Tuesday, 10 December 2013

मालामाल बनें रहने के लिए कौम की कुर्बानी-इमरान नियाजी

          
पूरी दुनिया में जिस पैमाने पर आतंकी देश अमरीका और उसके चमचे देश इस्लाम को मिटाने की कोशिशों में जुटे हैं उससे भी बड़े पैमाने पर मसलक, फिरके, दरगाहों के नाम पर मुसलमानों को बांटकर अपनी अपनी दुकानें चमकाकर मालामाल बनने में लगे हैं। पहले फिरकों में मुसलमानों को बांटकर पूरी तरह से कमजोर और लाचार बना दिया गया। दुनिया की दूसरी बड़ी आबादी होने के बावजूद भी मुसलमान आसानी से कुचला जा रहा है कहीं आतंकवादी कहकर मार गिराया जाता है तों कहीं आतंकी देश मुस्लिम देशों के आतंकियों से सम्बन्ध होने के बहाने मुस्लिम देशों पर हमले करके लूटपाट करने से नहीं झिझकते और दुनिया की दूसरी बड़ी आबादी मुंह ताकती रह जाती है। अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, पाकिस्तान इसका जीता जागता सबूत है। मुस्लिम इबादतगाहों पर दहशतगर्द हमले करके गिरा देते है मुसलमान मुंह ताकते रह जाते है शायद किसी ने सही कहा था कि :-

                      "एक शब्बीर ने लाखों से बचाया काबा
                      एक मस्जिद भी करोड़ों से बचाई न गयी"।
          बाबरी मस्जिद पर दहशतगर्दो ने हमला किया मुसलमान फिर्के वाराना अदावतें ही लिए बैठा रहा। बाद में बददुआओं के लिए मजमें लगाने के नाम पर लाखों कमाये जाने लगे। गुजरात में सरकारी व गैर सरकारी आतंकी बेगुनाह मुसलमानों का कत्लेआम करते रहे और हमारे मुल्ला सुन्नी वहाबी देवबन्दी के नाम पर मुसलमानों को बांटे रहे। बरेली के ही थाना किला क्षेत्र के मोहल्ला कटघर के कुछ युवकों ने गुजरात आतंकवाद में कत्ल किये गुये बेकसूर मुसलमानों की इसाले सवाब के लिए कुरान ख्वानी का प्रोग्राम बनाया तो भी उन्हें रोकने की कोशिशें की गयी उनसे कहा गया कि "गुजरात में कत्लेआम में बरने वाले वहाबी हैं इसलिए उनके लिए कुछ नहीं करना चाहिये।" हालांकि इन मुस्लिम नौजवानों ने इस तरह की अदावती बात पर ध्यान नहीं दिया और बादस्तूर गुजरात आतंकियों के हाथों कत्लेआम के शिकार मुसलमानों के लिए कुरान ख्वानी करते रहे, इस मौके पर 27 कुरान खत्म किये गये। रोकने वालों की इस गैर जिम्मेदाराना अदावती कोशिशों को देखकर सवाल यह पैदा होता है कि 'जब गुजरात में आतंकी बेगुनाह मुसलमानों का कत्लेआम कर रहे थे तो क्या आतंकी मुसलमानों से उनके फिरके के बारे में पूंछ रहे थे क्या सुन्नी वहाबी के बारे में जानकर मारा जा रहा था, क्या गुजरात आतंकियों ने किसी सुन्नी को बख्श दिया, क्या बाबरी मस्जिद शहीद करने वाले दहशतगर्दों ने पूछा था कि मस्जिद बहाबियों की है या सुन्नियों की, क्या अफ्गानिस्तान ईराक लीबिया या पाकिस्तान पर हमले करने वाली अमरीकी आतंकवादियों ने बमों को बता दिया था कि वहाबी पर गिरना है या सुन्नी पर, क्या अमरीकी आतंकियों ने अफ्गानिस्तान, इराक लीबिया और कुछ हद तक पाकिस्तान पर हमले के दौरान लोगों को लूटते वक्त किसी से पूछा कि तू कौन है वहाबी है या देबन्दी?' लम्बे अर्से से मुल्ला अपनी रोटियां सेंकने और मालामाल होने के लिए मुसलमानों को सुन्नी, वहाबी, देवबन्दी के नाम पर बांटते रहे, इसका खमियाजा पूरी कौम भुगत रही है किसी एक फिर्के या ग्रुप का नुकसान नहीं हुआ बल्कि दुनिया भर के तमाम मुसलमान नतीजे भुगतते रहे ओर इनको बांटने वाले मालामाल होते रहे, सरकारी कुर्सियां हथियाते रहे। लेकिन कौम की इतनी बर्बादी से मिले माल से भी मुस्लिम वोटों के इन सौदागरों के पेट नहीं भरे तो अब कुछ साल साल से दरगाहों ओर सिलसिलों के नाम पर कौम के टुकड़े करने शुरू कर दिये। कुछेक ने दूसरे तमाम सिलसिलों उनके बुजुर्गों और उन सिलसिलों की दरगाहों को मुसलमान मानना ही बन्द कर दिया, एक गिरोह ऐसा भी पैदा हो गया है जो खुद अपने ग्रुप के अलावा सभी को गलत ठहराने के काम में लगा हुआ है इसके लिए हजारों की तादाद में दलाल भी छोड़े जा रहे हैं जो गली मुहल्लों में जाकर रहते हैं लोगों की रोटियों पर जीते हैं और कमअक्ल लोगों को बड़गलाते हैं। 
अब सियासी और सामाजिक मोड़ पर भी अदावतें उजागर करना आम बात हो गयी है। एक नेता अगर सियासी कदम उठाते हुए सभी दरगाहों पर हाजिरी देने चला जाता है तो बाकी की दरगाहों से जुड़े लोगों को चुभ जाती है मुखालफत शुरू कर दी जाती है या उससे दूर हो लिया जाता है। खुद जिस पार्टी या नेता के तलवे चाट रहे हों और वह दूसरी दरगाह से जुड़े लोगों को भी दाना डाल दे तो बस हो गये आग बबूला, करने लगते हैं बगावती बयानबाजी। खुद भी माल कमाने या कुर्सी पाने के लिए कौम का सौदा करते हैं न मिले तो बगावत शुरू।
दरअसल इन सब हालात के जिम्मेदार खुद मुसलमान हैं जो अपने विवेक से कोई कदम उठा नहीं सकते क्योंकि मेरी कौम भैंसा खाती है इसलिए खोपड़ी भी भैंसे वाली ही हो गयी है बस जो "मियां" ने कह दिया वही पत्थर की लकीर है, और मियांको ऐसे ही भैंसा खोपडि़यों की ही जरूरत रहती है। 

Friday, 27 September 2013

कोई वजह नजर नहीं आती, कानून और अदालतों को सैक्यूलर मानने की


स्कूली बच्चों को पढ़ाये जाने के साथ ही नेताओं और आला अफसरों के भाषणों, लेखों, रचनाओं, कविताओं,गजलों वगैराह में कुछ सैन्टेन्स सुनने को मिलते है कि  'भारत एक धर्मनिर्पेक्ष देश है', 'यहां का संविधान धर्मनिर्पेक्ष है', 'कानून की आंखों पर काली पटटी बंधी है यह किसी की धर्म जाति रंग रूप ओहदे को देखकर न्याय नहीं करता', 'कानून की नजर में सब बराबर है'। वगैरा वगैरा........, लेकिन क्या ये सारी बातें सही है, इनका कोई वास्तविक रूप है? इन सवालों के जवाब कुछेक मामलों को गौर से देखने के बाद आसानी से मिल जाते हैं। 1992 में बाबरी मस्जिद को शहीद कर दिया गया, जिसका मुकदमा आजतक लटकाकर रखा जा रहा है, कई एक जांचों में दहशतगर्दो के नाम खुलकर सामने आ जाने के बावजूद उनपर कानूनी शिकंजा कसने के बजाये उलटे उनमें से कुछेक को सरकारी कुर्सियां दी गयी, जबकि बरेली जिले के एक गांव में सरकारी सड़क को घेर कर रातो रात बना लिये गये एक मन्दिर की दीवार रात के अंधेरे में ट्राली लग जाने से गिर गयी, सुबह ही पुलिस दौड़ी ओर ट्रैक्टर चालक को उठा लाई मन चाही धाराये ठोककर जेल भेज दिया। इसी सरीखे देश भर में हजारों मामले हैं।  कम से कम से कम बीस साल पहले पाकिस्तान मूल की जिन मुस्लिम महिलाओं ने भारतीय मुस्लिम पुरूषों से बाकायदा शादी करके यहां रहने लगी उनके कई कई बच्चे भी हुए, इन महिलाओं को गुजरे पांच साल के अर्से में ढूंढ ढूंढकर देश से वापिस किया गया यहां तककि कुछेक के मासूम दुधमुंहे बच्चों को भी उनकी मांओं की गोद से दूर कर दिया गया, बरेली में ही लगभग पांच साल पहले एक लगभग 80 साल के बूढ़े हवलदार खां को पाकिस्तानी बताकर जेल में डाल दिया गया उनके पैर में कैन्सर था जेल के बाहर इलाज तक नहीं करया गया जिनकी गुजरे साल  जबकि खुद सोनिया गांधी के मामले में आजतक ऐसी कोई कार्यवाही करने की हिम्मत किसी की न हो सकी, अगर यह कहा जाता है कि इस तरह की कार्यवाही सिर्फ पाकिस्तानियों के लिए ही की जाती है तो भी गलत है कयोंकि गुजरे दो साल में पाकिस्तान से वहां के सैकड़ों गददार तीर्थ यात्रा के वीजे पर भारत आये और यहां आकर उन देशद्रोहियों ने जमकर जहर उगला, इनमें एक पाकिस्तान सरकार में मंत्री था, यहां की सरकारों ने खूब महमानदारी की जोकि अभी तक जारी है। क्यों भाई तुम्हें तो पाकिस्तानियों से एलर्जी है तो इन पाकिस्तानियों को क्यों पाला जा रहा है। बात साफ है कि संविधान को एलर्जी पाकिस्तान से नहीं बल्कि मुसलमान से है। समझौता एक्सप्रेस, मालेगांव, अजमेर दरगाह, मक्का मस्जिद में ब्लास्ट करने वालों के खिलाफ सारे सबूत तिल जाने के बावजूद इन आतंकियों के मामलों को जानबूझकर लम्बा खींचा जा रहा है जबकि कस्साब, अफजल मामले में पूरे दो साल भी नहीं नहीं गुजरने दिये अदालतों ने सजाये दे डाली। गुजरी साल आंवला में कांवडि़यों ने नमाज होती देखकर मस्जिद के आगे नाचना गाना शुरू कर दिया विरोध होने पर कांवडि़यों ने अपने वाहनों में मौजूद पैट्रौल के पीपों में से पैट्रौल घरों पर फेंककर आग लगाने की कोशिश की, जिसका नतीजा हुआ कि शहर पूरे महीने कफर््यु की गोद में रहा। कफर््यु के दौरान ही प्रशासन ने संगीनों के बलपर नई परम्परा की शुरूआत कराते हुए दो नये रास्तों (मुस्लिम बाहुल्य) क्षेत्रों से नई कांवड़ यात्रायें निकलवायी। अकबरूद्दीन ओवैसी जी ने देश के मौजूद हालात की दुखती रग पर उगंली रखी तो कानून ताकतवर बन खड़ा हुआ यहां तक जज साहब भी अपने अन्दर की मुस्लिम विरोधी भावना को बाहर आने से नहीं रोक सके जबकि औवैसी से कहीं ज्यादा खतरनाक और आपत्तिजनक बयान हर रोज इसी यूट्यूब, फेसबुक वगैराह पर मुसलमानों के खिलाफ देखे जाते हैं लेकिन जज साहब को आपत्तिजनक नहीं लगते न ही देश के कानून को चुभते हैं। गुजरे दिनों बरमा और आसाम में आतंकियों के हाथों किये जा रहे मुस्लिम कत्लेआम के खिलाफ सोशल नेटवर्किंग साइटों पर चर्चा गरम हुई तो देश की सरकारों और कानून के लगने लगी, प्रधानमंत्री ओर ग्रहमंत्री ने तो ऐसी साइटों को बन्द कराने तक के लिए जोर लगाया, जबकि इन्हीं साईटों पर कुछ आतंकवादी खुलेआम इस्लाम ओर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलने के साथ ही अपनी गन्दे खून की पहचान कराते हुए उन शब्दों का प्रयोग करते रहते हैं जो उनके खानदानी पहचान वाले शब्द हैं इसपर न सरकार को लगती है न ही कानून को। आरएसएस लाबी की खुफिया एजेंसियों, और मीडिया के साथ मिलकर सुरक्षा बलों ने हमेशा ही धमाके करने वाले असली गुनाहगारों को बचाने के लिए साजिशी तौर पर हर धमाके की सीधी जिम्मेदारी थोपकर सैकड़ों मुस्लिमों को सरेआम कत्ल किया जेलों में रखकर बेरोकटोक यातनायें देते रहें लेकिन बेगुनाह फंसाये जाने के बावजूद किसी भी बेगुनाह की तरफ से जवाब में किसी भी जांच अधिकारी का कत्ल नहीं किया गया जबकि जब एक ईमाानदार अधिकारी शहीद हेमन्त करकरे ने देश के असल आतंकियों को बेनकाब कर दिया तब चन्द दिनों में ही हेमन्त करकरे को ही ठिकाने लगा दिया गया, हेमन्त करकरे के कत्ल का इल्जाम भी मुस्लिम के सिर मंढने के लिए आरएसएस लाबी की खुफिया एजेंसियो, सुरक्षा बलों, एंव मीडिया ने एक बहुत ही बड़ा ड्रामा खड़ा किया जिसमें शहीद हेमन्त करकरे को ठिकाने लगाने का रास्ता आसान और साफ कर लिया गया और लगा दिया एक ईमानदार शख्स को ठिकाने, हेमन्त करकरे का कसूर बस इतना ही था कि उन्होंने देश के असल आतंकवादियों को बेनकाब कर दिया। विवेचना अधिकारी से लेकर सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति तक किसी ने भी यह जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर हेमन्त करकरे को ही गोली क्यों लगी दूसरे किसी अफसर या जवान को क्यों नहीं लगी, जबकि तुरन्त ही हेमन्त करकरे की जैकेट को लेकर बहस भी छिड़ी, लेकिन किसी ने भी जैकेट के बेकार होने के मामले की तह तक पहुंचने की जहमत नहीं की और और हाथ लग चुके कुर्बानी के बकरे को ही हेमन्त करकरे का कातिल ठहराया जाता रहा। हेमन्त करकरे के कत्ल और उनकी जाकेट की ज्यादा बखिया उधेड़ने से जानबूझ कर बचा गया क्योंकि सभी यह जानते थे कि अगर इन बिन्दुओं को करोदा गया तो फिर असल आतंकियों को बेनकाब करना पड़ेगा, साथ ही करोड़ों रूपये ठिकाने लगाकर बिछाये गये जाल का भी पर्दाफाश हो जायेगा, यानी बम्बई हमले की असलियत भी दुनिया के सामने आ जायेगी। इसी साल रमज़ान के महीने में बरेली के थाना भोजीपुरा के गांव हंसा हंसनी में लाऊडस्पीकर पर नआत (नबी की शान में गजल) पढ़ने पर कुछ खुराफातियों को एतराज होने लगा और एसओ भोजीपुरा ने गांव में पहुंचकर पाबन्दी लगादी, जबकि इसी गांव में रात रात भर किये जाने वाले जागरणों की आवाजों पर किसी ने आजतक कोई रोक नहीं लगाई। महात्मा गांधी का कातिल मुसलमान नहीं था, इन्दिरा गांधी के कातिल मुस्लिम नहीं, राजीव गांधी के कातिल भी मुस्लिम नही, खुफिया दस्तावेज पाक को देने वाली भी मुसलमान नहीं है, हजारों करोड़ रूपये चुराकर विदेशों में जमा करने वालों में भी कोई मुसलमान नहीं। ताजा मामलों को ही देखिये, मध्य प्रदेश में विहिप नेता के घर से आतंक का सामान बरामद हुआ पुलिस ने उस आतंकी को फरार होने का पूरा मौका दिया, प्रधानमंत्री से लेकर सन्तरी तक सभी की बोलती बन्द है किसी के मंुह से कुछ नहीं निकल रहा। बिहार में हथयारों की अवैध फैक्ट्री पकड़ी गयी, किसी के मुंह में जुबान नहीं दिखी, हां अगर यही मामला किसी मुसलमान से जुड़ा होता तो शायद सबसे पहले प्रधानमंत्री ही चीख पड़ते गृहमंत्री कहते कि इण्डियन मुजाहिदीन के सदस्य के यहां से बरामद हुआ तो इनके गृहसचिव को पाकिस्तान की साजिश दिखाई पड़ती। मीडिया भी कुलाचें मार मारकर चीखती यहां तककि एक न्यूज चैनल के पास तो ईमेल भी आना शुरू हो जाती, छापा मारने वाली टीम अभी हथियारों को उठा भी नहीं पाती कि मीडिया इसके जिम्मेदारों के नामों की घोषणा भी कर देता। आरएसएस आतंकियों ने मक्का मस्जिद में धमाके करके आईबी, और दूसरी जांच एजेंसियों को इशारा करके मुस्लिम नौजवानों को जिम्मेदार ठहराकर गिरफ्तार कराया और जी भरकर उनपर अत्याचार किये भला हो ईमानदारी के प्रतीक शहीद हेमन्त करकरे का जिन्होंने देश में होने वाले धमाकों और आतंकी हरकतों के असल कर्ताधर्ताओं को बेनकाब कर दिया जिससे साजिशन फंसाये गये मुस्लिमों को रिहाई मिली। साजिश के तहत फंसाकर मुस्लिम नौजवानों की जिन्दगियां बर्बाद करदी गयी अदालत में साजिश और झूठ टिक नहीं सकाए बेगुनाह रिहा हुए उनका कैरियर बर्बाद हो चुका था आन्ध्र प्रदेश सरकार नें उन्हें मुआवजा दिया जिसके खिलाफ आरएसएस लाबी ने अदालत में केस करा हाईकोर्ट ने भी अफजल गुरू के मामले की ही तर्ज पर समाज के अन्तःकरण (आरएसएस लाबी) को शान्त रखने के लिए सरकार के फैसले का गलत करार दे दिया। हम जानते हैं कि हमारी इस बात को अदालत की अवमानना करार देने की कोशिशें की जायेंगी। मुसलमानों के साथ सरकारें अदालतें और कानून धार्मिक भेदभाव कुछ दिनों या कुछ सालों से नहीं कर रहा ये कारसाजियां 15 अगस्त 1947 से ही (ब्रिटिशों के जाते ही) शुरू हो गयी थी, जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस कमेटी की ही देन है जो देश का बटवारा हुआ जिसका इलजाम मोहम्मद अली जिन्ना पर मढने की लगातार कोशिशें की जाती रही हैं, जवाहर लाल नेहरू ने ठीक उसी तरह से हैदराबाद में फौज और गैर मुस्लिमों के हाथों मुसलमानों का कत्लेआम कराया था जिस तरह से मोदी ने गुजरात में कराया। यहां के कानून ने तमाम सबूतों के बावजूद न तो जवाहरलाल के खिलाफ कदम उठाने की जुर्रत की ओर न ही मोदी के खिलाफ। फिर भी मुसलमान अदालतों और कानून को पूरा सम्मान देता है जबकि दूसरे तो साफ साफ कहते हैं कि ‘‘हम अदालत के फैसले का इन्तेजार नहीं करेंगे अपना काम करके रहेंगे’’। अगर बात करें कोर्ट की तो सुप्रीम कोर्ट ने मुजफ्फरनगर दंगे के मामले में सरकार से जवाब मांगा है क्यों, क्योंकि आरएसएस लाबी के एक चैनल ने कुछ पुलिस अफसरों के बयानों को उछाला है कहा जा रहा है कि स्टिंग किया गया इसमें पुलिस अफसर बता रहे हैं कि सूबाई सरकार के मंत्री आजम खां ने कार्यवाही को मना किया था, इसी पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर दिया। सवाल यह पैदा होता है कि इसकी क्या गारन्टी है कि स्टिंग में दिखाये गये पुलिस वाले आरएसएस लाबी के नहीं हैं या वे सही बोल रहे हैं? जिस तरह इस चैनल ने दिल्ली हाईकोर्ट धमाके के बाद अपने ईमेल पते पर ईमेलें मगांकर मुस्लिम युवकों को फंसाया था इसी तरह अपने ही गैंग के पुलिस वालों से बयानबाजी कराई हो। कोर्ट ने इसकी स्टिंग वीडियो का फारेंसिक परीक्षण कराये बिना ही विस्वास करके नोटिस जारी कर दिया। कारण है कि इस वीडियो में वर्दी वाले बयान देते दिखाये गये हैं वर्दी वाले सच बोलते है यह हो नहीं सकता हम यह दावा सिर्फ इसलिए कर रहे हैं कि आईपीएस संजीव शर्मा ने तो अदालत में हलफनामें देकर बयान दर्ज करये उनको आजतक सच्चा नहीं माना जा रहा है, क्यों? क्योंकि वे किसी मुसलमान की करतूत नहीं बता रहे, जबकि मुजफ्फरनगर मामले में पुलिस अफसरों की बात को सीधे सीधे सच मानकर अदालत ने नोटिस भी जारी कर दिया क्यों? कयोंकि यह ड्रामा एक मुसलमान मंत्री के खिलाफ रचा जा रहा है। इसी तरह के हजारों मामले सामने आने के बावजूद भी मुसलमान यहां की अदालतों ओर कानून में भरोसा रखे हुए है।

Sunday, 18 August 2013

गुलामी में आज़ादी का जश्न

लो, 66वीं बार, एक बार फिर मनाने लगे जश्न आज़ादी (स्वतन्त्रता दिवस), बड़ी ही धूम मची है ऐसा लगता है मानों कोई धार्मिक त्योहार हो या घर घर में शादी हो। सबसे ज्यादा चैकाने वाली बात यह है कि आज़ादी के इस जश्न को सबसे ज्यादा धूम से मनाने वाले वे लोग है जो आजतक आज़ाद हुए ही नहीं। 15 अगस्त 1947 से पहले और बाद में फर्क सिर्फ इतना हुआ कि पहले विदेशियों की गुलामी में थे और अब 66 साल से देसियों की गुलामी में जीना पड़ रहा है। किसी भी तरह का जश्न मनाने से पहले यह जानना जरूरी है कि जिस बात का हम जश्न मना रहे हैं आखिर वह है क्या, हमसे उसका क्या ताआल्लूक (सम्बन्ध) है उसने हमे कया दिया है, या हमें क्यों मनाना चाहिये उसका जश्न?...... तो आईये सबसे पहले यह जाने कि आज़ादी और गुलामी कया है? गुलामी का मतलब है कि हम अपनी मर्जी से जीने का कोई हक (अधिकार) नहीं, हम अपनी मर्जी से खा नहीं सकते पहन नही सकते, पढ़ नहीं सकते रहने के लिए घर नहीं बना सकते, अपने ही वतन में घूम फिर नहीं सकते। अगर कहीं जाते हैं तो उसका टैक्स देना पड़ता है। कुछ खरीदते या बेचते हैं तो उसका टैक्स देना पड़ता है। इसी तरह की सैकड़ों बाते हैं जो यह बताती है कि हम किसी की गुलामी में है। आज़ादी उसे कहते हैं जिसमें लोग अपनी मर्जी के मालिक होते हैं। जैसा चाहें खायें पहने जैसे चाहें जियें, कहीं घूमें फिरें वगैरा वगैरा। आईये अब देखें कि जिस आज़ादी के नाम पर हम जश्न मना रहे हैं वह हमें मिली या नही.......? 66 साल के लम्बे अर्से में देखा यह गया है कि हिन्दोस्तान का आम आदमी ज्यों का त्यों गुलाम ही है ठीक वैसे ही हालात हैं जैसे 15 अगस्त 1947 से पहले थे। 15 अगस्त 1947 के बाद से फर्क सिर्फ इतना हुआ है कि 1947 से पहले हम विदेशियों के गुलाम थे और इसके बाद से देसियों के गुलाम बना दिये गये हैं। हिन्दोस्तानियों पर बेशुमार कानून लादे गये ओर लगातार लादे जा रहे हैं आजतक कोई भी ऐसा कानून नहीं बना जिसमें आम आदमी को आज़ादी के साथ जीने का अधिकार दिया गया हो, खादी ओर वर्दी को आज़ादी देने के लिए हर रोज़ नये से नया कानून बनाया जाता रहा है, ऐसे कानूनों की तादाद इतनी हो गयी कि गिनती करना मुश्किल है। किसी भी विषय को उठाकर देखिये, आम आदमी को कदम कदम पर उसके गुलाम होने का एहसास कराने वाले ही नियम मिलेंगे, वे चाहे आय का विषय हो या व्यय का, खरीदारी का मामला हो या बिक्री का, वतन के अन्दर घूमने फिरने की बात हो या फिर रहने बसने की, इबादतों का मामला हो या रोजीरोजगार का, सफर करने की बात हो या ठहरने की। कोई भी मामला ऐसा नहीं जिसमें आम जनता को उसके गुलाम होने का एहसास नहीं कराया जाता। किसी भी नजरिये से देख लीजिये। आप अपने घर से निकलये आपको हर पन्द्र बीस किलोमीटर की दूरी पर टौल टैक्स देना होता है, जबकि ये टैक्स वर्दी और खादी से नहीं लिये जा सकते, रेल रिजर्वेशन कराये तो वहां भी खादी और वर्दी के लिए किराये में बड़ी रियायत के साथ कोटा मौजूद रहता है। आम हिन्दोस्तानी को उसके गुलाम होने का एहसास कराये जाने का एक सबूत यह भी है कि खददरधारी जब पैदल होते हैं और दर बदर वोट की भीख मांगते हैं तब ये खददरधारी जिन गुलामों के बिना किसी खौफ, और वर्दी वालों की लम्बी चैड़ी फौज को साथ लिये बिना ही उस ही गुलाम जनता के बीच फिरते दिखाई पड़ते हैं जो गुलाम जनता इन्हें कुर्सी मिलते ही दुश्मन लगने लगती है, गुलाम वोटरों से इन्हें बड़ा खतरा होता है। यानी कुर्सी मिलते ही गुलाम जनता को उसकी औकात ओर गुलाम होने का एहसास कराया जाता है। ट्रेनों में सुरक्षा बलों के जवान और सिविल पुलिस वर्दी धारी गुलाम भारतीयों को बोगी से उतारकर पुरी बोगी पर कब्ज़ा करके कुछ सीटों पर आराम से खुद लेटते हैं बाकी सीटें पैसे लेले कर सवारियों को बैठने की इजाजत देते है यह कारसाज़ी लखनऊ के स्टेशनों पर अकसर रात में देखी जाती है। अगर बात की जाये विदेश यात्रा के लिए पासपोर्ट बनवाने की तो यहां भी खददर धारियों को पासपोर्ट पहले दिया जाता है और आवेदनों की जांच बाद में जबकि गुलामों को पुलिस, एलआईयू का पेट भरना जरूरी होता है तब कहीं जाकर पासपोर्ट मिल पाता है, साल भर पहले तक तो पासपोर्ट बनाने का काम सरकारी दफ्तरों में किया जाता था गुलामों को सरकारी बाबुओं की झिड़कियां खानी पड़ती थी, लेकिन लगभग साल भर पहले यह काम भी कमीशन खाने के चक्कर में निजि हाथों में दे दिया गया। बिजली उपभोग का मामला देखिये गुलाम जनता का कोई उपभोक्ता बिल जमा करने में देरी करदे तो तुरन्त उसे सलाई से वंचित करते हैं जबकि खददरधारियों और वर्दीधारियों के यहां बिजली सप्लाई निःशुल्क है, गुलाम जनता के लोग पड़ोस के घर से सप्लाई लेले तो दोनों के खिलाफ
बिजली चोरी का मुकदमा ओर वर्दीधारियों के यहां खुलेआम कटिया पड़ी रहती है बरेली की ही पुरानी पुलिस लाईन में सैकड़ों की तादाद में कटिया डाली हुई हैं सारे ही थानों में ऐसे ही उपभोग की जाती है बिजली कभी कहीं की लाईन नहीं काटी जाती। गुलाम जनता के मासूम बच्चे भूखे पेट सो सो कर कुपोषण की गिरफ्त में आ जाते हैं जबकि खददरधारियों, और वर्दीधारियों के घरों पर पाले जा रहे कुत्ते भी दूध, देसी घी, के साथ खाते हैं फिर भी सोच यहकि हम आजाद हैं। किसी भी नजरिये से देखा जाये आम आदमी गुलाम ओर खादी, वर्दी मालिक दिखाई पड़ती है। एक छोटा सा उदाहरण देखें शहरों में जगह जगह वाहन चैकिंग के नाम पर उगाही किये जाने का नियम है, गुलाम जनता का कोई भी शख्स किसी भी मजबूरी के तहत अगर दुपहिया पर तीन सवारी बैठाकर जा रहा है तो उसका तुरन्त चालान या गुलामी टैक्स की मोटी वसूली जबकि वर्दी वाले खुलेआम तीन सवारी लेकर घूमते रहते है किसी की हिम्मत नहीं जो उन्हें रोक सके। सबसे बड़ी बात तो यह कि वर्दी वालों को अपने निजि वाहनों पर भी हूटर घनघनाने का कानून, जबकि गुलाम जनता को तेज आवाज के हार्न की भी इजाजत नहीं। राजमार्गो पर हर पन्द्र-बीस किमी की दूरी पर सरकारी हफ्ता वसूली बूथ लगाये गये हैं इनपर बड़े बड़े होर्डिंग लगाये गये हैं जिनपर साफ साफ लिखा गया है कि किस किस के वाहन को छूट है इनमें खादी व वर्दी धारी मुख्य हैं। किसी भी पर्यटन स्थल पर देख लीजिये वहां प्रवेश के नाम पर उगाही, यहां पर भी गांधी की खादीधारियों एंव पुलिस को छूट होने का संदेश लिखा रहता है। लेखिन नारा वही कि आजाद हैं। खददरधारी कत्लेआम करे, और वर्दीधारी सरेआम कत्ल करें तो सज़ा तो दूर गिरफ्तारी तक करने का प्रावधान नहीं जबकि गुलाम जनता के किसी शख्स एक दो कत्ल कर दे तो उसको आनन फांनन में फांसी के बहाने कत्ल कर दिया जाता है। अदालतें भी खादी, वर्दी वालों के सामने बेबस ओर लाचार दिखाई पड़ती है जबकि गुलाम जनता के लिए पूरी शक्ति व सख्ती दिखाती देखी गयी हैं। लेकिन हमारा नारा वही कि आजाद हैं। 15 अगस्त की रात ब्रिटिशों के जाने के बाद गांधी जी ने घोषणा की थी कि "आज से हम आज़ाद हैं" गांधी के इस 'हम' से बेचारे सीधे साधे हिन्दोस्तानी समझ बैठे कि सब भारतीय। लेकिन गांधी के 'हम' का मतलब था कि गांधी की खादी पहनने वाले और उनको लूट, मनमानी करने में ताकत देने वाली वर्दी। आम हिन्दोस्तानी ज्यों का त्यों गुलाम ही रखा गया, फर्क सिर्फ इतना हुआ कि 15 अगस्त 1947 से पहले विदेशी मालिक थे और अब देसी मालिक हैं देश के। यह हिन्दोस्तानियों का कितना बड़ापन है कि गुलाम रहकर भी आजादी का जश्न मनाते हैं कितने महान हैं और कितनी महान है इनकी सोच। लेकिन हर बात की एक हद होती है 200 साल तक ब्रिटिशों की मनमानी गुण्डागर्दी, लूटमार को बर्दाश्त करते रहे और जब बर्दाश्त से बाहर हुआ तो  चन्द दिनों में ही हकाल दिया ब्रिटिशों को। 

Friday, 16 August 2013

खुलकर बिकवाई, जमकर चलवाई
15 अगस्त पर आबकारी व पुलिस का देश को तोहफा

कप्तान के फोन पर पहुंचे सिपाहियों ने दिलवाई पत्रकारों दो हजार रिश्वत

पत्रकारों ने तुरन्त एसएसपी को दिये वो रूपये
बरेली-कहा जाता है कि 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन शराब की बिक्री पूरी तरह प्रतिबन्धित रखी जाती है, लेकिन शायद हमारा बरेली जिला भारत की सीमाओं से बाहर कर दिया गया है, इसीलिए यहां इन दिवसों पर शराब की खुलेआम बिक्री कराई जाती है। हम गुजरे कई साल से यह नजारा समाज व प्रशासन को दिखा रहे हैं। आज 15 अगस्त के दिन फिर खुलेआम बिकवाई गयी शराब। बेशर्मी की हदें तो तब टूटीं जब पत्रकारों के
फोन पर कप्तान ने थाना पुलिस को आदेशित किया जिसपर शरब की खुली दुकान पर पहुंचे थाना बारादरी के तीनों सिपाहियों ने दुकानदार से दो हज़ार रूपये लेकर पत्रकारों को दिये। थाना बारादरी के क्षेत्र शहामत गंज (शाहजहां पुर रोड पर) स्थित मधुवन टाकीज के सामने मौजूद शराब की दुकान दिन भर खुलेआम शराब बेची जाती रही। दोपहर लगभग 1-30 बजे पत्रकारों ने जब यह नजारा देखा तब पहले वीडियों ग्राफी की, शराब खरीदी और उसके बाद फोन पर एसएसपी को सूचित किया। चूंकि उस समय एसएसपी शहर में मौजूद नहीं थे, एसएसपी ने तत्काल थाना बारादरी को फोन किया आनन फानन में तीन सिपाही पहुंचे ओर दुकानदार से कहा कि दो हज़ार रूपये निकालो, दुकानदार ने पांच-पांच सौ रूपये के चार नोट सिपाही को दिये सिपाही ने वह रूपये पत्रकार की जेब में डालते हुए निवेदन किया कि ‘‘छोडि़ये भाई साहब और करने दी
जिये बेचारे को अपना काम।’’ पत्रकार वह रूपये लेकर सीधे कप्तान के निवास पर गये ओर एसएसपी के उप्लब्ध न होने पर एसएसपी के पीआरओ के पास जमा कर दिये तथा पूरी बात फोन पर एसएसपी को बताई। एसएसपी ने सख्त कार्यवाही का वादा किया। अब देखना यह है कि एसएसपी की तरफ से क्या कदम उठाये जाते हैं। दूसरी तरफ पत्रकारों का एक ग्रुप आबकारी विभाग के आफिस पहुंचा जहां पर कोई अधिकारी नहीं था, आबकारी विभाग के अफसरान को फोन किये लेकिन किसी भी अफसर ने फोन रिसीव नहीं किया। आवकारी कार्यालय में मौजूद कर्मचारियों व इंस्पैक्टर ने कहा कि आज छुटटी है कल देखेंगे।


Sunday, 28 July 2013

विदेशी गुलामी और गृहयुद्ध में ढकेला जा रहा देश

हिन्दोस्तान के वो लोग जो राष्ट्रभक्त होने का ढोल पीटते फिरते हैं वे ही देश को एक बार फिर विदेशी गुलाम बनाने की कोशिशों में रात दिन एक किये नजर आ रहे हैं। देश के राजनैतिक और खासकर कांग्रेस व भाजपा, संघ लाबी भारत को भयंकर गृहयुद्ध में झोंककर देश को विदेशी हाथों में देने की कोशिशों में लगे हैं। भारत में गुजरे
लगभग ढाई दशक से हिन्दोस्तानी नहीं रहे अब केवल मौजूद हैं हिन्दू और मुसलमान। गुजरात आतंकवाद की हीरो बीजेपी देश को भयानक गृहयुद्ध में ढकेलने पर आमादा है तो आरएसएस की एजेण्ट कांग्रेस पिछले दरवाजे से बीजेपी को पूरी मदद दे रही है। भाजपा को बुलन्दियों तक पहुंचने वाले लालकृष्ण अडवानी, सुषमा स्वराज जैसे नेताओं को नीचा दिखाते हुए बीजेपी प्रधानमंत्री पद के लिये मोदी का नाम सामने लाई है, मोदी एक ऐसा नाम जिसकी पहचान ही बेगुनाहों के कत्लेआम हो। बीजेपी के इस कारनामें के बाद कम से कम यह तो साफ हो जाता है कि बीजेपी को अपना खून पसीने से सींचने वाले आडवानी, सुषमा स्वराज, यशवन्त सिन्हा की उनकी ही पार्टी में कोई खास वैल्यु नहीं है। राष्ट्र प्रेमी बनने का ड्रामा करते रहने वाली संघ लाबी राष्ट्र की सबसे बड़ी दुश्मन बनकर सामने आ रही है। संघ लाबी देश को तबाह बर्बाद करके विदेशी गुलामी में ढकेलने की जुस्तजू में लगी दिखाई पड़ रही है। दरअसल एक बार राम मन्दिर के नाम पर बीजेपी केन्द्र की सत्ता में पहुंच गयी लेकिन सत्ता के गलियारों में पहुंचकर अपने ऐशो आराम में इस हद तक मदहोश हो गयी थी कि उसे साढ़े छः साल तक श्रीराम चन्द्र जी से कोई लेना देना ही नहीं रहा था यानी राम मन्दिर के नाम पर वोट देने वालों के साथ धोका करने के साथ साथ "राम" को भी धोका देने से नहीं चूकी, राम मन्दिर बनाना तो दूर मन्दिर की बात तक करना भूल गयी थी बीजेपी। इसके बाद राम के नाम पर एक जुट बीजेपी को वोट देने वाला हिन्दू वोट बीजेपी की करतूत को समझ गया और नतीजा यह हुआ कि मतदाताओं ने आरएसएस एजेण्ट कांग्रेस को केन्द्र के गलियारों तक पहुंचा दिया। बीजेपी आ गयी सड़क पर। अब बीजेपी के पास हिन्दुओं को बहकाकर उनका वोट हासिल करने के लिए कोई बहाना नहीं रहा, ऐसे हालात में संघ लाबी अच्छी तरह समझ चुकी है कि अब संघ लाबी के किसी भी धड़े को देश का अमन पसन्द हिन्दू वोट भी मिलने वाला नहीं, इस स्थिति में संघ लाबी बिल्ली की सोच से चलने लगी यानी  "जब बिल्ली का मूंह दूध के बर्तन में न पहुंच पाने की वजह से बिल्ली दूध नहीं पी पाती तो वह पंजा मारकर दूध को गिरा देती है क्योंकि बिल्ली की सोच होती है कि अगर मुझे न मिले तो किसी दूसरे को भी न मिले"। संघ लाबी, बीजेपी भी बिल्ली के दिमाग से काम ले रही है संघ लाबी यह मान चुकी है कि अब उसे कम से कम दिल्ली की गद्दी तो कभी मिलने वाली नहीं है इसलिए संघ लाबी इसे बखेर देना चाहती है। इसी सोच के साथ संघ लाबी ने भारत को तबाह बर्बाद करने की ठान ली है इसी प्लानिंग के तहत खूब सोच समझकर संघ लाबी ने प्रधानमंत्री पद के लिए एक ऐसा नाम चुना जो कि खुद आतंक का पर्यायवाची बन चुका हो। मोदी जैसा शख्स जिसने मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल जाने पर गुजरात को आतंक की पहचान बना दिया तो पूरे देश में वही हाल बनाने की कोशिश नहीं की जायेगी लेकिन सिर्फ गुजरात और पूरे देश में बहुत फर्क है अगर देश भर को गुजरात बनाने की कवायद की गयी तो जाहिर है कि देश गृहयुद्ध की लपटों से जल उठेगा, भीषण गृहयुद्ध बनकर सामने आयेगा। गुजरात में आतंवाद था लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में आतंकी हमले नहीं बल्कि दंगे होगें। हम जानते हैं कि गुजरात में जिस तरह आतंकी हमला किया गया था देश के दूसरे हिस्सों में ऐसा कर पाना मोदी के बस की बात नहीं हां गुजरात की तरह ही संघ लाबी और वर्दियां दोनों ही मुसलमानों का कत्लेआम करेंगी फिर भी गुजरात की तरह एक तरफा नहीं रहेगा कत्लेआम करने वालों को मरना भी होगा, यानी गुजरात जैसा आतंकवाद नहीं बल्कि बड़े पैमाने पर दंगे होने की उम्मीद ही नहीं बल्कि विस्वास किया जा सकता है। ऐसे हालात में देश के सामने सबसे बड़ा संकट यह होगा कि सरकार फोजों को कहां इस्तेमाल करेगी ? सीमाओं पर या मुसलमानों को मारने के लिए देश के अन्दर। देश की सीमाओं से तीन दुश्मन लगे बैठे हैए चीन, नेपाल और पाकिस्तान। हमारी फौज की नज़र जिस तरफ से भी हटायी जायेगी उसी तरफ से दुश्मन देश घुसपैठ करेगा। चीन जो लगातार मौके की तलाश में है वह देश के हालात का पूरा फायदा उठा सकता है। वैसे भी चीनी सैनिक लगातार घुसपैठ की तांकझांक में लगे है कुछ हद तक तो घुस भी आये हैं ऐसे में यदि देश गृहयुद्ध की लपटों में जलने लगा तब तो पूरा पूरा मौका मिल जायेगा उन्हें ऊधर पाकिस्तान भी सीमाओं में प्रवेश करने में कामयाब होगा। संघ लाबी की योजना भी कुछ यही नजर आ रही है। आखिर बिल्ली की सोच से काम ले रही है आरएसएस लाबी, देश की सत्ता पर कब्ज़ा करके लूटखसोट करने का मौका न मिले तो बखेर दिया जाये। हां अगर भाजपा ने मोदी की जगह लालकृष्ण अडवानी, सुषमा स्वराज, यशवन्त सिन्हा आदि को प्रधानमंत्री पद के लिये पेश किया होता तब देश कांग्रेस के विकल्प के रूप में भाजपा को सत्ता के गलियारों में तफरी करने का मौका देने के लिए सोचता, खासतौर पर मुस्लिम वोट। मोदी को देश की सत्ता देकर पूरे देश को गुजरात जैसे आतंकवाद के हवाले करने की गलती मुसलमान तो दूर शरीफ और अमन पसन्द हिन्दू वोट भी नहीं करना चाहेगा। ऊधर आरएसएस
पोषित मीडिया धड़े भी अपने अपने स्तर से बेबुनियादी आंकड़े पेश करके मोदी की लहर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि आरएसएस लाबी मोदी को प्रधानमंत्री बनाये जाने के बाद होने वाले देश के हालात से वाकिफ नहीं है फिर भी जान बूझकर देश को गृहयुद्ध में ढकेलकर विदेशी गुलाम बनाने की कोशिश कर रही है इस पर भी दावा यह कि राष्ट्रभक्त हैं, समझ में नहीं आता कि कैसे राष्ट्रभक्त हैं जो राष्ट्र को जलाकर गुलाम बनाने पर आमादा हैं। वैसे भी आरएसएस की देश भक्ती का सबूत एक निहत्थे बूढ़े बेगुनाह महात्मा गांधी को बेरहमी से कत्ल कर दिया जाना है ही। दरअसल आरएसएस लाबी को लगता है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर गुजरात की तरह ही पूरे देश में सरकारी व गैरसरकारी स्तर पर मुसलमानों का कत्लेआम करना आसान हो जायेगा, लेकिन गुजरात और पूरे भारत में बहुत फर्क है, पूरे भारत में आरएसएस के ये अरमान पूरे होने वाले नहीं। गुजरात में हालात अलग थे मुसलमानों की तादाद कम थी गुजरात में सरकारी ओर गैरसरकारी दोनो ही तरह से आतंकी नाच किया गया। हालांकि भारत के दूसरे हिस्सों में भी अर्धसैनिक बल मौका मिलते ही मुसलमानों पर हमले करते हैं, लेकिन फिर भी उतनी कामयाबी के साथ नहीं। कुछ मोदी उपासक तर्क देते हैं कि गुजरात की तर्ज पर विकास होगा, हम पूछना चाहते हैं कि क्या विकास हुआ, बस्ती की बस्ती कत्लेआम करके खाली कर दी गयी उनकी सम्पत्तियां लूटकर अपने धंधे चलाये गये इसे विकास कहा जाता है।

Sunday, 14 July 2013

महाबोधि ब्लास्ट, एक बड़ी साजि़श

महाबोधि ब्लास्ट, एक बड़ी साजि़श पटना (गया)-मुस्लिमों को फंसाने के लिए एक और ड्रामा रच दिया गया। देश में किये गये दूसरे धमाकों की तरह ही रविवार सुबह बिहार राज्य के बोधगया में महाबोधि मंदिर के पास एक के बाद एक 8 सीरियल ब्लास्ट किये गये। इन धमाकों में 5 लोगों के मामूली घायल होने की खबर है। हालांकि मंदिर को इन धमाकों से कोई बड़ा जानी माली नुकसान नहीं हुआ है। यह हमला किसने कराया, अभी धमाके से उत्पन्न राख और मलवा भी ठण्डा नहीं हुआ था, लेकिन मीडिया, आईबी और भाजपा उपासक नितिश पुलिस से उम्मीद है कि इन धमाकों के असल कर्ताधर्ताओं को बचाने के लिए अपने ही दिमागों की उपज इस्लामी नामों वाले संगठनों में से इण्डियन मुजाहिदीन के नाम की घोषणायें शुरू कर दीं, जाहिर है कि हमेशा की ही तरह थोकभाव में मुस्लिमों को उठाया जायेगा। बोधगया के महाबोधि मंदिर के बाहर रविवार सुबह 6 बजकर 5 मिनट पर पहला धमाका हुआ और इसके बाद लगातार 7 और धमाके हुए. पुलिस ने धमाकों की पुष्टि करते हुए कहा है कि मंदिर सुरक्षित है। अजीब सी बात है कि कोई मुस्लिम धमाके करे लेकिन इसका पूरा ध्यान रखे कि कोई जानी माली नुकसान भी न हो, मन्दिर को भी किसी तरह की हानि न पहुंचे, ऐसा कैसे हो सकता है कि सिर्फ आवाज़ वाले पटाखे छोड़े गये, किसी मुस्लिम को मन्दिर को बचाने की या उसमें मौजूद लोगों को बचाकर धमाके करने की क्या जरूरत होगी, क्यों करेगा कोई पाकिस्तानी ऐसा? वह भी तब जबकि इतना आसान मौका मिला हो कि आराम और तसल्ली से मन्दिर परिसर में जगह जगह बम लगा दिये? हर समय भरे रहने वाले मन्दिर परिसर में कोई बाहरी व्यक्ति बम लगाता हो, एक दो नहीं बल्कि पूरे आठ बम फिर भी उसे किसी ने देखा नहीं? क्या बम लगाने वाला, नांदेड बम धमाके करने वाले संघ कार्यकर्ता राजकोंडवार जैसा था कि उसके पास से नकली दाढ़ी, शेरवानी, कुर्ता पायजामा बरामद हुआ। गौरतलब यह भी है कि हर धमाके की तरह ही इस धमाके की खबर आईबी को थी कि इस मन्दिर पर हमला हो सकता है लेकिन किसी तरह की सुरक्षा का कोई बन्दोबस्त नहीं किया गया, क्यों? और आईबी तो बड़ी बात है मीडिया का कहना है कि ‘‘ इसकी सूचना मन्दिर के मुख्य पुजारी को भी थी’’ इसी को बहाना बनाते हुए उसने ‘‘ हथियार की मांग भी की थी,’’ अजीब सी बात है कि आतंकी हमले की सूचना पर एक पुजारी (धार्मिक व्यक्ति) हथियार की मांग करता है नाकि पुलिस सुरक्षा की, क्यों? आखिर क्या खेल खेला जा रहा था। धमाके हुए बमों की आवाज सुनाई पढ़ने से पहले ही गुजरात व संघ पोषित मीडिया ने जिम्मेदारों के नाम की घोषणा करदी। आईबी का भी इशारा इसी तरफ है यह अलग बात है कि स्थानीय पुलिस मौके पर मौजूद सबूतों के मुताबिक जांच के कदम बढ़ा रही है जोकि काफी सही दिशा में चल रही है। हांलाकि अमरीका और गुजरात पोषित मीडिया और आईबी अभी भी अपने दिमागों की उपज मुस्लिम नामों वाले संगठनों का ही राग अलाप कर मालेगांव, अजमेर शरीफ, मक्का मस्जिद, समझौता एक्सप्रेस के मामलों की तरह ही एक सोची समझी साजिश को कामयाब कराने की जुस्तजू में दिखाई पड़ रही है। यह हकीकत लगभग सारी दुनिया ही जान चुकी है कि भारत में धमाके करता कौन है और फंसाया किसे जाता है इस बार भी यही कोशिशें की जा रही है कुछ अखबार तो बाकायदा एलान करने में लगे हैं कि ये धमाके आईएम ने किये हैं यहीं तककि कुछ अखबारों ने तो यह तक बता दिया कि आईएम ने जिम्मदारी लेली है, मज़े की बात तो यह है कि बार भी साईबर का सहारा लिया जा रहा है। सभी को याद होगा कि दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर धमाकों की धमकियों और बाद में जिम्मेदारी लेने के ईमेल संघ पोषित एक न्यूज़ चैनल के पास आने की चीख पुकार की जा रही थी। ईमेल, या किसी भी सोशल नेटवर्क साइट पर अपना एकाउण्ट बनाने के लिए किसी तरह के पहचान-पत्र को प्रमाणित कराकर देना नहीं होता। सभी जानते है कि कोई भी किसी के भी नाम पते से अकाउण्ट बना लेता है, ऐसे में इस बात का क्या सबूत है कि जिस ईमेल पते से उस चैनल के पते पर ईमेल भेजी गयी थी वह वास्तव में ही किसी मुसलमान का था, हो सकता है कि संघ या संघ पोषित कोई सरकारी या गैरसरकारी अमला मुस्लिम नामों से अकाउण्ट चलाता है, या फिर चैनल ही खुद इस तरह की आईडी बनाकर काम दिखाता हो? इसी तरह इस बार ईमेल की जगह ‘‘ ट्वीटर ’’का सहारा लिया जा रहा है। जिस तरह ईमेल आईडी में इसका बात का कोई प्रमाण नहीं होता कि जो अकाउण्ट बनाने और चलाने वाला अपने ही नाम पते से बना व चला रहा है इसी तरह ट्वीटर व अन्य दूसरी नेटवर्किंग साइटों पर भी अकाउण्ट बनाने व चलाने के समय किसी तरह के पहचान प्रमाणित करने की जरूरत नहीं होती। हम यहां ईमेल, ट्वीटर, फेसबुक की एक एक आई लिख रहे है। क्या कोई यह प्रमाणित कर सकता है कि इन तीनों अकाउण्ट को बनाने व चलाने वाला हिन्दू है या मुसलमान, शरीफ है या अपराधी? देखिये और बताई, जवाब के लिए नीचे हमारी ईमेल लिखी जा रही है। Email- kadwi.baat@gmail.com, Facebook A/c- Ramesh Gupta, Twiter A/c- Adil Shamsi@MERI_CHUNAUTI - क्या कोई बता सकता है कि ये अकाउण्ट किस किस व्यक्ति के हैं इन अकाउण्टों में दी गयी जानकारियां सही है या झूठी? हम दावे के साथ कह सकते है कि किसी भी ईमेल, ट्वीटर, फेसबुक अकाउण्ट को बनाने इस्तेमाल करने वाले की वास्तविक पहचान कोई नहीं बता सकता केवल यह जरूर पता लगाया जा सकता है कि किस क्नैक्शन (फोन नम्बर) से चलाया जा रहा है वह भी तब जबकि प्रयोग कर्ता एक ही नम्बर से चलाये लेकिन कैफे सुविधा के दौर में यह बताना भी नामुम्किन है कि किस नम्बर से चलाया जा रहा। साथ ही हम चैलेंज के साथ कह सकते है कि देश में आज भी 50 फीसद से ज्यादा मोबाइल क्नैक्शन फर्जी पहचान-पत्रों से चल रहे हैं ऐसी स्थिति में असल गुनाहगार की पहचान करना मुम्किन ही नहीं। इन सारी सच्चाईयों को जानने के बाद भी दिल्ली हाईकोर्ट ब्लास्ट के सम्बन्ध में सिर्फ एक ही चैनल को मिलने वाली मेल का विस्वास कैसे किया जा सकता है? अब बोधगया के मामले में ट्वीटर अकाउण्ट की बात की जा रही है तो क्या गारन्टी है कि यह अकाउण्ट फर्जी नहीं है ब्लास्ट करने कराने वाले ने ही यह अकाउण्ट बनाया हो जिससे कि मुस्लिमों को आसानी से फंसाया जा सके, जैसा कि मीडिया, संघ, आईबी कोशिशें करती नज़र आ भी रही है। संघ लाबी ने कहा कि म्ंयामार के बदले में किये गये धमाके। क्या बात है सारे अन्तरयामी इकटठे हो गये संघ लाबी में। म्यांमार आतंकवाद का बदला अब एक साल बाद लेगें मुसलमान? चलिये इन अन्तरयामियों की बात ही मान लेते है तो याद करे कि म्यांमार में आतंकियों ने सैकड़ों बेगुनाह मुसलमानों का कत्लेआम किया था बोधगया में तो एक भी नहीं मारा गया, क्यों? क्योंकि पिछले सभी धमाकों की तरह ही ये धमाके भी मुसलमानों को फंसाने और इस्लाम को बदनाम करने के लिए पूरी सूझबूझ व एहतियात के साथ किये गये जिससे कि न मन्दिर को नुकसान पहुंचे ओर न ही वहां आने वाले श्रद्धालुओं को। इसी तरह गुजरे दिनों अफजल गुरू के कत्ल के बाद मोके का फायदा उठाते हुए हैदराबाद में भी धमाके किये गये ओर बड़ी ही आसानी से मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराकर जुल्म शुरू कर दिये गये। मालेगाँव के बम धमाके आतंकी कर्नल श्रीकांत, आतंकी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और उसके गैंग ने किये शुरू में ही दर्जनों मुस्लिमों को फंसाया गया, लेकिन हेमन्त करकरे ने बेनकाब कर दिया। अजमेर दरगाह में बम विस्फोट आतंकी असीमानंद, आतंकी इंद्रेश कुमार (आरएसएस का सदस्य), आतंकी देवेंद्र गुप्ता, आतंकी प्रज्ञा सिंह, आतंकी सुनील जोशी, आतंकी संदीप डांगे, आतंकी रामचंद्र कलसांगरा उर्फ रामजी, आतंकी शिवम धाकड, आतंकी लोकेश शर्मा, आतंकी समंदर, आतंकी आदित्यनाथ ने किये शुरू में इन धमाकों की जिम्मेदारी मुसलमानों पर थोपने की भरपूर कोशिशें की गयीं लेकिन ईमानदार अफसर ने जल्दी ही साजिश से पर्दा उठा दिया। इसी तरह मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस के बम विस्फोट भी आतंकी असीमानंद ओर उसके गिरोह ने किये। नांदेड बम विस्फोट संघ कार्यकर्ता राजकोंडवार ने किये उसके पास से नकली दाड़ी और शेरवानी , कुरता , पायजामा भी बरामद हुआ। गोरखपुर का सिलसिलेवार बम विस्फोट को आफताब आलम अंसारी पर थोपा गया लेकिन इशरत जहां ओर अफजल गुरू के मामलों में तेयार किये गये सबूत और अस्लाह बारूद का इन्तेजाम न कर पाने की वजह से पुलिस अंसारी को पूरी तरह नहीं फंसा सकी, बाइज्जत बरी कर दिये गये। असल जिम्मेदारों को बचाने के लिए मामला अज्ञात में तरमीम कर दिया। मुंबई ट्रेन बम विस्फोट काण्ड, घाटकोपर में बेस्ट की बस में हुए बम विस्फोट, वाराणसी बम विस्फोट, में किसी मुस्लिम को फंसाने के लिए पूरा इन्तेजाम नहीं हो सका तो अज्ञात में दर्ज करके दबा दिया गया। कानपुर बम विस्फोट बजरंग दल कार्यकर्ता आतंकी भूपेन्द्र सिंह छावड़ा और राजीव मिश्रा ने किया। गौरतलब बात यह है कि इन सभी आतंकियों सरकार दस-दस साल से सरकारी महमान बनाकर पाल रही है आजतक अदालतें सजा सुनाने तक नहीं पहुंची जबकि कस्साब ओर अफजल गुरू के मामलों दो साल के अन्दर ही सजा सुना कर ठिकाने लगा दिया गया। दरअसल देश में धमाके करने वाले यह जानते है कि अब कोई दूसरा हेमन्त करकरे पैदा नहीं होगा जो इनके चेहरो से नकाब हटाकर दूध का दूध पानी का पानी करके दिखा दे, और हरेक मामले की जांच भी सीबीआई से नहीं कराई जाती इसलिए साजिशें करने वालों सभी रास्ते पूरी तरह आसान हो गये हैं, पूरे इत्मिनान के साथ बम लगाकर धमाके कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि मुसलमानों के खिलाफ की जा रही साजिशों में सिर्फ आरएसएस, आईबी, मीडिया ही शामिल हो बल्कि इसमें कांग्रेस भी पूरी तरह से शामिल है। गुजरात आतंक के हाथों किये गये मुस्लिम कत्लेआम से खुश होकर मास्टरमाइण्ड को सम्मानन व पुरूस्कार दिये जाने की कांग्रेसी करतूत को देख लें या इशरत जहां के कत्ल का मामला ही उठाकर देखें, ‘‘ आईबी ’’ सोनिया गांधी नामक रिमोट से चलने वाले केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार के नियन्त्रण में है और इसके बावजूद आईबी ने बेगुनाह लड़की इशरत जहां के कत्ल की साजिश रचकर उसका कत्ल करा दिया, हैदराबाद ब्लास्ट को लेकर भी मुस्लिमों को फंसाने के साथ ही अब बोधगया मन्दिर में ब्लास्ट करने वालों को बचाने के लिए मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया, और केन्द्र सरकार आईबी की कारसाजि़यों को देखकर गदगद हो रही है। क्यों नहीं रोक रही आईबी को मुसलमानों के खिलाफ संघ लाबी के साथ मिलकर साजिशें रचने से? क्योंकि कांग्रेस आरएसएस का ही दूसरा रूप है और सोने पर सुहागा कांग्रेस की लगाम हमेशा से ही नेहरू परिवार के हाथों में रही है नेहरू की मुसलमानों के खिलाफ साजिश का ही नतीजा है कि देश का बटंवारा हुआ। खैर, अब बात करें बोधगया मन्दिर में किये गये धमाकों की। सवाल यह है कि बोधगया में धमाके करने का उद्देश्य क्या था? हम बताते हैं इन धमाकों का उद्देश्य क्या है। धमाके कराने के दो मुख्य उद्देश्य हैं पहला यह कि मन्दिर जैसे धार्मिक स्थान पर धमाके होने से हिन्दू वोट का एकीकरण होगा जिसका पूरा पूरा फायदा आगामी लोकसभा चुनावों में आरएसएस यानी (बीजेपी) को होना तय है और बीजेपी की सीटें बढ़ने का मतलब है प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल करके पूरे देश में गुजरात आतंकवाद को दोहराये जाने की योजना। दूसरा मकसद यह कि मन्दिर में धमाके की जिम्मेदारी आईबी ओर मीडिया के साथ मिलकर मुसलमानों पर थोंपकर मुसलमान और इस्लाम को पूरी तरह से आतंकी मजहब घोषित कर देने की योजनायें। धमाके करने वालों की मजबूती यह है कि वे जानते हैं कि न तो इन धमाकों की जांच सीबीआई से कराई जायेगी और न ही अब हेमन्त करकरे वापिस आकर असल आतंकियों को बेनकाब करेंगे। कुल मिलाकर अब मुसलमान को सोचना होगा कि उसे क्या करना है? वोटों के सौदागर मुल्लाओं के झांसे में आकर वोट बर्बाद करके पूरे देश में गुजरात कायम कराना है या फिर गुजरे उ0प्र0विधानसभा चुनावों की तरह ही लोकसभा चुनावों में भी मुस्लिम वोट की ताकत का एहसास कराना है। हमारा मतलब यह नहीं कि इस लोकसभा चुनावों में भी सपा को ही चुना जाये बल्कि मतलब यह है किअपने अपने क्षेत्र में सिर्फ उस प्रत्याशी को एकजुट होकर वोट करें जो बीजेपी प्रत्याशी को हराने की स्थिति में हो, साथ ही कांग्रेस से बच कर रहने में ही मुसलमान की भलाई है।

Sunday, 7 July 2013

दोराहे पर खड़ा कानून

       
इशरत जहां बेगुनाह तो थी ही साथ ही आतंकी भी नहीं थी, यह बात कई बार जांचों में सामने आ चुकी है तमाम सबूतों के बावजूद हर बार की जांच रिर्पोटों को दफ्नाकर नये सिरे से जांच कराई जाने लगती है। इस बार सीबीआई ने शहीद हेमन्त करकरे की ही तरह हकीकत को बेनकाब कर दिया हालांकि सीबीआई ने अभी प्रारम्भिक रिपोर्ट ही पेश की है और सबूत इकटठा करने के लिए समय भी मांगा है। सीबीआई की रिपोर्ट को सूनकर नासमझ लोग मानने लगे कि अब इशरत को इंसाफ मिलेगा। मिलेगा क्या?
कम से कम हमें तो उम्मीद नहीं कि इशरत को इंसाफ मिलेगा। इंसाफ का मतलब है कि उसके कातिलों यानी कत्ल करने और करवाने वालों को सज़ायें दी जाए, जोकि किसी भी हाल में सम्भव नहीं, हां दो एक प्यादों को जेल में रखकर दुनिया को समझाने की कोशिश जरूर की जायेगी। जैसा कि देश के असल आतंकियों के मामलों में आजतक किया जाता रहा है। हां अगर मकतूल इशरत की जगह कोई ईश्वरी होती और कातिलों के नाम मोदी, कुमार, सिंह, वगैरा की जगह खान अहमद आदि होते, तब तो दो साल भी नहीं लगते और फांसी पर लटकाकर कत्ल कर दिये गये होते जैसा कि सोनिया गांधी नामक रिमोट से चलने वाली कांग्रेस बाहुल्य मनमोहन सिंह सरकार के इशारे पर कानून मुस्लिम बेगुनाहों के साथ करता रहा है। इशरत जहां को बेवजह ही कत्ल कराया गया, किसने कराया उसे कत्ल? जाहिर सी बात है कि मोदी ने ही कराया। इस बात को खुद कातिलों की रिपोट में कहा जा चुका है। कातिलों ने रिपोट में कहा था कि इशरत जहां मोदी की हत्या करने आई थी, बड़े ही ताआज्जुब की और कभी न हज़म होने वाली बात है कि जो शख्स खुद हज़ारों बेगुनाहों का कत्लेआम करे उसे भला कौन मार सकता है? क्या गुजरात में आतंकियों ने जिस तरह बेगुनाहों का कत्लेआम किया था वे भी मोदी को मारने आये थे? इशरत को कत्ल कराकर गुजरात पोषित मीडिया भी खूब नंगी होकर नाचती दिखाई पड़ रही थी, नो साल के लम्बे अर्से में दर्जनों बार जांचें कराई जा चुकी हैं हर बार आतंक बेनकाब होता गया, हर बार की जांच को दबाकर नये सिरे से जांच कराई जाती है। हर जांच में साु हो जाता है कि आतंक के हाथों शहीद कर दी गयी इशरत जहां बेगुनाह थी उसे मोदी के इशारे पर कत्ल किया गया, सीबीआई ने तो एक हकीकत और खोलदी कि इशरत कई हफ्ते से पुलिस हिरासत में थी। सीबीआई के इस खुलासे से यह भी साबित हो जाता है कि इशरत को कत्ल कराने में मोदी की साजिश थी, उसको कत्ल करने के बाद कहा गया कि वह मोदी को मारने आई थी ऐसा कैसे हो सकता है कि हिरासत में रहने वाला इंसान किसी को मारने पहुंचे वह भी दुनिया के सबसे बड़े कत्लेआम के कर्ताधर्ता को? कातिलों ने इशरत को आतंकी साबित करने के स्वनिर्मित मुस्लिम संगठन के नाम का सहारा लिया कि अमुक संगठन ने इशरत को शहीद कहा, क्या नाटक है कि पहले बेगुनाहों को कत्ल करो फिर उसके कत्ल पर आंसू भी न बहाने दो।
अब एक बड़ा सवाल यह पेदा होता है कि सीबीआई जांच से पहले भी कई बार जांचें कराई जा चुकी है जिनमें इशरत के बेगुनाह होने के सबूतों के साथ मोदी के सरकारी आतंकियो द्वारा कत्ल किये जाने का खुलासा हो चुका है लेकिन जब जब जांच इशरत के कत्ल में मोदी की तरफ इशारा करती है तब तब उस रिपोर्ट को दबाकर नये सिरे से जांच शुरू करादी जाती है जिससे कि आतंक सजा से बचा रहे, इस बार सीबीआई ने पिछली सभी रिपोर्टों का प्रमाणित कर दिया। क्या सीबीआई की रिपोर्ट को आखिरी मानकर कानून कुछ दमदारी से काम लेने की हिम्मत जुटा पायेगा? उम्मीद तो नहीं है। क्योंकि अदालतों में बैठे जजों को भी अपनी अपनी जानें प्यारी हैं कोई शहीद हेमन्त करकरे जैसा हाल नहीं करवाना चाहता।
यह तो थी बात शहीद इशरत जहां को गुजरात पोषित आईबी और मीडिया द्वारा आतंकी प्रचारित करने की, पहले कराई गयी जांचों को तो पी लिया गया, तो क्या सीबीआई की रिपोर्ट भी दफ्नाने के इरादे हैं? यह एक खास वजह है कि सीबीआई ने (दोनों दाढि़यों) मोदी और शाह का नाम नहीं लिया और न ही प्यादे का नाम अभी खोला है, हो सकता है कि सीबीआई अधिकारियों को शहीद हेमन्त करकरे का हवाला देकर डराया गया हो। वैसे भी धमकियां तो दी ही गयीं यह सारी दुनियां जान चुकी है। याद दिलाते चलें कि देश में बीसों साल से जगह जगह धमाके कराकर बेकसूर मुस्लिमों को फंसाया जाता रहा कत्ल किया जाता रहा, कभी मुठभेढ़ के बहाने तो कभी फांसी के नाम पर, मगर किसी भी साजिश कर्ताओं या जांच अधिकारी का कत्ल नहीं हुआ, और जब शहीद हेमन्त करकरे ने देश के असल आतंकियों को बेनकाब किया तो उनका ही कत्ल कर दिया गया, और उसका इल्ज़ाम भी कस्साब के सिर मंढ दिया। हम यह नहीं कह रहे कि सीबीआई के अधिकारी आतंक की धमकियों से डर गये, लेकिन इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि असल आतंकियों ओर उनके मास्टरमाइण्ड या अन्नदाता की चड्डी उतारने की गलती करने वाले की जान खतरे में आ जाती है जैसा कि हेमन्त करकरे के साथ हुआ। मान लिया कि सीबीआई पर धमकियों का कोई असर नहीं पड़ा तब आखिर सीबीआई के सामने ऐसी क्या मजबूरी थी कि आतंक के कर्ताधर्ताओं को नज़र अंदाज कर गयी।
दर्जनों बार जांचें कराये जाने और सबका नतीजा लगभग एक ही रहने, यहां तक सीबीआई जैसी बड़ी संस्था की रिपोर्ट भी आ जाने के बाद अब सवाल यह पैदा होता कि ‘‘ बड़े मास्टरमाइण्ड के अलावा जिन प्यादों के नाम सामने आये हैं उन्हें कब तक सज़ायें सुनाई जायेगी? क्या उनको भी मास्टर माइण्ड की तरह ही कुर्सियों पर जमाये रखा जायेगा, या आतंकी असीमानन्द, प्रज्ञा ठाकुर, वगैराह की तरह ही सरकारी महमान बनाकर गुलछर्रे उड़वाये जायेगे? या फिर मजबूत सबूत न मिलने के बावजूद मुस्लिम नौजवानों की तरह ही चन्द दिनों में ही सज़ा दे दी जायेगी? कम से कम हमें तो ऐसी उम्मीद नहीं क्योंकि इस मामले में कातिलों को अभयदान मिलने के दो मजबूत कारण हैं, पहला यह कि मकतूलों के नाम इशरत, असलम, जावेद, अमजद थे नाकि ईश्वरी, राजेश,कुमार, सिंह वगैराह। दूसरी वजह यह है कि कातिलों ओर साजिश कर्ताओं के नाम मोदी, अमित, राजेन्द्र, बंजारा आदि। ये दोनो ही बड़ी वजह हैं अदालतों और कानून की राह में रोढ़े अटकाने के लिए। हम बात कर रहे हैं इशरत के कातिलों और उसके मास्टरमाइण्ड को हाल ही में किये गये तीव्र गति से फैसलों की तरह ही सज़ाये दी जायेगी या फिर किसी न किसी बहाने लम्बा लटकाकर रखा जायेगा? कम से कम अभी तक तो कानून की कारगुजारियां यही बताती हैं कि इशरत के कातिलों का बाल भी बांका नहीं होगा ओर कम से कम तबतक तो नहीं जबतक कि केन्द्र में कांग्रेस का कब्जा है, गौरतलब पहलू है कि जिस आतंक से खुश होकर केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य मनमोहन सिंह सरकार ने खुश होकर मास्टरमाइण्ड को सम्मान व पुरूस्कार दिया हो उसी काम पर आतंक को सज़ा कैसे होने देगी। साथ ही सीबीआई के अुसर भी तो इंसान हैं उनके भी घर परिवार हैं वे कैसे गवारा कर सकते हैं हेमन्त करकरे जैसा हाल करवाना? खैर अभी सीबीआई की फाइनल रिपोर्ट का इन्तेजार करना होगा, देखिये फाइनल रिपोर्ट क्या आती है अभी दावे के साथ यह नहीं कहा जा सकता कि सीबीआई के अफसरान डर नहीं सकते।
फिलहाल तो इन्तेजार करना ही होगा कि कानून गुजरे दिनों की तरह ही काम करते हुए संघ, बीजेपी, के अन्तःकरण को शान्त करने के लिए वह फैसला सुनाता है जो कातिलों का आका और मास्टरमाइण्ड चाहता है जैसा कि मुस्लिम नौजवानों के मामलों में करता रहा है। या फिर कानून पर लगे निष्पक्ष संविधान नामक लेबल को सार्थक करते हुए गौर करता है?
चलिये छोडि़ये इशरत और उसके साथियों के कत्ल की बात, अब सवाल यह पेदा होता है कि मकतूलों के पास से बरामद हथियार भी तो राजेन्द्र कुमार नही ही दिये थे यह पुष्टि सीबीआई ने करदी है, कया भारत का कानून गैरकानूनी और प्रतिबन्धित हथियार रखने के मामले में राजेन्द्र को सजा देने की हिम्मत जुटा पायेगा? या इस मामले में भी समाज विशेष के अन्तःकरण को शान्त करने की कोशिश करेगा?