Monday, 3 November 2025

कांग्रेस के पिछलग्गू मुसलमानों और राहुल गांधी से कुछ कड़वी बातें




सबसे पहले बतादूं कि मैं इमरान नियाज़ी किसी भी राजनैतिक दल या नेता का सपोर्टर नहीं हूं। और ना ही हर खद्दर धारी का व्यक्तिगत विरोधी हूं। हां कुछेक नाम हैं जिनका में हर तरह से विरोधी हूं। मैं केवल पार्टियों और नेताओं की करतूतों के खिलाफ़ हूं। हांलाकि मुझसे हमेशा ही सवाल पूछा जाता है कि मुसलमान होकर भी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के मुखालफ़त क्यों करता हूं तो जनाब मैं मुसलमान हूं इसीलिये तो इन दोनों की खुली मुखालफ़त करता हूं। खैर फिलहाल मैं बात कर रहा हूं कांग्रेस की। मुसलमानों ने 1947 से ही कांग्रेस पर भरोसा किया। लेकिन कांग्रेस ने 1947 में ही मुसलमानों की पीठ में छुरा घोंपा। ब्रिटिश के जाने के बाद ही देश में सरकार बनाने की जोड़गांठ शुरू हो गई थी। उस वक्त दो बड़े चेहरे प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए सामने थे, जवाहर लाल नेहरू और मो0 अली जिन्ना। जवाहरलाल नेहरू खुद बड़े बेरिस्टर थे। सरकार बनाने के लिए कांग्रेस कमेटी की मीटिंग हुई, मीटिंग में सभी गेर मुस्लिम कांग्रेसियों ने प्रस्ताव पास किया कि ‘‘देश के प्रधान मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री की कुर्सी किसी मुसलमान को नहीं दी जायेगी।’’ हालांकि महात्मा गांधी चाहते थे कि मुसलमान को प्रधानमंत्राी बनाया जाये। महात्मा गांधी के कत्ल की वजह भी यही थी। साथ ही देश के बंटवारे की असल वजह भी कांग्रेस कमेटी का यह फैसला ही था। देश बंट गया और बंटवारे का ठीकरा मो0 अली जिन्ना के सिर फोड़ दिया गया। जवाहर लाल की कोशिश कामयाब हुई कांग्रेस की सरकार बना ली गई उस वक्त भी करोड़ों मुसलमानों ने मो0 अली जिन्ना के मुकाबले नेहरू का साथ दिया। कांग्रेस ने मुसलमानों का ब्रेन वॉश करके मुसलमानों को मानसिक गुलाम बना लिया। सरकार बनते ही कांग्रेस ने अपना असल रूप दिखाना शुरू कर दिया। सितम्बर 1948 में नेहरू ने निज़ाम हैदराबाद पर फौज से हमला कराकर हज़ारों बेकसूर मुसलमानों का क़त्लेआम कराया। मुसलमान मानसिक गुलामी की जंजीरों में ऐसा जकड़ा हुआ था कि इतने बड़े क़त्लेआम के बाद भी कांग्रेस की दरी बिछाने से बाज़ नहीं आया। कांग्रेस ने शुरू से ही मुसलमानों को वोट के लिए इस्तेमाल किया। कभी लीडर शिप या बराबरी देने या मुसलमानों की शैक्षिक या माली तरक़्क़ी के लिए कुछ नहीं किया। कहीं ना आरक्षण ना कोई विंग ही बनाई। आर्मी में गोरखा रेजीमेन्ट बनाई, सिख रेजीमेन्ट बनाई, जाट रेजीमेन्ट, अहीर रेजीमेन्ट आदि बनाई। लेकिन कभी खान रेजीमेन्ट, पठान रेजीमेन्ट या कोई भी मुस्लिम रेजीमेन्ट बनाने की भूल नहीं की क्योंकि कांग्रेस मुसलमानों को सिर्फ दरी बिछवाने और वोट के लिए इस्तेमाल करती हैं। कांग्रेस से सीख लेकर समाजवादी पार्टी, बीएसपी, जनता दल, सरीखे फ़र्ज़ी सैकूलरों ने भी मुसलमानों को दरी बिछाने के काम में इस्तेमाल किया। खैर दूसरे दलों की बात बाद में करेंगे फिलहाल कांग्रेस की करतूतों पर ही बात करते हैं।


1948-49 में हैदराबाद क़त्लेआम कराये जाने के लिए ना तो ब्रिटिश भारत आये ना ही यह क़त्लेआम आम जनमानस ने किया बल्कि नेहरू सरकार की आर्मी ने किया था,  26 से 40  हज़ार मुसलमानों का क़त्लेआम किया गया। मानसिक गुलामी में जकड़े मुसलमान की आंखें नहीं खुलीं और ज्यों का त्यों कांग्रेस की पिछलग्गू बनकर दरी बिछाता रहा।

1957 में तमिल नाडू के रामनाड में 50 से ज़्यादा मुसलमानों को मारा काटा गया। इस दौरान तमिलनाडू में के कामाराज की कांग्रेसी सरकार और केन्द्र में नेहरू की सरकार थी।

1964 में कलकत्ता में मुस्लिम क़त्लेआम किया गया इस वक्त पश्चिमी बंगाल में बिधन चन्द्र राय की कांग्रेसी सरकार और केन्द्र में गुलज़ारी लाल नन्दा और फिर लाल बहादुर शास्त्री की सरकार थी। मुसलमानों को सरकार से कोई राहत या मदद नहीं मिली, उल्टे जेलों में ठूंसा गया।

1964 में ही महाराष्ट्र के भिवंडी में मुसलमानों का क़त्लेआम किया गया। जब भी महाराष्ट्र में बसन्तराव नाइक और केन्द्र में इन्दिरा गांधी प्रधान मंत्री थीं।

1967 में रांची में 150 से ज़्यादा में मुसलमानों को मारा गयाए सैकड़ों दुकानों घरों को लूटकर आग लगाई गई। इस दौरान राज्य में जनता क्रान्ति दल (वर्तमान में बीजेपी) की सरकार ओर केन्द्र में मुसलमानों की मसीहा इन्दिरा गांधी की क़ब्ज़ा था।

1969 में गुजरात में 512 मुस्लिमों को काटा गया। इस दौरान गुजरात में हितेन्द्र कन्हैया लाल देसाई की कांग्रेसी सरकार और केन्द्र में मुसलमानों की मसीहाई का ढोल पीटने वाली इन्दिरा गांधी की सरकार थी।

1970 में महाराष्ट्र के भिवंडी में कई हज़ार मुसलमानों को मारा काटा गया। इस दोरान भी महाराष्ट्र में बसन्तराव नाइक की कांग्रेसी सरकार और केन्द्र में इन्दिरा गांधी की सरकार थी।

1980 में उ0प्र0 के मुरादाबाद में एक बड़ी साजिश के तहत ईदगाह में सुअर छोड़े गये, विरोध करने पर नमाज़ पढ़ रहे मुसलमानों पर पीएसी ने अंधाधुन गोलिया बरसाईं, लगभग 500 बूढ़े बच्चों जवानों का क़त्लेआम किया। इसके बाद पुलिस पीएसी ने मुसलमानों के घरों में लूटपाट आगज़नी, कत्लेआम और बलात्कार किये। इस दौरान उ0प्र0 में कांग्रेसी मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह और केन्द्र में इन्दिरागांधी की सरकार थी।

1981 में बिहार में 50 से ज़्यादा मुस्लिमों को काटा गया। इस दौरान बिहार में कांग्रेसी मुख्यमंत्री जगननाथ मिश्रा और केन्द्र में इन्दिरा गांधी का कब्ज़ा था।

1983 में आसाम में मुसलमानों पर हमले किये गये और मार काट की गई, 3 हज़ार से ज़्यादा बेकसूर निहत्थे मुसलमानों का क़तलेआम किया गया। आसाम में भी कांग्रेसी मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया और केन्द्र में इन्दिरा  गांधी की सरकार थी।

1984 में फिर महाराष्ट्र के भिवन्डी में मुस्लिमों को मारने काटने लूटने का खुला आंतक कराया गया, 300 से ज़्यादा मुसलमानों को क़त्ल किया। इस बार महाराष्ट्र में वसन्त दाद पाटिल की कांग्रेसी सरकार और केन्द्र में राजीव गांधी की सरकार थी।

1984 में इन्दिरा गांधी के क़त्ल के बाद पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश दिल्ली और बिहार आदि में सिखों के साथ कांग्रेसियों ने दर्जनों मुसलमानों को भी निशाना बनाया।

1985 की फरवरी, अप्रैल और मई में गुजरात में 300 से ज़्यादा मुसलमानों को क़त्ल किया गया। इस बार भी गुजरात में माधव सिंह सोलंकी की कांग्रेसी सरकार और केन्द्र में राजीव गांधी की सरकार थी।

1986 फरवरी की 01 तारीख को राजीव गांधी (तत्कालीन प्रधानमंत्री) ने बाबरी मस्जिद शहीद कराने की नींव रखते हुए मस्जिद के ताले खोलकर मस्जिद में मूर्तियां रखवा दीं

1986 में कश्मीर में मुसलमानों के खिलाफ सरकारी और गैर सरकारी बवाल किया गया, दर्जनों बेकसूर मुसलमानों को सरकारी हाथों के ज़रिये मौत के घाट उतारा गया। इस दौरान राजीव गांधी की सरकार थी।

1987 में उ0प्र0 के मेरठ में लगभग 200 मुसलमानों पर आतंक बरपाया गया, 40 मुस्लिम नौजवानों को घरों से ले जाकर पुलिस ने नहर पर गोलियों से भून कर मार दिया था। इस समय उ0प्र0 में वीर बहादुर सिंह की कांग्रेसी सरकार थी और केन्द्र में मुस्लिमों के आक़ा राजीव गांधी का कब्ज़ा था।

1987 में ही दिल्ली में दर्जनों मुसलमानों पर आफत ढाई गई। इस दौरान दिल्ली पुलिस राजीव गांधी के ही कमान में थी।

1988 में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में दर्जनों मुसलमानों की मार काट की गई। इस दौरान महाराष्ट्र में कांग्रेसी शरद पवार की और केन्द्र में राजीव गांधी की सरकार थी।

1988 में ही उ0प्र0 के मुज़फफरनगर में कई दर्जन मुसलमानों की मार काट, आगज़नी, लूटपाट की गई। हज़ारों मुसलमों को लूटपाट करके उनके ज़मीनें घर छीने गये। तब भी उ0प्र0 में कांग्रेस की वीर बहादुर सिंह सरकार और केन्द्र में राजीव गांधी पावर में थे।

1989 में बम्बई में एक बार फिर मुसलमानों पर हमले किये गये और दर्जन भर से ज़्यादा मुसलमानों को क़त्ल किया गया। इस बार भी शरद पवार की ही पुलिस थी, राजीव गांधी सैन्ट्रल गर्वंमेन्ट चला रहे थे।

1989 में ही राजस्थान के कोटा में मुसलमानों की मार काट लूटपाट की गई, दो दर्जन से अधिक मुसलमानों को क़त्ल किया गया। उस वक्त राजस्थान में भी कांग्रेस की हरिदेव जोशी की और केन्द्र में राजीव सरकार थी।

1989 में ही उ0प्र0 के बदायूं में मुसलमानों पर हमले किये गये जाने ली गई मारकूट और लूटपाट की गई, दो दर्जन से अधिक मुसलमानों को कत्ल किया गया। उ0प्र0 में नारायण दत्त तिवारी और सैन्टर में राजीव गांधी की कांग्रेसी सरकार थी।

1989 में मध्य प्रदेश के इंदौर में मुसलमानों पर हमले किये गये, दो दर्जन मुसलमानों को मार दिया गया। इस दौरान मध्य प्रदेश में मोतीलाल वोरा की कांग्रेसी सरकार और केन्द्र में राजीव गांधी की कब्ज़ा था।

1989 में बिहार के भागलपुर में मुसलमानों पर आतंक बरपाया गया, 1000 से ज़्यादा मुसलमानों का क़त्लेआम किया गया। इन दिनों बिहार कांग्रेसी मुख्यमंत्री सत्यनरायण सिन्हा और केन्द्र में राजीव गांधी का कब्ज़ा था।

1989 में कश्मीर में 1200 मुसलमानों को साजिशी कत्लेआम किया गया।

1990 में उत्तर प्रदेश के कर्नल गंज में मुसलमानों पर हमले किये गये, 100 से ज़्यादा बेकसूर निहत्थे मुसलमानों को कत्ल किया गया। इस दौरान उत्तर प्रदेश की सत्ता कथित मुस्लिम हिमायती मुलायम सिंह यादव की और केन्द्र में वीपी सिंह की सरकार थी।

1990 में हैदराबाद में मुसलमानों पर हमले किये गये, 200 से ज़्यादा मुसलमान कत्ल किये गये। इस दौरान आंध्र प्रदेश में मैरी चन्ना रेड्डी की कांग्रेसी सरकार थी।

1990 में मुलायम सिंह सरकार के रहते हुए उ0प्र0 के कानपुर, आगरा, खुरजा, अलीगढ़, गोण्डा में प्लानिंग के साथ मुसलमानों पर हमले करके 200 से ज़्यादा मुसलमानों को क़त्ल किया गया। लूट पाट आगज़नी की गई।

1990 में कर्नाटक के रामनगरम, चन्नापटना, कोलार, देवानागर, टुमकेर आदि में 50 से ज़्यादा मुसलमानों की मार  दिया गया। इस दौरान कर्नाटक में देवेन्द्र पाटिल कांग्रेसी मुख्य मंत्री की सरकार थी।

1991 में सहारनपुर में कम से कम 40, कानपुर में लगभग 20, मेरठ में 3 दर्जन, मुसलमानों को एक साथ कत्ल किया गया। सहारनपुर, कानपुर और मेरठ में क़त्लेआम के दौरान उ0प्र0 में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्राी थे। जबकि केन्द्र में तथा कथित कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव का खेल चल रहा था।

1992 में बिहार के सीतामढ़ी में अचानक मुसलमानों पर हमले करके लगभग 65 मुसलमानों का क़त्लेआम किया गया। इस दौरान बिहार में लालूप्रसाद यादव मुख्यमंत्री थे और वही नरसिम्हाराव राव का खेल चल रहा था।

1992 में एक बार फिर गुजरात के सूरत में आतंक मचाकर 200 से ज़्यादा निहत्थे बूढ़े बच्चे जवान मुसलमानों का क़त्लेआम कराया गया। हालांकि इन दिनों गुजरात में मोदी का कब्जा था। हालांकि लालू यादव ने अपनी इस गल्ती का प्रायचित रेलमंत्री बनाये जाने पर कर लिया। लेकिन केन्द्र में नरसिम्हाराव की साजिश थी।

1992 में ही बम्बई में मुसलमानों पर आतंक बरपाकर 250 से अधिक मुसलमानों को क़त्ल किया गया। इस दौरान महाराष्ट्र में कांग्रेस की ही सरकार थी और केन्द्र में नरसिम्हाराव की साजिशें चल रही थीं।

1992 में ही दोबारा गुजरात के सूरत में मुसलमानों पर आतंक वरपाकर 200 से ज्यादा मुसलमनों को कत्ल करके लूटपाट आगज़नी आबरू ज़नी कराई गई। अस बार भी केन्द्र में साजिशों का दौर था।

1992 में कर्नाटक के हुबली, बैंगलौर, गुलबर्गा, धारवाद में मुसलमानों पर हमले करके कम से कम 32 मुसलमानों को क़त्ल करा गया। कर्नाटक में भी कांग्रेसी मुख्यमंत्री वीरप्पा मोईली और केन्द्र में साजिश का प्रतीक नरसिम्हाराव का खेल चल रहा था।

1992 में उ0प्र0 के कानपुर में फिर मुसलमानों पर हमले करके कत्लेआम करने की छूट देकर कम से कम 260 मुसलमानों को कत्ल कराया गया। इस बार भी मुसलमानों के खिलाफ नरसिम्हाराव का ही खेल था कयोंकि इस दौरान उ0प्र0 में राष्ट्रपति शासन था।

1992 में आसाम में फिर मुसलमानों पर कमले कराकर कम से कम 95 बेकसूर मुसलमानों को कत्ल कराया गया। इस दौरान आसाम में हितेश्वर सैकिया की कांग्रेसी सरकार थी साथ ही नरसिम्हाराव का खेल भी चल रहा था।

1992 में राजस्थान में भी मुसलमानों को काटने के लाईसेंस देकर लगभग 65 मुसलमानों को कत्ल कराया गया। इस दौरान राजस्थान में बीजेपी का कब्ज़ा था लेकिन केन्द्र में नरसिम्हाराव की कार गुजारी भी थी।

1992 में बंगाल के कलकत्ता में कम से कम 35 बेकसूर मुसलमानों का कत्ल किया गया। इन दिनों बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी के ज्योति बसु मुख्यमंत्री थे लेकिन केन्द्र में कांग्रेस का ही कब्ज़ा था।

1992 में मध्य प्रदेश के भोपाल में मुसलमानों का क़त्लेआम करने की खुली छूट देकर 180 से ज़्यादा मुसलमानों के क़त्ल कराये गये। इन दिनो मध्य प्रदेश नरसिम्हाराव के हाथ में ही था।

1992 में दिल्ली में भी लगभग 55 मुसलमानों को मार दिया गया। इस दौरान दिल्ली सीधे नरसिम्हाराव की कमाण्ड में थी।

1993 में बम्बई में कांग्रेसी मुख्यमंत्री सुधाकर राव नाईक ने मुसलमानों को थोक में क़त्ल करने का लाईसेंस देकर कम से कम 4500 मुसलमानों को क़त्ल कराया, सुधाकर राव को दिल्ली से नरसिम्हाराव की फुल सपोर्ट मिली थी।

1994 में कर्नाटक के हुबली में 7-8 बेकसूर मुसलमानों को मार दिया गया। इस दौरान कर्नाटक में वीरप्पा मोईली और केन्द्र में नरसिम्हाराव कांग्रेसियों का क़ब्ज़ा था।

1994 में ही कर्नाअक के बेंगलूर में दोनो कांग्रेसियों की कारगुजत्रारी से लगभग 25 मुसलमानों को क़त्ल किया गया।

2005 में उ0प्र0 के मऊ में मुलायम सिंह यादव की सरकार के दौरान 15 मुसलमान मौत के घाट उतारे गये। इस दौरान भी केन्द्र में कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार थी।

2005 में ही यूपी के लखनऊ में 5 मुसलमानों को कत्ल किया गया। इस दौरान भी यूपी में मुसलमानों के मसीहा मुलायम सिंह यादव की सरकार थी और सैन्टर में सोनिया गांधी रिमोट से चलने वाली मनमोहन सिंह सरकार थी।

2006 में गुजरात के बड़ौदा में फिर मुसलमानों को मारने काटने लूटने आगज़नी करने की छूट देकर 10 कत्ल कराये गये। इस समय अगर गुजरात में सरकारी तौर पर मुसलमानों के कत्ल कराये जाने का प्रावधान था लेकिन केन्द्र में तो कांग्रेस का ही कब्ज़ा था।

2008 में मध्य प्रदेश के इंदौर में शिवराज सरकार के सरपरस्ती में मुसलमानों पर आतंक बरपाया गया। इसपर भी सोनिया गांधी नामक रिमोट से चलने वाली मनमोहन सिंह सरकार ने चुपी साधे रखी।

2012 में आसाम में मुसलमानों पर आतंकी हमले करके कम से कम 80 निहत्थे मुसलमानों का कत्लेआम कराया गया। इस दौरान आसाम में तरून गोगोई और सैन्अर में मनमोहन सिंह की कांग्रेसी सरकार थी।

2013 पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार को बदनाम करने और कमज़ोर करने के लिए मुसलमानों पर हमले कराये गये, कई लोग मार दिये गये। सैन्टर में कांग्रेसियों का कब्ज़ा था।

2013 में उ0प्र0 के मुज़फ़्फरनगर में मुसलमानों के क़त्ल, रेप, लूटपाट, आगज़नी, सम्पत्ति कबज़ाने की छूट देकर लगभग 600 बेकसूर मुसलमानों को क़त्ल, आगज़नी, बलात्कार, लूटपाट, कराकर मुसलमनों की ज़मीनों मकानों पर कब्जे करके 60 हज़ार से अधिक मुसलमानों को घर ज़मीन जायदादें छोड़कर भागने पर मजबूर कराया गया। चौंकाने वाला पहलू यह है कि इस दौरान उ0प्र0 में मुसलमानों के मसीहा अखिलेश भैया की सरकार और दूसरे नाखुदा राहुल गांधी का केन्द्र में कब्ज़ा था।


इनके अलावा अगर बात करें फ़र्ज़ी एंकाऊण्टरों के ज़रिये मुसलमानों को क़त्ल कराये जाने की तो कांग्रेस ने अपने दौर में थोक में बेकसूर मुसलमानों के एंकाउटर कराये गये। हम सिर्फ कुछ सरकारी कत्लों की बात करें तो 26 नवम्बर 2005 को गुजरात में सोहराब उददीन और उनकी पत्नी को मार दिया गया इन हत्याओं के चश्मदीद प्रजापति को भी 26 दिसम्बर 2006 को मार दिया गया। 15 जून 2004 को इशरत जहां और उसके दोस्तों को कत्ल किया गया। 19 सितम्बर 2008 को बाटला हाऊस कत्लों से भी सब वाकिफ हैं। और इन सब क़त्लों के दौरान केन्द्र में सोनिया गांधी नाम के रिमोट से चलने वाली कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार थी। मनमोहन सिंह सरकार को कोई कार्यवाही करने की इजाज़त नहीं दी गई। आज देश जो कुछ भुगत रहा है ये सब कांग्रेस की ही देन है। कांग्रेस बोये और सींचे पेड़ के ही फल देश को मिल रहे हैं। बीजेपी तो बेवजह ही बदनाम है। कांग्रेस ने जो फसल बोई औरं सींची थी उसी पकी फसल को बीजेपी काट रही है।

        कांग्रेस फिर मुसलमान के सहारे सरकार में पहुंचने की कोशिशों में लगी है। मुसलमान फिर पिछलग्गू बना दिख रहा है। कैसे बार बार भूल जाता है मुसलमान कांग्रेस की करतूतों को ? क्या मुसलमान का ज़मीर पूरी तरह मर चुका है ?

मुसलमानों को आंखे खोलनी होंगी, दिमागी गुलामी से बाहर आकर सोचना होगा, और यह देखना समझना होगा कि आज तक कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बीएसपी, समेत सभी सैक्यूलर का ढोंग करने वाली पार्टियों ने आपको दिया क्या ?

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