Saturday 29 December 2012

तब तो आधा देश खाली हो जायेगा-इमरान नियाज़ी


         देश की राजधानी में हुए परम्मपरागत कार्य बस बालात्कार के बाद दिल्ली व केन्द्र की सरकारों समेत दूसरे राजनैतिक दल बलात्कार पर फांसी की सज़ा का प्रावधान होने की मांग करते दिख रहे हैं। बड़ी ही अजीब और चैकाने वाली बात यह है कि यह मांग गुलाम जनता करे तो समझ में आता है लेकिन अगर कोई खददरधारी बलात्कार बलात्कार, अपहरण, कत्ल, सम्पत्ति कबजाने जैसे मामलों में फोसी की सज़ा के प्रावधान की बात करे तो अटपटा सा लगना स्वभाविक ही है। अगर एक दो नाम छोड़ दें तो देश के खददरधारी बलात्कार, अपहरण, कत्ल, घोटालों वगैरा में महारत हासिल करने के बाद ही विधायक, सांसद या मंत्री की कुर्सी तक पहुंचता है लगभग सभी इन महान उपाधियों के धारक हैं और कुछ तो आज भी बादस्तूर अपनी महारत को ताजा रखने के आदी हैं। शायद ही कोई ऐसा खददरधारी हो जिसने ये कार्य न किये हो, खासतौर पर बलात्कार। बलात्कार तो बलात्कार है वह चाहे चाकू बन्दूक की नोक पर किया गया हो या अपने पद और पहुंच के झांसे में लेकर किया गया हो या फिर सुरक्षा वर्दी के बल पर किया जाता हो। या गुजरात में आतंकियों ने किये और कराये हों, आखिर होते तो बलात्कार ही हैं। दिल्ली बस रेप काण्ड के बाद जहां गुलाम जनता सड़को पर आकर फांसी के प्रावधान की मांग कर रही है वहीं संसद में बैठे लोग भी फांसी की मांग करने लगे। बलात्कार की सजा फांसी हो यह मांग गुलाम हिनेस्तानी कर रहे हैं तो बात समझ में आती है लेकिन देश के खददरधारी या वर्दीधारी यह मांग करें तो बात हजम नहीं होती। ऐसी क्या मजबूरी है कि लोग अपनी ही करतूतों के खिलाफ ही कड़े कानून वह भी फांसी की सजा की मांग कर रहें हैं। दिल्ली बस गैंगरेप में ही ऐसी क्या खास बात है कि संसद से सड़क तक सभी बलात्कार की सजा फांसी की मांग करने लगे। बलात्कार तो बलात्कार है। कोई करे, कहीं करे, किसी से करे। जुर्म तो बराबर ही है। आज दिल्ली बस गैंगरेप को लेकर मालिक और गुलाम सभी चीखते दिख रहे हैं लेकिन कल जब गुजरात में आतंकियों ने दर्जनों मासूमों को बलात्कार का शिकार बनाया, कश्मीर में अकसर सुरक्षा बलों के लोग मासूमों का बलात्कार करते रहते हैं, मणिपुर में भी वर्दीधारी बलात्कार करते हैं। किसी की आवाज नहीं निकली, किसी ने आज तक फांसी तो बड़ी बात गिरफ्तारी तक की मांग नहीं की, क्यों ? क्या कानून सिर्फ गुलाम जनता के ही कुछ लोगों पर लागू होता है ? क्या सिर्फ दिल्ली बस काण्ड करने वालों ने ही गलत किया बाकी गुजरात कश्मीर, मणिपुर वगैरा में बलात्कार करने वाले सही हैं। उनके लिए क्यों किसी की हिम्मत नही होती फांसी की सजा की मांग करने की। आज बीजेपी कुलाचे भर रही है, गुजरात आतंकी हमले के समय तो खुद बीजेपी केन्द्र में काबिज थीक्यों नहीं देदी उन आतंकियों को फांसी ? अगर कांगे्रस की बात करें तो कांग्रेस तो उस समय ओकात पर थी लेकिन जैसे ही सरकार में पहुंची तो कांग्रेस ने सबसे पहले आतंकियों के मास्टर माइण्ड को सम्मान पुरूस्कार तो दिसया ही साथ ही अभयदान भी दिया। आज उसी कांग्रेस की सरकार बलात्कार की सजा फांसी की बात ही नही कर रही बल्कि बिल भी नचा रही है।
मांग अच्छी है और इसी तरह के सख्त कानून होना भी चाहिये। लेकिन कानून को पूरी तरह से अंधा होना चाहिये, कानून को अपराधी के पद, धर्म, उसके पहुंच या उसकी शक्ति और उसके देश को देखकर सजा या मज़ा का फैसला नहीं करना चाहिये जैसे कि भारत के दूसरे कानून करते रहे हैं। न्यायसंगत कानून का मतलब यह नहीं होना चाहिये कि संसद, विधानसभाओं, परिषदों, निगमों में बैठे खददरधरियों, गुजरात, मालेगांव, दरगाह अजमेर शरीफ, समझौता एक्सप्रेस हमलों के आतंकियों को दस्यों साल तक सरकारी खर्च पर पाले, सम्मान पुरूस्कार दे, हुकूमत करने में मदद करे और गुलाम जनता के किसी व्यक्ति को, उसकी नागरिकता उसके धर्म उसकी हैसियत पर हावी होकर चन्द दिनों के अन्दर ही सजा दे। अभी तक तो जितने भी कानून देखे गये हैं उनका यही हश्र होते देखा गया। मिसाल के तौर पर देखें कि 20-25 साल पहले जिन पाकिस्तानी महिलाओं ने भारत के पुरूषों से शादिया करके भारत में ही बस गयीं थी, उनके छोटे छोटे बच्चे हैं भारत के कानून ने उन्हें उनके बच्चों तक को छोड़कर देश से जाने पर मजबूर किया, वायोवृद्ध कैंसर से पीडि़त हवलदार खां को सिर्फ इसलिए बरेली में वर्षों तक सड़ाया गया उनका सही ईलाज तक नहीं कराया गया उनपर आरोप लगाया गया कि वे पाकिस्तानी है और वीजा अवधि समाप्त होने के बाद भी देश में रह रहे हैं यहां कुछ माह पहले उनकी मौत हो गयी ये सिर्फ इसलिए किया गया कि वे सभी महिलायें और स्व0 हवलदार खां मुसलमान थे जबकि इसके विपरीत गुजरे साल पाकिस्तान का एक देशद्रोही जाकि पाकिस्तान की सरकार में मंत्री था अपने देश पाकिस्तान से गददारी करने के लिए भारत आया यहां की सरकारों ने उसे सरकार महमान बनाकर रखा, उसकी वीजा अवधि की समाप्ती की कोई चिन्ता नही हुई उसे वापिस नहीं भेजा गया उसके बाद पाकिस्तान के सैकड़ों गददार इस वर्ष आये और उन्हें भी लम्बे समय से पाला जा रहा है, क्यों ? क्योंकि वे सभी हिन्दू हैं, उनपर वीजा कानून लागू नहीं होता जबकि इन पाकिस्तानी देशद्रोहियों ने भारत में ऐसी मनगंढ़तें सेनाकर भारत की शान्ति को भी पलीता लगाने की कोशिशें की। अगर बात करें आतंकवाद की तो भारत के कानून में मुसलमान एक दो गैरमुस्लिमों का कत्ल करे तो वह आतंकवादी, मुसलमान अपना हक और इंसाफ मांगे तो आतंकी लेकिन हिन्दू हजारों की संख्या में कत्लेआम करे तो वह माननीय, सम्मान व पुरूस्कार का हकदार। कस्साब ने कुछ लोगों की जाने लीं तो चन्द दिनों में ही सज़ाये मौत, कयोंकि वह मुसलमान था। आतंकी असीमानन्द, प्रज्ञा ठाकुर, विनय समेत गुजरात आतंकियों ने हजारों का कत्लेआम किया तो सम्मान व पुरूस्कार और सिंहासन, क्योंकि ये सभी मुसलमान नहीं हैं। गोधरा में की गयी साजिश की जांच नानावटी व रगंनाथ मिश्र आयोगों ने करके अपनी आख्याओं में मोदी की साजिशों को बेनकाब कर दिया, रगंनाथ मिश्र ने तो यह तक कहा था कि मोदी को हिरासत में रखकर मुकदमा चलाया जाना चाहिये। इन रिपोर्टों को मनमोहन सिंह सरकार ने दफनाकर मोदी को अभयदान जारी रखा, क्यों ? क्योंकि मोदी मुसलमान नही है यही साजिश अगर फारूख अबदुल्ला, या उमर अबदुल्ला ने की होती तो शायद वे अबतक फांसी पर झूल गये होते या कम से कम जेल में तो सड़ाये ही जा रहे होते।
अब देखिये वर्दी के सामने कानून की नामर्दी। बरेली के थाना सीबी गंज के पूर्व थानाध्यक्ष वीएस सिरोही ने एक पत्रकार परिवार से खुलेआम 20 हजार रूपये की फिरौती की मांग की इसकी शिकायतों समाचारों को पढ़ने के बावजूद सीओ से डीजीपी तक, सिटी मजिस्ट्रेट से मुख्य सचिव तक और गृहसचिव से प्रधानमंत्री तक पूरा साल गुजर जाने के बावजूद किसी की हिम्मत नही हो रही कि उसके खिलाफ मुकदमा तो दूर विभागीय कार्यवाही भी कर सके। जबकि जबकि पत्रकार को झूठा केस आजानी से बनाकर दर्ज कर दिया गया।
हमारी बात का मतलब यह नहीं कि बलात्कार के खिलाफ सख्त कानून न हो। कानून होना चाहिये। हम तो कहते हैं कि इस्लामी कानून को अपनाया जाये क्योंकि दुनिया के कानूनों में सिर्फ इस्लामी कानून ही एक ऐसा कानून है जिसके चलते अपराध होते ही नहीं अगर कोई गलती से कर भी दे तो उसकी सज़ा को देखकर दूसरे समय से पहले ही सुधर जाते हैं यह और बात है कि भारत और अमरीका के कुछ आतंकियों को इन सज़ाओं से मिर्ची लगती है।
दिल्ली बस काण्ड पर फांसी की सज़ा की मांग करने वालों से हमारा सवाल है कि सोचिये कि अगर फांसी की सज़ा का प्रावधान आया तो पार्लियामेन्ट, विधानसभाओं, निगमों, परिषदों का क्या होगा कौन बैठेगा ? सुरक्षा बलों की तादाद न के बराबर रह जायेगी। किर क्या होगा ? जाहिर है कि खददरधारी इस तरह का कानून पास नहीं कर सकते, करेंगे लेकिन इस तरह से कि उसका मर्दानगी सिर्फ गुलाम जनता तक ही होगी। खादी और वर्दी के सामने उसकी कोई औकात नहीं होगी।

Sunday 16 December 2012

मुसलमानों की आस्तीन का सांप काग्रेस


मुसलमानों की आस्तीन का सांप काग्रेस में चल रहे वशंवाद के तहत राजा, शहनशाह और नवाब खानदानों की तरह सिंहासन के उत्तराधिकारी पुत्र दर पुत्र ही होता था ठीक उसी तरह कांगे्रस में भी चल रहा है लोकतन्त्र का नाम ही मिट चुका है। जवाहरलाल लाल के बाद इन्दिरागांधी, इन्दिरा गांधी के बाद राजीव फिर सोनिया और अब राहुल। बस एक ही परिवार का कब्जा जमा हुआ है।  बाबरी मस्जिद के मामले में गददारी करने के बाद सोनिया गांधी ने अपने घडि़याली आंसू दिखाकर मुस्लिमों को धोका दिया। इस बार राहुल ने मुसलमानों को छलने की कमर कसी है। हमेशा की तरह इस बार भी कांग्रेस ने बिकाऊ मुल्लाओं से सौदा करना शुरू कर दी है जिन से सौदा पट चुकी है वे बहकाने लगे मुस्लिम वोटों को। अब मुसलमानों को किसी के बहकावे में आने से पहले सोचना होगा कि कांग्रेस का असली रूप क्या है। कुछ बाते हम याद दिलाते हैं। मोदी, भाजपा, शिवसेना वगैरह से बढ़ी मुस्लमान की दुश्मन है कांग्रेस। मोदी ,भाजपा शिवसेना, आरएसएस आदि तो मुस्लमानो और हिन्दुस्तान की खुली दुश्मन हैं कांग्रेस। मुस्लमानो के लिए कांग्रेस आस्तीन का संाप है। और यह हर आदमी जानता है व समझता है कि सामने के हजार दुश्मन से ज़्यादा खतरनाक होता है एक गद्दार । महाभारत में भी कृष्ण ने भी यही कहा था कि हजार सैनिको से अधिक घातक होता है अपना एक गद्दार मोदी ने सामने से मुसलमानो पर आंतक बरपाया था सेना जब तब हमले करती रहती है लेकिन कंग्रेस तो वह जहरीला सांप है जिसे मुस्लमान ही दूध पिलाते हैं और वह मुसलमान को ही डसती है 2002 में गोधरा में साजिश रचकर मोदी ने अपने सरकारी व गैर सरकारी आंतकियों के हाथों हजारो बेकसूर मुस्लमानो का कत्लेआम कराया उस समय दिल्ली में अटलबिहारी का कब्ज़ा था अटल जी आंखो पैरो से बेकार थे मतलब न तो उनकी आंखे खुलती हैं और नही घुटनो से अपने बल पर खड़े हो पाते इस मजबूरी में गुजरात में आंतकियों की करतूतो का खुलकर जश्न नही मना सके सिर्फ मन ही मन में गदगद होते रहे और अपनी आंखो और पैरों की मजबूरी के चलते उछल कूद न कर सके। अगर अटल जी या उनकी सरकार गुजरात आतंकवाद पर खुशी मनाती नाचती कुदती तो यह कोई चैकाने वाली बात नही होती क्योंकि सब एक ही गैंग के थे मगर जब यही काम कोई दूसरी पार्टी या सरकार करे तो यह गौरतलब बात है वो भी वह पार्टी या उसकी सरकार जो धर्मनिरपेक्ष होने का ढोंग करती है मुसलमानो के टुकड़ो के बल पर ही जीती हो जिसे सरकार तक पहुंचाते ही मुसलमान हों तो यह चैकाने वाली बात है और इसी करतूत को आसतीन का संाप कहा जाता है मुस्लमानो ने कांग्रेस के जन्म से ही कांग्रेस का साथ दिया और कंाग्रेस ने हर बार मुस्लमान से गद्दारी ही की है। पं0 जवाहर लाल नेहरू और तत्कालीन कंाग्रेस कमेटी ने प्रस्ताव पास किया कि प्रधानमंत्री ,रक्षामंत्री,व वित्तमंत्री की कुर्सी मुस्लमान को नही दी जायेगी उस समय कांग्रेस ने अपना यह जहर न उगला होता तो आज भारत दुनिया सबसे बड़ा और ताकतवर देश होता।
सत्तर के दशक में तत्कालीन कांग्रेसी प्रधानमंत्री स्व0 इंदिरा गांधी ने मुफ्तियों के फतवो के बावजूद जबरन नसबन्दी का अभियान चलाया इस अभियान में छांट छांट कर मुस्लमानो की ही जबरदस्ती नसबन्दियां की गयीं इसका नतीजा यह हुआ कि वर्ष 1978 के आम चुनावो ने ;लोकसभा व समस्त विधान सभाद्ध कांगे्रस को औकात पर लाकर खड़ा कर दिया क्योंकि उस समय देश के मुस्लमानो ने कांग्रेस का साथ छोड ़दिया था हालत ये हो गयी थी खुद इंदिरा की भी जमानत नही बचा सकी कांग्रेस। लेकिन फुटपाथ पर आने के बाद इंदिरा गांधी ने घडि़याली आंसू बहा बहा कर मुस्लमानो के सारे मरकज़ो मे हाथ पैर जोड़ने का नाटक किया चूंकि मुस्लमान बढ़े ही दयावान और मंाफ करन वाले होते हैं इसलिए इंदिरा को मंाफ करके फिर कुर्सी दे दी इस बार कंाग्रेस कोई हरकत करती कि परेशान सरदारों ने इंदिरा गांधी को कत्ल कर दिया इसके बाद राजीव गंाधी ने कुर्सी पर बैठते ही बाबरी मस्जिद में पूजा शुरू करा दी और आ गये फुटपाथ पर। फुटपाथ पर रहते हुए राजीव गंाधी ने एक ही अच्छा काम किया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ़द्वारा ईराक पर अमरीकी आतंकी हमलावरो के जहाजो के जो ईंधन दिया जा रहा था वह सख्त भाषा में रूकवा दिया इसके जवाब में अमरीका ने राजीव को मरवा दिया इसी बीच प्राधानमंत्री की कुर्सी नरसिम्हाराव के हाथ लग गयी नरसिम्हाराव ने गद्दारी और आतंक परस्ती की हदें ही पार करते हुए कल्याण से सांठगांठ करके बाबरी मस्जिद को शहीद करा दिया राव की इस करतूत के बाद मुस्लमानो एक बार फिर कंाग्रेस का साथ छोड़ दिया और कांगे्रस को औकात बात दी। इसके बाद कांग्रेस के पास काफी लम्बे वक्त तक नेहरू के परिवार का घडि़याली आंसू बहाने वाला कोई व्यक्ति सक्रिय राजनीति में नही था। इसी बीच कंाग्रेसियों नें सोनिया गंाधी को बोलना सिखाया और सोनिया को सक्रिय राजनीति में प्रवेश करा दिया। फिर सेानिया ने पारिवारिक परंपरा के मुताबिक घडि़याली आंसू बहाना शुरू कर दिये सीधी साधी मुस्लमाम कौम फिर आ गयी झांसे में और कांग्रेस को औकात से उठाकर केंन्द्र की सत्ता तक पहुंचा दिया इस बार तो कांग्रेस ने गद्दारी की हदें ही तोड़ दी पिछले हर बार तो कुछ दिन सत्ता में पैर जमाने के बाद रंग बदलती थी कांग्रेस, मगर इस बार तो सरकार बनाने से पहले ही गिरगिटी रंग बदल डाले। बाबरी को शहीद कराने की साजिश के बाद लगभग पन्द्रह साल तक औकात पर रही कांग्रेस को जब पिछली बार मुस्लमानो ने इज्जतदार बनाया तो सरकार बनाते समय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गंाधी ने खुद समर्थन पर बनने वाली सरकार का प्रधानमंत्री बनना पसन्द नही किया और अपनी इस सियासत को कामयाब करने के लिए बहाना किया कि अल्पसंख्यक को प्रधानमंत्री बनाना है बात अल्पसंख्यक की थी तो सोनिया के साथ ही उस समय कांग्रेस के पुराने वफादार मो0 आरिफ खां, गुलाम नबी आज़ाद, सलमान खुर्शीद ,फारूख अब्दुल्ला आदि भी खडे़ थे इन अल्पसंख्यको ंमे से कोई न दिखा सोनिया को, क्योंकि मुस्लमान को पीएम की कुर्सी न देने का फार्मूला खुद सोनिया परिवार व पार्टी का ही है। सोनिया ने बात सीधे कहना थी कि मुस्लमान के अलावा किसी को भी पीएम बनाना है खैर यह तो थी प्रधानमंत्री न बनाने की बात। सोनिया रिमोट से चलने वाली केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य सरकार ने मुस्लमानो के मुहं पर जो करारा तमांचा जड़ा उसके बाद तो कांग्रेस का पूरा असली रूप खुलकर सामने आ गया। 2002 में गोधरा मे साजिश रचकर नरेन्द्र मोदी ने हजारो बेगुनाह मुस्लमानो का जो कत्लेआम करया था मोदी की इस करतूत पर खुश हो रही कांग्रेस सरकार में आने के बाद अपनी खुशी को छिपा नही पाई और हजारों बेकसूर मुस्लमानो को कत्ल कराने से खुश केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य ;यूपीएद्ध सरकार ने नरेन्द्र मोदी को सम्मान और पुरस्कार देकर कत्लेआम पर अपनी खुशी काजश्न मनाया साथ ही पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा कराई गयी गोधरा साजिश की जांच रिर्पोट पर मोदी को बचाने के लिए उस रिर्पोट को दफ्न कर दिया 
फिलहाल मुस्लिम वोट के सौदागर मुसलमानों को अन्ना के आन्दोलन से दूर रखने की कीमत हासिल कर चुके है ओर तरह तरह से बड़गलाने में जुटे हैं। यह सच्चाई हम भी स्वीकार करते हैं कि अन्ना खुद भी मोदी के पुजारी हैं साथ ही अन्ना के साथ बीजेपी का खड़ा होना भी अन्ना की नियत और चाल को शक के दायरे में लाता है लेकिन यहंा दो खास वजह हैं जो मुस्लमानो को अन्ना के आन्दोलन में समर्थन करना चाहिये पहली यह कि इस समय सरकार कांग्रेस की है और कांग्रेस जन्म से ही मुस्लमानो की आस्तीन की संाप है इसलिए देश भर के मुस्लमानो को कांग्रेस को मिटाने की कोशिश करनी चाहिये इसके लिए चाहें मोदी के चाहने वाले अन्ना हजारे के साथ क्यों न खड़ा होना पड़े। दूसरी बात यह कि अन्ना के साथ हैं किरन बेदी यह एक ऐसा नाम और ऐसी हस्ती है जिनकी नियत पर शक किया ही नही जा सकता वोटों के सौदागरों को वक्त के तकाज़े को समझते हुए अपनी सलाह वापिस लेकर मुस्लमानो को कांग्रेस नामक सांप को दूध पिलाने से बचने की सलाह देनी चाहिए। साथ ही हर मुसलमान को सभी चुनावों के दौरान गुजरात आतंकवाद में कत्ल किये गये बेगुनाह बूढ़ो बच्चों, औरतों समेत हजारों मुसलमान लाशों को सामने रखकर फैसला करना होगा कि गुजरात में आतंकियों के हाथों किये गये मुस्लिम कत्लेआम पर खुश होकर इस आतंक व कत्लेआम के मास्टर माइण्ड को सम्मान व पुरूस्कार देने वाली कांग्रेस को वोट देने से अच्छा है कि चुपचाप घर में बैठे ओर वोट न दें। लेकिन सही तो यह है कि हर उस प्रत्याशी को वोट दिया जाये जो कांग्रेस को हराने की स्थिति में हो।