और कभी न हज़म होने वाली बात है कि जो शख्स खुद हज़ारों बेगुनाहों का कत्लेआम करे उसे भला कौन मार सकता है? क्या गुजरात में आतंकियों ने जिस तरह बेगुनाहों का कत्लेआम किया था वे भी मोदी को मारने आये थे? इशरत को कत्ल कराकर गुजरात पोषित मीडिया भी खूब नंगी होकर नाचती दिखाई पड़ रही थी, नो साल के लम्बे अर्से में दर्जनों बार जांचें कराई जा चुकी हैं हर बार आतंक बेनकाब होता गया, हर बार की जांच को दबाकर नये सिरे से जांच कराई जाती है। हर जांच में साु हो जाता है कि आतंक के हाथों शहीद कर दी गयी इशरत जहां बेगुनाह थी उसे मोदी के इशारे पर कत्ल किया गया, सीबीआई ने तो एक हकीकत और खोलदी कि इशरत कई हफ्ते से पुलिस हिरासत में थी। सीबीआई के इस खुलासे से यह भी साबित हो जाता है कि इशरत को कत्ल कराने में मोदी की साजिश थी, उसको कत्ल करने के बाद कहा गया कि वह मोदी को मारने आई थी ऐसा कैसे हो सकता है कि हिरासत में रहने वाला इंसान किसी को मारने पहुंचे वह भी दुनिया के सबसे बड़े कत्लेआम के कर्ताधर्ता को? कातिलों ने इशरत को आतंकी साबित करने के स्वनिर्मित मुस्लिम संगठन के नाम का सहारा लिया कि अमुक संगठन ने इशरत को शहीद कहा, क्या नाटक है कि पहले बेगुनाहों को कत्ल करो फिर उसके कत्ल पर आंसू भी न बहाने दो।
अब एक बड़ा सवाल यह पेदा होता है कि सीबीआई जांच से पहले भी कई बार जांचें कराई जा चुकी है जिनमें इशरत के बेगुनाह होने के सबूतों के साथ मोदी के सरकारी आतंकियो द्वारा कत्ल किये जाने का खुलासा हो चुका है लेकिन जब जब जांच इशरत के कत्ल में मोदी की तरफ इशारा करती है तब तब उस रिपोर्ट को दबाकर नये सिरे से जांच शुरू करादी जाती है जिससे कि आतंक सजा से बचा रहे, इस बार सीबीआई ने पिछली सभी रिपोर्टों का प्रमाणित कर दिया। क्या सीबीआई की रिपोर्ट को आखिरी मानकर कानून कुछ दमदारी से काम लेने की हिम्मत जुटा पायेगा? उम्मीद तो नहीं है। क्योंकि अदालतों में बैठे जजों को भी अपनी अपनी जानें प्यारी हैं कोई शहीद हेमन्त करकरे जैसा हाल नहीं करवाना चाहता।
यह तो थी बात शहीद इशरत जहां को गुजरात पोषित आईबी और मीडिया द्वारा आतंकी प्रचारित करने की, पहले कराई गयी जांचों को तो पी लिया गया, तो क्या सीबीआई की रिपोर्ट भी दफ्नाने के इरादे हैं? यह एक खास वजह है कि सीबीआई ने (दोनों दाढि़यों) मोदी और शाह का नाम नहीं लिया और न ही प्यादे का नाम अभी खोला है, हो सकता है कि सीबीआई अधिकारियों को शहीद हेमन्त करकरे का हवाला देकर डराया गया हो। वैसे भी धमकियां तो दी ही गयीं यह सारी दुनियां जान चुकी है। याद दिलाते चलें कि देश में बीसों साल से जगह जगह धमाके कराकर बेकसूर मुस्लिमों को फंसाया जाता रहा कत्ल किया जाता रहा, कभी मुठभेढ़ के बहाने तो कभी फांसी के नाम पर, मगर किसी भी साजिश कर्ताओं या जांच अधिकारी का कत्ल नहीं हुआ, और जब शहीद हेमन्त करकरे ने देश के असल आतंकियों को बेनकाब किया तो उनका ही कत्ल कर दिया गया, और उसका इल्ज़ाम भी कस्साब के सिर मंढ दिया। हम यह नहीं कह रहे कि सीबीआई के अधिकारी आतंक की धमकियों से डर गये, लेकिन इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि असल आतंकियों ओर उनके मास्टरमाइण्ड या अन्नदाता की चड्डी उतारने की गलती करने वाले की जान खतरे में आ जाती है जैसा कि हेमन्त करकरे के साथ हुआ। मान लिया कि सीबीआई पर धमकियों का कोई असर नहीं पड़ा तब आखिर सीबीआई के सामने ऐसी क्या मजबूरी थी कि आतंक के कर्ताधर्ताओं को नज़र अंदाज कर गयी।
दर्जनों बार जांचें कराये जाने और सबका नतीजा लगभग एक ही रहने, यहां तक सीबीआई जैसी बड़ी संस्था की रिपोर्ट भी आ जाने के बाद अब सवाल यह पैदा होता कि ‘‘ बड़े मास्टरमाइण्ड के अलावा जिन प्यादों के नाम सामने आये हैं उन्हें कब तक सज़ायें सुनाई जायेगी? क्या उनको भी मास्टर माइण्ड की तरह ही कुर्सियों पर जमाये रखा जायेगा, या आतंकी असीमानन्द, प्रज्ञा ठाकुर, वगैराह की तरह ही सरकारी महमान बनाकर गुलछर्रे उड़वाये जायेगे? या फिर मजबूत सबूत न मिलने के बावजूद मुस्लिम नौजवानों की तरह ही चन्द दिनों में ही सज़ा दे दी जायेगी? कम से कम हमें तो ऐसी उम्मीद नहीं क्योंकि इस मामले में कातिलों को अभयदान मिलने के दो मजबूत कारण हैं, पहला यह कि मकतूलों के नाम इशरत, असलम, जावेद, अमजद थे नाकि ईश्वरी, राजेश,कुमार, सिंह वगैराह। दूसरी वजह यह है कि कातिलों ओर साजिश कर्ताओं के नाम मोदी, अमित, राजेन्द्र, बंजारा आदि। ये दोनो ही बड़ी वजह हैं अदालतों और कानून की राह में रोढ़े अटकाने के लिए। हम बात कर रहे हैं इशरत के कातिलों और उसके मास्टरमाइण्ड को हाल ही में किये गये तीव्र गति से फैसलों की तरह ही सज़ाये दी जायेगी या फिर किसी न किसी बहाने लम्बा लटकाकर रखा जायेगा? कम से कम अभी तक तो कानून की कारगुजारियां यही बताती हैं कि इशरत के कातिलों का बाल भी बांका नहीं होगा ओर कम से कम तबतक तो नहीं जबतक कि केन्द्र में कांग्रेस का कब्जा है, गौरतलब पहलू है कि जिस आतंक से खुश होकर केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य मनमोहन सिंह सरकार ने खुश होकर मास्टरमाइण्ड को सम्मान व पुरूस्कार दिया हो उसी काम पर आतंक को सज़ा कैसे होने देगी। साथ ही सीबीआई के अुसर भी तो इंसान हैं उनके भी घर परिवार हैं वे कैसे गवारा कर सकते हैं हेमन्त करकरे जैसा हाल करवाना? खैर अभी सीबीआई की फाइनल रिपोर्ट का इन्तेजार करना होगा, देखिये फाइनल रिपोर्ट क्या आती है अभी दावे के साथ यह नहीं कहा जा सकता कि सीबीआई के अफसरान डर नहीं सकते।
फिलहाल तो इन्तेजार करना ही होगा कि कानून गुजरे दिनों की तरह ही काम करते हुए संघ, बीजेपी, के अन्तःकरण को शान्त करने के लिए वह फैसला सुनाता है जो कातिलों का आका और मास्टरमाइण्ड चाहता है जैसा कि मुस्लिम नौजवानों के मामलों में करता रहा है। या फिर कानून पर लगे निष्पक्ष संविधान नामक लेबल को सार्थक करते हुए गौर करता है?
चलिये छोडि़ये इशरत और उसके साथियों के कत्ल की बात, अब सवाल यह पेदा होता है कि मकतूलों के पास से बरामद हथियार भी तो राजेन्द्र कुमार नही ही दिये थे यह पुष्टि सीबीआई ने करदी है, कया भारत का कानून गैरकानूनी और प्रतिबन्धित हथियार रखने के मामले में राजेन्द्र को सजा देने की हिम्मत जुटा पायेगा? या इस मामले में भी समाज विशेष के अन्तःकरण को शान्त करने की कोशिश करेगा?


Sunday, 9 June 2013

लालबत्तियां-लैपटाप डुबोएगे सपा की नैया

         
उ0प्र0 की पूर्व मुख्यमंत्री ने सूबे की गुलाम जनता की खून पसीने की गाढ़ी कमाई को अपनी मनमानी करते हुए पत्थरों पर लुटाया। मायावती के हाथों गुलामों की कमाई को पत्थरों पर लुटाये जाने की करतूत पर समाजवादी पार्टी रात दिन चीखती चिल्लाती रही, सपा मुखिया ने बार बार कहा कि  "पैसा जनता का है इसे जनता पर ही खर्च किया जाना चाहिये"। सपा की बयानबाजी से लग रहा था कि गुलामों का हमदर्द सपा और मुलायम सिंह से ज्यादा कोई है ही नहीं। लेकिन अब जब कि मुलायम सिंह के ही इशारों पर चलने वाली खुद उनके बेटे अखिलेश यादव की सरकार है यानी वर्तमान में अखिलेश याद व ही  "यूपी नरेश"  हैं और सूबा उनकी मिलकियत है। मायावती ने गुलामों की गाढ़ी कमाई को पत्थरों पर ठिकाने लगाया तो अखिलेश यादव लालबत्तियों, लैपटाप और टैबलेट के बहाने मायावती की राह पर चल रहे हैं। पूर्व और वर्तमान में एक बड़ा फर्क यह है कि जब मायावती के हाथ थे खजाने को मनमाने ढंग से खाली करने के काम में, और आज खुद मुलायम के बेटे के हाथ हैं शायद यही वजह है कि आजमुलायम सिंह को न तो जनता के गाढ़ी कमाई की चिन्ता सता रही न ही जनता के पेसे को जनता के विकास पर खर्च करने का तर्क याद आ रहा है। खैर फिलहाल तो उत्तर प्रदेश मुलायम परिवार की ही मिलकियत है शाही खजाना उनकी सम्पत्ति है उनको अधिकार है कि वे अपनी सम्पत्ति को जो मन चाहे करें गुलाम जनता को एतराज करने का अधिकार ही नहीं, आखिर पूरे भारत वासियों के नसीब में ही गुलामी है कभी विदेशियों का गुलाम बनकर रहना तो कभी देसियों की गुलामी में रहना।
यूपी नरेश अखिलेश यादव आगामी 2014 के लोकसभा चुनावों पर निशाना साधें हुए हैं। दरअसल अखिलेश यादव को लगता है कि मुस्लिम वोटों के सौदागरों को लालबत्तियां देकर मोटी कमाइयां करने के मोके दे देने से या लैपटाप, टैबलेट बांट देने से ही गुजरे विधान सभा चुनावों के हालात लोकसभा चुनावों में भी दोहराये जायेंगे, तो यह अखिलेश यादव की सबसे बड़ी भूल है। सबसे पहले बात करें चने मूंफलियों की तरह बांटी जा रही लालबत्तियों की। अखिलेश यादव को लगता है कि एक ही दरगाह से जुड़े लोगों को कई कई लालबत्ती दे देने से सूबे और देश का मुस्लिम वोट थोक भाव में समाजवादी पार्टी के खाते में आ जायेगा, जबकि हकीकत यह है कि कुछेक लालबत्तियां सपा की नैया डुबोने के लिए काफी हो गयी हैं। मुसलमान खुद कई टुकड़ों में बांट दिया गया है बरेली की एक ही दरगाह के दो लोगों को लालबत्ती की कमाई को मौका दिये जाने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश का 90 फीसद से ज्यादा मुस्लिम वोट सपा के खाते से कट गया क्योंकि इन मुसलमानों के बीच कभी खत्म न होने वाला मतभेद पैदा किया गया है सोचिये कि अगर पुर्व मंत्री हाजी याकूब कुरैशी द्वारा मुस्लिमों के हक के लिए और दुनिया के सबसे बड़े आतंकी के खिलाफ तर्क संगत बात करने पर तौकीर रजा को फिरका परस्ती के चलते एतराज हो सकता है तोकीर रजा द्वारा हाजी याकूब कुरैशी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की मांग की जा सकती है तो क्या आज  हाजी याकूब या उनके वर्ग के मुसलमानों को अखिलेश यादव की तोकीर रजा से करीबी का एतराज नहीं होगा? होना भी चाहिये तर्क संगत बात है। इस तरह से समाजवादी पार्टी को पूरे पश्चिमी उ0प्र0 में मुस्लिम वोटों का जबरदस्त नुकसान होना तय है, यही हालात लगभग पूरे सूबे में दिखाई पड़ रहे हैं। अब अगर सुन्नी वहाबी देवबन्दी शिया फिरकों के अलावा सिर्फ सुन्नियों की ही बात करें तो यहां हालात यह हैं 75 फीसद मुस्लिम वोट सपा से कट चुका है जिसकी तस्वीर 2014 में विश्व भर के सामने आ जायेगी। दरअसल मुसलमानों के सुन्नी फिरके में भी बड़े पैमाने पर तिफरका डाला जा चुका है, तमाम खानकाहों को नीचा दिखाने की कोशिशों के नतीजे में लगभग सभी खानकाहें और इनसे तआल्लुक रखने वाले मुसलमान इनसे दूरी बना चुके हैं ऐसे में  तौकीर से सपा की घुसपैठ दूसरी खानकाहों से जुड़े मुसलमानों को सपा से दूरी बनाने पर मजबूर कर चुकी है। कुल मिलाकर अखिलेश यादव द्वारा बांटी जा रही लालबत्तियां ही सपा के पतन का कारण बनेंगी, वह दिन दूर नहीं जब समाजवादी पार्टी सूबे साथ साथ देश भी में उसी स्थान पर खड़ी नजर आयेगी जहां 1992 के बाद से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पड़ी है।
आइये अब बात करें अखिलेश यादव द्वारा बांटे जा रहे लैपटाप और टैबलेट की। इसमें सबसे पहले सवाल यह पैदा होता है कि कितने छात्रों की माली हालत इस काबिल है जो वे लैपटाप या टैबलेट का इस्तेमाल कर सकते हैं ? इस बात की क्या गारन्टी है कि जिन छात्रों को लैपटाप या टैबलेट दिये जा रहे हैं वे खुद इस्तेमाल करेंगे या उन्हें उससे क्या लाभ होगा ? कितने छात्रों की माली हालत ऐसी है जो 300 से 500 रूपये मासिक पर कम्पूटर कोंिचग करके लैपटाप चलाना सीख लेंगे ? कितने छात्रों के घरों पर सरकार ने बिजली की सुविधा देदी है जिससे वे अखिलेश यादव के लैपटाप की बैट्रियां चार्ज कर सकेगे ? क्या लैपटाप या टैबलेट से रोटी निकलेगी जिससे छात्रों का पेट भर सके ? हम यह बात दावे के साथ कह सकते हैं कि न तो लैपटाप या टैब्लेट से रोटी डाउनलोड होगी, और न ही 60 फीसदी बच्चों की माली हालत इस काबिल है जो कम्पूटर कोचिंग जाकर कुछ सीख सकें, आज भी 70 फीसदी छात्र ऐसे गांवों में रहते हैं जहां बिजली का नामो निशान तक नहीं है, 50 फीसदी छात्र ऐसे है जिन्हें मिलने वाले लैपटाप का इस्तेमाल उनके परिजन करेंगे ऐसे में साफ है कि करोड़ों रूपये पर पानी फेरकर दिये जा रहे लैपटाप या टैबलेट का 0.1 फीसद भी लाभ छात्रों को नहीं मिलने वाला। अगर यह मानें कि छात्रों को कोई फायदा हो या न हो कम से कम सरकार या सपा को तो फायदा होगा तो यह हमारी गलतफहमी के सिवा कुछ नहीं क्योंकि सपा को सफाये से बचाया नहीं जा सकता। सिर्फ मुस्लिम वोटों के सौदागरों को लालबत्ती देकर मोटी कमाई के मौके दे देने से ही सारा मुस्लिम वोट नहीं मिलने वाला बल्कि अखिलेश यादव की ये ही लालबत्तियां सपा की नैया को डुबोयेगी साथ ही गुलामों के खून पसीने की गाढ़ी कमाई को मनमाने तरह से उड़ाने का फार्मूला भी समाजवादी पार्टी का पत्ता साफ करने की तैयारी में है।
(इमरान नियाजी-09410404892)

Thursday, 11 April 2013

सफाये की तरफ बढ़ती सपा



इस बार विधान सभा चुनावों में उ0प्र0 के मुस्लिम वोट के साथ ही दूसरे अमन पसन्द, सैकूलर वोट भी समाजवादी पार्टी को मिले समाजवादी पार्टी को उम्मीद से कहीं ज्यादा सीटे मिलने की एक खास वजह थी अखिलेश यादव का चेहरा। मतदाताओं में अखिलेश यादव से कुछ उम्मीदें जागीं थी लोगों का मानना था कि जब पढ़ा लिखा मुख्यमंत्री होगा तो कुछ न कुछ तो सूबे का पहिया रफ्तार पकड़ेगा ही, लेकिन दिल के अरमां भत्तों में दबकर कुचल गये। अखिलेश यादव की सरकार भी सपा के पुराने ढर्रे पर ही चल रही है सूबे की भलाई के लिए तो कुछ हुआ नहीं उल्टे एक साल में 27 साम्प्रदायिक दंगों को नया रिकार्ड जरूर बन गया। अखिलेश यादव गुलाम वोटरों की उम्मीदों पर नाम मात्र भी खरे नहीं उतरे। अखिलेश यादव जनता के पैसे को बांटने और पिछली सरकार के किये कामों का फटटा पलटने में ही वक्त गुजारने में व्यस्त हैं। चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश यादव ने लगातार गुलाम जनता को यह यकीन दिलाने की कोशिश की थी कि इस बार बाहुबलियों से दूरी बनाये रखी जायेगी, अपनी इस घोषणा पर लोगों को सुन्हरे सपने दिखाने के लिए अखिलेश ने डीपी यादव को कुर्बानी का बकरा बनाया यानी चुनावों के दौरान डीपी यादव से दूरी बनाकर यह जताने की कोशिश की कि सपा और खासतौर पर सरकार में बाहुबलियों के लिए जगह नहीं रहेगी। सदियों से ही झासों में आने की आदी हुई सूबे की गुलाम जनता एक बार फिर सपनों में डूब गयी। लेकिन बाहुबलियों से दूर रहने की अखिलेश की घोषणा सिर्फ चुनावी बात थी तो सरकार बनते बनते सपा अपने असल रूप में आने लगी और राजा भैया जैसे शख्स को न सिर्फ समर्थक बनाया बल्कि कमाई में हिस्सेदारी भी दे दी, जिसका खमियाजा देश ने एक ईमानदार और होनहार डीएसपी को भुगतना पड़ा। इसी तरह कई और भी बाहुबली विधायक, सांसद तो हैं ही मंत्री भी हैं साथ साथ फिलहाल हर साईकिल सवार दबंगी के लबादे में फिरता नजर आ रहा है जिसमें कि सरकारी बिरादरी का तो कहना ही क्या है बस सरकारी बिरादरी का हर शख्स मुख्यमंत्री है। यही नहीं साईकिल सवार छुटभैये भी वीआईपी हो गये है। मायावती ने मुसलमानों को पूरा पूरा कुल्हड़ समझकर लालबत्ती थमा दी माया को लगा था कि इसको लालबत्ती थमा देने से सूबे भर का मुस्लिम वोट बसपा का जागीरी वोट बन जायेगा, लालबत्ती देने के बाद जब माया ने खुफिया तन्त्र से आकलन कराया तब पता चला कि सूबे भी के करोड़ों वोट तो दूर शहर के ही 25 वोट नहीं बढ़ सके, माया ने बिना देर किये लालबत्ती वापिस लेली। अब अखिलेश ने भी माया के कदम पर कदम रखते हुए लालबत्ती थमाकर मुसलमानों पूरा पूरा उल्लू समझने की कोशिश की, अखिलेश यादव ने तो मायावती से भी ज्यादा घाटे की सौदा की है अखिलेश की इस लालबत्ती से तो पांच वोटों को इजाफा भी होने वाला नहीं उल्टे लाखों वोट हाथ से निकल जरूर गये। अखिलेश यादव की हर कानून व्यवस्था की कसौटी पर पूरी तरह फेल हो गयी है। पिछली सरकार के दौर में गुलाम जनता की शिकायतों को रददी की टोकरी में डालने का चलन था लेकिन अखिलेश यादव की सरकार में शिकायतों को फाड़कर फेंक देने की व्यवस्था ने जन्म ले लिया। मिसाल के तौर पर जिला लखीमपुर खीरी के थाना निघासन में अदालत के आदेश के बाद धारा 420, 467, 468, 216, 217 आईपीसी के तहत मुकदमा कायम हुआ, विवेचनाधिकारी ने रिश्वत लेकर बिना ही कोई जांच किये घर में बैठे बैठे एफआर लगादी जिसे अदालत ने ठुकरा कर पुनः विवेचना के आदेश दिये। अदालत के इस आदेश को छः साल गुजर चुके हैं निघासन थाना पुलिस ने विवेचना के नाम पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया। इसकी कई बार सूचना अखिलेश यादव की दी जा चुकी है लेकिन नतीजा शून्य। बरेली के थाना प्रेमनगर में वर्ष 1   को अदालत के आदेश के बाद दर्ज किये गये मोटरसाईकिल लूट के मुकदमें में गुजरे साल से मुल्जिमान के गैरजमानती वारण्ट चल रहे हैं और नामजद मुल्जिमान रोज थानों में बैठकर दलाली का धंधा कर रहे हैं यहां तककि थाना प्रेमनगर में भी दलाली करने के लिए घण्टों बैठे हुए देखा गया है आजतक किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कई साल से गैरजमानती वारण्ट पर चल रहे इन आटोलिफ्टरों को अरैस्ट करके अदालत में पेश करे। मुलायम सिंह को मुसलमानों को मसीहा कहा जाता है मुसलमान भी समाजवादी पार्टी को अपना बड़ा ही खैरख्वाह समझते हैं लेकिन ऐसी एक भी वजह नजर नही आती जिससे बलबूते यह माना जाये कि समाजवादी पार्टी पूरी तरह से सैकूलर है या मुसलमानों की सच्ची हमदर्द है। सपा की अखिलेश यादव सरकार के एक साल में 27 दंगे,  गुजरे साल सावन माह में बरेली जिले में कांवरियों द्वारा शुरू किये गये उन्माद के बाद महीना भर तक कफर््यु रहा, कफर््यु के दौरान ही प्रशासन ने एक नई परम्परा की शुरूआत करते हुए संगीनों के बल पर नये रास्ते से कांवरियों को गुजारना शुरू किया विरोध को दबाने के लिए पहले ही बेहिसाब संगीनों से मुस्लिम इलाके को पाट दिया गया, इसी साल होली के मोके पर थाना सीबी गंज के महेशपुर अटरिया में एक नई जगह होली जलवाकर नई प्रथा की शुरूआत कराई गयी, थानाध्यक्ष से लेकर कप्तान तक कोई भी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं है। सपा को मुस्लिम हिमायती के नाम से मशहूर करके ज्यादा तर मुस्लिम वोट पर पकड़ बनाने वाले सपा मुखिया ने पहले कल्याण से याराना किया और अब अडवानी की मुरीदी शुरू कर दी, और अब संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के गुणगान अलापने लगे। आम मुसलमान तो बेशक मुलायम सिंह की चाल को नहीं समझ पा रहा और जो थोड़ा बहुत समझने की कोशिश करता है तो उन्हें बिकाऊ मुस्लिम नेता और मुल्ला समझने नहीं देते लेकिन काफी हद तक बुद्धिजीवी मुस्लिम मुलायम सिंह और सपा के खेल को समझ चुका है। मुलायम सिंह और समाजवादी पार्टी  के बारे में जो कहा जाता है कि मुस्लिम हिमायती है इस बात की पोल मुलायम सिंह के दिल दिमाग में बैठे कल्याण, अडवानी, और मुखर्जी के प्रेम ने खोल कर रख दी है। बची कसर दुपहिया वाहनों से हैल्मेट के बहाने कराई जा रही उगाही ने पूरी कर दी। सूबे का बच्चा बच्चा इस सच्चाई को जाना है कि जब जब सूबे में सपा का शासन आया तब तब गुलाम जनता से हैल्मेट के नाम पर उगाही का बाज़ार गर्म हुआ इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। दरअसल सपा के एक कद्दावर नेता और सूबे के वर्तमान मालिक मुलायम सिंह परिवार का करीबी रिश्तेदार की हैल्मेट बनाने का फैक्ट्री है इसलिए पुलिसिया लठ्ठ के बल पर हैल्मेट बिकवाने की कवायद हमेशा होती रही है। अगर गुलाम जनता की खून पसीने की गाढ़ी कमाई की लूट और बर्बादी की बात की जाये तो सपा सरकार मायावती से चार कदम आगे दिखाई पड़ रही है। मायावती ने गुलाम जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई को मूर्तियों पर लुटाया तो अखिलेश यादव लैपटाप और बेरोजगारी भत्ते, कन्या विद्याधन के शक्ल में लुटाने में मस्त हैं। यही नहीं माया के राज में तो सिर्फ मायावती के दौरे के दौरान ही अघोषित कफर्यु लगवा कर आती थी लेकिन अखिलेश सरकार के छुटभैये मंत्री और परिषदों के अध्यक्षों के दौरों के लिए भी क्षे़ में कफर्यु लगवाया जा रहा है। सबूत के तौर पर होली के अगले ही दिन मंत्री आज़म खां के बरेली आगमन पर बिहारीपुर ढाल से मलूकपुर पुलिस चैकी तक का पूरा रास्ता गुलाम जनता पर वर्जित कर दिया गया था क्योंकि होली का अगला ही दिन था और आजम खां को रंगे पुते लोग देखना पसन्द नहीं। देखें   http://www.anyayvivechak.com/fetch.php?p=646  बची कसर आज बरेली में सालिड वेस्ट प्लान्ट के उदघाटन के समारोह में संचालिका सपा पार्षद ने यह घोषणा करके कि  "सपा के जो पार्षद हैं वे मंत्री जी का स्वागत करने के लिए आवें"। दूसरी तरफ एक साल के सपा शासन में क्राइम की जो बरसात हुई उसकी मिसाल ही नही मिलती। साथ ही मलाईदार कुर्सियों पर ब्रादरीवाद की प्रथा भी सपा को सफाये की तरफ तेजी से ले जा रही है, इस बिरादरीवाद का नतीजे पुलिसिया बलात्कार, अवैध रूप से जिसको चाहे हिरासत में लिये जाने, हिरासत में ही कत्ल कर दिये जाने, भुक्तभोगियों को ही पीटे जाने व हवालातों में डाले जाने, पुलिस अफसरों से सिपाही तक सभी स्तरों पर गुलाम जनता से बेगार कराये जाने जैसे कामों के बाजार गर्म होने के रूप में देखा जा सकता है।
कुल मिलाकर आज यह दावा शायद गलत नहीं होगा कि आगामी चुनावों में सपा का हाल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से कहीं ज्यादा बदतर होना लगभग तय ही है। इस बार विधानसभा चुनावों में जहां अखिलेश यादव ने अप्रत्याशित सीटें हासिल करके सबको चैकां दिया तो आगामी विधान सभा चुनावों में समाजवादी पार्टी का सफाया भी इतिहास रचने वाला ही होगा।

Thursday, 28 March 2013

रंगे पुते लोग देखना पसन्द नहीं आज़म को

त्योहार पर बन्द कराया रास्ता-परेशान हुए होली पर घूमने वाले
बरेली-होली के ठीक दूसरे दिन यानी आज यूपी नरेश दरबार के मंत्री मो0 आज़म खान बरेली मोहल्ला सौदागरान स्थित दरगाह पहुंचे। आज़म खान की यह यात्रा किसी धार्मिक उद्देश्य से न होकर पूरी तरह राजनैतिक थी आज़म खां को सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और यूपी नरेश अखिलेश यादव ने सपा की गिरती साख को बचाने की कोशिश के तहत दरगाह भेजा। दरअसल लगभग सभी राजनैतिकों को यह गलत फहमी है कि दरगाह पर चादर चढ़ा देने या दरगाह से जुड़े किसी भी व्यक्ति को लालबत्ती दे देने से देश प्रदेश का सारा मुस्लिम वोट उनकी जागीर बन जायेगा। खैर बात है आजम खां के आज होली त्योहार के ठीक अगले ही दिन बरेली आगमन और बिहारीपुर ढाल से मलूकपुर चैकी तक का पूरा रास्ता गुलाम जनता के लिए वर्जित किये जाने की। आजम खां के दरगाह आने से आधा घण्टा पहले से लेकर वापिस जाने तक लगभग डेढ़ घण्टा तक यह पूरा मार्ग गुलाम जनता के गुजरने के लिए वर्जित कर दिया गया था, लेकिन यह नफरत और प्रवेश निषेध वर्दीधारियों पर लागू नहीं थी। अगर इस मार्ग पर बिहारीपुर ढाल मन्दिर और मस्जिद बीबी जी पर गुलामों को गुजरने से रोकने के लिए तैनात पुलिस वालों की माने तो साफ हो जाता है कि आजम खां ने ही हुक्म दिया था कि उनके रास्ते में कोई होली के रंगों से रंगा पुता व्यक्ति दिखाइ्र नही देना चाहिये। ये बात गुलाम जनता को इस मार्ग पर कदम रखने से रोक रहे पुलिस कर्मियों ने खुद अन्याय विवेचक प्रतिनिधि से कही, पुलिस कर्मियों का कहना था कि मंत्री जी का आदेश है कि त्योहार का मामला है लोग सड़कों पर घूम फिर रहे है लेकिन मेरे आते जाते समय कोई दिखाई नहीं देना चाहिये। पुलिस कर्मियों की मजबूरी तो थी उनकी नौकरी, लेकिन यहां तो आजम खां के खौफ से भाजपा और आरएसएस के वे नेता भी थर थर कांपते नजर आये जो मामूली से मामूली बात पर खुराफात और बखेड़ा खड़ा करने के एक्सपर्ट हैं। त्योहार के दिन मार्ग अवरूध किये जाने की बाबत अन्याय विवेचक ने भाजपा एंव हिन्दू जागरण मंच के कुछ नेताओं से उनका रूझान जानना चाहा तो वे  सिर्फ इतना कहते दिखे कि  "भाई फिलहाल आजम पावर में है तो मनमानी ओर हिटलरी चलेगी ही"।
अब सवाल यह पैदा होता है कि आजम खां ने त्योहार के अवसर पर जब लोग होली मिलने अपनी
नातेदारों सम्बन्धियों के यहां आते जाते है ऐसे में रास्ता बन्द कराया अगर इस बात को लेकर हिन्दू संगठन बिखर जाते और शहर जल उठता तो इसका जिम्मेदार कौन होता? जब आजम खां को रंगे पुते लोग देखना पसन्द नहीं हैं तो होली के अगले ही दिन आने की क्या जरूरत थी ? क्या दरगाह पर हाजिरी देकर या दरगाह से जुड़े लोगों से सौदे करके सपा आगामी लोकसभा में अपनी गिरती साख को बचा पायेगी ? हम पहले भी बता चुके है कि किसी दरगाह से जुड़े लोगों को लालबत्तियां बाट कर सपा कुछ हासिल करने वाली नहीं है लेकिन अखिलेश यादव ने भी मायावती का फार्मूला आजमाने की कोशिश की है जबकि यह सच किसी से छिपा नहीं है कि आगामी लोकसभी में तो जो सफाया होगा तो होगा लेकिन अगली विधान सभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को छब्बीस सीटे भी मिलना मुश्किल ही नही बल्कि ना मुम्किन नजर आ रहा है। और सोने पर सुहागा आजम खां का होली के अगले ही दिन बरेली आना साथ ही होली के रंगों से रंगे लोगों को देखना पसन्द न करना, समाजवादी पार्टी और अखिलेश सरकार की लुटिया डुबोने के लिए काफी हैं।
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Friday, 15 March 2013

ईमानदारों अफसरों के कत्ल क्यों ?-इमरान नियाज़ी


हमारे महान भारत की महानता यह है कि ईमानदारी से कानून के दिशा निर्देश के मुताबिक अपना फर्ज अदा करना आत्महत्या करने की कोशिश बन गया है। यानी टुसरान की ईमानदारी और निषक्षता उनकी जान की दुश्मन बन जाती है वह चाहे शहीद हेमन्त करकरे हो या फिर डीएसपी जिया उल हक़। असल गुनाहगारों को बेनाकाब करना या करने की तरफ कदम बढ़ाने का सीधा मतलब है अपना कत्ल कराने की सुपारी देना। ईमानदारी चाहे आतंकवादियों को बेनकाब करने में बरती जाये या किसी डान की करतूतें खोलने में, नतीजा सिर्फ मौत। खासतौर पर आरएसएस लाबी के किसी भी ग्रुप या व्यक्ति को बेनकाब करना या करने की तरफ कदम उठाना आत्महत्या करने के बराबर है।
देश में होने वाले धमाकों के असल जिम्मेदारों को बचाने के लिए खुफिया एजेंसियां और जांच एजेंसियां हमेशा ही बेगुनाह मुस्लिमों को फंसाती रही है और आज भी वही कर रही हैं यहां तक कि अगर मौका लगा तो सीधे कत्ल ही कर दिया। लेकिन साजिशी तौर पर फर्जी फंसाया जाने के बावजूद बेगुनाहों ने किसी भी जांच अधिकारी का आजतक कत्ल नहीं हुआ, जबकि देश में धमाके करने वाले असल आतंकियों को बेनकाब करने वाले शहीद हेमन्त करकरे को कत्ल करने के लिए पूरी नाटक रचा गया। मक्का मस्जिद, मालेगांव, अजमेर दरगाह, समझौता एक्सप्रेस समेत देश में जगह जगह धमाके करने वाले यह जानते थे कि इस समय बम्बई के ताज होटल में कुछ पाकिस्तानी नागरिक ठहरे हुए हैं इस इसी का फायदा उठाते हुए ड्रामा तैयार किया गया और और मौका मिलते ही हेमन्त करकरे पर गोलियां दाग दी गयी, क्योंकि हत्यारे अच्छी तरह से जानते थे कि हेमन्त करकरे की हत्या का इल्जाम सीधे सीधे पाकिस्तानी अजमल कस्साब पर ही थुपेगा, आतंकी अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब हुए। यानी देश में धमाके और आतंकी हमले करने वालों को बेनकाब करने वाले को भी ठिकाने लगा दिया आतंकी इस काम में भी कामयाब हुए। हेमन्त करकरे के कत्ल से डरकर अब कोई भी अफसर ईमानदारी दिखाने की जुर्रत नहीं कर पा रहा, यहां तककि वकील भी सहमें हुए दिखे, मिसाल के तौर पर अफजल गुरू का मामला बारीकी से देखें। क्षेत्रीय थाना पुलिस से लेकर राष्ट्रपति तक सब ही करते गये जो आतंकी और उनके आका चाहते थे। दिल्ली हाईकोर्ट, और हाल ही में हैदराबाद में किये गये धमाकों समेत देश के सभी धमाकों के मामलों में खुफिया एजेंसियां, जांच एजेंसियां वही करती चली आ रही हैं जो धमाके करने वाले चाहते हैं। क्योंकि हेमन्त करकरे का हश्र देखकर हर अफसर समझ चुका है कि जरा भी ईमानदारी दिखाने का नतीजा सिर्फ मौत है।
इसी तरह इमानदारी दिखाने की कोशिश करके उ0प्र0 के डीएसपी जि़या उल हक़ ने अपनी जान गवां दी। जिला उल हक काफी ईमानदार अफसर थे और ऐसे मामले की जांच कर रहे थे जिसके तार सीधे उ0प्र0की अखिलेश यादव की सपाई सरकार के बाहुबली मंत्री राजा भैया से जुड़े हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी खददरधारी के खिलाफ कोई जांच किसी ईमानदार अफसर के हाथ में हो और वह अफसर दुनिया में रहे। बस यही एक वजह थी कि जिया साहब को भून दिया गया। जिया साहब के कत्ल में उनके अपने ही साथी भी कम जिम्मेदार नहीं। तआज्जुब की ही बात है कि भारी भरकम फोर्स की मोजूदगी में एक पुलिस अफसर पर गोलिया दागी जांए और पुलिस कुछ न करे, कोई दूसरा पुलिस वाला न मरे, कोई हमलावर न मरे.....? कुल मिलाकर हम  सिर्फ यही कह सकते हैं कि जिया उल हक साहब को दुश्मन कोई इंसान नहीं थी बल्कि खुद उनकी इमानदारी थी, इसलिए किसी को दोष देना ही बेकार है।
हेमन्त करकरे ओर जिया उल हक के कत्ल में एक बात कामन ह यहकि हेमन्त करकरे ने आरएसएस के आतंकियों को बेनकाब किया था, तो जिया उल हक आरएसएस बैकग्राउण्ड वाले मंत्री राजा भैया को बेनकाब करने की तरफ बढ़ रहे थे।

Saturday, 9 March 2013

आरएसएस के दिशा निर्देश में काम करती एटीएस


 
                                                      (इमरान नियाज़ी)
अजीब सी बात है कि अफजल गुरू के मारे जाने के तुरन्त बाद ही हैदराबाद में धमाके होते हैं, कश्मीर में सिपाहियों को गोलियों से भून दिया जाता है। हमेशा की ही तरह इस बार भी हैदराबाद में ब्लास्ट की आवाज से पहले ही मीडिया ने जिम्मेदारों के नामों की घोषणायें शुरू कर दीं। आरएसएस पोषित मीडिया धड़ों ने ऐसा पहली बार नहीं किया बल्कि मक्का मस्जिद, मालेगांव, अजमेर दरगाह, समझौता एक्सप्रेस को बमों से उड़ाने की कोशिश करने वाले देश के असल आतंकियों असीमानन्द, प्रज्ञा ठाकुर के साथी आतंकियो को बचाने के लिए इन सभी धमाकों की आवाजों से पहले ही धमाके करने की जिम्मेदारी थोपते हुए मुस्लिमं नामों की घोषणायें की थी लेकिन भला हो ईमानदारी के इकलौते प्रतीक शहीद हेमन्त करकरे का जिन्होंने देश में धमाके करने वाले असल आतंकियों में से कुछ को बेनकाब कर दिया जिससे साजिश के तहत फंसाये गये कुछ बेगुनाह मुस्लिम नौजवान बच गये। हालांकि अभी भी कुछेक जेलों में ही सड़ाये जा रहे हैं। इसी तरह संसद हमले को लेकर आरएसएस पोषित मीडिया ने जमकर मनगंढ़तें प्रचारित व प्रसारित कीं। संसद हमले के मामले में मीडिया के कथित धड़ों को  जहां एक तरफ अफजल को ठिकाने लगवाने में पूरी तरह सफलता मिली तो वहीं दूसरी तरफ गिलानी ब्रदर्स को फंसाने की कोशिशें नाकाम होने पर पूरी तरह मुंह की खानी पड़ी। इसके बाद भी मीडिया ने अपना रवैया नहीं छोड़ा, बर्मा में आतंकियों के हाथों किये जा रहे कत्लेआम की एक भी खबर नहीं दी, और आसाम में गुजरे दिनों आतंकवादियों के हाथों किये जा रहे मुस्लिम कत्लेआम को ही झुटलाने की कोशिशें की गयीं।
मक्का मस्जिद, मालेगांव, अजमेर दरगाह और समझौता एक्सप्रेस को बमों से उड़ाने की कोशिश करने वालों को बचाने के लिए मीडिया और जांच एजेंसियों ने मुस्लिमों को फंसाया। उस समय मीडिया येे दावे कर रही थी कि इन घटनाओं में मुस्लिमों के हाथ होने के पुख्ता सबूत हैं। भला हो शहीद हेमन्त करकरे का जिन्होंने देश में धमाके करने वाले असली आतंकियों को सामने लाकर खड़ा कर दिया जिन्हें आरएसएस पोषित मीडिया आज भी स्वामी और साध्वी जैसे पवित्र और सम्मानित नामों से सम्बोधित करने से बाज नहीं आ रही। दरअसल हमारे देश की जांच एजेंसियां खास तौर पर एटीएस कानून के दिशा निर्देशन में काम करने की बजाये आरएसएस लाबी के अखबारों के दिशा निर्देश के मुताबिक काम करती है। हाल ही में हैदराबाद में धमाके करके मुस्लिमों को फंसाना शुरू कर दिया गया। आरएसएस लाबी के चैनलों ने धमाके की आवाज आने से पहले ही जिम्मेदारों के नामों का एलान करना शुरू कर दिया, और एटीएस व पुलिस ने मीडिया के दिशा निर्देशन के मुताबिक ही कदम उठाते हुए सीधे सीधे मुस्लिमों को निशाना बनाना शुरू कर दिया, यहां तककि शिवसेना के अखबार "सामना" ने एटीएस को एक नया हुक्म दिया कि फिल्म जगत से कुछ मुस्लिमों को भी फंसाया जाये। एटीएस ने हुक्म की तामील करते हुए निशाने साधना शुरू कर दिये, अब देखना यह है कि फिल्म जगत से किस किसको फंसाया जाता है। इस बार भी ठीक उसी तरह से कदम उठा रही है एटीएस और पुलिस जिस तरह से मक्का मस्जिद, मालेगांव, अजमेर दरगाह, समझौता एक्सप्रेस, दिल्ली हाईकोर्ट ब्लास्टों के मामले में उठाये थे। उन मामलों में आरएसएस पोषित मीडिया के दिशा निर्देशों पर चलते हुूए जांच एजेंसियों ने दर्जनों मेंस्लिम नौजवानों की जिन्दगियां बर्बाद कर दीं और फिर जब शहीद हेमन्त करकरे जैसा महात्मा के हाथ में मामला आया तो उन्होंने देश में धमाके करने वाले असल आतंकियों को बेनकाब करके दुनिया के सामने लाकर खड़ा कर दिया। हालांकि शहीद हेमन्त करकरे को उनकी ईमानदारी की सजा उन आतंकियों और उनके आकाओं ने देदी जिन्हें हेमन्त करकरे ने बेनकाब किया था, और हेमन्त करकरे की हत्या भी पुरी प्लानिंग के साथ की गयी यानी पहले बम्बई ताज होटल पर हमला फिर मौका पाकर हेमन्त करकरे का कत्ल और सारा इल्जाम थोप दिया कस्साब के सिर पर। क्योंकि आतंकी यह जानते थे कि होटल के अन्दर कुछ पाकिस्तानी मौजूद है इसलिए सारा इल्जाम पाकिस्तानियों के ही सिर पर मंढ जायेगा। आतंकी अपनी प्लानिंग में पूरी तरह कामयाब भी हुए।
अब जबकि अफजल को मार दिया गया, अफजल को लेकर दुनिया भर के इंसाफ पसन्दों और बुद्धीजीवियों में जमकर बहस चली और चल रही है कश्मीर में रोष और गुस्सा है कश्मीर के अलावा भी दुनिया का हर इंसाफ पसन्द शख्स चाहे वह मुसलमान हो या हिन्दू अफजल के मारे जाने से खफा है, अदालत कानून सरकार सभी से इंसाफ परस्तों का भरोसा लगभग उठ ही चुका है। देश के कुछ हिस्सों में रोष और प्रदर्शन भी हुए, यह और बात है कि केन्द्र की सोनिया रिमोट वाली आरएसएस एजेण्ट कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार ने अफजल का मातम मनाने पर भी पाबन्दी लगाकर अपने आकाओं को खुश करने की भरपूर कोशिश की। मक्का मस्जिद, मालेगांव, अजमेर दरगाह, समझौता एक्सप्रेस समेत देश में किये गये दूसरे धमाकों को मददेनजर रखते हुए हाल ही में हुए हैदराबाद धमाको को देखा जाये तो साफ़ हो जाता है कि हैदराबाद में जो धमाके किये गये वे उन्हीं लोगों ने किये और करवाये हैं जिन्होंने मक्का मस्जिद, मालेगांव, अजमेर दरगाह, समझौता एक्सप्रेस और देश के दूसरे इलाकों में धमाके किये, क्योंकि धमाके करने कराने वाले जानते ही हैं कि अफजल को ठिकाने लगाये जाने का विरोध तो चल ही रहा है ऐसे में ये लोग कोई भी आतंकी हरकत करते है तो उसका आरोप सीधे सीधे और बड़ी ही आसानी से मुस्लिमों पर लगाना आसान होगा, बस इसी मौके का पूरा पूरा फायदा उठाते हुए हैदराबाद में धमाके करा दिये गये। प्लानिंग के मुताबिक धमाकों की आवाज़ों से पहले ही मीडिया और खुफिया एजेंसियों, एटीएस के इजाद कर्दा संगठनों के नामों के एलान शुरू कर दिया। एटीएस ने भी बेगुनाह मुस्लिमों को उठाना शुरू कर दिया। इस बार ब्लास्ट करने वाले और बेकसूरों को फंसाने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि अब कोई हेमन्त करकरे नहीं आने वाला जो मक्का मस्जिद, मालेगांव, दरगाह अजमेर, समझौता एक्सप्रेस के मामलों की हकीकतों को उजागर करे साथ ही अफजल के मामले में अदालतों के फैसले भी हैदराबाद ब्लास्ट करने वालों को मुतमईन कर चुके हैं कि अदालतें वही करेंगी जो आरएसएस पोषित मीडिया और खुफिया एजेंसियां चाहेगी। अफजल गुरू के मामले को मददेनजर रखते हुए पूरी उम्मीद की जा सकती है कि हाल ही में हैदराबाद में धमाकों के नाम पर जिन मुस्लिमों को फंसाया जा रहा है उन्हें एक-डेढ़ साल के अन्दर ही ठिकाने भी लगा दिया जायेगा, उन्हें भी अपनी बेकसूरी का सबूत पेश करने की इजाजत नहीं होगी, उन्हें भी ढंग का वकील नहीं दिया जायेगा, उनके मामले में भी सारे वकील जज बन जायेंगे और आखिर में कोई ठोस सबूत हो या न हो सीधे सीधे ठिकाने लगाकर धमाके करने वालों को साफ बचा लिया जायेगा। जैसा कि होता रहा है। एटीएस समेत अधिकांश जांच एजेंसियां कानून के दिशा निर्देशन में काम करने की बजाये "संघ" के दिशा निर्देशन में काम करती हैं। हैदराबाद ब्लास्ट मामले में ऐसा ही हो रहा है आरएसएस लाबी के अखबार और चैनल जिधर इशारा करते हैं एटीएस उसी तरफ रूख कर लेती है (http://hindi.in.com/showstory.php?id=1720402) तीन दिन पहले ही शिव सेना के अखबार ने फिल्म जगत के मुसलमानों की तरफ इशारा किया, एटीएस ने तुरन्त ही फिल्म जगत के मुस्लिमों पर निशाना साधना शुरू कर दिया। हर धमाके के बाद यही किया जाता रहा है धमाके करने कराने वालों के निर्देशन में की जाती है कार्यवाहियां। धमाके करने वालों को बचाने के लिए बेकसूरों को फंसाकर उनपर अत्याचार करने और अफजल गुरू के खिलाफ कोई ठोस सबूत न होते हुए भी मौत दिये जाने के मामले को थोड़ी सी भी गहराई में जाकर देखा जाये तो एक सच यह भी सामने आता है कि जांच अधिकारी, अदालतें, वकील, पुलिस सबके सब हेमन्त करकरे जैसा अपना हाल किये जाने से बचने के लिए ही धमाके करने वालों के इशारे पर चलने पर मजबूर होते हैं। सभी जानते हैं कि हर धमाके के बाद थोक भाव में बेकसूर मुस्लिमों को जेल में डालकर उनपर अत्याचार किये जाते हैं मौका पाकर सीधे सीधे कत्ल भी कर दिया गया लेकिन आजतक किसी भी जांच अधिकारी का कत्ल नहीं हुआ लेकिन जब ईमानदारी के प्रतीक शहीद हेमन्त करकरे ने असल आतंकियों को बेनकाब किया तो चन्द दिनों के भीतर ही हेमन्त करकरे को जान से हाथ धोना पड़ा। हेमन्त करकरे के हत्यारे आतंकियों ने उस समय भी मोके का फायदा उठाया और हेमन्त करकरे की हत्या करदी वो मौका था बम्बई हमले का, हत्यारे आतंकी यह जानते थे कि हेमन्त करकरे की हत्या भी कस्साब के सिर मंढ दी जायेगी और हत्यारे अपने मकसद में कामयाब हो भी गये। शायद इसी चीज के खौफ से जांच एजेंसियां, अदालते, वकील सभी डरे हुए है कि जरा भी इमानदारी से कदम उठाया तो सीधे जान जायेगी, शायद इसी खौफ की वजह है कि जांच अधिकारी से अदालत तक सभी वैसा ही करते जाते हैं जो आरएसएस लाबी चाहती है। कितनी चैकाने वाली बात है कि स्वतंत्र जांच एजेंसियों का अपना कोई विवेक ही नहीं है आरएसएस लाबी के मीडिया धड़ों के दिशा निर्देश के मुताबिक काम करती हैं। दूसरी तरफ अगर देखा जाये तो यह भी मालूम होता है कि इन सब हालातों के लिए खुद मुसलमान भी एक बड़ी हद तक जिम्मेदार हैं। आरएसएस लाबी पोषित मीडिया द्वारा मुसलमानों को आतंकी घोषित करने की कोशिश किये जाने की सबसे पहली और बड़ी वजह यह है कि मुसलमान का मीडिया जगत में कोई खास हिस्सेदारी नहीं है जो हकीकतों को उजागर करे और जो कुछ है भी तो उसे खुद मुसलमान ही उनको सपोर्ट नहीं करते, मुस्लिम अखबारों को खरीदते नहीं उन्हें विज्ञापन नहीं देते क्योंकि मेरी कौम भैंसा खाती है तो उसकी खोपड़ी भी भैंसे वाली होना स्वभाविक है, मुसलमानों को रंगीन फोटो और खूबसूरत छपाई वाले अखबार पसन्द है इससे बात से कोई लेना देना नहीं कि वह अखबार उनके ही खिलाफ कितना जहर उगल रहा है। अभी तीन साल पहले की ही बात है बरेली के एक मुल्ला जी ने बरेली से ही प्रकाशित एक (आरएसएस) लाबी के अखबार की प्रतियां चैराहे पर यह कहते हुए जलाई कि "यह अखबार मुसलमानों का दुश्मन है मुसलमानों के खिलाफ लिखता है" इसमें गौरतलब बात यह थी कि इसके अगले ही दिन इन्हीं मुल्ला जी ने अगले ही दिन शिवसेना के एक अखबार को बीस हजार रूपये मूल्य का विज्ञापन दिया। क्या बरेली में मुस्लिम अखबार या निष्पक्ष वाणी वाले अखबार नहीं थे, किसी को 20 रूपये का भी विज्ञापन नहीं दिया, क्यों ?...... क्योंकि इन अखबारों में उनका फोटो रंगीन और खूबसूरत नहीं दिखता। ऐसा नहीं कि मुस्लिम पत्रकार नहीं या मुस्लिम अखबार नहीं, ज्यादा तर मुस्लिम पत्रकार सिर्फ अपनी कमाई के लिए मुस्लिम दुश्मन मीडिया धड़ों की ही बोली बोलते रहते हैं मुस्लिम अखबारों की तो बात करना ही बेकार है। जबतक मुसलमानों का मीडिया जगत में मजबूत स्तम्भ नहीं होगा तब तक आरएसएस पोषित मीडिया धड़ों को मुसलमानों को बदनाम करने और फंसाने की साजिशें रचने में कामयाबी मिलती रहेगी। इसके अलावा मुसलमानों के लगातार कमजोर होते जाने की एक बड़ी वजह यह है कि मुसलमानों के बीच आपसी तआस्सुब बाजी बड़े पैमाने पर है सुन्नी, वहाबी, देवबन्दी आदि। अगर मुसलमान को अपना वजूद बचाना है तो यह ड्रामे बाजी छोड़कर सिर्फ मुसलमान बनकर एक प्लेटफार्म पर आना होगा, ऐसा मुल्ला होने नहीं देंगे।
शिवसेना के अखबार ने फिल्म जगत के मुस्लिमों को शिकार बनाने के लिए एटीएस को निर्देश दिये एटीएस ने निशाना साधना शुरू कर दिये। चलिये हम शक ही नहीं बल्कि मजबूत यकीन के साथ कह रहे हैं कि हैदराबाद धमाकों में गुजरात आतंक, मक्का मस्जिद, मालेगांव, अजमेर दरगाह और समझौता एक्सप्रेस में धमाके करने वालों ने ही किये या कराये हैं। क्या एटीएस हिम्मत जुटा पायेगी इस तरफ जांच का रूख करने की ? नहीं, क्योंकि अब कोई हेमन्त करकरे नहीं है। हम यह भी नही कह रहे कि अब कोई ईमानदार अधिकारी नहीं है।  बहुत हैं लेकिन कोई भी ईमानदारी दिखा कर हेमन्त करकरे की तरह अपना कत्ल कराना पसन्द नही करता। अगर कानून जांच अधिकारी की जान की सुरक्षा का पुख्ता इन्तेजाम करे तो यकीनन एक बार फिर दूध का दूध पानी का पानी होकर हैदराबाद धमाकों के असली जिम्मेदारों का पर्दाफाश हो सकता है।