Sunday, 25 November 2012
Monday, 12 November 2012
इनसे क्यों कांप रही है केन्द्र सरकार
अभी कुछ दिन पहले की ही बात है जब बरमा और असम में आतंकी बेगुनाह मसलमानों का कत्लेआम कर रहे थे और आतंकियों की इन करतूतों की तस्वीरें विश्वस्तरीय मीडिया के जरिये लोगों तक पहुंची उसपर सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आलोचनायें होने लगी तो इन आलोचनाओं से सबसे ज्यादा परेशानी और तकलीफ सोनिया नामक रिमोट से चलने वाली मनमोहन सिंह की कांग्रेस बाहुल्य केन्द्र सरकार को पहुंची। मुसलमानों के कत्लेआम की आलोचना या मुसलमानों की कर्राहट से सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को तकलीफ पहुंचना भी चाहिये कयोंकि यह वही मनमोहन सरकार है जिसने कुर्सी मिलने के साथ ही गुजरात आतंकवादियों के हाथों किये गये बेगुनाह मुसलमानों के कत्लेआम पर खुश होकर गुजरात आतंकवाद के मास्टर माइण्ड को सम्मान व पुरूस्कार दिया। साथ ही कई आयोगों की रिपोर्टों को दबाकर इस मास्टरमाइण्ड को आजतक अभदान भी दे रखा है।
बरमा और असम आतंक की आलोचनाओं पर मनमोहन सिंह सरकार ने कूदना शुरू कर दिया सोशल नेटवर्किंग साईटों पर रोक लगाने के लिए भी हाथ पैर फेंके लेकिन आज जब कि फेसबुक जैसे साईट पर कुछ आतंकी दल्ले खुलेआम आतंक की धमकियां लिख रहे है। मुसलमान और इस्लाम के लिए अपशब्दों का प्रयोग करके अपने गन्दे खून और नसल का परिचय दे रहे है तो मनमोहन सिंह सरकार के कान तले जंू नहीं रेंग रही। इसका एक ही कारण है कि ये सब नीचता से केन्द्र सरकार को खुशी मिल रही है हमें तो यह भी लगता है कि ये आतंकी केन्द्र सरकार की इच्छा पर ही अपनी तुच्छ नसल का परिचय दे रहे हैं। इसका सबसे बड़ा सबूत यह ही है कि लगभग महीने भर से आतंकी देश का तबाह करने की खुलेआम धमकियां लिख रहे है और आजतक इसपर केन्द्र सरकार के कान तले जूं नहीं रेंगी। साथ ही अमरीका और गुजरात के एजेंन्ट मीडिया के उन धड़ों को भी ये धमकियां नहीं चुभ रही जिनके पास कश्मीर से ईमेल आती हैं जो तमाम धमाकों की आवाजें सुनने से पहले ही धमाका करने वालों के नाम बताने के एक्सपर्ट है।
अगर केन्द्र सरकार और मीडिया के कथित धड़ों की चुप्पी को बारीकी से देखा जाये तो इनका दुम दबाये रखना जायज है क्योंकि सभी को अपनी जान बचाने का हक है अगर इन आतंकियों की धमकियों के खिलाफ मुंह खोला तो हो सकता है कि शहीद हेमन्त करकरे जैसा हाल हो। हेमन्त करकरे ने देश के असल आतंकियों को बेनकाब किया तो उनकी हत्या कर दी गयी उसका इलजाम भी कस्साब के सिर मंड दिया गया।
हमें तो उन मुसलमानों पर शर्म आती है जो आज भी चन्द टुकड़ों के लिए अपना इमान बेचकर आतंक परस्त कांग्रेस के साथ है।
Wednesday, 31 October 2012
तानाशाही के बल पर हैल्मेट बिकवाने की कवायद
सूबे में जब जब सपा की सरकार बनी तब तब हैल्मेट का भूत बाहर निकल आया और इस भूत के बाहर निकलने के साथ ही वर्दी की कमाई में भी खासा इजाफा हो जाता है। इन दिनों फिर यह भूत लखनऊ से चलकर सूबे की गुलाम जनता को गुलामी टैक्स भरने पर मजबूर करने के लिए अपनी डरावनी शक्ल दिखाने लगा। इस बार शासन ने अपने दामन को आरोपों से बचाये रखने के लिए वर्दी को उगाही की छूट देने वाले अपने निर्देश में यह जरूर कहा है कि ‘‘वर्दी वाले भी लगायेगें हैल्मेट’। दरअसल सपा के एक कददावर नेता की लोकल क्वालिटी के हैल्मेट बनाने वाली फैक्ट्री है और इस फैक्ट्री के हैल्मेट बिकवाकर अपने नेता को मोटी कमाई कराना सपा मुखिया और सूबे के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है इसलिए सपा की सरकार आते ही सूबे में हैल्मेट का प्रकोप बढ़ जाता है इस बार तानाशाही के बल पर गुलाम जनता को हैल्मेट खरीदने पर मजबूर किये जाने की कोशिश है सरकार ने कल कहा कि बिना हैल्मेट पैट्रोल नही मिलेगा। दरअसल देश की खादी और खाकी अच्छी तरह जानती है कि जनता गुलामी में जी रही है जैसा मन करे गुलामों को नचाया जा सकता है। अन्याय विवेचक अखिलेश यादव से पूछना चाहता है कि तीन बार उनके पिता और अब सात माह की उनकी अपनी सरकार में सूबे के कितने रोड ऐसे बनाये गये जहां कोइ्र भी वाहन (खासकर निजि वाहन और ट्रक तेज गति से चल सकते हों ? सूबे भर की सड़को की हालत यह है कि उनपर चलना ही मुश्किल है तेज गति से दौड़ना तो दूर की बात है।
वैसे भी वर्दी पर कानून लागू नही होता। देश का हर कानून और नियम केवल शरीफो गरीबों की जिन्दगी गुजारने वाले गुलामों पर ही लागू होता है। यहां हम कई सारे उदाहरण दे रहे हैं। पहला सूबे के वर्दी वालों में चालीस फीसद जिन वाहनों का प्रयोग करते हैं उनके कागज नहीं होते, ये वाहन या तो चोरी के होते है या फिर लावारिस बरामद हुए होते हैं। लाखों बार हर मोड़ पर कारों व दुपहिया वाहनों की रोज चैंकिग होती है आजतक किसी वर्दी वाले से नहीं पूछा गया कि जिस वाहन पर सवार हो उसके पेपर हैं या नही या किसकी है वाहन। खुलेआम धड़ल्ले से दौड़ाते हैं वर्दी वाले वाहन। गुजरे विधान सभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने कारों की सघन चैंकिग करके धन प्रयोग पर रोक लगाने के साथ ही कारों से अवैघ हूटर भी नुचवाये। पुलिस ने बड़ी लगन से चैकिंग की कारों की तलाशिया ली हूटरों के साथ साथ बैक गियर बजर व सैन्टर लाक सिस्टम तक नोच लिये लेकिन उन कारों को नहीं रोका जिनपर पुलिस लिखा था या पुलिस का निशान बना था या फिर उसमें कोइ्र वर्दी वाला बैठा था। कुछ उम्मीदवारों ने भी इसका पुरा फायदा उठाया, जिसे मोटी रकमें लेकर चलना था उन्होंने किसी न किसी पुलिस वाले के वाहन का प्रयोग किया और रकम सकुशल व सुरक्षित तरह से ठिकाने तक ले गये।
बरेली में पूर्व एसएसपी ने चीता मोबाइल (सरकारी मोटर साइकिलों) पर हूटर लगवाकर अपने मातहतों की हनक में इजाफा किया। एसएसपी ने तो केवल सरकारी मोटर साईकिलों पर हूटर लगाने का आदेश किया लेकिन लगा लिये गये निजि बाइको पर भी। बरेली में ही कम से कम दर्जन भर पुलिस वालों की मोटर साईकिलों पर दो तीन साल से न तो नम्बर ही लिखाये गये है और हूटर सभी पर लगाये गये है इन बाईको से उगाही का काम किया जा रहा है।
इन दो तीन उदाहरणों को देखने के बाद सरकार के इस फरमान पर किस तरह भरोसा किया जा सकता है। दरअसल अखिलेश यादव ने सिार्फ मीडिया में सरकार की छीछे लेदर होने से बचने के लिए यह बात कही है। वह भी उस काम को करने की जो खुद मुख्यमंत्री भी नहीं कर सकते।
दूसरी तरफ अगर गुजरे विस चुनावों में सपा को उम्मीद से ज्यादा सीटें मिलीं थी तो अगले लोक लोकसभा और विधान सभा चुनाव सपा के पतन की दास्तान भी लिखते नजर आ रहे है क्योंकि तानाशाही ने ही मायावती और कांग्रेस का सफाया कराया है।
Thursday, 25 October 2012
कौन करेगा दरोगाओं की चैकिंग

वैसे भी वर्दी पर कानून लागू नही होता। देश का हर कानून और नियम केवल शरीफो गरीबों की जिन्दगी गुजारने वाले गुलामों पर ही लागू होता है। यहां हम कई सारे उदाहरण दे रहे हैं। पहला सूबे के वर्दी वालों में चालीस फीसद जिन वाहनों का प्रयोग करते हैं उनके कागज नहीं होते, ये वाहन या तो चोरी के होते है या फिर लावारिस बरामद हुए होते हैं। लाखों बार हर मोड़ पर कारों व दुपहिया वाहनों की रोज चैंकिग होती है आजतक किसी वर्दी वाले से नहीं पूछा गया कि जिस वाहन पर सवार हो उसके पेपर हैं या नही या किसकी है वाहन। खुलेआम धड़ल्ले से दौड़ाते हैं वर्दी वाले वाहन। गुजरे विधान सभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने कारों की सघन चैंकिग करके धन प्रयोग पर रोक लगाने के साथ ही कारों से अवैघ हूटर भी नुचवाये। पुलिस ने बड़ी लगन से चैकिंग की कारों की तलाशिया ली हूटरों के साथ साथ बैक गियर बजर व सैन्टर लाक सिस्टम तक नोच लिये लेकिन उन कारों को नहीं रोका जिनपर पुलिस लिखा था या पुलिस का निशान बना था या फिर उसमें कोइ्र वर्दी वाला बैठा था। कुछ उम्मीदवारों ने भी इसका पुरा फायदा उठाया, जिसे मोटी रकमें लेकर चलना था उन्होंने किसी न किसी पुलिस वाले के वाहन का प्रयोग किया और रकम सकुशल व सुरक्षित तरह से ठिकाने तक ले गये।
बरेली में पूर्व एसएसपी ने चीता मोबाइल (सरकारी मोटर साइकिलों) पर हूटर लगवाकर अपने मातहतों की हनक में इजाफा किया। एसएसपी ने तो केवल सरकारी मोटर साईकिलों पर हूटर लगाने का आदेश किया लेकिन लगा लिये गये निजि बाइको पर भी। बरेली में ही कम से कम दर्जन भर पुलिस वालों की मोटर साईकिलों पर दो तीन साल से न तो नम्बर ही लिखाये गये है और हूटर सभी पर लगाये गये है इन बाईको से उगाही का काम किया जा रहा है।
इन दो तीन उदाहरणों को देखने के बाद सरकार के इस फरमान पर किस तरह भरोसा किया जा सकता है। दरअसल अखिलेश यादव ने सिार्फ मीडिया में सरकार की छीछे लेदर होने से बचने के लिए यह बात कही है। वह भी उस काम को करने की जो खुद मुख्यमंत्री भी नहीं कर सकते।
Friday, 14 September 2012
चम्बल से आकर दिल्ली में बस गये-किरदार सब वही हैं ठिकाने बदल गये।
नई दिल्ली-सोनिया नामक रिमोट से चलने वाली केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य मनमोहन सिंह सरकार देश को अमरीका गुट का गुलाम बनाने की कोइ्र कोशिश बाकी नहीं छोड़ रही। केन्द्र सरकार हर कदम ऐसे काम कर रही है कि गरीब तबके की गुलाम जनता गरीबी से निकल कर भिकारी बन जाये। जाहिर सी बात है कि जब गरीब की मजदूरी में उसके बच्चों को रोटी नही मिलेगी तो वह चोरी चकारी करने पर मजबूर होगा ही। साथ ही केन्द्र सरकार पूंजी पतियों को मालामाल करने की कोशिश में भी कोई कसर बाकी नही रख रही। पूंजीपतियों पर इतना महरबान होने का सीधा सा एक ही कारण दिखाई पड़ता है और वह है कमीशन। राजमार्गों पर हफता वसूली के लाईसेंस देने के साथ ही सरकार के पेट्रोलियम मंत्रालय ने गुलामों को लुटवाने के लिए फिर डीजल के दामों में भारी बढ़ोतरी की है। सरकार ने डीजल के दाम 5 रुपए प्रति लीटर बढ़ा दिए हैं। बढ़े दाम आज आधी रात से लागू होंगे। इतना ही नहीं रसोई गैस पर कोटा सिस्टम भी लगा दिया गया है। अब साल में केवल छह सिलिंडरों पर सबसिडी मिला करेगी। अब एलपीजी के नाम पर हर महीने लूट करने की योजना भी है। डीजल की कीमत बढ़ने से महंगाई और बढ़ने से गरीब की बची खुची रोटी भी छिनना तय है जोकि सरकार चाहती ही है। बेहयाई की हद तो यह है कि गुजरे विधानसभा चुनावों में उ0प्र0 समेत तीन राज्यों की गुलाम जनता ने कांग्रेस को उसकी औकात बतादी फिर भी कांग्रेस लूटमार बन्द नहीं कर रही।
दरअसल कांग्रेस अच्छी तरह जानती है कि 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में गुलाम जनता कांग्रेस को औकात पर भेज देगी इसलिए कांग्रेस की सोच है कि औकात पर आने से पहले ज्यादा से ज्यादा लूट लिया जाये। पेट्रोलियम मंत्रालय ने गुरुवार को डीजल के दाम प्रति लीटर 5 रुपए बढ़ा दिए हैं। सरकार ने एलपीजी पर भी कोटा सिस्टम लगा दिया है। अब साल भर में सिर्फ 6 सिलिंडरों पर ही आपको सब्सिडी मिल पाएगी। सातवां सिलिंडर बाजार मूल्य पर यानी 746 रुपए में मिलेगा। सरकार ने केरोसिन के दामों में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। बढ़ी हुई कीमतें आज आधी रात से लागू होंगी। सरकार ने पेट्रोल की कीमतों को बढ़ोतरी से अलग रखा है और इसके दाम नहीं बढ़ाए जाएंगे। ऐसी संभावना पहले से ही जताई जा रही थी कि सरकार मॉनसून सत्र खत्म होने के तुरंत बाद ही डीजल के दामों में बढ़ोतरी करेगी और सरकार ने ऐसा कर ही दिया।
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