Tuesday, 30 May 2023

कुकुरमुतो की तरह फैले मोबाइल मेडेड स्वंयभू पत्रकारों का सच

 

आपको याद होगा कि लगभग दस साल पहले घुमन्तु भिकारियों की टोलियां बाज़ारों में दुकानों पर मांगती थी। जब दुकानदार "चवन्नी" (25 पैसे का सिक्का) देता तब टोली का मुखिया कहता कि  "4 लोग है" - "5 लोग हैं"  मतलब टोली के  "बन्दों की गिनती बताता"  तब दुकानदार 25 पैसे प्रति बन्दे के हिसाब से दे देते।

दिन ग़ुज़रते गये। इण्डिया डिजीटल होने लगा। मज़दूरों की जगह मशीनों ने लेली। कार्बन और टाईप राईटर की जगह कम्पूटर ने लेली। जब सब का डिजीटली करण हुआ तब उन घुमन्तू भिकारियों का भी डिजीटली करण हुआ।  "मेरा भारत बदल रहा है"  की चपेट में घुमन्तुओं की टोली भी आ गई।
घुमन्तुओं की टोलियों का आधूनिकी करण होकर नाम हो गया  "पत्रकार",  जी हां पत्रकार। हम बात कर रहे हैं उन घुमन्तुओं की जो  "पत्रकार बनाने वाली मशीन"  यानी  "एण्ड्रायड फोन"  से पत्रकार बन गये हैं।
दूसरी तरफ़ घुमन्तुओं की झोली और कटोरे का आधूनिकी करण होकर "पिट्ठू बैग और माईक आई डी"  का रुप ले लिया। ये सारे महाज्ञानी वैल एजूकेटेड स्वंभू पत्रकार वे हैं जिन्हें "पत्रकार" शब्द की ना परिभाषा ही मालूम है ना ही पत्रकार शब्द का अर्थ ही पता है। योग्यता का स्तर यह है कि किसी भी घटना को  "खबरिया भाषा"  में लिख नहीं सकते। खैर - परिभाषा या अर्थ पता होना इनके लिए ज़रुरी भी नहीं है क्योंकि इन्हें घटनाओं या हालात से कोई सरोकार भी नहीं होता। इनको तो सुबह से शाम तक किसी भी तरह 500 - 1000/ रुपये कमाने होते है। 
घुमन्तू बाज़ारों में दुकानदारों से अपनी टोली की गिनती के हिसाब से मांगते थे आधुनिकिकरण होने पर ये दुकानदारों की जगह चुनावी उम्मीदवारों के दरवाज़ों पर पहुंचने लगे। घुमन्तुओं की तरह  "टोली के सदस्यों की तादाद" की जगह "आईडी की तादाद" बताई जाने लगी यानी  "सर 4 आईडी हैं - 6 आईडी हैं"। इनकी अभूतपूर्व पत्रकारिता की योग्यता को बताता है इनकी लेखनी जैसे :- ख़बर में खद्दरधारियों/अफ़सरान यहां तक कि प्रधान व सभासद प्रत्याशियों के लिए "माननीय / महोदय / जी / श्रीमान" जैसे शब्दों का प्रयोग साथ ही किसी अफ़सर या पुलिस की तैयार की हुई स्क्रिप्ट को ही सम्पूर्ण मानकर फेसबुक / WhatsApp पर दौड़ाने लगना। इन महामुनियों ने तो Twitter जैसे प्लेटफार्म को भी चैनल या अख़बार समझ लिया है।
हमारी बात लगभग सभी को बुरी लगी है लेकिन सच तो सच है।


Sunday, 28 May 2023

राजतन्त्र और सामन्तवाद की तरफ घसीटा जा रहा है देश - इमरान नियाज़ी

‘‘सुप्रीम कोर्ट के आर्डर को पलटना एक करारा तमाचा है उन जजों के मुंह पर जिन्होंने महाराज अधिराज को खुश करके न्याय शब्द का मुंह काला करते हुए मनमानी थोपी और बेकसूरों को मौत के घाट उतरवा दिया’’

दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र के नाम से जाना जाने वाला भारत 2014 से लगातार राजतन्त्र की तरफ घसीटा जा रहा है। हमने 2016 में ही कहा था कि भारत से लोकतन्त्र को खत्म करके सामन्तवाद में दाखिल किये जाने की कोशिशें की जा रही हैं। उस वक्त किसी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। लेकिन तिगड़ी अपनी कोशिशों में लगी रही और लगभग 50 फीसदी कामयाब भी हो गई। मकसद में कामयाबी के लिए तिगड़ी ने किराये के भांडों को परमानेन्टली खरीदकर वीरगाथा शुरू कराई साथ ही विदेशी मालिकों की नीति पर चलकर ‘‘फूट डालो राज करो’’ का फार्मूला अपनाया, देश को बांट दिया जिससे बगावत के हालात ही ना पैदा हो सकें। फिर नोटबन्दी, लाॅकडाऊन, खेती बिल, देश की धरोहरों का बेचा जाना, दान में मिली आक्सीजन पर अपना नाम चिपकाकर बेचा जाना, गांव से गांव को मिलाने वाले लिंक रास्तों तक पर गुलामी टैक्स वसूला जाना, विरोधियों को सरकारी शूटरों के हाथों मौत के घाट उतरवाना, संविधान को खत्म किया जाना,  अदालतों को गुलाम बनाकर रखना, वगैरा ये सब राजतन्त्र और सामन्तवाद की सीढ़ियां है जो तिगड़ी आसानी से चढ़ती चली गई।

खेती बिल को छोड़कर बाकी सभी सीढ़ियां बिना ही किसी विरोध के आसानी से इतनी सीढ़ियां चढ़ लेने से तिगड़ी के होसले बुलन्द हुए। अगर बात करें अदालत नाम के उन कमरों की जिसकी कुर्सी को भगवान की कुर्सी माना जाता है तो तिगड़ी और उसके कारिन्दों ने उन भगवानों को ही खरीदकर और डराकर जेब में डाल लिया, जिनपर लोग अटूट भरोसा करके उन्हें निष्पक्ष मानते थे। वे छोटे से बड़े भगवान तक बिककर या डरकर तिगड़ी की मंशा के मुताबिक न्याय का मुंह काला करने लगे। ‘‘जिस देश में निचली अदालतें कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को ठुकराकर मालिकों के इशारे पर किसी धर्म स्थल की खुदाई कराये, या उसको छीनकर एक पक्ष को देने के काम करती हो’’,

जिस देश की सुप्रीम कोर्ट ये कहते हुए किसी को मौत दे कि ‘‘आरोपी के आतंक होने या किसी आतंकी संगठन से जुड़े होने का कोई सबूत नहीं पाया गया’’, ‘‘जिस देश की सुप्रीम कोर्ट देश के सबसे बड़े कत्लेआम से जुड़े सभी मामलों को बन्द करा दे’’, ‘‘जिस देश की सबसे बड़ी अदालत 5 सौ साल के इतिहास को ही किनारे करके मनमानी थोपती हो।’’ ‘‘जिस देश में किसी गैंगस्टर के सत्तारूढ़ दल का नेता बनने उसपर चल रहे तमाम केसों को बन्द कर देती हों।’’ ‘‘जिस देश की अदालतें देश में बम धमाके करने वालों को देश की सबसे बड़ी विधायिका में बैठाने की इजाज़त देती हों।’’ उस देश में लोकतन्त्र की मोजूदगी मान लेना खुली आंखों से देखा जाने वाला सपना ही है। भारत में लोकतन्त्र से निकालकर राजतन्त्र या सामन्तवाद में दाखिल करने की कोशिशें गुज़रे नो साल से चल ही रही हैं। इसका सबसे बड़ा सबूत हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटना है। यानी अगर देश की सबसे बड़ी अदालत लोकतन्त्र के संविधान के मुताबिक सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ़ फैसला देगी तो उसको सरकार नहीं मानेगी। मतलब साफ है कि सरकार खुद को सर्वोपरि मानती है और सुपर पावर बनाये रखना चाहती है। ऐसा लगने लगा है कि सुप्रीम कोर्ट ना होकर कोई छोटा अफसर है जिसे सिर्फ सरकार की ही तरफ दारी करनी है चाहे वो संविधान की भावना और प्रावधानों के खिलाफ़ ही क्यों ना हो। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बैंच के फैसले को पलटकर सरकार ने उन जजों के मुंहों पर ज़ोर दार तमाचा जड़ा है, जो सरकार को खुश रखने के लिए बेकसूरों को मौत देने, इतिहास को मिटाने, और हज़ारों पीड़ितों को न्याय की जगह ठेंगा दिखाते रहे। हम ये बिल्कुल भी नहीं कह रहे कि सभी जजों ने किसी फायदे के लिए इंसाफ का मुंह काला किया, हो सकता है कि कुछ ने लालच में किये, तो कुछ ने खौफ़ से किये। आज उन्हीं तमाम कारगुज़ारियों का अन्जाम सबके सामने हैं। दरअसल तिगड़ी शुरू से ही देश में राजतन्त्र और सामन्तवाद लाने की कोशिशों में लगी है। इसके लिए तिगड़ी ने सबसे पहले चुनाव आयोग को जेब में डाला, फिर मेन स्ट्रीम की मीडिया को पालतू बनाया, इसके बाद जांच एजेंसियों का विलय कराया, धर्मवाद के हथियार से एक बड़ी तादाद में आम जन मानस का ब्रेनवाॅश करके उनके दिमाग़ों में भरा कि ‘‘धर्म की रक्षा इन्हीं के हाथों में है।’’ फिर धीरे धीरे अपने मिशन की तरफ बढ़ने लगी तिगड़ी। देश की धरोहरें बेची, कोई विरोध नहीं हुआ, चुपके चुपके मनमाने बिल पास किये कोई विरोध नहीं, चीन को देश में कब्ज़े कराये गये देश सोता रहा, कश्मीर हिमांचल में सेब सन्तरे आदि की खेती पर मुंह चढ़ों को कब्ज़े कराये गये इसपर भी सन्नाटा रहा, अगर बदकिस्मती से देश की खेती का 90 फीसद किसान सिख और जाट ना होते तो देश के अन्नदाताओं को भी लाला का गुलाम बना दिया गया होता। सलाम है सिखों की हिम्मत और देश प्रेम को जिन्होंने दुम सीधी करके ही मैदान छोड़ा। निचली अदालतों से सुप्रीम कोर्ट तक को इशारों पर नचा लेने से गदगद होकर तिगड़ी ने सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक लोकतान्त्रिक संस्था को भी खत्म करने का क़दम उठा दिया, अगर मान भी लिया जाये कि राजतन्त्र और सामन्तवाद लागू करने में अभी कुछेक साल का वक़्त लग सकता है तब भी सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ क़दम उठाकर तिगड़ी ने आने वाले उन जजों की हिम्मतों और ईमानदारियों को पहले ही कुचलने की कोशिश की जो कभी सीजेआई चन्द्रचूड़ के नक्शे कदम पर चलने की कोशिश कर सकते थे। अगर तिगड़ी ने राज्यसभा के पटल से अपनी मंशा के अनुरूप पास कराकर सीधे राजतन्त्र और सामन्तवाद लागू कर दिया जायेगा।

अब सवाल ये पैदा होता है कि अगर तिगड़ी अपने मकसद में कामयाब हो जाती है तो उनका क्या होगा जो इस वक्त तिगड़ी को ही धर्म और भगवान मानकर पूजने में लगे हैं ? या उन वैल एजूकेटेड लोगों यानी आईएएस, आईपीएस और कानून के अच्छे जानकार यानी जजों का क्या होगा जो आज तिगड़ी को खुश करने के लिए संविधान, इंसाफ और देश को रौंदते दिख रहे हैं ? उन खद्दरधारियों का क्या हाल होगा जो आज तिगड़ी की हर तरह से मदद में मस्त हैं ? यहां तककि राष्ट्रपति जैसी संवैधानिक कुर्सी पर आसीन होकर भी तिगड़ी की जी हजूरी में बिना सोचे समझे दस्तखत करते रहे ? इस सवाल के जवाब में हम दावे के साथ कह सकते हैं, कि सबसे ज्यादा बुरे दिन इन्हीं लोगों पर आयेंगे, बाकी आम जनता तो 1947 से पहले भी गुलाम थी, 1947 के बाद आज तक गुलाम ही है तो भविष्य में भी रह लेगी, देश का आम आदमी तो पहले से ही मानसिक गुलाम है इसलिए उसे कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला।


Thursday, 23 February 2023

विस में पालतू मीडियाई रोबोटों की कुटाई पर छुटभैयों में मातम

विधान सभा में सरकारी प्रवक्ताओं दलालों की कुटाई पर मातम - इमरान नियाज़ी

अपनी बात कहने से पहले कहना यह है कि इसको पढ़कर ना तिल्मिलाईये ना कूदिये बल्कि शान्त दिमाग़ से समझिये।
दुनिया के इतिहास में पहली बार गुज़रे दिनों उ0प्र0 विधान सभा में कुछ मीडियाई दलालों की कुटाई हुई। इस कुटाई से मीडिया के उस तबक़े में सबसे ज़्यादा मातम बर्पा है जिसको विधान सभा में घुसने तो क्या विधान सभा गेट पर भी जाने नहीं दिया जाता। मातम करने वाले तबके को कुटने वाला तबका कभी पत्रकार या मीडिया कर्मी तक नहीं माना जाता। यानी पाक्षिक/साप्ताहिक अखबार न्यूज़ पोर्टल आदि से जुड़े मीडिया कर्मी। कूटा गया वर्ग खुद को बड़ा पत्रकार समझने की बीमारी से पीड़ित है। दूसरा बड़ा पहलू यह है कि विधान सभी में केवल पालतू और चाटू मीडिया को इन्ट्री देने का प्रावधान है। अब कुछ महा ज्ञानी कहेंगे कि विधानसभा या संसद में केवल मान्यता प्राप्त को ही इन्ट्री होती है। इसके जवाब में यह जानना ज़रूरी है कि मान्यता मिलती किसको है ? जी हां हमारे देश की यह विडम्बना रही है कि मीडिया जगत में सरकार सिर्फ उन्हीं को देती है जो सरकार के पालतू बनकर चम्चा गीरी करते हैं, जो कभी सरकार से सवाल पूछने की गलती नहीं करते, जिन्हें देश की जनता की समस्यायें नहीं दिखती,  जिन्हें कभी स्थानीय मुद्दे नहीं दिखते, जो खद्दर धारियों और अफ़सरों के गुणगान करने वाले सरकारी भोपू बनकर रहते हैं। बाक़ी जो सरकार से सवाल पूछे, जो जनता की समस्याओं को उठाये, जो खद्दरधारियों और अफ़सरान को सलाम ना ठोकते हों, जो दलाली ना करते हों, उन्हें कभी मान्यता नहीं दी जाती। हम यह बात सिर्फ़ हवा में नहीं कह रहे बल्कि सैकड़ों सबूत मौजूद हैं। दूसरा पहलू यह कि ये वही पालतू हैं जो उनको फ़र्ज़ी बताते फिरते हैं जो आज ज़ोर शोर से कुटाई का मातम करते दिख रहे हैं। साथ ही जब जब पाक्षिक/साप्ताहिक अखबार या पोर्टल वालों पर सरकारी आतंक होता है तब ये पालतू जमकर मुजरे करते दिखते हैं। लेकिन आज जब पालतुओं पर दाब पड़ी तब वे ही सब मातम करते दिख रहे हैं जिन्हें ना तो सरकार ही सम्मान देती है और ना ही खुद को बड़ा ओर असली समझने वाले पालतू। यहां एक बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि जिनको वैल्यू नहीं दी जाती वे आज मामत क्यों कर रहे हैं। इसकी सच्चाई इकलौती और बेहद कड़वी है। दरअसल गुज़रे दस एक दशक के दौरान पत्रकारों की बाढ़ आई हुई है। इनमें 99 फ़ीसदी वे महामुनि शामिल हैं जोकि एण्ड्राइड फोन से पत्रकार बनते हैं। लगभग 80 फ़ीसद ने डिग्री कालेज तो बड़ी बात है कभी इन्टर कालेज के अन्दर जाकर नहीं देखा। लेकिन बन गये बड़े ही काबिल और वरिष्ठ पत्रकार। पांच से दस हज़ार रूपये का एक मोबाइल खरीदा और बन गये बड़े पत्रकार और करने लगे दलाली। जिन्हें पत्रकार शब्द का सहीं अर्थ नहीं मालूम होता है लेकिन दिन भर कापी पेस्ट करके तोप चलाते फिरते हैं। अब दूसरा बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि आखिर ये मोबाइल मेडेड स्वंयभू पत्रकार मातम कर क्यों रहे हैं। इसका सीधा और इकलौता जवाब है कि इन बेचारों को मालूम ही नहीं है कि पत्रकार बनकर फिरने और पत्रकार होने में कितना अन्तर है।

Sunday, 18 November 2018

मुस्लिम वोट की सेल - इमरान नियाज़ी


गुज़री 5 और 6 नवम्बर को दो ऐसी शख्सियतों के उर्स थे जिन्होने अपनी इस्लाम परस्ती तक्वे परहेज़गारी के बल पर दुनिया भर मे अपने नाम का सिक्का कायम कर दिया। यानी आला हज़रत और मुफ्ती आज़म हिन्द का, जहां तक मेरी जानकारी मे है तो हमने सुना है यह दोनो ही सियासत से बहुत दूर रहते थे हद तो यह थी कि खुद मुफ्ती आज़म ने अपने सगे दामाद एमएलसी रेहान रज़ा खां से बात करना तक बंद कर दिया था। ऐसे बुजु़र्गों के मंच से मुस्लिम वोटों की बिकं्री किया जाना वो भी खुद उन बुज़ुर्गों के अपनो के हाथों ही, यह एक चौकाने वाली बात है। उर्स के दौरान बरेलवी उलमाओं ने सीधे सीधे मुस्लिम वोट बेचे, उर्स के दौरान आल इण्डिया तन्जीमे उल्लेमाए इस्लाम ने बड़ा ही शर्मनाक एलान करते हुए कहा कि मुसलमान भाजपा और मोदी की मुखालफत बिल्कुल भी ना करे, मौलबियों ने यह एलान सिर्फ और सिर्फ इसलिये किया क्योंकि चन्द दिन पहले ही नशीली गोलियों के साथ दुबई मे अरेस्ट कर लिये गये तौसीफ रज़ा खां को रिहा कराने मे केन्द्रीय मंत्री और बरेली से बीजेपी सांसद संतोष गंगवार ने कुछ मदद करदी थी सांसद संतोष गंगवार के इस अहसान के बदले में मुसलमान को बीजेपी की मुखालफत ना करने का मशविरा दे दिया गया। क्यों जी क्यों ना करें मुसलमान बीजेपी का विरोध? हां अगर यह कहा जाता कि संतोष गगंवार का विरोध ना करें, तो बात किसी हद तक समझा में आ सकती थी, क्योंकि संतोष गंगावार ने भाजपाई होते हुए भी मदद की। यहां एक बात साफ करना ज़रूरी है कि संतोष गंगवार के पास आज तक जो भी मदद मांगने गया संतोष गंगवार ने बिना भेदभाव किये मदद करी। मैं बीजेपी का विरोधी होते हुऐ भी संतोष गंगवार का विरोध नही करता क्योंकि संतोष गंगवार व्यक्तिगत रूप से बेहतर इंसान है भाजपाई होते हुऐ भी संतोष गंगवार ने व्यक्तिगत रूप से कभी मुसलमानों के खिलाफ कुछ नही किया इसलिये संतोष गंगवार का विरोध ना करने की सलाह दिया जाना तो समझ मे आता है लेकिन बीजेपी का विरोध ना करने की सलाह देना वह भी सिर्फ इसलिये की भाजपाई नेता ने तौसीफ रजा़ को छुड़ाने मे मदद की, यह शर्मनाक बात है कि सिर्फ एक तौसीफ रज़ा खां की रिहाई के बदले मुसलमान गुजरात के साढ़े तीन हज़ार से ज़्यादा बेगुनाह मुसलमानों के कत्लेआम को कैसे भुल सकता है ? सैकड़ों मुस्लिम मासूम बच्चियों की आबरू जनी को कोई भी सच्चा मुसलमान कैसे भूल सकता है ? दर्जनों हामला ओरतों के पेट चाक करके बच्चे निकालकर आग में फेंके जाने के मंजर को किस दिल से अनदेखा किया जा सकता है? असम में आतंकियों के हाथों सैकड़ों मुसलमानों के कत्लेआम किये जाने के वाक्ये को कहां मिटाया जाये, क्या तोसीफ रजा की अहमियत हजारों बेकसूर मुसलमानों की जिन्दगियों, मासूमों की जिन्दगियों मुस्लिम बच्चियों की आबरूओं से ज्यादा हो गई जो गुजरात और असम मे आंतकियों ने तार तार की थी। क्या तौसीफ रज़ा वैल्यु उमर खां, पहलु खान, अखलाक ज़ाहिद अहमद,मज़लुम अंसारी, इम्तियाज़ खां, मुस्लैन अब्बास नजीब, ज़हीर हुसैन वगैरह की जानो से ज्यादा है। जिनकी जाने बीजेपी पोषित आंतक ने खत्म की। सिर्फ तौसीफ रजा की रिहाई के बदले बकसूर  इशरत जहां के खून के कत्ल को मिटाया जा सकता है। क्या सौहराबुद्दीन और सोहराबुददीन कत्ल के चश्मदीद बेगुनाह तुलसीराम प्रजापति के कत्ल को किस दिल से भुला दिया जायें। बीजेपी का विरोध ना करने की सलाह देने वाले बतायें कि दादरी में गौआतंक ने मो0 अखलाख को बेरहमी से कत्ल कर दिया और उनके घर में रखे बकरे के गोश्त को गाय का गोश्त बताकर आतंक बर्पाया गया, क्योंकि गोश्त बकरे का था इसलिए कानून ने अपना काम किया लेकिन जैसे ही उत्तर प्रदेश में भी कानून बीजेपी का गुलाम बना वैसे ही उसी मटन को बीफ बना दिया गया और आतंक बरपाने वालों को छोड़ दिया गया, जाहिर है कि यह भी बीजेपी की करतूत थी इसे कैसे भूला जा सकता है। शर्म आनी चाहिये थी इस तरह का मशविरा देने वालों को, क्योंकि मासूम आसिफ के गुनाहगार भी भाजपाई है, शहीद हेमन्त करकरे की कुर्बानी पर कालिख पोतकर अजमेर दरगाह, मक्का मस्जिद, मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस धमाके करने वाले आतंकियों को क्लीनचिट देकर कानून से आज़ाद करने वाली मोदी सरकार भी भाजपाई है, क्या तोसीफ रजा खां की अहमियत मासूम आसिफा की आबरू और जान से ज्यादा है, हां अगर यही मशविरा संतोष गगंवार तक ही सीमित होता तब शायद आसानी से समझमें आ जाता और जिन्दा जमीर बाशऊर इंसान को इसपर एतराज भी ना होता लेकिन यहां तो पूरी बीजेपी और मोदी की मुखालफत ने करने की सलाह देने वालो के परिवारों मे से किसी के साथ ऐसा ही कोई काण्ड हुआ होता तो क्या वह इसी तरह से शर्मनाक मशिवरा मुसलमानों को देते? समझना मुश्किल हो चुका है कि आज कौम कि रहबरी के चोले मे लिपटे लोग मुसलमानों की रहबरी कर रहे है, या वोट की तिजारत कर रहे है। ताअज्जुब की बात है कि ऐसा शर्मनाक मशविरा देने वाले लोग कैसे भूल गये कि यह वही बीजेपी, पीएम नरेंदर मोदी और मोदी सरकार है जो शरियत में खुली दखल अन्दाजी करते हुये शरीयत को मिटाने के मिशन पर है। क्या तौसीफ रजा की अहमियत शरियते रसूल से ऊपर है ? अगर बात तौसीफ रज़ा खां की मुश्किल कुशाई करने वाले संतोष गंगवार की मुखालफत ना करने की तक की होती तब किसी हद तक समझ में आती लेकिन यहां तो बात इस्लाम शरियत मुसलमान को मिटाने की कोशिश में दिन रात एक करने वाली पार्टी की है जिसे शायद कोई भी ईमानवाला जिन्दा जमीर मुसलमान मान ही नहीं पायेगा।

Thursday, 12 May 2016

वक्त की जरूरत है तौकीर का कदम


हरम की पासबानी  सिर्फ  सजदों से नहीं होगी,
कि खाके करबला कुछ  और ही आवाज़ देती है।


(इमरान नियाज़ी)
आईएमसी मुखिया तोकीर रजा खां ने हाल ही में एक बड़ा फैसला लिया जोकि देर से ही सही मगर हालात की जरूरत के मुताबिक बहुत ही अच्छा कदम है। इसकी जिसनी भी तारीफ की जाये कम ही है। कयोंकि यही एक रास्ता है जिसपर चलकर इस्लाम, मसाजिद और मुसलमान के वजूद को बचाया जा सकता है फिरका परस्ती काफी हद तक लेकर डूब चुकी है और वह दिन भी दूर नहीं रह गया जब मुसलमानों में आपसी फिरका परस्ती दुनिया ओर खासतौर पर हिन्दोस्तान से इस्लाम, मसाजिद और मुसलमान को नामों निशान मिट जायेगा। सबसे पहले यह बताना जरूरी समझता हूं कि मेरे इन ख्यालात को पढ़कर कोई मुझे तौकीर रजा खा का सपोर्टर न समझे मैं तोकीर रजा खां के कुछेक फैसलों के लिए तौकीर रजा खा का कट्टर विरोधी हूं लेकिन जहां बात इस्लाम और मुसलमान के दुश्मन आतंकियों का मुकाबला करने के लिए उठाये गये इस कदम की है तो इसमें तोकीर रजा खां के साथ हूं। तौकीर रजा खां के इस कदम का विरोध करने वालों को सबसे पहले तारीखे इस्लाम देखना चाहिये कि जब नबीए करीम (सल्ल0) ने वक्त की जरूरत के हिसाब से अब्दुल्ला बिन उबबी का भी साथ लिया था तो आज अगर इस्लाम और मुसलमान के वजूद की हिफाजत के लिए वहाबी देवबन्दी का साथ लिया जाये तो इसमें गलत क्या है। जो लोग तोकीर रजा खां की मुखालफत कर रहे हैं उनसे एक छोटा सा सवाल पूछना चाहूंगा कि 2002 में जब गुजरात में आतंकियों ने बेकसूर मुसलमानों का कत्लेआम किया जिन्दा जलाया आबरूऐं लूटी, असम में आतंवादियों ने मुसलमानों का कत्लेआम किया, म्यांमार में आतंकियों ने मुसलमानों का कत्लेआम किया, कश्मीर में अकसर दो चार मुसलमानों को मारा जाता है, दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी बुश ने अफगानिस्तान ओर इराक में मुसलमानों का कत्लेआम किया, अमरीकी आतंक ने सीरिया, ईरान वगैराह में लाखों में मुसलमानों को कत्लेआम किया और कर रहे है आजतक किसी ने भी किसी भी मुसलमान को मारने से पहले पूछा क्या कि तू वहाबी देवबन्दी है या सुन्नी ? कभी कोई नहीं पूछता सिर्फ मुसलमान होना ही काफी होता है कत्ल करने के लिए। तो फिर हम क्यों नहीं सिर्फ मुसलमान बनकर ही दुश्मनों का मुकाबला करते। अगर बात करें तौकीर रजा खां के इस कदम की तो एक बहुत ही कड़वा सच कि चन्द दिन पहले की बात है जब शियाओं से हाथ मिलाया गया था तब कहां थे फतवे क्यों नहीं लगाये गये थे फतवे? तौकीर रजा खां ने जो कदम उठाया है वो वक्त की जरूरत और हालात का तकाजा है इस वक्त जरूरत है आपसी फिरका परस्ती को दरकिनार करके सिर्फ मुसलमान नाम पर एक प्लेटफार्म पर आना होगा, हमारा कहना है कि आपको वहाबी देवबन्दी वगैरा से रिश्तेदारी नहीं करनी न करो उनके साथ नमाज नहीं पढ़नी न पढ़ो, उनके साथ बिजनैस नहीं करना मत करो लेकिन इस्लाम ओर मुसलमान का वजूद ही मिटा देने की कोशिश करने वालों के मुकाबले एक होकर रहो। एक छोटी सी मिसाल के तोर पर आप कुरआन पाक लेकर किसी वहाबी देवबन्दी के पास जाईये ओर उससे कहिये कि यह कुरआन है लो ओर इसकी बेअदबी करो, तो क्या वह करेगा ? किसी कीमत पर नहीं करेगा बल्कि आपपर हमलावर हो जायेगा, मर जायेगा या मार देगा लेकिन कुरआन की बेअदबी नहीं करेगा न करने देगा। ओर यही बात आप किसी गैर इस्लाम (सभी नहीं सिर्फ इस्लाम दुश्मन) से कहे तो वो खुश होकर कुरआन की बेअदबी करेगा ओर आपको दोस्त भी मानेगा, तो खुद सोचिये कि ज्यादा खतरनाक कौन है, कुरआन के बेअदबी के लिए खुशी से तैयार होने वाला या आपके कुरआन के लिए आपसे ही लड़ने को तैयार हो जाने वाला ?ै इन सब चीजों को मद्देनजर रखकर खुद ही सोचिये कि क्या तौकीर रजा खा का यह फैसला सही नही है ? दुनिया भर में इस्लाम को मिटाने की पूरी कोशिशें की जा रही है हिन्दोस्तान में तो सरकारें तक इस्लाम को मिटाने के लिए सरकारी पावर को इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकतीं, इस्लाम दुश्मनों की कोशिशों को पूरी मदद देने के लिए आरएसएस पोषित रंगबिरंगे अखबार और चैनल काम पर लगे हैं सबूत के तौर पर ताजा मामलों को ही देखिये जेएनयू मामले में फर्जी वीडियो का दिखाया जाना, दिल्ली में 12 मुसलमान लड़कों को पकड़कर आतंकी घोषित करने की चाल चली गयी मीडियाई दल्लों ने तुरन्त ही 12 आतंकी गिरफ्तार कहकर खबर प्रसारित करनी शुरू करदी साथ ही दूसरे सभी मामलों की तरह इन बारह लड़को की जीवनियां भी सुना डाली, खुदा का शुक्र कि साजिश पूरी तरह कामयाब नहीं हो सकी और कुछ को छोड़ना पड़ा लेकिन कुछ मीडियाई दल्लों ने तौकीर रजा खां के कदम को लेकर लिखी खबर में भी आतंकी शाकिर ही लिखा, बेशर्म सम्पादकों के हौसले इतने बुलन्द हो चुके है कि वे अब खुद ही जज बन गये जिन्हे खुफिया एजेसिंयों ने बेकसूर पाकर छोड़ दिया उसी बेकसूर शाकिर को सम्पादक आतंकी लिख रहा है। इस्लाम को मिटाने की मुहिम में सब के सब एक जुट होकर लगे है चाहे वह हिन्दू धर्म से तआल्लुक रखता हो या इसाई धर्म से, यहूदी हो या पारसी। लेकिन हम मुसलमान सुन्नी वहाबी देवबन्दी और यहां तककि सुन्नी और रजवी के खेमों में बटे रहने में ही अपनी बढ़ाई तलाश रहे हैं। तौकीर रजा खां की इस खबर के बाद अजीबो गरीब तरह की बयानबाजी हो रही है लगता है कि इस्लाम और मुसलमान के वजूद की फिक्र है ही नहीं किसी को। तारीखे इस्लाम उठाकर देखिये दुनिया के सबसे बड़े रहम दिल आका नबीए करीम (सल्ल0) जिन्होंने हर हर जानदार चीज पर रहम किया पेड़ों को काटने तकसे मना फरमाया लेकिन जब जरूरत पड़ी तो हाथ में तलवार भी उठाई, इस्लाम की हिफाजत के लिए अपने बच्चों तक की कुर्बानियां दीं तो क्या आज हम उसी इस्लाम की हिफाजत के लिए अपनी अना को नहीं छोड़ सकते ? क्योंकि कुरआन का भी कुछ ऐसा ही हुक्म है कि ‘‘ हालात के हिसाब से जिस कौम ने अपने अन्दर तब्दीली नहीं की वो कोम तबाह हो गयी श्श् । तारीख में ऐसे हजारों सबूत मौजूद हैं कि इस्लाम और कोम की हिफाजत के लिए बड़े बड़े नागवार फैसले भी लिए गये। फिलहाल हालात का तकाज़ा और वक्त का फतवा चीख चीखकर कह रहा है कि तौकीर रजा खां के इस कदम में अगर उनका साथ नही देना तो ना दें तो कम से कम उनकीं टांग खिचाई भी न की जाये। वैसे भी कई भगवा आतंकियों ने कई बार साफ कहा है कि मुसलमानों को मिटाने के लिए उनमें सुन्नी वहाबी की दरार को बढ़ाते रहना ही काफी है, इसलिए तौकीर की मुखालफत करने वालों को हालात और वक्त की नजाकत समझना होगा ओर इस्लाम, मुसलमान के वजूद को बचाने के लिए अना को छोड़ना होगा, कहीं ऐसा न हो कि अना के लिए दीन ही कुरबान हो जाये।
शायर ने पहले ही कहा है कि:-

अब अपने काबे की खुद हिफाजत करनी है
अब अबाबीलों का लशकर नहीं आने वाला।

Sunday, 21 February 2016

खुलने लगी इस्लाम के खिलाफ मीडिया की साजिशें


                                                      (इमरान नियाज़ी)
इस्लाम और मुसलमान को तरह तरह से आतंकित करने की साजिशों में मीडिया का अहम रोल रहा है। पहले आतंकवाद के नाम पर फिर लड़कियों को आगे रखकर और फिर गायों को मोहरा बनाकर आरएसएस व अमेरिका ने मुसलमान को आतंकित करने में कसर नहीं छोड़ी। अमेरिका व आरएसएस के इस्लाम मिटाओं अभियान में भारतीय रंग बिरंगी मीडिया का अहम किरदार रहा है। मामला चाहे मालेगांव धमाकों का हो या मक्का मस्जिद उड़ाने की कोशिश का, बात चाहे समझौता एक्सप्रेस उड़ाने की साजिश की हो या अजमेर दरगाह की, बम्बई धमाके हो या दिल्ली हाईकोर्ट धमाके हर बार धमाके की आवाज से पहले ही आरएसएस लाबी की मीडिया जिम्मेदारों के नामों की घोषणाये करने लगती है दिल्ली हाईकोर्ट गेट धमाके के मामले में तो एक चैनल ने हद ही कर दी थी कि चैनल के पास ईमेल भी आने लगी थी, मानों जैसे धमाके करने वालों के पास किसी सरकारी एजेंसी का ईमेल एडरेस नही था या फिर दूसरे मीडिया कार्यालयों का भी ईमेल एडरेस नहीं था, बस कथित चैनल का ही ईमेल आईडी थी, हमने उसी वक्त कहा था कि ये मेल सिर्फ साजिश है। यह और बात है कि मुसलमान और इस्लाम के खिलाफ की जाने वाली साजिशों के सामने आने के बाद हिन्दुस्तान कानून सहम कर मुंह छिपाकर बैठ जाता है मामला चाहे बाबरी पर आतंक बरपाने का हो या गोधरा में साजिश रचकर गुजरात भर में बेगुनाह मुसलमानों पर आतंकी हमले करने का हो, कई कई बार जांचों में सच्चाई सामने आने के बावजूद कानून साजिश कर्ताओं के नाम सुनकर कांप जाता है। किसी भी मामले को उठाकर देखिये, जब जब मुसलमान के खिलाफ साजिश बेनकाब हुई है तब तब कानून दुम दबा गया। चाहे वह साजिश गोधरा में की गयी हो या उ0प्र0 के नोएडा में पकड़े गये इण्डियन मुजाहिदीन नाम से काम करने वाले असल आतंकियों को डाक्टर से रंगदारी वसूलते हुए रंगे हाथों पकड़े जाने की हो। किसी भी मामले को आगे नहीं बढ़ाया जाता। बात करें मीडिया के हाथों हो रही मुसलमान और इस्लाम के खिलाफ साजिशों की, मीडिया इस्लाम ओर मुसलमान को बदनाम करने में बढ़चढ़ कर काम करती नजर आ रही है। किसी भी मुसलमान को पकड़कर सुरक्षा एजेंसियां आतंकी बता देती हैं तुरन्त ही आरएसएस पोषित मीडिया ऊपर नीचे का जोर लगा देती है आतंकी मशहूर करने में जबकि आतंकी असीमानन्द, प्रज्ञा ठाकुर ओर उसके गैंग के सभी आतंकियों को साध्वी, स्वामी ही लिखा व बोला जाता है। कुछ ही दिन पहले पंजाब के दीनापुर में पुलिस थाने पर हमले के नाम पर मीडिया ने ऊपर नीचे का जोर लगाकर इल्जाम मुसलमानों के सिर थोपने की कोशिश की लेकिन सिर्फ हफ्ता भर में ही मीडिया की नीच साजिश बेनकाब हो गयी ओर साफ हो गया कि हमलावरों में एक भी मुसलमान नहीं था। जब सच सामने आया तो मीडिया दुम दबा गयी ठीक वैसे ही जैसे कि मालेगांव, मक्का मस्जिद, अजमेर दरगाह, समझौता एक्सप्रेस, नांदेड, गोरखपुर, बनारस, कानपुर, बम्बई की लोकल ट्रेन, घाटकोपर बस, मामलों में मुस्लिमों के नामों को उछालने वाली आरएसएस पोषित मीडिया मामलों की सच्चाई (आतंकी असीमानन्द, आतंकी प्रज्ञा ठाकुर, आतंकी कर्नल श्रीकांत, आतंकी इंद्रेष कुमार, आतंकी देवेंद्र गुप्ता, आतंकी सुनील जोशी, आतंकी संदीप डांगे, आतंकी रामचंद्र कलसांगरा उर्फ रामजी, आतंकी शिवम धाकड, आतंकी लोकेश शर्मा, आतंकी समंदर, आदित्यनाथ. आतंकी राजकोंडवार, आतंकी भूपेन्द्र सिंह छावड़ा और राजीव मिश्रा के नाम सामने आने पर डरी हुई कुतिया की तरह दुम दबाकर छिप गयी। गौरतलब बात तो यह है कि इन सभी मामलों में असल आतंकियों के नाम सामने आने से पहले बड़ी बड़ी जानकारियों से भरी कहानियां मीडिया ने प्रसारित की, और जब असल आतंकियों के नाम सामने आये तो मैया मर गयी मीडिया की। बिहार के महाबोद्धि ब्लास्ट मामले में भी आरएसएस पोषित मीडिया ने नाचना शुरू किया लेकिन जल्दी ही सच्चाई ने सामने आकर पत्रकार नामी गुण्डों का मुंह काला कर दिया। गुजरी साल नोयडा में आरएसएस और मीडिया के बनाये संगठन आईएम के असल आतंकी डाक्टर से उगाही करते रंगे हाथों पकड़े गये पुलिस ने तो मामला रफा दफा किया ही साथ ही रंग बिरंगे अखबार व साजिश करके खबरें बनाकर चीखने वाले चैनलों की औकात सामने आ गयी। हाल ही में बरेली से पकड़ लिये गये मुस्लिम नौजवानों की बाबत भी कहानियों का पिटारा खोल रखा है, दो साल पहले पाकिस्तान से दो-ढाई सौ घुसपैठिये भारत आये जोकि आजतक सरकारी महमान बनाकर रखे जा रहे हैं जिनमें एक पाकिस्तान सरकार में मंत्री भी था, हर वक्त पाकिस्तान का रोना रोने वाली मीडिया के कोई मिर्ची नहीं लगी। बम्बई ताज होटल मामले में मीडिया पूरी तरह नंगी होकर नाची। दो साल से लगातार बर्मा में आतंकी बेगुनाह मुसलमानों का कत्लेआम कर रहे हैं रंगबिरंगे अखबार और नम्बर वन होने का दावा करने वाले चैनलों की दुमे दबी हैं आसाम आतंकियों ने मुसलमानों का कत्लेआम किया किसी में गूदा नही था इन खबरों को छापने या दिखाने का। गुजरात आतंक को दंगा कहा जाता है, आसाम, छत्तीसगढ़, बंगाल, झारखण्ड, बिहार, यहां तक कि नैपाल के आतंकियों को आतंकी की बजाये माओवादी और नकसलवादी बताया जाता है। हाल ही में पठानकोट मामले में भी आरएसएस पोषित मीडिया कहानी पर कहानी पेश कर रही है। हाल ही में यूके के प्रधान मंत्री डेविड कैमरून ने बाहरी महिलाओं को अंग्रेजी बोलना न आने पर उनके देश वापिस भेजने की बात कही थी इसे आरएसएस पोषित भारतीय मीडिया ने  "मुस्लिम महिलाओं" लिखकर साम्प्रदायिक रंग दिया। अभी रूड़की में चार मुस्लिमों को पकड़कर आतंकी बता दिया मीडिया ने भी उछलना शुरू कर दिया अन्तरयामी मीडिया को पकड़ लिये गये चारों व्यक्तियों के दिमागों में चलने वाले प्लानों के सपने भी आने लगे तरह तरह की कहानियां पेश की जाने लगीं। दरअसल सिमी, इण्डियन मुजाहिदीन, लश्करे तैबा, जैसे नामों के साथ मुसलमान और इस्लाम को आतंकी साबित करने की कोशिशें तो नाकारा साबित हुई, कुछ संगठनों के असल कारिन्दों को शहीद हेमन्त करकरे ने बेनकाब कर दिया तो आईएम के असली दो कारिन्दें गुजरे साल उत्तर प्रदेश के नोयडा में एक डाक्टर से रंगदारी वसूलते पकड़े गये, तो वहां से आईएम का नाम भी पीछे कर दिया गया। मीडिया में खबर नहीं आई। अब इस्लाम व मुस्लिम दुश्मनों के दिमागों ने एक नया नाम "आईएसआईएस" की उपज की है। अब इस नई उपज के सहारे इस्लाम व मुस्लिम मिटाने की मुहिम को चलाने की कोशिशें की जाने लगीं। इसी प्लानिंग के तहत इस्लाम दुश्मनों ने बहुत सी वीडियो फुटेज भी सोशल मीडिया में वायरल की जिसमें लोगों की गर्दनें काटते दिखाया गया। ये फुटेज अमरीकी कारसाजों ने तैयार की थी। असल में किसी का गला कटा ही नहीं, इन्हीं फुटेज के सहारे अमरीका ने आईएस नाम की उपज करके अरब देशों पर आतंकी हमले शुरू कर दिये, साथ आरएसएस लाबी को भी उकसा दिया अब आरएसएस पोषित मीडिया आईएम, अलकायदा, लश्करे तैबा वगैरा की स्पेलिंग ही भूल गयी बस आईएस याद करली है। अब हाल यह है कि किसी के घर बच्चे ने जन्म लिया तो आईएस ने किया किसी को बुखार हो गया तो वो भी आईएस ने कर दिया। आये दिन मीडिया में खबरें आती है कि  ष्कश्मीर में पाकिस्तानी झण्डे लगाये गये पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाये गयेष्। क्या इन खबरों में बाल बराबर भी सच्चाई होती है इसका जीता जागता सबूत है गुजरे दिनों दौसा में एक पत्रकार नामक जाहिल ने इस्लामी झण्डे को पाकिस्तानी झण्डा बताते हुए माहोल खराब कर दिया। दरअसल पाकिस्तान तो सिर्फ एक बहाना है असल दुश्मनी तो मुसलमान से है अगर मामला पाकिस्तान से ही एलर्जी को होता तो लगभग तीन साल पहले पाकिस्तान से आये ढाई सौ से ज्यादा आतंकियों को जिनमें एक पाकिस्तान का मंत्री भी रहा था को आजतक सरकारी महमान बनाकर न पाला जाता होता किसी को भी आजतक वापिस नही भेजा गया जबकि गुजरे बीस साल के अर्से में उन हजारों महिलाओं को उनके छोटे छोटे बच्चों तक को छोड़कर वापिस पाकिस्तान भेज दिया गया जिन्होंने बीस पच्चीस साल पहले भारत आकर यहां के लोगों से शादियां करली थी और आराम से अपने परिवार के साथ रह रही थी, उन्हें भारत से जाने पर मजबूर कर दिया गया कयोंकि वे मुसलमान थीं। आरएसएस लाबी की मीडिया आजतक चुप्पी साधे हुए है। इसी हफ्ते बनारस में एक नेता का भतीजा सेना की वर्दी में पकड़ा गया उसके पासे से काफी बम बारूद बरामद हुआ, पुलिस बम बारूद पी गयी, आरएसएस पोषित मीडिया को भी सांप सूंघ गया, राजस्थान में पूर्व मेजर का पुत्र भारी मात्रा में बारूद के साथ पकड़ा गया जोकि सीरियल ब्लास्ट करने की फिराक में था, इसको आतंकी की उपाधी देने का गूदा ही नही रहा मीडिया में। गुजरे हफ्ते राजिस्थान में तीन लोग जासूसी करते रंगेहाथ पकड़े गये इनको किसी भी अखबार या चैनल ने आतंकी नहीं बोला क्यों ? कयोंकि ये तीनों गददार मुस्लिम नही है। दरअसल रंगबिरंगे मोटे मोटे अखबार और खुद को नम्बर वन कहने वाले चैनल आरएसएस लाबी में हैं और आरएसएस के लिए ही काम करते हैं इनको सिर्फ एक ही उददेश्य है कि किसी भी तरह मुसलमान ओर इस्लाम को आतंकी घोषित कर दिया जाये। एक ओर सबूत देखिये, यहकि इन दिनों आरएसएस पोषित मीडिया ने लव जिहाद नामक नयी साजिश शुरू करदी है जिसमें व्हाटसअप का सहारा लेकर अंजाम दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि यह मुस्लिम कर रहे है। क्या सबूत है कि मुस्लिम ही कर रहे हैं ? अगर मोबाइल नम्बर को सबूत मानते हो तो कोई भी मोबाइल नम्बर किसी की आईडी प्रमाणित नही करता, कि मोबाइल धारक अपने ही नाम का सिम इस्तेमाल कर रहा है या किसी दूसरे के नाम का ? हमारे पास ऐसे हजारों सबूत मौजूद हैं मोबाइल धारक को खुद नही मालूम कि वह किसके नाम की सिम इस्तेमाल कर रहा है। गुजरे हफ्ते ही उ0 प्र0 के शाहजहांपुर में फर्जी आईडी बनाकर उनके नाम पर सिम बेचने वाला गिरोह पकड़ा गया जिनमें एक आईडिया का फ्रैंचाइज भी है। आजकल जेएनयू के बहाने जमकर भड़ास निकालने के लिए नीचे तक का जोर लगाती दिखाई पड़ रही है आरएसएस पोषित मीडिया। जेएनयू में साजिश के तहत देश विरोधी नारे लगवाये गये ऐसी खबरें भी सबूत सामने आई हैं जिनसे यह साबित हो गया कि देश विरोधी नारे एबीवीपी ने लगाये, लेकिन इस सच्चाई को मीडिया दबाते हुए अफजल गुरू की बर्सी मनाने वालों को ही उछाल रही है, जिस वीडियों के सहारे जेएनयू से लेकर विदेशों तक को हिलाकर रख दिया उस वीडियो में वीडिया की असल आवाज को हटाकर अपने मतलब वाली दूसरी आवाज (देश विरोधी नारे) मिक्स करके बखेड़ा खड़ा किया गया। यह तो कहिये खुदा का शुक्र रहा कि जेएनयू में इंसाफ की आवाज उठाने वाले नेता मुस्लिम नहीं है वरना तो अब तक उनको मारकर मुठभेड़ का नाटक भी रचकर आतंकी बता दिया गया होता। कहां सो गया कानून कहां सो रहे वह जज साहब जिन्हें अकबरउद्दीन के बोलने पर यू ट्यूब देखने का शौक हो जाता है, अब क्यों नहीं देख रहे इन चैनलों की करतूत? देश से विदेश तक आग लगाने वाले इन चैनलों के खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्मत क्यों नहीं कर पा रहा कानून? हालांकि अब सरकार (गृहमंत्रालय) खुद ही अपने मकसद की तरफ बढ़ने लगा अब कहा जा रहा है कि देश विरोधी नारे कन्हैया ने नहीं लगाये अब नाम उमर खालिद का उछाला जा रहा है। मीडिया लंगूरी कुलांचे मारने लगी उमर खालिद के नाम पर, दो दिन में ही यह भी सबूत मिल गये कि आरएसएस के इस चैनल ने वीडियो मिक्स कराकर पेश की यानी अब यह भी साबित हो ही गया कि इसमें उमर खालिद का भी कोई रोल नहीं था। याद करिये गुजरे हफ्ते ही आरएसएस के एक युवक ने तिरंगा जलाया इस खबर को सुर्खियों में लाना तो दूर मीडिया खबरे छापने और दिखाने के नाम पर भी दुम दबा गयी, क्यों जी तिरंगा जलाना राष्ट्रद्रोह में नहीं आता। इस्लाम और मुसलमान को आतंकी घोषित करने के लिए अमरीका और आरएसएस का सबसे मजबूत और कारगर हथियार मीडिया और खासतौर पर भारतीय मीडिया है जो मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ गैर मुस्लिमों भड़काकर अमरीका व आरएसएस की साजिशों में मदद देने के लिए उकसाती है। मीडिया का अपनी साजिशों में कामयाब होने की कुछ खास वजह है। पहली यहकि मुसलमानों को अपना कोई न्यूज चैनल या अखबार नहीं है जो एक दो अखबार हैं भी तो वे उर्दू के हैं जिनकी प्रसार संख्या मामूली है साथ ही जहां आज खुद मुसलमानों में ही उर्दू पढ़ने वालों के गिनती नाम मात्र है तो दूसरे मजहब के लोगो से उम्मीद कैसे की जा सकती है उर्दू पढ़ने की, ऐसे में अगर किसी उर्दू अखबार में कुछ सच्चाई आती भी है तो उसे पढ़ेगा कौन ? जो एक दो अखबार है भी तो उनकी आमदनी इतनी नही होती कि वो रंगीन चमक धमक के साथ छापे जा सके। दूसरी वजह यह है कि मेरी कौम भैंसा खाती है तो खोपड़ी भी भैंसे वाली ही हो गयी है, मुसलमानों को रंग बिरंगे फोटो और ज्यादा से ज्यादा रद्दी देने वाले अखबार ही पसन्द है और ऐसे सभी अखबार और चैनल आरएसएस लाबी के ही है। अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या आरएसएस लाबी के इन अखबारों में मुसलमान पत्रकार नहीं है तो जनाब है लेकिन उनके जमीर मरे हुए हैं वे सबसे पहले आरएसएस की साजिशों में हां में हां मिलाने खड़े होते हैं। आप आरएसएस लाबी के किसी भी अखबार को उठाकर देखिये उसमें ज्यादा विज्ञापन मुसलमानों के ही मिलेंगे, क्या यही विज्ञापन मुस्लिम अखबारों को नहीं दिये जा सकते, नहीं देंगे क्योंकि पहली बात मुस्लिमों के दैनिक अखबार हैं ही नहीं और दो चार हैं भी तो वो रंगबिरंगे नहीं है और ना ही उनमें इतने पेज होते हैं कि रद्दी का वजन हो। कुछ साल पहले की ही बात है बरेली के एक मुस्लिम नेता ने यह कहते हुए बरेली के ही एक कांग्रेसी अखबार की शाहदाना चैराहा पर प्रतियां जलाई कि यह अखबार मुस्लिमों के खिलाफ साजिशी खबरें दे रहा है, अच्छा किया लेकिन शर्म की बात तो यह है कि इन्हीं नेता ने तीन दिन बाद ही अपनी पार्टी का 34 हजार रूपये मूल्य का विज्ञापन बरेली के ही उस अखबार को दिया जो कि खुला आरएसएस का है। क्यों नेता जी मुसलमानों के ठेकेदार बनते हो और आरएसएस को बिजनेस देते हो क्या बरेली में मुस्लिम अखबार नहीं हैं अगर बहाना करते हो प्रसार संख्या और रंगबिरंगे होने का तो सोचो जितना बिजनेस आरएसएस पोषित अखबारों को देते हो उसका आधा भी मुस्लिम अखबारों को देने लगो तो चन्द दिनों में वो भी तुम्हारे रंगबिरंगे फोटो छापने लगेंगे। मुसलमान और इस्लाम को बदनाम करने की आरएसएस पोषित मीडिया की साजिश का नया सबूत जेएनयू का मामला ही है। कश्मीर में फोज जिसे चाहा मार दिया मीडिया तुरन्त मुठभेड़ बता देती है, याद कीजिये गुजरे साल 2011-12 में फौजियों ने एक मंदबुद्धी नौजवान को बेवजह ही मारकर आतंकी कहकर मुठभेड़ कह दिया था आरएसएस पोषित मीडिया नंगी होकर नाचने लगी लेकिन जब अगले ही दिन सच्चाई उजागर हो गयी तो मीडिया की मैया मर गयी सब डरी सहमी कुतिया की तरह दुम दबा गये। मन्दिर टूटे तो ष्मन्दिर तोड़ा गयाष् और जब मस्जिद या मजार तोड़ा जाता है तो पहले तो खबर ही बड़ी ही मुश्किल से मजबूर होकर लगाते है और तब हैडिंग होता है ष्धर्मस्थल टूट गयाष्। मन्दिर टूटने पर लोगों की आस्था को भड़काने की कोशिश की जाती है। आज यानी 20 फरवरी 2016 का ही एक जीता जागता सबूत देखिये। बरेली जिले के थाना शाही की पुलिस चोकी दुनका पर चोकी इंचार्ज और सिपाही के बीच उगाही को लेकर फोन पर कहा सुनी गाली गलौंच हुई। मामला यह था कि दुनका के एक कसाई ने घर में ही भैंस काटली सिपाही पहुंचा और पैसा मांगने लगा न देने पर वह कसाई को पकड़ लिया, इसपर सैकड़ों लोगों ने चोकी घेर ली इसपर चोकी प्रभारी ने सिपाही को डांट डपक की, चोकी इंचार्ज ने कई बार साफ साफ कहा कि ये लोग रसूक वाले और बवालिये, और मुझे चोकी में पुलिस को पिटवाना नहीं है, तुम फोरन वहां से चले आओ। इस खबर को आज कुछ स्थानीय व बाहरी अखबारों ने गौकशी का हैडिंग देकर लोगो को चोकी इंचार्ज के खिलाफ भड़काने की कोशिश की, क्योंकि चोकी इंचार्ज मुसलमान है। हम यह नही कह रहे कि चोकी इंचार्ज दूध का धुला है या बेकसूर है लेकिन आरएसएस पोषित अखबारों ने उगाही को धार्मिक रंग देने में कसर नही छोड़ी। घर में जानवर काटने पर उगाही न देने का मामला था जिसे अखबार वालों ने गोवंशीय पशु लिखकर आग लगाने की कोशिश की, ठीक उसी तरह जैसे कुछ ही दिन पहले राजिस्थान के दौसा में इस्लामी झण्डे को पाकिस्तानी झण्डा लिखकर एक पत्रकार बने फिरने वाले एक गुण्डे ने इलाके में हड़कम्प मचा दिया था, बरेली में भी कोशिश की गयी। जिस मोबाइल रिकार्डिंग के सहारे मीडिया आग आग लगाना चाहती है उसमें गौवंशीय पशु का एक बार भी नाम नहीं आया। लेकिन आरएसएस पोषित अखबारों को मोका मिला मुसलमान के खिलाफ हवा बनाने का।

Friday, 10 July 2015

अब गाय के बहाने साजिशें


बम धमाकों करके मुसलमानों को फंसाने सताने की कोशिशों के बाद लड़कियों को मोहरा बनाकर साजिशें रची गयी उसमें भी कामयाबी न मिलने के बाद अब गाय के बहाने साजिशें शुरू कर दी गयी। हाल ही में मध्य प्रदेश के निम्बाहेड़ा में मुस्लिम लड़को को फंसाने के लिए आरएसएस ने बछड़े का सिर काटकर मन्दिर में डाल दिया और आरएसएस लाबी की पुलिस ने कुछ ही देर बाद इलाके के मुस्लिमों पर आतंक बरपाना शुरू कर दिया। देश भर में बम धमाके कर करके सैकड़ों बेगुनाह मुसलमानों को फंसाने की कोशिशों को कुछ हद तक शहीद हेमन्त करकरे ने फ्लाप कर दिया, उस नेक दिल इंसान ने अपने इमान का सोदा न करके देश में किये जा रहे धमाकों के मामलों में दूध का दूध पानी का पानी कर दिया, यह अलग बात है कि इकलौते इमानदार जांच अधिकारी को उसकी ईमानदारी की सजा भी आरएसएस ने जल्दी ही देदी। महान है अदालतों के नाम से मशहूर देश के फैसला कक्ष और व्यक्ति के धर्म, जाति, हैसियत, पावर, के हिसाब से काम करने वाले धर्म निर्पेक्षता के फर्जी लेबल में छिपा धर्माधारित कानून जिसने शहीद हेमन्त के असल कातिलों को तलाशने की कोशिश नहीं की, जो आरएसएस लाबी ने कहानी तैयार करके देदी उसी पर दौड़ गये देश के फैसला कक्ष (अदालतें)। बम धमाके कर करके मुस्लिमों को आतंकी घोषित करने की कोशिशों के बाद अपनी लड़कियों को मोहरा बनाकर मुसलमानों पर आतंक बरपाना शुरू किया लेकिन इसमें भी मुंह की ही खानी पड़ी, इनकी तमामतर बहन बेटियों ने साफ कर दिया कि उनके साथ कोई फरेब या धोका नही हुआ बल्कि वे खुद पूरे होशो हवास के साथ अपने प्रेमी के साथ आई है इस्लाम कबूल किया है। मामला चाहे मेरठ मदरसे को लेकर उछाला गया हो या बिहार और गोरखपुर में रचा गया हो, यह अलग बात है कि शुरू में लड़कियों को डरा धमकाकर उनसे ब्यान कराये गये हो इन झूठे ब्यानों को कराने और उछालने में पुलिस का बड़ा रोल रहा, पुलिस ने ब्यान लिये ब्यान लेने से पहले लड़कियों को जेल में महीनों सड़ने जैसे खौफ दिलाये फिर मनचाहे ब्यान लिखकर उन्हें उछाल दिया। जबकि ऐसे संवेदनशील मामलों में ब्यानों को पूरी तरह गोपनीय रखा जाता है लेकिन आरएसएस लाबी की पुलिस ने कानून का मुंह काला करते हुए फिजा बिगाड़ने की कोशिशें की। जबकि सच्चाई ये थीं कि सभी लड़कियां अपनी मर्जी से अपने प्रेमियों के साथ रह रही थीं। अपनी लड़कियों को मोहरा बनाकर मुस्लिम दुश्मनी भी फेल हो गयी तो अब नया मोहरा पकड़ा गाय। अब गायों उनके बच्चों को खुद काट काटकर मुस्लिमों को फंसाने की साजिशों की शुरूआत कर दी गयी है। अभी हाल में ही मध्य प्रदेश के निम्बाहेड़ा में एक आतंकी ने गाय के बछड़े का सिर काट कर मन्दिर के दरवाजे पर डाल दिया आरएसएस के इशारे पर इलाकाई पुलिस ने सीधे सीधें पांच मुस्लिम युवको को पकड़कर उनपर जमकर जुल्म ढाने शुरू कर दिये, भला हो उन हिन्दू भाईयों का जिन्होंने आरएसएस के सरकारी व गैरसरकारी गुण्डों की धमकियों को दरकिनार करके खुलेआम सच्चाई जाहिर करदी और ड्रामा रचने वाले आरएसएस कार्यकर्ता जीवन भामी को बेनकाब कर दिया, ऊधर न चाहते हुए भी पुलिस को जीवन भामी को हिरासत में लेना पड़ा। बस फिर क्या था कुछ घझटे पहले तक कुलांचे मारने वाले अपनी साजिश की पोल खुलते ही दुबक गये बिलों में। इसी तरह चार दिन पहले गुजरात के टापी जिले के एक इलाके में एक बरवार जाति के घर गाय का बछड़ा मर गया जिसे उसने करीब में ही सड़क किनार फेंक दिया कुछ ही टाईम बाद कुत्ते उसे खींचकर बाजार तक ले आये, बस मिल गया आतंकियों को मुसलमानों को आतंकित करने का मौका, गौरतलब बात यह है कि टापी का एसपी भी आरएसएस लाबी का ही है उसने इलाके में जाकर ऊपर नीचे का जोर लगाया कि यह मामला मुसलमानों पर लाद दिया जाये लेकिन हिन्दोस्तान में सभी आतंक के साथ नहीं है इसलिए जिसका बछड़ा था उसने ओर उसके आसपास के लोगों के साथ ही बाजार के कुछ दुकानदारों ने गुजरात के सरकारी आतंकी के बहकाने डराने धमकाने के बावजूद मामले को मुस्लिमों पर थोपने की एसपी की चाल को नाकाम कर दिया और सच को ही रहने दिया, इसी बीच दिल्ली से एक आतंकी ने एसपी नायक को फोन किया जिसमें उसने आतंक मचाने का चैलैंज देते हुए एसपी को 24 घण्टे का टाईम दिया इस पर एसपी गिड़गिड़ाने लगा और कहने लगा कि "उन कुत्तों (मुसलमानों) ने किया होता तो मैं उन्हें घर से खींच खींचकर....... करता।", एसपी ने अपनी बातचीत में अपनी सच्चाई कबूलते हुए कहां कि  "सूरत का मामला देखों, कैसे मैंने एके 47 से फायरिंग करके भूना" उसने फोन करने वाले आतंकी से यह भी कहा कि  "सर जी किसी को पता न लगे कि मैं आरएसएस का आदमी हूं।" इससे यह तो साफ हो गया कि गुजरात में अभी भी सरकारी तौर पर भी मुसलमानों के खिलाफ आतंक चल रहा है। हाल ही में उ0 प्र0 के महोबा में गाय के बछड़े को या तो कहीं चोट लगी या फिर गुण्डों ने खुद उसे जख्मी करके उसके बहाने जमकर आतंक फैलाया और मुसलमानों की दर्जनों दुकानों को आग लगादी, यह आतंक पुलिस की मिली भगत से किया गया, सीओ समेत भारी पुलिस बल की मौजूदगी में मुसलमानों पर आतंकी हमला किया गया। गुजरी 30 जून को उ0प्र0 के शामली में एक गुण्डे ने पहले अपने घर वालों से चुराकर गाय का बछड़ा बेच दिया फिर घर वालों से बचने और अपनी पुरानी रंजिश निकालने के लिए एक बछड़ा चोरी का आरोप लगाकर इलाके के गुण्डों के साथ मिलकर मुस्लिम युवक पर हमला कर दिया।
आरएसएस लाबी के साथ साथ आरएसएस के टुकड़ों पर पल रहे सरकारी अमले का आतंक दिन बा दिन बढ़ता ही जा रहा है। और हो भी क्यों नहीं सभी जानते है कि अब कोई दूसरा हेमन्त करकरे नहीं आने वाला और रही बात अदालत नामी इमारतों की तो वे भी आरएसएस को खुश रखने में लगी नजर आ रही है सबूत के लिए अफजल गुरू का मामले में सुप्रीम कोर्ट के वाक्य और उसके बावजूद अफजल गुरू को कत्ल करा दिया जाना ही काफी है। यही वजह है कि मुसलमान के खिलाफ कोई भी आतंकी आसानी से कुछ भी बोल देता है कुछ भी कर देता है। ईवीएम के चमत्कार से मोदी सरकार बनने के साथ ही आतंकियों के अच्छे दिन आने लगे। फेसबुक, व्हाट्सअप जैसी सोशल मीडिया साईटों पर जमकर आतंकी धमकियां और गुण्डई की छूट रहती है
अकबर ओवैसी बोलता है तो जज साहब को यूट्यूब देखने का शौक हो जाता है लेकिन देश में धमाके करने वाले बोलते है तो बेचारे जज साहब इन्टरनेट चलाना भूल जाते है। हम बात कर रहे थे गौ-वंश हत्या की, तो सबसे पहले तो यह जानने जरूरी है कि जो मुसलमान गाय खाते है क्या उनको इस्लाम इसकी इजाजत देता है ? भारत में गाय कानून और हिन्दू समुदाय की नजर से बचाकर काटी जाती है जोकि पूरी तरह से चोरी है। इस्लाम में चोरी की कतई इजाजत नहीं, चोरी किसी की भी हो चाहे किसी इंसान की हो या कानून, समाज की। इस्लाम में चोरी को हराम करार दिया गया है और इस्लामी कानून के मुताबिक हिन्दोस्तान की सरहदों के अन्दर गाय खाना कतई हराम
है, इसलिए गाय काटने खाने वालों को सख्त से सख्त सजा बल्कि सजाये मोत दिया जाना चाहिये। कानूनन गाय का काटा जाना तो हमेशा से जुर्म था लेकिन गौ रक्षा के बहाने सिर्फ मुस्लिम व्यापारियों को लूटने उनपर आतंक बरपाने का फार्मूला गुजरे कुछ साल से शुरू हुआ ओर इसे शुरू किया भाजपा के टिकट पर उ0प्र0 के पीलीभीत से सांसद चुने जाने के बाद मेनका गांधी ने। गाय हिन्दू धर्म में पूजी जाती है इसकी हिफाजत करना जरूरी है अगर लोग इसकी हिफाजत की बात करते तो बहुत ही ठीक करते, लेकिन यहां तो सिर्फ मुस्लिम व्यापारियों को लूटने, मुसलमानों पर आतंक बरपाने के लिए ही गाय का प्यार और सम्मान हो रहा है पूरे देश में देखा जाता है कि गौ रक्षा के नाम पर मुसलमानों पर आतंक बरपाने वाले ही गायों पालते हैं सुबह को दूध निकालकर छोड़ देते हैं दो चार रूपये का दाना घास बेचारी बेजुबान को नहीं खिलाते। बेजुबान जानवर बेचारी क्या करे कैसे जिये कौन भरे उसका पेट। समझ नहीं आता कि ये कैसे गौमाता के पुत्र हैं जो अपनी माता को घर में रखकर नही पालते, कैसे पुजारी है जो पूज्य की सेवा नही करते, उसे गन्दगी खाकर जीने के लिए छोड़ देते हैं, जरा भी शर्म नही आती इन गौ-भक्तों को। क्या दूध निकालने तक का ही प्रेम है। दरअसल कोई सच्चा गौभक्त है ही नही सारी गौभक्ति, सारा गौ प्रेम सिर्फ मुसलमानों पर आतंक बरपाने के लिए ही है।