Sunday 18 November 2018

मुस्लिम वोट की सेल - इमरान नियाज़ी


गुज़री 5 और 6 नवम्बर को दो ऐसी शख्सियतों के उर्स थे जिन्होने अपनी इस्लाम परस्ती तक्वे परहेज़गारी के बल पर दुनिया भर मे अपने नाम का सिक्का कायम कर दिया। यानी आला हज़रत और मुफ्ती आज़म हिन्द का, जहां तक मेरी जानकारी मे है तो हमने सुना है यह दोनो ही सियासत से बहुत दूर रहते थे हद तो यह थी कि खुद मुफ्ती आज़म ने अपने सगे दामाद एमएलसी रेहान रज़ा खां से बात करना तक बंद कर दिया था। ऐसे बुजु़र्गों के मंच से मुस्लिम वोटों की बिकं्री किया जाना वो भी खुद उन बुज़ुर्गों के अपनो के हाथों ही, यह एक चौकाने वाली बात है। उर्स के दौरान बरेलवी उलमाओं ने सीधे सीधे मुस्लिम वोट बेचे, उर्स के दौरान आल इण्डिया तन्जीमे उल्लेमाए इस्लाम ने बड़ा ही शर्मनाक एलान करते हुए कहा कि मुसलमान भाजपा और मोदी की मुखालफत बिल्कुल भी ना करे, मौलबियों ने यह एलान सिर्फ और सिर्फ इसलिये किया क्योंकि चन्द दिन पहले ही नशीली गोलियों के साथ दुबई मे अरेस्ट कर लिये गये तौसीफ रज़ा खां को रिहा कराने मे केन्द्रीय मंत्री और बरेली से बीजेपी सांसद संतोष गंगवार ने कुछ मदद करदी थी सांसद संतोष गंगवार के इस अहसान के बदले में मुसलमान को बीजेपी की मुखालफत ना करने का मशविरा दे दिया गया। क्यों जी क्यों ना करें मुसलमान बीजेपी का विरोध? हां अगर यह कहा जाता कि संतोष गगंवार का विरोध ना करें, तो बात किसी हद तक समझा में आ सकती थी, क्योंकि संतोष गंगावार ने भाजपाई होते हुए भी मदद की। यहां एक बात साफ करना ज़रूरी है कि संतोष गंगवार के पास आज तक जो भी मदद मांगने गया संतोष गंगवार ने बिना भेदभाव किये मदद करी। मैं बीजेपी का विरोधी होते हुऐ भी संतोष गंगवार का विरोध नही करता क्योंकि संतोष गंगवार व्यक्तिगत रूप से बेहतर इंसान है भाजपाई होते हुऐ भी संतोष गंगवार ने व्यक्तिगत रूप से कभी मुसलमानों के खिलाफ कुछ नही किया इसलिये संतोष गंगवार का विरोध ना करने की सलाह दिया जाना तो समझ मे आता है लेकिन बीजेपी का विरोध ना करने की सलाह देना वह भी सिर्फ इसलिये की भाजपाई नेता ने तौसीफ रजा़ को छुड़ाने मे मदद की, यह शर्मनाक बात है कि सिर्फ एक तौसीफ रज़ा खां की रिहाई के बदले मुसलमान गुजरात के साढ़े तीन हज़ार से ज़्यादा बेगुनाह मुसलमानों के कत्लेआम को कैसे भुल सकता है ? सैकड़ों मुस्लिम मासूम बच्चियों की आबरू जनी को कोई भी सच्चा मुसलमान कैसे भूल सकता है ? दर्जनों हामला ओरतों के पेट चाक करके बच्चे निकालकर आग में फेंके जाने के मंजर को किस दिल से अनदेखा किया जा सकता है? असम में आतंकियों के हाथों सैकड़ों मुसलमानों के कत्लेआम किये जाने के वाक्ये को कहां मिटाया जाये, क्या तोसीफ रजा की अहमियत हजारों बेकसूर मुसलमानों की जिन्दगियों, मासूमों की जिन्दगियों मुस्लिम बच्चियों की आबरूओं से ज्यादा हो गई जो गुजरात और असम मे आंतकियों ने तार तार की थी। क्या तौसीफ रज़ा वैल्यु उमर खां, पहलु खान, अखलाक ज़ाहिद अहमद,मज़लुम अंसारी, इम्तियाज़ खां, मुस्लैन अब्बास नजीब, ज़हीर हुसैन वगैरह की जानो से ज्यादा है। जिनकी जाने बीजेपी पोषित आंतक ने खत्म की। सिर्फ तौसीफ रजा की रिहाई के बदले बकसूर  इशरत जहां के खून के कत्ल को मिटाया जा सकता है। क्या सौहराबुद्दीन और सोहराबुददीन कत्ल के चश्मदीद बेगुनाह तुलसीराम प्रजापति के कत्ल को किस दिल से भुला दिया जायें। बीजेपी का विरोध ना करने की सलाह देने वाले बतायें कि दादरी में गौआतंक ने मो0 अखलाख को बेरहमी से कत्ल कर दिया और उनके घर में रखे बकरे के गोश्त को गाय का गोश्त बताकर आतंक बर्पाया गया, क्योंकि गोश्त बकरे का था इसलिए कानून ने अपना काम किया लेकिन जैसे ही उत्तर प्रदेश में भी कानून बीजेपी का गुलाम बना वैसे ही उसी मटन को बीफ बना दिया गया और आतंक बरपाने वालों को छोड़ दिया गया, जाहिर है कि यह भी बीजेपी की करतूत थी इसे कैसे भूला जा सकता है। शर्म आनी चाहिये थी इस तरह का मशविरा देने वालों को, क्योंकि मासूम आसिफ के गुनाहगार भी भाजपाई है, शहीद हेमन्त करकरे की कुर्बानी पर कालिख पोतकर अजमेर दरगाह, मक्का मस्जिद, मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस धमाके करने वाले आतंकियों को क्लीनचिट देकर कानून से आज़ाद करने वाली मोदी सरकार भी भाजपाई है, क्या तोसीफ रजा खां की अहमियत मासूम आसिफा की आबरू और जान से ज्यादा है, हां अगर यही मशविरा संतोष गगंवार तक ही सीमित होता तब शायद आसानी से समझमें आ जाता और जिन्दा जमीर बाशऊर इंसान को इसपर एतराज भी ना होता लेकिन यहां तो पूरी बीजेपी और मोदी की मुखालफत ने करने की सलाह देने वालो के परिवारों मे से किसी के साथ ऐसा ही कोई काण्ड हुआ होता तो क्या वह इसी तरह से शर्मनाक मशिवरा मुसलमानों को देते? समझना मुश्किल हो चुका है कि आज कौम कि रहबरी के चोले मे लिपटे लोग मुसलमानों की रहबरी कर रहे है, या वोट की तिजारत कर रहे है। ताअज्जुब की बात है कि ऐसा शर्मनाक मशविरा देने वाले लोग कैसे भूल गये कि यह वही बीजेपी, पीएम नरेंदर मोदी और मोदी सरकार है जो शरियत में खुली दखल अन्दाजी करते हुये शरीयत को मिटाने के मिशन पर है। क्या तौसीफ रजा की अहमियत शरियते रसूल से ऊपर है ? अगर बात तौसीफ रज़ा खां की मुश्किल कुशाई करने वाले संतोष गंगवार की मुखालफत ना करने की तक की होती तब किसी हद तक समझ में आती लेकिन यहां तो बात इस्लाम शरियत मुसलमान को मिटाने की कोशिश में दिन रात एक करने वाली पार्टी की है जिसे शायद कोई भी ईमानवाला जिन्दा जमीर मुसलमान मान ही नहीं पायेगा।

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