Thursday 28 March 2013

रंगे पुते लोग देखना पसन्द नहीं आज़म को

त्योहार पर बन्द कराया रास्ता-परेशान हुए होली पर घूमने वाले
बरेली-होली के ठीक दूसरे दिन यानी आज यूपी नरेश दरबार के मंत्री मो0 आज़म खान बरेली मोहल्ला सौदागरान स्थित दरगाह पहुंचे। आज़म खान की यह यात्रा किसी धार्मिक उद्देश्य से न होकर पूरी तरह राजनैतिक थी आज़म खां को सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और यूपी नरेश अखिलेश यादव ने सपा की गिरती साख को बचाने की कोशिश के तहत दरगाह भेजा। दरअसल लगभग सभी राजनैतिकों को यह गलत फहमी है कि दरगाह पर चादर चढ़ा देने या दरगाह से जुड़े किसी भी व्यक्ति को लालबत्ती दे देने से देश प्रदेश का सारा मुस्लिम वोट उनकी जागीर बन जायेगा। खैर बात है आजम खां के आज होली त्योहार के ठीक अगले ही दिन बरेली आगमन और बिहारीपुर ढाल से मलूकपुर चैकी तक का पूरा रास्ता गुलाम जनता के लिए वर्जित किये जाने की। आजम खां के दरगाह आने से आधा घण्टा पहले से लेकर वापिस जाने तक लगभग डेढ़ घण्टा तक यह पूरा मार्ग गुलाम जनता के गुजरने के लिए वर्जित कर दिया गया था, लेकिन यह नफरत और प्रवेश निषेध वर्दीधारियों पर लागू नहीं थी। अगर इस मार्ग पर बिहारीपुर ढाल मन्दिर और मस्जिद बीबी जी पर गुलामों को गुजरने से रोकने के लिए तैनात पुलिस वालों की माने तो साफ हो जाता है कि आजम खां ने ही हुक्म दिया था कि उनके रास्ते में कोई होली के रंगों से रंगा पुता व्यक्ति दिखाइ्र नही देना चाहिये। ये बात गुलाम जनता को इस मार्ग पर कदम रखने से रोक रहे पुलिस कर्मियों ने खुद अन्याय विवेचक प्रतिनिधि से कही, पुलिस कर्मियों का कहना था कि मंत्री जी का आदेश है कि त्योहार का मामला है लोग सड़कों पर घूम फिर रहे है लेकिन मेरे आते जाते समय कोई दिखाई नहीं देना चाहिये। पुलिस कर्मियों की मजबूरी तो थी उनकी नौकरी, लेकिन यहां तो आजम खां के खौफ से भाजपा और आरएसएस के वे नेता भी थर थर कांपते नजर आये जो मामूली से मामूली बात पर खुराफात और बखेड़ा खड़ा करने के एक्सपर्ट हैं। त्योहार के दिन मार्ग अवरूध किये जाने की बाबत अन्याय विवेचक ने भाजपा एंव हिन्दू जागरण मंच के कुछ नेताओं से उनका रूझान जानना चाहा तो वे  सिर्फ इतना कहते दिखे कि  "भाई फिलहाल आजम पावर में है तो मनमानी ओर हिटलरी चलेगी ही"।
अब सवाल यह पैदा होता है कि आजम खां ने त्योहार के अवसर पर जब लोग होली मिलने अपनी
नातेदारों सम्बन्धियों के यहां आते जाते है ऐसे में रास्ता बन्द कराया अगर इस बात को लेकर हिन्दू संगठन बिखर जाते और शहर जल उठता तो इसका जिम्मेदार कौन होता? जब आजम खां को रंगे पुते लोग देखना पसन्द नहीं हैं तो होली के अगले ही दिन आने की क्या जरूरत थी ? क्या दरगाह पर हाजिरी देकर या दरगाह से जुड़े लोगों से सौदे करके सपा आगामी लोकसभा में अपनी गिरती साख को बचा पायेगी ? हम पहले भी बता चुके है कि किसी दरगाह से जुड़े लोगों को लालबत्तियां बाट कर सपा कुछ हासिल करने वाली नहीं है लेकिन अखिलेश यादव ने भी मायावती का फार्मूला आजमाने की कोशिश की है जबकि यह सच किसी से छिपा नहीं है कि आगामी लोकसभी में तो जो सफाया होगा तो होगा लेकिन अगली विधान सभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को छब्बीस सीटे भी मिलना मुश्किल ही नही बल्कि ना मुम्किन नजर आ रहा है। और सोने पर सुहागा आजम खां का होली के अगले ही दिन बरेली आना साथ ही होली के रंगों से रंगे लोगों को देखना पसन्द न करना, समाजवादी पार्टी और अखिलेश सरकार की लुटिया डुबोने के लिए काफी हैं।
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Friday 15 March 2013

ईमानदारों अफसरों के कत्ल क्यों ?-इमरान नियाज़ी


हमारे महान भारत की महानता यह है कि ईमानदारी से कानून के दिशा निर्देश के मुताबिक अपना फर्ज अदा करना आत्महत्या करने की कोशिश बन गया है। यानी टुसरान की ईमानदारी और निषक्षता उनकी जान की दुश्मन बन जाती है वह चाहे शहीद हेमन्त करकरे हो या फिर डीएसपी जिया उल हक़। असल गुनाहगारों को बेनाकाब करना या करने की तरफ कदम बढ़ाने का सीधा मतलब है अपना कत्ल कराने की सुपारी देना। ईमानदारी चाहे आतंकवादियों को बेनकाब करने में बरती जाये या किसी डान की करतूतें खोलने में, नतीजा सिर्फ मौत। खासतौर पर आरएसएस लाबी के किसी भी ग्रुप या व्यक्ति को बेनकाब करना या करने की तरफ कदम उठाना आत्महत्या करने के बराबर है।
देश में होने वाले धमाकों के असल जिम्मेदारों को बचाने के लिए खुफिया एजेंसियां और जांच एजेंसियां हमेशा ही बेगुनाह मुस्लिमों को फंसाती रही है और आज भी वही कर रही हैं यहां तक कि अगर मौका लगा तो सीधे कत्ल ही कर दिया। लेकिन साजिशी तौर पर फर्जी फंसाया जाने के बावजूद बेगुनाहों ने किसी भी जांच अधिकारी का आजतक कत्ल नहीं हुआ, जबकि देश में धमाके करने वाले असल आतंकियों को बेनकाब करने वाले शहीद हेमन्त करकरे को कत्ल करने के लिए पूरी नाटक रचा गया। मक्का मस्जिद, मालेगांव, अजमेर दरगाह, समझौता एक्सप्रेस समेत देश में जगह जगह धमाके करने वाले यह जानते थे कि इस समय बम्बई के ताज होटल में कुछ पाकिस्तानी नागरिक ठहरे हुए हैं इस इसी का फायदा उठाते हुए ड्रामा तैयार किया गया और और मौका मिलते ही हेमन्त करकरे पर गोलियां दाग दी गयी, क्योंकि हत्यारे अच्छी तरह से जानते थे कि हेमन्त करकरे की हत्या का इल्जाम सीधे सीधे पाकिस्तानी अजमल कस्साब पर ही थुपेगा, आतंकी अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब हुए। यानी देश में धमाके और आतंकी हमले करने वालों को बेनकाब करने वाले को भी ठिकाने लगा दिया आतंकी इस काम में भी कामयाब हुए। हेमन्त करकरे के कत्ल से डरकर अब कोई भी अफसर ईमानदारी दिखाने की जुर्रत नहीं कर पा रहा, यहां तककि वकील भी सहमें हुए दिखे, मिसाल के तौर पर अफजल गुरू का मामला बारीकी से देखें। क्षेत्रीय थाना पुलिस से लेकर राष्ट्रपति तक सब ही करते गये जो आतंकी और उनके आका चाहते थे। दिल्ली हाईकोर्ट, और हाल ही में हैदराबाद में किये गये धमाकों समेत देश के सभी धमाकों के मामलों में खुफिया एजेंसियां, जांच एजेंसियां वही करती चली आ रही हैं जो धमाके करने वाले चाहते हैं। क्योंकि हेमन्त करकरे का हश्र देखकर हर अफसर समझ चुका है कि जरा भी ईमानदारी दिखाने का नतीजा सिर्फ मौत है।
इसी तरह इमानदारी दिखाने की कोशिश करके उ0प्र0 के डीएसपी जि़या उल हक़ ने अपनी जान गवां दी। जिला उल हक काफी ईमानदार अफसर थे और ऐसे मामले की जांच कर रहे थे जिसके तार सीधे उ0प्र0की अखिलेश यादव की सपाई सरकार के बाहुबली मंत्री राजा भैया से जुड़े हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी खददरधारी के खिलाफ कोई जांच किसी ईमानदार अफसर के हाथ में हो और वह अफसर दुनिया में रहे। बस यही एक वजह थी कि जिया साहब को भून दिया गया। जिया साहब के कत्ल में उनके अपने ही साथी भी कम जिम्मेदार नहीं। तआज्जुब की ही बात है कि भारी भरकम फोर्स की मोजूदगी में एक पुलिस अफसर पर गोलिया दागी जांए और पुलिस कुछ न करे, कोई दूसरा पुलिस वाला न मरे, कोई हमलावर न मरे.....? कुल मिलाकर हम  सिर्फ यही कह सकते हैं कि जिया उल हक साहब को दुश्मन कोई इंसान नहीं थी बल्कि खुद उनकी इमानदारी थी, इसलिए किसी को दोष देना ही बेकार है।
हेमन्त करकरे ओर जिया उल हक के कत्ल में एक बात कामन ह यहकि हेमन्त करकरे ने आरएसएस के आतंकियों को बेनकाब किया था, तो जिया उल हक आरएसएस बैकग्राउण्ड वाले मंत्री राजा भैया को बेनकाब करने की तरफ बढ़ रहे थे।

Saturday 9 March 2013

आरएसएस के दिशा निर्देश में काम करती एटीएस


 
                                                      (इमरान नियाज़ी)
अजीब सी बात है कि अफजल गुरू के मारे जाने के तुरन्त बाद ही हैदराबाद में धमाके होते हैं, कश्मीर में सिपाहियों को गोलियों से भून दिया जाता है। हमेशा की ही तरह इस बार भी हैदराबाद में ब्लास्ट की आवाज से पहले ही मीडिया ने जिम्मेदारों के नामों की घोषणायें शुरू कर दीं। आरएसएस पोषित मीडिया धड़ों ने ऐसा पहली बार नहीं किया बल्कि मक्का मस्जिद, मालेगांव, अजमेर दरगाह, समझौता एक्सप्रेस को बमों से उड़ाने की कोशिश करने वाले देश के असल आतंकियों असीमानन्द, प्रज्ञा ठाकुर के साथी आतंकियो को बचाने के लिए इन सभी धमाकों की आवाजों से पहले ही धमाके करने की जिम्मेदारी थोपते हुए मुस्लिमं नामों की घोषणायें की थी लेकिन भला हो ईमानदारी के इकलौते प्रतीक शहीद हेमन्त करकरे का जिन्होंने देश में धमाके करने वाले असल आतंकियों में से कुछ को बेनकाब कर दिया जिससे साजिश के तहत फंसाये गये कुछ बेगुनाह मुस्लिम नौजवान बच गये। हालांकि अभी भी कुछेक जेलों में ही सड़ाये जा रहे हैं। इसी तरह संसद हमले को लेकर आरएसएस पोषित मीडिया ने जमकर मनगंढ़तें प्रचारित व प्रसारित कीं। संसद हमले के मामले में मीडिया के कथित धड़ों को  जहां एक तरफ अफजल को ठिकाने लगवाने में पूरी तरह सफलता मिली तो वहीं दूसरी तरफ गिलानी ब्रदर्स को फंसाने की कोशिशें नाकाम होने पर पूरी तरह मुंह की खानी पड़ी। इसके बाद भी मीडिया ने अपना रवैया नहीं छोड़ा, बर्मा में आतंकियों के हाथों किये जा रहे कत्लेआम की एक भी खबर नहीं दी, और आसाम में गुजरे दिनों आतंकवादियों के हाथों किये जा रहे मुस्लिम कत्लेआम को ही झुटलाने की कोशिशें की गयीं।
मक्का मस्जिद, मालेगांव, अजमेर दरगाह और समझौता एक्सप्रेस को बमों से उड़ाने की कोशिश करने वालों को बचाने के लिए मीडिया और जांच एजेंसियों ने मुस्लिमों को फंसाया। उस समय मीडिया येे दावे कर रही थी कि इन घटनाओं में मुस्लिमों के हाथ होने के पुख्ता सबूत हैं। भला हो शहीद हेमन्त करकरे का जिन्होंने देश में धमाके करने वाले असली आतंकियों को सामने लाकर खड़ा कर दिया जिन्हें आरएसएस पोषित मीडिया आज भी स्वामी और साध्वी जैसे पवित्र और सम्मानित नामों से सम्बोधित करने से बाज नहीं आ रही। दरअसल हमारे देश की जांच एजेंसियां खास तौर पर एटीएस कानून के दिशा निर्देशन में काम करने की बजाये आरएसएस लाबी के अखबारों के दिशा निर्देश के मुताबिक काम करती है। हाल ही में हैदराबाद में धमाके करके मुस्लिमों को फंसाना शुरू कर दिया गया। आरएसएस लाबी के चैनलों ने धमाके की आवाज आने से पहले ही जिम्मेदारों के नामों का एलान करना शुरू कर दिया, और एटीएस व पुलिस ने मीडिया के दिशा निर्देशन के मुताबिक ही कदम उठाते हुए सीधे सीधे मुस्लिमों को निशाना बनाना शुरू कर दिया, यहां तककि शिवसेना के अखबार "सामना" ने एटीएस को एक नया हुक्म दिया कि फिल्म जगत से कुछ मुस्लिमों को भी फंसाया जाये। एटीएस ने हुक्म की तामील करते हुए निशाने साधना शुरू कर दिये, अब देखना यह है कि फिल्म जगत से किस किसको फंसाया जाता है। इस बार भी ठीक उसी तरह से कदम उठा रही है एटीएस और पुलिस जिस तरह से मक्का मस्जिद, मालेगांव, अजमेर दरगाह, समझौता एक्सप्रेस, दिल्ली हाईकोर्ट ब्लास्टों के मामले में उठाये थे। उन मामलों में आरएसएस पोषित मीडिया के दिशा निर्देशों पर चलते हुूए जांच एजेंसियों ने दर्जनों मेंस्लिम नौजवानों की जिन्दगियां बर्बाद कर दीं और फिर जब शहीद हेमन्त करकरे जैसा महात्मा के हाथ में मामला आया तो उन्होंने देश में धमाके करने वाले असल आतंकियों को बेनकाब करके दुनिया के सामने लाकर खड़ा कर दिया। हालांकि शहीद हेमन्त करकरे को उनकी ईमानदारी की सजा उन आतंकियों और उनके आकाओं ने देदी जिन्हें हेमन्त करकरे ने बेनकाब किया था, और हेमन्त करकरे की हत्या भी पुरी प्लानिंग के साथ की गयी यानी पहले बम्बई ताज होटल पर हमला फिर मौका पाकर हेमन्त करकरे का कत्ल और सारा इल्जाम थोप दिया कस्साब के सिर पर। क्योंकि आतंकी यह जानते थे कि होटल के अन्दर कुछ पाकिस्तानी मौजूद है इसलिए सारा इल्जाम पाकिस्तानियों के ही सिर पर मंढ जायेगा। आतंकी अपनी प्लानिंग में पूरी तरह कामयाब भी हुए।
अब जबकि अफजल को मार दिया गया, अफजल को लेकर दुनिया भर के इंसाफ पसन्दों और बुद्धीजीवियों में जमकर बहस चली और चल रही है कश्मीर में रोष और गुस्सा है कश्मीर के अलावा भी दुनिया का हर इंसाफ पसन्द शख्स चाहे वह मुसलमान हो या हिन्दू अफजल के मारे जाने से खफा है, अदालत कानून सरकार सभी से इंसाफ परस्तों का भरोसा लगभग उठ ही चुका है। देश के कुछ हिस्सों में रोष और प्रदर्शन भी हुए, यह और बात है कि केन्द्र की सोनिया रिमोट वाली आरएसएस एजेण्ट कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार ने अफजल का मातम मनाने पर भी पाबन्दी लगाकर अपने आकाओं को खुश करने की भरपूर कोशिश की। मक्का मस्जिद, मालेगांव, अजमेर दरगाह, समझौता एक्सप्रेस समेत देश में किये गये दूसरे धमाकों को मददेनजर रखते हुए हाल ही में हुए हैदराबाद धमाको को देखा जाये तो साफ़ हो जाता है कि हैदराबाद में जो धमाके किये गये वे उन्हीं लोगों ने किये और करवाये हैं जिन्होंने मक्का मस्जिद, मालेगांव, अजमेर दरगाह, समझौता एक्सप्रेस और देश के दूसरे इलाकों में धमाके किये, क्योंकि धमाके करने कराने वाले जानते ही हैं कि अफजल को ठिकाने लगाये जाने का विरोध तो चल ही रहा है ऐसे में ये लोग कोई भी आतंकी हरकत करते है तो उसका आरोप सीधे सीधे और बड़ी ही आसानी से मुस्लिमों पर लगाना आसान होगा, बस इसी मौके का पूरा पूरा फायदा उठाते हुए हैदराबाद में धमाके करा दिये गये। प्लानिंग के मुताबिक धमाकों की आवाज़ों से पहले ही मीडिया और खुफिया एजेंसियों, एटीएस के इजाद कर्दा संगठनों के नामों के एलान शुरू कर दिया। एटीएस ने भी बेगुनाह मुस्लिमों को उठाना शुरू कर दिया। इस बार ब्लास्ट करने वाले और बेकसूरों को फंसाने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि अब कोई हेमन्त करकरे नहीं आने वाला जो मक्का मस्जिद, मालेगांव, दरगाह अजमेर, समझौता एक्सप्रेस के मामलों की हकीकतों को उजागर करे साथ ही अफजल के मामले में अदालतों के फैसले भी हैदराबाद ब्लास्ट करने वालों को मुतमईन कर चुके हैं कि अदालतें वही करेंगी जो आरएसएस पोषित मीडिया और खुफिया एजेंसियां चाहेगी। अफजल गुरू के मामले को मददेनजर रखते हुए पूरी उम्मीद की जा सकती है कि हाल ही में हैदराबाद में धमाकों के नाम पर जिन मुस्लिमों को फंसाया जा रहा है उन्हें एक-डेढ़ साल के अन्दर ही ठिकाने भी लगा दिया जायेगा, उन्हें भी अपनी बेकसूरी का सबूत पेश करने की इजाजत नहीं होगी, उन्हें भी ढंग का वकील नहीं दिया जायेगा, उनके मामले में भी सारे वकील जज बन जायेंगे और आखिर में कोई ठोस सबूत हो या न हो सीधे सीधे ठिकाने लगाकर धमाके करने वालों को साफ बचा लिया जायेगा। जैसा कि होता रहा है। एटीएस समेत अधिकांश जांच एजेंसियां कानून के दिशा निर्देशन में काम करने की बजाये "संघ" के दिशा निर्देशन में काम करती हैं। हैदराबाद ब्लास्ट मामले में ऐसा ही हो रहा है आरएसएस लाबी के अखबार और चैनल जिधर इशारा करते हैं एटीएस उसी तरफ रूख कर लेती है (http://hindi.in.com/showstory.php?id=1720402) तीन दिन पहले ही शिव सेना के अखबार ने फिल्म जगत के मुसलमानों की तरफ इशारा किया, एटीएस ने तुरन्त ही फिल्म जगत के मुस्लिमों पर निशाना साधना शुरू कर दिया। हर धमाके के बाद यही किया जाता रहा है धमाके करने कराने वालों के निर्देशन में की जाती है कार्यवाहियां। धमाके करने वालों को बचाने के लिए बेकसूरों को फंसाकर उनपर अत्याचार करने और अफजल गुरू के खिलाफ कोई ठोस सबूत न होते हुए भी मौत दिये जाने के मामले को थोड़ी सी भी गहराई में जाकर देखा जाये तो एक सच यह भी सामने आता है कि जांच अधिकारी, अदालतें, वकील, पुलिस सबके सब हेमन्त करकरे जैसा अपना हाल किये जाने से बचने के लिए ही धमाके करने वालों के इशारे पर चलने पर मजबूर होते हैं। सभी जानते हैं कि हर धमाके के बाद थोक भाव में बेकसूर मुस्लिमों को जेल में डालकर उनपर अत्याचार किये जाते हैं मौका पाकर सीधे सीधे कत्ल भी कर दिया गया लेकिन आजतक किसी भी जांच अधिकारी का कत्ल नहीं हुआ लेकिन जब ईमानदारी के प्रतीक शहीद हेमन्त करकरे ने असल आतंकियों को बेनकाब किया तो चन्द दिनों के भीतर ही हेमन्त करकरे को जान से हाथ धोना पड़ा। हेमन्त करकरे के हत्यारे आतंकियों ने उस समय भी मोके का फायदा उठाया और हेमन्त करकरे की हत्या करदी वो मौका था बम्बई हमले का, हत्यारे आतंकी यह जानते थे कि हेमन्त करकरे की हत्या भी कस्साब के सिर मंढ दी जायेगी और हत्यारे अपने मकसद में कामयाब हो भी गये। शायद इसी चीज के खौफ से जांच एजेंसियां, अदालते, वकील सभी डरे हुए है कि जरा भी इमानदारी से कदम उठाया तो सीधे जान जायेगी, शायद इसी खौफ की वजह है कि जांच अधिकारी से अदालत तक सभी वैसा ही करते जाते हैं जो आरएसएस लाबी चाहती है। कितनी चैकाने वाली बात है कि स्वतंत्र जांच एजेंसियों का अपना कोई विवेक ही नहीं है आरएसएस लाबी के मीडिया धड़ों के दिशा निर्देश के मुताबिक काम करती हैं। दूसरी तरफ अगर देखा जाये तो यह भी मालूम होता है कि इन सब हालातों के लिए खुद मुसलमान भी एक बड़ी हद तक जिम्मेदार हैं। आरएसएस लाबी पोषित मीडिया द्वारा मुसलमानों को आतंकी घोषित करने की कोशिश किये जाने की सबसे पहली और बड़ी वजह यह है कि मुसलमान का मीडिया जगत में कोई खास हिस्सेदारी नहीं है जो हकीकतों को उजागर करे और जो कुछ है भी तो उसे खुद मुसलमान ही उनको सपोर्ट नहीं करते, मुस्लिम अखबारों को खरीदते नहीं उन्हें विज्ञापन नहीं देते क्योंकि मेरी कौम भैंसा खाती है तो उसकी खोपड़ी भी भैंसे वाली होना स्वभाविक है, मुसलमानों को रंगीन फोटो और खूबसूरत छपाई वाले अखबार पसन्द है इससे बात से कोई लेना देना नहीं कि वह अखबार उनके ही खिलाफ कितना जहर उगल रहा है। अभी तीन साल पहले की ही बात है बरेली के एक मुल्ला जी ने बरेली से ही प्रकाशित एक (आरएसएस) लाबी के अखबार की प्रतियां चैराहे पर यह कहते हुए जलाई कि "यह अखबार मुसलमानों का दुश्मन है मुसलमानों के खिलाफ लिखता है" इसमें गौरतलब बात यह थी कि इसके अगले ही दिन इन्हीं मुल्ला जी ने अगले ही दिन शिवसेना के एक अखबार को बीस हजार रूपये मूल्य का विज्ञापन दिया। क्या बरेली में मुस्लिम अखबार या निष्पक्ष वाणी वाले अखबार नहीं थे, किसी को 20 रूपये का भी विज्ञापन नहीं दिया, क्यों ?...... क्योंकि इन अखबारों में उनका फोटो रंगीन और खूबसूरत नहीं दिखता। ऐसा नहीं कि मुस्लिम पत्रकार नहीं या मुस्लिम अखबार नहीं, ज्यादा तर मुस्लिम पत्रकार सिर्फ अपनी कमाई के लिए मुस्लिम दुश्मन मीडिया धड़ों की ही बोली बोलते रहते हैं मुस्लिम अखबारों की तो बात करना ही बेकार है। जबतक मुसलमानों का मीडिया जगत में मजबूत स्तम्भ नहीं होगा तब तक आरएसएस पोषित मीडिया धड़ों को मुसलमानों को बदनाम करने और फंसाने की साजिशें रचने में कामयाबी मिलती रहेगी। इसके अलावा मुसलमानों के लगातार कमजोर होते जाने की एक बड़ी वजह यह है कि मुसलमानों के बीच आपसी तआस्सुब बाजी बड़े पैमाने पर है सुन्नी, वहाबी, देवबन्दी आदि। अगर मुसलमान को अपना वजूद बचाना है तो यह ड्रामे बाजी छोड़कर सिर्फ मुसलमान बनकर एक प्लेटफार्म पर आना होगा, ऐसा मुल्ला होने नहीं देंगे।
शिवसेना के अखबार ने फिल्म जगत के मुस्लिमों को शिकार बनाने के लिए एटीएस को निर्देश दिये एटीएस ने निशाना साधना शुरू कर दिये। चलिये हम शक ही नहीं बल्कि मजबूत यकीन के साथ कह रहे हैं कि हैदराबाद धमाकों में गुजरात आतंक, मक्का मस्जिद, मालेगांव, अजमेर दरगाह और समझौता एक्सप्रेस में धमाके करने वालों ने ही किये या कराये हैं। क्या एटीएस हिम्मत जुटा पायेगी इस तरफ जांच का रूख करने की ? नहीं, क्योंकि अब कोई हेमन्त करकरे नहीं है। हम यह भी नही कह रहे कि अब कोई ईमानदार अधिकारी नहीं है।  बहुत हैं लेकिन कोई भी ईमानदारी दिखा कर हेमन्त करकरे की तरह अपना कत्ल कराना पसन्द नही करता। अगर कानून जांच अधिकारी की जान की सुरक्षा का पुख्ता इन्तेजाम करे तो यकीनन एक बार फिर दूध का दूध पानी का पानी होकर हैदराबाद धमाकों के असली जिम्मेदारों का पर्दाफाश हो सकता है।