
वैसे भी वर्दी पर कानून लागू नही होता। देश का हर कानून और नियम केवल शरीफो गरीबों की जिन्दगी गुजारने वाले गुलामों पर ही लागू होता है। यहां हम कई सारे उदाहरण दे रहे हैं। पहला सूबे के वर्दी वालों में चालीस फीसद जिन वाहनों का प्रयोग करते हैं उनके कागज नहीं होते, ये वाहन या तो चोरी के होते है या फिर लावारिस बरामद हुए होते हैं। लाखों बार हर मोड़ पर कारों व दुपहिया वाहनों की रोज चैंकिग होती है आजतक किसी वर्दी वाले से नहीं पूछा गया कि जिस वाहन पर सवार हो उसके पेपर हैं या नही या किसकी है वाहन। खुलेआम धड़ल्ले से दौड़ाते हैं वर्दी वाले वाहन। गुजरे विधान सभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने कारों की सघन चैंकिग करके धन प्रयोग पर रोक लगाने के साथ ही कारों से अवैघ हूटर भी नुचवाये। पुलिस ने बड़ी लगन से चैकिंग की कारों की तलाशिया ली हूटरों के साथ साथ बैक गियर बजर व सैन्टर लाक सिस्टम तक नोच लिये लेकिन उन कारों को नहीं रोका जिनपर पुलिस लिखा था या पुलिस का निशान बना था या फिर उसमें कोइ्र वर्दी वाला बैठा था। कुछ उम्मीदवारों ने भी इसका पुरा फायदा उठाया, जिसे मोटी रकमें लेकर चलना था उन्होंने किसी न किसी पुलिस वाले के वाहन का प्रयोग किया और रकम सकुशल व सुरक्षित तरह से ठिकाने तक ले गये।
बरेली में पूर्व एसएसपी ने चीता मोबाइल (सरकारी मोटर साइकिलों) पर हूटर लगवाकर अपने मातहतों की हनक में इजाफा किया। एसएसपी ने तो केवल सरकारी मोटर साईकिलों पर हूटर लगाने का आदेश किया लेकिन लगा लिये गये निजि बाइको पर भी। बरेली में ही कम से कम दर्जन भर पुलिस वालों की मोटर साईकिलों पर दो तीन साल से न तो नम्बर ही लिखाये गये है और हूटर सभी पर लगाये गये है इन बाईको से उगाही का काम किया जा रहा है।
इन दो तीन उदाहरणों को देखने के बाद सरकार के इस फरमान पर किस तरह भरोसा किया जा सकता है। दरअसल अखिलेश यादव ने सिार्फ मीडिया में सरकार की छीछे लेदर होने से बचने के लिए यह बात कही है। वह भी उस काम को करने की जो खुद मुख्यमंत्री भी नहीं कर सकते।
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