Thursday 11 April 2013

सफाये की तरफ बढ़ती सपा



इस बार विधान सभा चुनावों में उ0प्र0 के मुस्लिम वोट के साथ ही दूसरे अमन पसन्द, सैकूलर वोट भी समाजवादी पार्टी को मिले समाजवादी पार्टी को उम्मीद से कहीं ज्यादा सीटे मिलने की एक खास वजह थी अखिलेश यादव का चेहरा। मतदाताओं में अखिलेश यादव से कुछ उम्मीदें जागीं थी लोगों का मानना था कि जब पढ़ा लिखा मुख्यमंत्री होगा तो कुछ न कुछ तो सूबे का पहिया रफ्तार पकड़ेगा ही, लेकिन दिल के अरमां भत्तों में दबकर कुचल गये। अखिलेश यादव की सरकार भी सपा के पुराने ढर्रे पर ही चल रही है सूबे की भलाई के लिए तो कुछ हुआ नहीं उल्टे एक साल में 27 साम्प्रदायिक दंगों को नया रिकार्ड जरूर बन गया। अखिलेश यादव गुलाम वोटरों की उम्मीदों पर नाम मात्र भी खरे नहीं उतरे। अखिलेश यादव जनता के पैसे को बांटने और पिछली सरकार के किये कामों का फटटा पलटने में ही वक्त गुजारने में व्यस्त हैं। चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश यादव ने लगातार गुलाम जनता को यह यकीन दिलाने की कोशिश की थी कि इस बार बाहुबलियों से दूरी बनाये रखी जायेगी, अपनी इस घोषणा पर लोगों को सुन्हरे सपने दिखाने के लिए अखिलेश ने डीपी यादव को कुर्बानी का बकरा बनाया यानी चुनावों के दौरान डीपी यादव से दूरी बनाकर यह जताने की कोशिश की कि सपा और खासतौर पर सरकार में बाहुबलियों के लिए जगह नहीं रहेगी। सदियों से ही झासों में आने की आदी हुई सूबे की गुलाम जनता एक बार फिर सपनों में डूब गयी। लेकिन बाहुबलियों से दूर रहने की अखिलेश की घोषणा सिर्फ चुनावी बात थी तो सरकार बनते बनते सपा अपने असल रूप में आने लगी और राजा भैया जैसे शख्स को न सिर्फ समर्थक बनाया बल्कि कमाई में हिस्सेदारी भी दे दी, जिसका खमियाजा देश ने एक ईमानदार और होनहार डीएसपी को भुगतना पड़ा। इसी तरह कई और भी बाहुबली विधायक, सांसद तो हैं ही मंत्री भी हैं साथ साथ फिलहाल हर साईकिल सवार दबंगी के लबादे में फिरता नजर आ रहा है जिसमें कि सरकारी बिरादरी का तो कहना ही क्या है बस सरकारी बिरादरी का हर शख्स मुख्यमंत्री है। यही नहीं साईकिल सवार छुटभैये भी वीआईपी हो गये है। मायावती ने मुसलमानों को पूरा पूरा कुल्हड़ समझकर लालबत्ती थमा दी माया को लगा था कि इसको लालबत्ती थमा देने से सूबे भर का मुस्लिम वोट बसपा का जागीरी वोट बन जायेगा, लालबत्ती देने के बाद जब माया ने खुफिया तन्त्र से आकलन कराया तब पता चला कि सूबे भी के करोड़ों वोट तो दूर शहर के ही 25 वोट नहीं बढ़ सके, माया ने बिना देर किये लालबत्ती वापिस लेली। अब अखिलेश ने भी माया के कदम पर कदम रखते हुए लालबत्ती थमाकर मुसलमानों पूरा पूरा उल्लू समझने की कोशिश की, अखिलेश यादव ने तो मायावती से भी ज्यादा घाटे की सौदा की है अखिलेश की इस लालबत्ती से तो पांच वोटों को इजाफा भी होने वाला नहीं उल्टे लाखों वोट हाथ से निकल जरूर गये। अखिलेश यादव की हर कानून व्यवस्था की कसौटी पर पूरी तरह फेल हो गयी है। पिछली सरकार के दौर में गुलाम जनता की शिकायतों को रददी की टोकरी में डालने का चलन था लेकिन अखिलेश यादव की सरकार में शिकायतों को फाड़कर फेंक देने की व्यवस्था ने जन्म ले लिया। मिसाल के तौर पर जिला लखीमपुर खीरी के थाना निघासन में अदालत के आदेश के बाद धारा 420, 467, 468, 216, 217 आईपीसी के तहत मुकदमा कायम हुआ, विवेचनाधिकारी ने रिश्वत लेकर बिना ही कोई जांच किये घर में बैठे बैठे एफआर लगादी जिसे अदालत ने ठुकरा कर पुनः विवेचना के आदेश दिये। अदालत के इस आदेश को छः साल गुजर चुके हैं निघासन थाना पुलिस ने विवेचना के नाम पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया। इसकी कई बार सूचना अखिलेश यादव की दी जा चुकी है लेकिन नतीजा शून्य। बरेली के थाना प्रेमनगर में वर्ष 1   को अदालत के आदेश के बाद दर्ज किये गये मोटरसाईकिल लूट के मुकदमें में गुजरे साल से मुल्जिमान के गैरजमानती वारण्ट चल रहे हैं और नामजद मुल्जिमान रोज थानों में बैठकर दलाली का धंधा कर रहे हैं यहां तककि थाना प्रेमनगर में भी दलाली करने के लिए घण्टों बैठे हुए देखा गया है आजतक किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कई साल से गैरजमानती वारण्ट पर चल रहे इन आटोलिफ्टरों को अरैस्ट करके अदालत में पेश करे। मुलायम सिंह को मुसलमानों को मसीहा कहा जाता है मुसलमान भी समाजवादी पार्टी को अपना बड़ा ही खैरख्वाह समझते हैं लेकिन ऐसी एक भी वजह नजर नही आती जिससे बलबूते यह माना जाये कि समाजवादी पार्टी पूरी तरह से सैकूलर है या मुसलमानों की सच्ची हमदर्द है। सपा की अखिलेश यादव सरकार के एक साल में 27 दंगे,  गुजरे साल सावन माह में बरेली जिले में कांवरियों द्वारा शुरू किये गये उन्माद के बाद महीना भर तक कफर््यु रहा, कफर््यु के दौरान ही प्रशासन ने एक नई परम्परा की शुरूआत करते हुए संगीनों के बल पर नये रास्ते से कांवरियों को गुजारना शुरू किया विरोध को दबाने के लिए पहले ही बेहिसाब संगीनों से मुस्लिम इलाके को पाट दिया गया, इसी साल होली के मोके पर थाना सीबी गंज के महेशपुर अटरिया में एक नई जगह होली जलवाकर नई प्रथा की शुरूआत कराई गयी, थानाध्यक्ष से लेकर कप्तान तक कोई भी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं है। सपा को मुस्लिम हिमायती के नाम से मशहूर करके ज्यादा तर मुस्लिम वोट पर पकड़ बनाने वाले सपा मुखिया ने पहले कल्याण से याराना किया और अब अडवानी की मुरीदी शुरू कर दी, और अब संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के गुणगान अलापने लगे। आम मुसलमान तो बेशक मुलायम सिंह की चाल को नहीं समझ पा रहा और जो थोड़ा बहुत समझने की कोशिश करता है तो उन्हें बिकाऊ मुस्लिम नेता और मुल्ला समझने नहीं देते लेकिन काफी हद तक बुद्धिजीवी मुस्लिम मुलायम सिंह और सपा के खेल को समझ चुका है। मुलायम सिंह और समाजवादी पार्टी  के बारे में जो कहा जाता है कि मुस्लिम हिमायती है इस बात की पोल मुलायम सिंह के दिल दिमाग में बैठे कल्याण, अडवानी, और मुखर्जी के प्रेम ने खोल कर रख दी है। बची कसर दुपहिया वाहनों से हैल्मेट के बहाने कराई जा रही उगाही ने पूरी कर दी। सूबे का बच्चा बच्चा इस सच्चाई को जाना है कि जब जब सूबे में सपा का शासन आया तब तब गुलाम जनता से हैल्मेट के नाम पर उगाही का बाज़ार गर्म हुआ इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। दरअसल सपा के एक कद्दावर नेता और सूबे के वर्तमान मालिक मुलायम सिंह परिवार का करीबी रिश्तेदार की हैल्मेट बनाने का फैक्ट्री है इसलिए पुलिसिया लठ्ठ के बल पर हैल्मेट बिकवाने की कवायद हमेशा होती रही है। अगर गुलाम जनता की खून पसीने की गाढ़ी कमाई की लूट और बर्बादी की बात की जाये तो सपा सरकार मायावती से चार कदम आगे दिखाई पड़ रही है। मायावती ने गुलाम जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई को मूर्तियों पर लुटाया तो अखिलेश यादव लैपटाप और बेरोजगारी भत्ते, कन्या विद्याधन के शक्ल में लुटाने में मस्त हैं। यही नहीं माया के राज में तो सिर्फ मायावती के दौरे के दौरान ही अघोषित कफर्यु लगवा कर आती थी लेकिन अखिलेश सरकार के छुटभैये मंत्री और परिषदों के अध्यक्षों के दौरों के लिए भी क्षे़ में कफर्यु लगवाया जा रहा है। सबूत के तौर पर होली के अगले ही दिन मंत्री आज़म खां के बरेली आगमन पर बिहारीपुर ढाल से मलूकपुर पुलिस चैकी तक का पूरा रास्ता गुलाम जनता पर वर्जित कर दिया गया था क्योंकि होली का अगला ही दिन था और आजम खां को रंगे पुते लोग देखना पसन्द नहीं। देखें   http://www.anyayvivechak.com/fetch.php?p=646  बची कसर आज बरेली में सालिड वेस्ट प्लान्ट के उदघाटन के समारोह में संचालिका सपा पार्षद ने यह घोषणा करके कि  "सपा के जो पार्षद हैं वे मंत्री जी का स्वागत करने के लिए आवें"। दूसरी तरफ एक साल के सपा शासन में क्राइम की जो बरसात हुई उसकी मिसाल ही नही मिलती। साथ ही मलाईदार कुर्सियों पर ब्रादरीवाद की प्रथा भी सपा को सफाये की तरफ तेजी से ले जा रही है, इस बिरादरीवाद का नतीजे पुलिसिया बलात्कार, अवैध रूप से जिसको चाहे हिरासत में लिये जाने, हिरासत में ही कत्ल कर दिये जाने, भुक्तभोगियों को ही पीटे जाने व हवालातों में डाले जाने, पुलिस अफसरों से सिपाही तक सभी स्तरों पर गुलाम जनता से बेगार कराये जाने जैसे कामों के बाजार गर्म होने के रूप में देखा जा सकता है।
कुल मिलाकर आज यह दावा शायद गलत नहीं होगा कि आगामी चुनावों में सपा का हाल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से कहीं ज्यादा बदतर होना लगभग तय ही है। इस बार विधानसभा चुनावों में जहां अखिलेश यादव ने अप्रत्याशित सीटें हासिल करके सबको चैकां दिया तो आगामी विधान सभा चुनावों में समाजवादी पार्टी का सफाया भी इतिहास रचने वाला ही होगा।