Saturday 29 December 2012

तब तो आधा देश खाली हो जायेगा-इमरान नियाज़ी


         देश की राजधानी में हुए परम्मपरागत कार्य बस बालात्कार के बाद दिल्ली व केन्द्र की सरकारों समेत दूसरे राजनैतिक दल बलात्कार पर फांसी की सज़ा का प्रावधान होने की मांग करते दिख रहे हैं। बड़ी ही अजीब और चैकाने वाली बात यह है कि यह मांग गुलाम जनता करे तो समझ में आता है लेकिन अगर कोई खददरधारी बलात्कार बलात्कार, अपहरण, कत्ल, सम्पत्ति कबजाने जैसे मामलों में फोसी की सज़ा के प्रावधान की बात करे तो अटपटा सा लगना स्वभाविक ही है। अगर एक दो नाम छोड़ दें तो देश के खददरधारी बलात्कार, अपहरण, कत्ल, घोटालों वगैरा में महारत हासिल करने के बाद ही विधायक, सांसद या मंत्री की कुर्सी तक पहुंचता है लगभग सभी इन महान उपाधियों के धारक हैं और कुछ तो आज भी बादस्तूर अपनी महारत को ताजा रखने के आदी हैं। शायद ही कोई ऐसा खददरधारी हो जिसने ये कार्य न किये हो, खासतौर पर बलात्कार। बलात्कार तो बलात्कार है वह चाहे चाकू बन्दूक की नोक पर किया गया हो या अपने पद और पहुंच के झांसे में लेकर किया गया हो या फिर सुरक्षा वर्दी के बल पर किया जाता हो। या गुजरात में आतंकियों ने किये और कराये हों, आखिर होते तो बलात्कार ही हैं। दिल्ली बस रेप काण्ड के बाद जहां गुलाम जनता सड़को पर आकर फांसी के प्रावधान की मांग कर रही है वहीं संसद में बैठे लोग भी फांसी की मांग करने लगे। बलात्कार की सजा फांसी हो यह मांग गुलाम हिनेस्तानी कर रहे हैं तो बात समझ में आती है लेकिन देश के खददरधारी या वर्दीधारी यह मांग करें तो बात हजम नहीं होती। ऐसी क्या मजबूरी है कि लोग अपनी ही करतूतों के खिलाफ ही कड़े कानून वह भी फांसी की सजा की मांग कर रहें हैं। दिल्ली बस गैंगरेप में ही ऐसी क्या खास बात है कि संसद से सड़क तक सभी बलात्कार की सजा फांसी की मांग करने लगे। बलात्कार तो बलात्कार है। कोई करे, कहीं करे, किसी से करे। जुर्म तो बराबर ही है। आज दिल्ली बस गैंगरेप को लेकर मालिक और गुलाम सभी चीखते दिख रहे हैं लेकिन कल जब गुजरात में आतंकियों ने दर्जनों मासूमों को बलात्कार का शिकार बनाया, कश्मीर में अकसर सुरक्षा बलों के लोग मासूमों का बलात्कार करते रहते हैं, मणिपुर में भी वर्दीधारी बलात्कार करते हैं। किसी की आवाज नहीं निकली, किसी ने आज तक फांसी तो बड़ी बात गिरफ्तारी तक की मांग नहीं की, क्यों ? क्या कानून सिर्फ गुलाम जनता के ही कुछ लोगों पर लागू होता है ? क्या सिर्फ दिल्ली बस काण्ड करने वालों ने ही गलत किया बाकी गुजरात कश्मीर, मणिपुर वगैरा में बलात्कार करने वाले सही हैं। उनके लिए क्यों किसी की हिम्मत नही होती फांसी की सजा की मांग करने की। आज बीजेपी कुलाचे भर रही है, गुजरात आतंकी हमले के समय तो खुद बीजेपी केन्द्र में काबिज थीक्यों नहीं देदी उन आतंकियों को फांसी ? अगर कांगे्रस की बात करें तो कांग्रेस तो उस समय ओकात पर थी लेकिन जैसे ही सरकार में पहुंची तो कांग्रेस ने सबसे पहले आतंकियों के मास्टर माइण्ड को सम्मान पुरूस्कार तो दिसया ही साथ ही अभयदान भी दिया। आज उसी कांग्रेस की सरकार बलात्कार की सजा फांसी की बात ही नही कर रही बल्कि बिल भी नचा रही है।
मांग अच्छी है और इसी तरह के सख्त कानून होना भी चाहिये। लेकिन कानून को पूरी तरह से अंधा होना चाहिये, कानून को अपराधी के पद, धर्म, उसके पहुंच या उसकी शक्ति और उसके देश को देखकर सजा या मज़ा का फैसला नहीं करना चाहिये जैसे कि भारत के दूसरे कानून करते रहे हैं। न्यायसंगत कानून का मतलब यह नहीं होना चाहिये कि संसद, विधानसभाओं, परिषदों, निगमों में बैठे खददरधरियों, गुजरात, मालेगांव, दरगाह अजमेर शरीफ, समझौता एक्सप्रेस हमलों के आतंकियों को दस्यों साल तक सरकारी खर्च पर पाले, सम्मान पुरूस्कार दे, हुकूमत करने में मदद करे और गुलाम जनता के किसी व्यक्ति को, उसकी नागरिकता उसके धर्म उसकी हैसियत पर हावी होकर चन्द दिनों के अन्दर ही सजा दे। अभी तक तो जितने भी कानून देखे गये हैं उनका यही हश्र होते देखा गया। मिसाल के तौर पर देखें कि 20-25 साल पहले जिन पाकिस्तानी महिलाओं ने भारत के पुरूषों से शादिया करके भारत में ही बस गयीं थी, उनके छोटे छोटे बच्चे हैं भारत के कानून ने उन्हें उनके बच्चों तक को छोड़कर देश से जाने पर मजबूर किया, वायोवृद्ध कैंसर से पीडि़त हवलदार खां को सिर्फ इसलिए बरेली में वर्षों तक सड़ाया गया उनका सही ईलाज तक नहीं कराया गया उनपर आरोप लगाया गया कि वे पाकिस्तानी है और वीजा अवधि समाप्त होने के बाद भी देश में रह रहे हैं यहां कुछ माह पहले उनकी मौत हो गयी ये सिर्फ इसलिए किया गया कि वे सभी महिलायें और स्व0 हवलदार खां मुसलमान थे जबकि इसके विपरीत गुजरे साल पाकिस्तान का एक देशद्रोही जाकि पाकिस्तान की सरकार में मंत्री था अपने देश पाकिस्तान से गददारी करने के लिए भारत आया यहां की सरकारों ने उसे सरकार महमान बनाकर रखा, उसकी वीजा अवधि की समाप्ती की कोई चिन्ता नही हुई उसे वापिस नहीं भेजा गया उसके बाद पाकिस्तान के सैकड़ों गददार इस वर्ष आये और उन्हें भी लम्बे समय से पाला जा रहा है, क्यों ? क्योंकि वे सभी हिन्दू हैं, उनपर वीजा कानून लागू नहीं होता जबकि इन पाकिस्तानी देशद्रोहियों ने भारत में ऐसी मनगंढ़तें सेनाकर भारत की शान्ति को भी पलीता लगाने की कोशिशें की। अगर बात करें आतंकवाद की तो भारत के कानून में मुसलमान एक दो गैरमुस्लिमों का कत्ल करे तो वह आतंकवादी, मुसलमान अपना हक और इंसाफ मांगे तो आतंकी लेकिन हिन्दू हजारों की संख्या में कत्लेआम करे तो वह माननीय, सम्मान व पुरूस्कार का हकदार। कस्साब ने कुछ लोगों की जाने लीं तो चन्द दिनों में ही सज़ाये मौत, कयोंकि वह मुसलमान था। आतंकी असीमानन्द, प्रज्ञा ठाकुर, विनय समेत गुजरात आतंकियों ने हजारों का कत्लेआम किया तो सम्मान व पुरूस्कार और सिंहासन, क्योंकि ये सभी मुसलमान नहीं हैं। गोधरा में की गयी साजिश की जांच नानावटी व रगंनाथ मिश्र आयोगों ने करके अपनी आख्याओं में मोदी की साजिशों को बेनकाब कर दिया, रगंनाथ मिश्र ने तो यह तक कहा था कि मोदी को हिरासत में रखकर मुकदमा चलाया जाना चाहिये। इन रिपोर्टों को मनमोहन सिंह सरकार ने दफनाकर मोदी को अभयदान जारी रखा, क्यों ? क्योंकि मोदी मुसलमान नही है यही साजिश अगर फारूख अबदुल्ला, या उमर अबदुल्ला ने की होती तो शायद वे अबतक फांसी पर झूल गये होते या कम से कम जेल में तो सड़ाये ही जा रहे होते।
अब देखिये वर्दी के सामने कानून की नामर्दी। बरेली के थाना सीबी गंज के पूर्व थानाध्यक्ष वीएस सिरोही ने एक पत्रकार परिवार से खुलेआम 20 हजार रूपये की फिरौती की मांग की इसकी शिकायतों समाचारों को पढ़ने के बावजूद सीओ से डीजीपी तक, सिटी मजिस्ट्रेट से मुख्य सचिव तक और गृहसचिव से प्रधानमंत्री तक पूरा साल गुजर जाने के बावजूद किसी की हिम्मत नही हो रही कि उसके खिलाफ मुकदमा तो दूर विभागीय कार्यवाही भी कर सके। जबकि जबकि पत्रकार को झूठा केस आजानी से बनाकर दर्ज कर दिया गया।
हमारी बात का मतलब यह नहीं कि बलात्कार के खिलाफ सख्त कानून न हो। कानून होना चाहिये। हम तो कहते हैं कि इस्लामी कानून को अपनाया जाये क्योंकि दुनिया के कानूनों में सिर्फ इस्लामी कानून ही एक ऐसा कानून है जिसके चलते अपराध होते ही नहीं अगर कोई गलती से कर भी दे तो उसकी सज़ा को देखकर दूसरे समय से पहले ही सुधर जाते हैं यह और बात है कि भारत और अमरीका के कुछ आतंकियों को इन सज़ाओं से मिर्ची लगती है।
दिल्ली बस काण्ड पर फांसी की सज़ा की मांग करने वालों से हमारा सवाल है कि सोचिये कि अगर फांसी की सज़ा का प्रावधान आया तो पार्लियामेन्ट, विधानसभाओं, निगमों, परिषदों का क्या होगा कौन बैठेगा ? सुरक्षा बलों की तादाद न के बराबर रह जायेगी। किर क्या होगा ? जाहिर है कि खददरधारी इस तरह का कानून पास नहीं कर सकते, करेंगे लेकिन इस तरह से कि उसका मर्दानगी सिर्फ गुलाम जनता तक ही होगी। खादी और वर्दी के सामने उसकी कोई औकात नहीं होगी।

Sunday 16 December 2012

मुसलमानों की आस्तीन का सांप काग्रेस


मुसलमानों की आस्तीन का सांप काग्रेस में चल रहे वशंवाद के तहत राजा, शहनशाह और नवाब खानदानों की तरह सिंहासन के उत्तराधिकारी पुत्र दर पुत्र ही होता था ठीक उसी तरह कांगे्रस में भी चल रहा है लोकतन्त्र का नाम ही मिट चुका है। जवाहरलाल लाल के बाद इन्दिरागांधी, इन्दिरा गांधी के बाद राजीव फिर सोनिया और अब राहुल। बस एक ही परिवार का कब्जा जमा हुआ है।  बाबरी मस्जिद के मामले में गददारी करने के बाद सोनिया गांधी ने अपने घडि़याली आंसू दिखाकर मुस्लिमों को धोका दिया। इस बार राहुल ने मुसलमानों को छलने की कमर कसी है। हमेशा की तरह इस बार भी कांग्रेस ने बिकाऊ मुल्लाओं से सौदा करना शुरू कर दी है जिन से सौदा पट चुकी है वे बहकाने लगे मुस्लिम वोटों को। अब मुसलमानों को किसी के बहकावे में आने से पहले सोचना होगा कि कांग्रेस का असली रूप क्या है। कुछ बाते हम याद दिलाते हैं। मोदी, भाजपा, शिवसेना वगैरह से बढ़ी मुस्लमान की दुश्मन है कांग्रेस। मोदी ,भाजपा शिवसेना, आरएसएस आदि तो मुस्लमानो और हिन्दुस्तान की खुली दुश्मन हैं कांग्रेस। मुस्लमानो के लिए कांग्रेस आस्तीन का संाप है। और यह हर आदमी जानता है व समझता है कि सामने के हजार दुश्मन से ज़्यादा खतरनाक होता है एक गद्दार । महाभारत में भी कृष्ण ने भी यही कहा था कि हजार सैनिको से अधिक घातक होता है अपना एक गद्दार मोदी ने सामने से मुसलमानो पर आंतक बरपाया था सेना जब तब हमले करती रहती है लेकिन कंग्रेस तो वह जहरीला सांप है जिसे मुस्लमान ही दूध पिलाते हैं और वह मुसलमान को ही डसती है 2002 में गोधरा में साजिश रचकर मोदी ने अपने सरकारी व गैर सरकारी आंतकियों के हाथों हजारो बेकसूर मुस्लमानो का कत्लेआम कराया उस समय दिल्ली में अटलबिहारी का कब्ज़ा था अटल जी आंखो पैरो से बेकार थे मतलब न तो उनकी आंखे खुलती हैं और नही घुटनो से अपने बल पर खड़े हो पाते इस मजबूरी में गुजरात में आंतकियों की करतूतो का खुलकर जश्न नही मना सके सिर्फ मन ही मन में गदगद होते रहे और अपनी आंखो और पैरों की मजबूरी के चलते उछल कूद न कर सके। अगर अटल जी या उनकी सरकार गुजरात आतंकवाद पर खुशी मनाती नाचती कुदती तो यह कोई चैकाने वाली बात नही होती क्योंकि सब एक ही गैंग के थे मगर जब यही काम कोई दूसरी पार्टी या सरकार करे तो यह गौरतलब बात है वो भी वह पार्टी या उसकी सरकार जो धर्मनिरपेक्ष होने का ढोंग करती है मुसलमानो के टुकड़ो के बल पर ही जीती हो जिसे सरकार तक पहुंचाते ही मुसलमान हों तो यह चैकाने वाली बात है और इसी करतूत को आसतीन का संाप कहा जाता है मुस्लमानो ने कांग्रेस के जन्म से ही कांग्रेस का साथ दिया और कंाग्रेस ने हर बार मुस्लमान से गद्दारी ही की है। पं0 जवाहर लाल नेहरू और तत्कालीन कंाग्रेस कमेटी ने प्रस्ताव पास किया कि प्रधानमंत्री ,रक्षामंत्री,व वित्तमंत्री की कुर्सी मुस्लमान को नही दी जायेगी उस समय कांग्रेस ने अपना यह जहर न उगला होता तो आज भारत दुनिया सबसे बड़ा और ताकतवर देश होता।
सत्तर के दशक में तत्कालीन कांग्रेसी प्रधानमंत्री स्व0 इंदिरा गांधी ने मुफ्तियों के फतवो के बावजूद जबरन नसबन्दी का अभियान चलाया इस अभियान में छांट छांट कर मुस्लमानो की ही जबरदस्ती नसबन्दियां की गयीं इसका नतीजा यह हुआ कि वर्ष 1978 के आम चुनावो ने ;लोकसभा व समस्त विधान सभाद्ध कांगे्रस को औकात पर लाकर खड़ा कर दिया क्योंकि उस समय देश के मुस्लमानो ने कांग्रेस का साथ छोड ़दिया था हालत ये हो गयी थी खुद इंदिरा की भी जमानत नही बचा सकी कांग्रेस। लेकिन फुटपाथ पर आने के बाद इंदिरा गांधी ने घडि़याली आंसू बहा बहा कर मुस्लमानो के सारे मरकज़ो मे हाथ पैर जोड़ने का नाटक किया चूंकि मुस्लमान बढ़े ही दयावान और मंाफ करन वाले होते हैं इसलिए इंदिरा को मंाफ करके फिर कुर्सी दे दी इस बार कंाग्रेस कोई हरकत करती कि परेशान सरदारों ने इंदिरा गांधी को कत्ल कर दिया इसके बाद राजीव गंाधी ने कुर्सी पर बैठते ही बाबरी मस्जिद में पूजा शुरू करा दी और आ गये फुटपाथ पर। फुटपाथ पर रहते हुए राजीव गंाधी ने एक ही अच्छा काम किया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ़द्वारा ईराक पर अमरीकी आतंकी हमलावरो के जहाजो के जो ईंधन दिया जा रहा था वह सख्त भाषा में रूकवा दिया इसके जवाब में अमरीका ने राजीव को मरवा दिया इसी बीच प्राधानमंत्री की कुर्सी नरसिम्हाराव के हाथ लग गयी नरसिम्हाराव ने गद्दारी और आतंक परस्ती की हदें ही पार करते हुए कल्याण से सांठगांठ करके बाबरी मस्जिद को शहीद करा दिया राव की इस करतूत के बाद मुस्लमानो एक बार फिर कंाग्रेस का साथ छोड़ दिया और कांगे्रस को औकात बात दी। इसके बाद कांग्रेस के पास काफी लम्बे वक्त तक नेहरू के परिवार का घडि़याली आंसू बहाने वाला कोई व्यक्ति सक्रिय राजनीति में नही था। इसी बीच कंाग्रेसियों नें सोनिया गंाधी को बोलना सिखाया और सोनिया को सक्रिय राजनीति में प्रवेश करा दिया। फिर सेानिया ने पारिवारिक परंपरा के मुताबिक घडि़याली आंसू बहाना शुरू कर दिये सीधी साधी मुस्लमाम कौम फिर आ गयी झांसे में और कांग्रेस को औकात से उठाकर केंन्द्र की सत्ता तक पहुंचा दिया इस बार तो कांग्रेस ने गद्दारी की हदें ही तोड़ दी पिछले हर बार तो कुछ दिन सत्ता में पैर जमाने के बाद रंग बदलती थी कांग्रेस, मगर इस बार तो सरकार बनाने से पहले ही गिरगिटी रंग बदल डाले। बाबरी को शहीद कराने की साजिश के बाद लगभग पन्द्रह साल तक औकात पर रही कांग्रेस को जब पिछली बार मुस्लमानो ने इज्जतदार बनाया तो सरकार बनाते समय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गंाधी ने खुद समर्थन पर बनने वाली सरकार का प्रधानमंत्री बनना पसन्द नही किया और अपनी इस सियासत को कामयाब करने के लिए बहाना किया कि अल्पसंख्यक को प्रधानमंत्री बनाना है बात अल्पसंख्यक की थी तो सोनिया के साथ ही उस समय कांग्रेस के पुराने वफादार मो0 आरिफ खां, गुलाम नबी आज़ाद, सलमान खुर्शीद ,फारूख अब्दुल्ला आदि भी खडे़ थे इन अल्पसंख्यको ंमे से कोई न दिखा सोनिया को, क्योंकि मुस्लमान को पीएम की कुर्सी न देने का फार्मूला खुद सोनिया परिवार व पार्टी का ही है। सोनिया ने बात सीधे कहना थी कि मुस्लमान के अलावा किसी को भी पीएम बनाना है खैर यह तो थी प्रधानमंत्री न बनाने की बात। सोनिया रिमोट से चलने वाली केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य सरकार ने मुस्लमानो के मुहं पर जो करारा तमांचा जड़ा उसके बाद तो कांग्रेस का पूरा असली रूप खुलकर सामने आ गया। 2002 में गोधरा मे साजिश रचकर नरेन्द्र मोदी ने हजारो बेगुनाह मुस्लमानो का जो कत्लेआम करया था मोदी की इस करतूत पर खुश हो रही कांग्रेस सरकार में आने के बाद अपनी खुशी को छिपा नही पाई और हजारों बेकसूर मुस्लमानो को कत्ल कराने से खुश केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य ;यूपीएद्ध सरकार ने नरेन्द्र मोदी को सम्मान और पुरस्कार देकर कत्लेआम पर अपनी खुशी काजश्न मनाया साथ ही पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा कराई गयी गोधरा साजिश की जांच रिर्पोट पर मोदी को बचाने के लिए उस रिर्पोट को दफ्न कर दिया 
फिलहाल मुस्लिम वोट के सौदागर मुसलमानों को अन्ना के आन्दोलन से दूर रखने की कीमत हासिल कर चुके है ओर तरह तरह से बड़गलाने में जुटे हैं। यह सच्चाई हम भी स्वीकार करते हैं कि अन्ना खुद भी मोदी के पुजारी हैं साथ ही अन्ना के साथ बीजेपी का खड़ा होना भी अन्ना की नियत और चाल को शक के दायरे में लाता है लेकिन यहंा दो खास वजह हैं जो मुस्लमानो को अन्ना के आन्दोलन में समर्थन करना चाहिये पहली यह कि इस समय सरकार कांग्रेस की है और कांग्रेस जन्म से ही मुस्लमानो की आस्तीन की संाप है इसलिए देश भर के मुस्लमानो को कांग्रेस को मिटाने की कोशिश करनी चाहिये इसके लिए चाहें मोदी के चाहने वाले अन्ना हजारे के साथ क्यों न खड़ा होना पड़े। दूसरी बात यह कि अन्ना के साथ हैं किरन बेदी यह एक ऐसा नाम और ऐसी हस्ती है जिनकी नियत पर शक किया ही नही जा सकता वोटों के सौदागरों को वक्त के तकाज़े को समझते हुए अपनी सलाह वापिस लेकर मुस्लमानो को कांग्रेस नामक सांप को दूध पिलाने से बचने की सलाह देनी चाहिए। साथ ही हर मुसलमान को सभी चुनावों के दौरान गुजरात आतंकवाद में कत्ल किये गये बेगुनाह बूढ़ो बच्चों, औरतों समेत हजारों मुसलमान लाशों को सामने रखकर फैसला करना होगा कि गुजरात में आतंकियों के हाथों किये गये मुस्लिम कत्लेआम पर खुश होकर इस आतंक व कत्लेआम के मास्टर माइण्ड को सम्मान व पुरूस्कार देने वाली कांग्रेस को वोट देने से अच्छा है कि चुपचाप घर में बैठे ओर वोट न दें। लेकिन सही तो यह है कि हर उस प्रत्याशी को वोट दिया जाये जो कांग्रेस को हराने की स्थिति में हो।   

Monday 12 November 2012

इनसे क्यों कांप रही है केन्द्र सरकार



अभी कुछ दिन पहले की ही बात है जब बरमा और असम में आतंकी बेगुनाह मसलमानों का कत्लेआम कर रहे थे और आतंकियों की इन करतूतों की तस्वीरें विश्वस्तरीय मीडिया के जरिये लोगों तक पहुंची उसपर सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आलोचनायें होने लगी तो इन आलोचनाओं से सबसे ज्यादा परेशानी और तकलीफ सोनिया नामक रिमोट से चलने वाली मनमोहन सिंह की कांग्रेस बाहुल्य केन्द्र सरकार को पहुंची। मुसलमानों के कत्लेआम की आलोचना या मुसलमानों की कर्राहट से सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को तकलीफ पहुंचना भी चाहिये कयोंकि यह वही मनमोहन सरकार है जिसने कुर्सी मिलने के साथ ही गुजरात आतंकवादियों के हाथों किये गये बेगुनाह मुसलमानों के कत्लेआम पर खुश होकर गुजरात आतंकवाद के मास्टर माइण्ड को सम्मान व पुरूस्कार दिया। साथ ही कई आयोगों की रिपोर्टों को दबाकर इस मास्टरमाइण्ड को आजतक अभदान भी दे रखा है।
बरमा और असम आतंक की आलोचनाओं पर मनमोहन सिंह सरकार ने कूदना शुरू कर दिया सोशल नेटवर्किंग साईटों पर रोक लगाने के लिए भी हाथ पैर फेंके लेकिन आज जब कि फेसबुक जैसे साईट पर कुछ आतंकी दल्ले खुलेआम आतंक की धमकियां लिख रहे है। मुसलमान और इस्लाम के लिए अपशब्दों का प्रयोग करके अपने गन्दे खून और नसल का परिचय दे रहे है तो मनमोहन सिंह सरकार के कान तले जंू नहीं रेंग रही। इसका एक ही कारण है कि ये सब नीचता से केन्द्र सरकार को खुशी मिल रही है हमें तो यह भी लगता है कि ये आतंकी केन्द्र सरकार की इच्छा पर ही अपनी तुच्छ नसल का परिचय दे रहे हैं। इसका सबसे बड़ा सबूत यह ही है कि लगभग महीने भर से आतंकी देश का तबाह करने की खुलेआम धमकियां लिख रहे है और आजतक इसपर केन्द्र सरकार के कान तले जूं नहीं रेंगी। साथ ही अमरीका और गुजरात के एजेंन्ट मीडिया के उन धड़ों को भी ये धमकियां नहीं चुभ रही जिनके पास कश्मीर से ईमेल आती हैं जो तमाम धमाकों की आवाजें सुनने से पहले ही धमाका करने वालों के नाम बताने के एक्सपर्ट है।
अगर केन्द्र सरकार और मीडिया के कथित धड़ों की चुप्पी को बारीकी से देखा जाये तो इनका दुम दबाये रखना जायज है क्योंकि सभी को अपनी जान बचाने का हक है अगर इन आतंकियों की धमकियों के खिलाफ मुंह खोला तो हो सकता है कि शहीद हेमन्त करकरे जैसा हाल हो। हेमन्त करकरे ने देश के असल आतंकियों को बेनकाब किया तो उनकी हत्या कर दी गयी उसका इलजाम भी कस्साब के सिर मंड दिया गया।
हमें तो उन मुसलमानों पर शर्म आती है जो आज भी चन्द टुकड़ों के लिए अपना इमान बेचकर आतंक परस्त कांग्रेस के साथ है।

Wednesday 31 October 2012

‘‘यूपी नरेश’’ से गुलामों का सवाल

इन्हें कौनसा हैल्मेट पहनायेंगे महाराज ‘‘यूपी नरेश’’ जी ?


तानाशाही के बल पर हैल्मेट बिकवाने की कवायद

          सूबे में जब जब सपा की सरकार बनी तब तब हैल्मेट का भूत बाहर निकल आया और इस भूत के बाहर निकलने के साथ ही वर्दी की कमाई में भी खासा इजाफा हो जाता है। इन दिनों फिर यह भूत लखनऊ से चलकर सूबे की गुलाम जनता को गुलामी टैक्स भरने पर मजबूर करने के लिए अपनी डरावनी शक्ल दिखाने लगा। इस बार शासन ने अपने दामन को आरोपों से बचाये रखने के लिए वर्दी को उगाही की छूट देने वाले अपने निर्देश में यह जरूर कहा है कि ‘‘वर्दी वाले भी लगायेगें हैल्मेट’। दरअसल सपा के एक कददावर नेता की लोकल क्वालिटी के हैल्मेट बनाने वाली फैक्ट्री है और इस फैक्ट्री के हैल्मेट बिकवाकर अपने नेता को मोटी कमाई कराना सपा मुखिया और सूबे के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है इसलिए सपा की सरकार आते ही सूबे में हैल्मेट का प्रकोप बढ़ जाता है इस बार तानाशाही के बल पर गुलाम जनता को हैल्मेट खरीदने पर मजबूर किये जाने की कोशिश है सरकार ने कल कहा कि बिना हैल्मेट पैट्रोल नही मिलेगा। दरअसल देश की खादी और खाकी अच्छी तरह जानती है कि जनता गुलामी में जी रही है जैसा मन करे गुलामों को नचाया जा सकता है। अन्याय विवेचक अखिलेश यादव से पूछना चाहता है कि तीन बार उनके पिता और अब सात माह की उनकी अपनी सरकार में सूबे के कितने रोड ऐसे बनाये गये जहां कोइ्र भी वाहन (खासकर निजि वाहन और ट्रक तेज गति से चल सकते हों ? सूबे भर की सड़को की हालत यह है कि उनपर चलना ही मुश्किल है तेज गति से दौड़ना तो दूर की बात है।
वैसे भी वर्दी पर कानून लागू नही होता। देश का हर कानून और नियम केवल शरीफो गरीबों की जिन्दगी गुजारने वाले गुलामों पर ही लागू होता है। यहां हम कई सारे उदाहरण दे रहे हैं। पहला सूबे के वर्दी वालों में चालीस फीसद जिन वाहनों का प्रयोग करते हैं उनके कागज नहीं होते, ये वाहन या तो चोरी के होते है या फिर लावारिस बरामद हुए होते हैं। लाखों बार हर मोड़ पर कारों व दुपहिया वाहनों की रोज चैंकिग होती है आजतक किसी वर्दी वाले से नहीं पूछा गया कि जिस वाहन पर सवार हो उसके पेपर हैं या नही या किसकी है वाहन। खुलेआम धड़ल्ले से दौड़ाते हैं वर्दी वाले वाहन। गुजरे विधान सभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने कारों की सघन चैंकिग करके धन प्रयोग पर रोक लगाने के साथ ही कारों से अवैघ हूटर भी नुचवाये। पुलिस ने बड़ी लगन से चैकिंग की कारों की तलाशिया ली हूटरों के साथ साथ बैक गियर बजर व सैन्टर लाक सिस्टम तक नोच लिये लेकिन उन कारों को नहीं रोका जिनपर पुलिस लिखा था या पुलिस का निशान बना था या फिर उसमें कोइ्र वर्दी वाला बैठा था। कुछ उम्मीदवारों ने भी इसका पुरा फायदा उठाया, जिसे मोटी रकमें लेकर चलना था उन्होंने किसी न किसी पुलिस वाले के वाहन का प्रयोग किया और रकम सकुशल व सुरक्षित तरह से ठिकाने तक ले गये।
बरेली में पूर्व एसएसपी ने चीता मोबाइल (सरकारी मोटर साइकिलों) पर हूटर लगवाकर अपने मातहतों की हनक में इजाफा किया। एसएसपी ने तो केवल सरकारी मोटर साईकिलों पर हूटर लगाने का आदेश किया लेकिन लगा लिये गये निजि बाइको पर भी। बरेली में ही कम से कम दर्जन भर पुलिस वालों की मोटर साईकिलों पर दो तीन साल से न तो नम्बर ही लिखाये गये है और हूटर सभी पर लगाये गये है इन बाईको से उगाही का काम किया जा रहा है।
इन दो तीन उदाहरणों को देखने के बाद सरकार के इस फरमान पर किस तरह भरोसा किया जा सकता है। दरअसल अखिलेश यादव ने सिार्फ मीडिया में सरकार की छीछे लेदर होने से बचने के लिए यह बात कही है। वह भी उस काम को करने की जो खुद मुख्यमंत्री भी नहीं कर सकते।
दूसरी तरफ अगर गुजरे विस चुनावों में सपा को उम्मीद से ज्यादा सीटें मिलीं थी तो अगले लोक लोकसभा और विधान सभा चुनाव सपा के पतन की दास्तान भी लिखते नजर आ रहे है क्योंकि तानाशाही ने ही मायावती और कांग्रेस का सफाया कराया है।             

Thursday 25 October 2012

कौन करेगा दरोगाओं की चैकिंग


सूबे में जब जब सपा की सरकार बनी तब तब हैल्मेट का भूत बाहर निकल आया और इस भूत के बाहर निकलने के साथ ही वर्दी की कमाई में भी खासा इजाफा हो जाता है। अभी दो दिन पहले फिर यह भूत लखनऊ से चलकर सूबे की गुलाम जनता को गुलामी टैक्स भरने पर मजबूर करने के लिए अपनी डरावनी शक्ल दिखाने लगा। इस बार शासन ने अपने दामन को आरोपों से बचाये रखने के लिए वर्दी को उगाही की छूट देने वाले अपने निर्देश में यह जरूर कहा है कि ‘‘वर्दी वाले भी लगायेगें हैल्मेट’। अखिलेश यादव सरकार के इस निर्देश पर हंसी आने के साथ ही तआज्जुब भी होता है अजीब बात है जो कभी सम्भव ही नही उस काम को करने की बात कर रही है सरकार। पुलिस वाले भी लगायेगे हैल्मेट, क्या बात है कौन करेगा चैकिंग? किस की हिम्मत है जो रोककर चैक करे? क्या सरकार हर मोड़ पर आईपीएस अफसरों को तैनात करके चैकिंग करायेगी या फिर मजिस्ट्रेटों से चैकिंग करायेगी जिससे कि गुलाम जनता के साथ ही वर्दीधारियों को भी चैक किया जायेर्गा जाहिर सी बात है कि ऐसा कुछ करने की हिम्मत सरकार नहीं कर सकती। गुलाम जनता से उगाही का काम तो वर्दी से ही कराया जाता है वाहनों की चैकिंग करके उगाही करने का काम भी वर्दी पर ही है। अब कल्पना कीजिये कि एक वर्दी वाला दूसरे वर्दी वाले को हैल्मेट न होने पर चालान या जुर्माना कैसे कर सकता है।
वैसे भी वर्दी पर कानून लागू नही होता। देश का हर कानून और नियम केवल शरीफो गरीबों की जिन्दगी गुजारने वाले गुलामों पर ही लागू होता है। यहां हम कई सारे उदाहरण दे रहे हैं। पहला सूबे के वर्दी वालों में चालीस फीसद जिन वाहनों का प्रयोग करते हैं उनके कागज नहीं होते, ये वाहन या तो चोरी के होते है या फिर लावारिस बरामद हुए होते हैं। लाखों बार हर मोड़ पर कारों व दुपहिया वाहनों की रोज चैंकिग होती है आजतक किसी वर्दी वाले से नहीं पूछा गया कि जिस वाहन पर सवार हो उसके पेपर हैं या नही या किसकी है वाहन। खुलेआम धड़ल्ले से दौड़ाते हैं वर्दी वाले वाहन। गुजरे विधान सभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने कारों की सघन चैंकिग करके धन प्रयोग पर रोक लगाने के साथ ही कारों से अवैघ हूटर भी नुचवाये। पुलिस ने बड़ी लगन से चैकिंग की कारों की तलाशिया ली हूटरों के साथ साथ बैक गियर बजर व सैन्टर लाक सिस्टम तक नोच लिये लेकिन उन कारों को नहीं रोका जिनपर पुलिस लिखा था या पुलिस का निशान बना था या फिर उसमें कोइ्र वर्दी वाला बैठा था। कुछ उम्मीदवारों ने भी इसका पुरा फायदा उठाया, जिसे मोटी रकमें लेकर चलना था उन्होंने किसी न किसी पुलिस वाले के वाहन का प्रयोग किया और रकम सकुशल व सुरक्षित तरह से ठिकाने तक ले गये।
बरेली में पूर्व एसएसपी ने चीता मोबाइल (सरकारी मोटर साइकिलों) पर हूटर लगवाकर अपने मातहतों की हनक में इजाफा किया। एसएसपी ने तो केवल सरकारी मोटर साईकिलों पर हूटर लगाने का आदेश किया लेकिन लगा लिये गये निजि बाइको पर भी। बरेली में ही कम से कम दर्जन भर पुलिस वालों की मोटर साईकिलों पर दो तीन साल से न तो नम्बर ही लिखाये गये है और हूटर सभी पर लगाये गये है इन बाईको से उगाही का काम किया जा रहा है।
इन दो तीन उदाहरणों को देखने के बाद सरकार के इस फरमान पर किस तरह भरोसा किया जा सकता है। दरअसल अखिलेश यादव ने सिार्फ मीडिया में सरकार की छीछे लेदर होने से बचने के लिए यह बात कही है। वह भी उस काम को करने की जो खुद मुख्यमंत्री भी नहीं कर सकते।

Friday 14 September 2012

चम्बल से आकर दिल्ली में बस गये-किरदार सब वही हैं ठिकाने बदल गये।

        नई दिल्ली-सोनिया नामक रिमोट से चलने वाली केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य मनमोहन सिंह सरकार देश को अमरीका गुट का गुलाम बनाने की कोइ्र कोशिश बाकी नहीं छोड़ रही। केन्द्र सरकार हर कदम ऐसे काम कर रही है कि गरीब तबके की गुलाम जनता गरीबी से निकल कर भिकारी बन जाये। जाहिर सी बात है कि जब गरीब की मजदूरी में उसके बच्चों को रोटी नही मिलेगी तो वह चोरी चकारी करने पर मजबूर होगा ही। साथ ही केन्द्र सरकार पूंजी पतियों को मालामाल करने की कोशिश में भी कोई कसर बाकी नही रख रही। पूंजीपतियों पर इतना महरबान होने का सीधा सा एक ही कारण दिखाई पड़ता है और वह है कमीशन। राजमार्गों पर हफता वसूली के लाईसेंस देने के साथ ही सरकार के पेट्रोलियम मंत्रालय ने गुलामों को लुटवाने के लिए फिर डीजल के दामों में भारी बढ़ोतरी की है। सरकार ने डीजल के दाम 5 रुपए प्रति लीटर बढ़ा दिए हैं। बढ़े दाम आज आधी रात से लागू होंगे। इतना ही नहीं रसोई गैस पर कोटा सिस्टम भी लगा दिया गया है। अब साल में केवल छह सिलिंडरों पर सबसिडी मिला करेगी। अब एलपीजी के नाम पर हर महीने लूट करने की योजना भी है। डीजल की कीमत बढ़ने से महंगाई और बढ़ने से गरीब की बची खुची रोटी भी छिनना तय है जोकि सरकार चाहती ही है। बेहयाई की हद तो यह है कि गुजरे विधानसभा चुनावों में उ0प्र0 समेत तीन राज्यों की गुलाम जनता ने कांग्रेस को उसकी औकात बतादी फिर भी कांग्रेस लूटमार बन्द नहीं कर रही।
दरअसल कांग्रेस अच्छी तरह जानती है कि 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में गुलाम जनता कांग्रेस को औकात पर भेज देगी इसलिए कांग्रेस की सोच है कि औकात पर आने से पहले ज्यादा से ज्यादा लूट लिया जाये। पेट्रोलियम मंत्रालय ने गुरुवार को डीजल के दाम प्रति लीटर 5 रुपए बढ़ा दिए हैं। सरकार ने एलपीजी पर भी कोटा सिस्टम लगा दिया है। अब साल भर में सिर्फ 6 सिलिंडरों पर ही आपको सब्सिडी मिल पाएगी। सातवां सिलिंडर बाजार मूल्य पर यानी 746 रुपए में मिलेगा। सरकार ने केरोसिन के दामों में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। बढ़ी हुई कीमतें आज आधी रात से लागू होंगी। सरकार ने पेट्रोल की कीमतों को बढ़ोतरी से अलग रखा है और इसके दाम नहीं बढ़ाए जाएंगे। ऐसी संभावना पहले से ही जताई जा रही थी कि सरकार मॉनसून सत्र खत्म होने के तुरंत बाद ही डीजल के दामों में बढ़ोतरी करेगी और सरकार ने ऐसा कर ही दिया।

Monday 10 September 2012

संयुक्त शिक्षा निदेशक की मौजूदगी में 10-12 के फार्म ब्लेक -- राजकीय इन्टर कालेज की करतूत


बरेली- राजकीय इन्टर कालेज में आज शिक्षक संघ का सम्मान कार्यक्रम था। मुख्य अतिथि के रूप में संयुक्त शिक्षा निदेशक भी मौजूद थे। सभी अपने अपने मजे में मस्त थे साथ ही कालेज के मुख्य द्वार के करीब ही एक खिड़की पर सैकड़ों अभियार्थी कड़ी धूप में लाईन लगाये खड़े थे कारण था 10 वीं और 12 वीं व्यक्तिगत परीक्षा के फार्म बांटे जा रहे थे। बाहर लम्बी लाईन में खड़े अभियार्थियों के अलावा कुछ लड़के पीछे के दरवाजे से जाते और तुरन्त फार्म लेकर चले जाते। पिछले दरवाजे से फार्म लाते देखकर अन्याय विवेचक प्रतिनिधि ने जाकर देखा तो पाया कि 30 रूपये अलग से देने वालों के लिए यह सुविधा दी जा रही है। हमारे प्रतिनिधि ने अभियार्थी बनकर पिछले दरवाजे पर जाकर फार्म की मांग की जिसपर अन्दर से दरवाजे पर आने वाले व्यक्ति ने 30 रूपये और चालान फार्म मांगा। इसी बीच कुछ अन्य पत्रकार भी पहुंच गये जिनमें से दो पत्रकारों ने छात्र बनकर ही उन अभियार्थियों से बात की जो पिछले दरवाजे से फार्म ले रहे थें सभी ने एक स्वर में कहा कि सुबह 9 बजे से बाहर लाईन में खड़े थे थक गये तो 30 रूपये देकर फार्म ले लिया। इसके बाद पत्रकारों ने सभा में बैठे संयुक्त शिक्षा निदेशक से इस बाबत बात करना चाही तो कार्यक्रम की मस्ती में चूर निदेशक ने सारी बात सुनने के बाद मुंह में ताला डाल लिया, कई कई बार पूछे जाने पर भी निदेशक ने मुंह नहीं खोला लेकिन पत्रकारों के सवालों से निदेशक को पसीना अवश्य छूट गया।

सम्बंिन्धत बड़े अफसर की मौजूदगी में सरकारी फार्म की खुलेआम ब्लेक और रिश्वत खोरी साथ ही निदेशक की खामोशी और घबराहट में पसीना छूट जाने तो यह बताता है कि फार्मो की ब्लेक और रिश्वत खोरी इन महाशय की इच्छानुसार ही हो रही है। वैसे भी देखा गया है कि सपा सरकार में सरकारी मशीनरी खासतौर पर अफसरान को कोई डर नहीं होता। अफसरान को अपनी कुर्सी की चिन्ता केवल माया राज में ही होती है।

Monday 3 September 2012

चोरों की मदद कर रहा है सीबी गंज उपकेन्द्र

            बरेली-थाना सीबी गंज के गांव अटरिया, महेशपुरा, बिधौलिया वगैराह में इन दिनों चोरों की बल्ले बल्ले हो रही है। थाना क्षेत्र के लगभग आधे से ज्यादा गांवों में उचक्के हर रात कहीं न कहीं हाथ साफ कर रहे हैं। दरअसल सीबी गंज विद्युत उपकेन्द्र इन चोरों पर खासा महरबान है। बेवजह ही घण्टों तक सप्लाई बन्द करके चोरों को चोरी का मौका दिया जा रहा है। जाहिर सी बात है कि आधी रात से ज्यादा समय तक सप्लाई बन्द रहने से क्षेत्र के लोग सही से सो नहीं पाते और जब सप्लाई चालू की जाती है तो दिन भर मेहनत करके आधी रात तक जाग कर गुजारने वाले मनुष्य को बेखबरी की नीन्द आना स्वभाविक है बस इसी समय चोर हाथ साफ कर देते हैं।

Saturday 1 September 2012

सपा सरकार मतलब पुलिसिया बेगार का राज ‘‘सैयां भये कोतवाल तो गम काहे का’’


    सूबे में जब जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तब तब पुलिस ने गुलाम जनता से बेगार कराने को अपना अधिकार मान लिया। बीच में पांच साल मायाराज राज रहा तो कम से कम गुलाम जनता पुलिस की बेगार करने से बची रही। अब फिर सपा सरकार में आ गयी तो पुलिस ने गुलामों से बेगार करानी शुरू कर दी।
    आज बरेली में तैनात एक पुलिस अफसर के किसी रिश्तेदार की मौत हो गयी उसके रिश्तेदारों को शमशान भूमि तक जाना था गर्मी बहुत थी ऊपर से शमशान भूमि की दूरी भी ज्यादा थी। जिसका रिश्तेदार पुलिस अफसर हो तो वे पैदल क्यों चलें, यह और बात है कि अपनी कार खरीदने की हैसियत नहीं है। लेकिन एक रिश्तेदार पुलिस अफसर हो तो गाडि़यों की लाईन लगना तसय है वह भी बिल्कुल फ्री में। बस क्या देर थी कोतवाली वायरलैस आया सिपाही दौड़े ओर टैक्सी स्टैण्ड पर खड़ी कारों को ले गये कोतवाली वहां से गुलामों को मालिकों की खिदमत में पहुंचकर सेवा करने का आदेश मिला। बेचारे गुलाम लोग। भारत में रहना ही है तो देश की मालिक वर्दी के हुक्म को कैसे टाल सकते हैं। सुबह से शाम तक कराई गयी बेगार।

Saturday 25 August 2012

क्या यह भी पाकिस्तानी साजि़श है गृह सचिव जी?

22 अगस्त को बीबीसी के न्यूज़ पोर्टल पर खबर आई कि ‘‘असम में लोगों ने रेल की एक बोगी पर कब्जा करके उसमें बैठे लोगों की पहचान करके मुसलमानों को चलती रेल से नीचे फेंक दिया’’। यह खबर बीबीसी ने दी है। बाकी की खबरों को तो केन्द्रीय गृह सचिव पाकिस्तान की साजिश करार दे दिया अब इस खबर को किसकी साजिश कहेंगे श्रीमान जी। क्या बीबीसी जैसे जिम्मेदार और बड़ी संस्था भी पाकिस्तान के इशारे पर झूठी खबरे देने लगी है? क्या बीबीसी की साईट पर पाकिस्तान को कुछ भी अपलोड करने का अधिकार है? जाहिर है कि नहीं। यह एक सच्चाई है जो बीबीसी ने दुनिया को दिखाई। अब क्या कहेगी सरकार, आईबी, केन्द्रीय गृह सचिव और अमरीका व गुजरात पोषित मीडिया धड़े? क्या है यह इसे क्या नाम देंगे। इसे आतंकवाद कहने की तो जुर्रत नहीं है। क्या नाम देंगे इस आतंक को ‘आपसी झगड़ा या चुनावी रंजिश, या फिर पैसे का लेनदेन? कोई तो नाम देना ही होगा। तीन दिन गुजर गये अभी तक आतंकियों के नाम सामने नही आये, न सरकार व जांच एजेंसियों ने नाम बताये और न ही मीडिया न जिम्मेदारों की घोषणा की, क्यों, क्या डर लग रहा है? डर लगना स्वभाविक भी है देखिये न शहीद श्री हेमन्त करकरे ने भी आतंकियों को बेनकाब करने की गलती की थी क्या मिला उनको, भरी जवानी में मौत।
असम में किये जा रहे मुस्लिमों के कत्लेआम की खबरों को केन्द्रीय गृह सचिव ने आसानी से पाकिस्तानी साजिश करार दे दिया तो क्या बीबीसी भी साजिश में शामिल है? सबसे ज्यादा चैकाने वाली बात यह है कि पाकिस्तान जैसे दुश्मन देश से आने वाले एजेंटों को सरकार महमान की तरह पाल रही है ये पाकिस्तानी एजेंट आते तो हैं तीर्थ यात्रा के वीजे पर और यहां वीजा समाप्त होने के बाद भी सरकारी महमान बने रहते है। भारत में होने वाली छोटी से छोटी अपराधिक घटना को पाकिस्तान की साजिश करार देने वाली भारत की सरकारें, आईबी और अमरीका व गुजरात पोषित मीडिया पाकिस्तानी एजेंटों को भगवान मानकर पूजा करती नजर आ रही है। अब जब कि असम आतंक की खबरें फैली तो तुरन्त उसे पाकिस्तान पर थोंपते हुए काफी साईटों को ब्लाक करने का इरादा भी जाहिर कर दिया गया। जबकि इसी दौरान फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साईट पर खुलकर भड़काने का काम बादस्तूर जारी है आजतक इनपर किसी के कान तले जूं नहीं रेंगी। हां अगर खलबली पड़ी तो इस बात से कि असम में हो रही आतंकियों की करतूतों की खबर कैसे फैल रही है, इसे कैसे रोका जाये। केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य सरकार और उसकी मशीनरी को कोई तरकीब नहीं सूझी तो पाकिस्तान का नाम लेकर ही इन्टरनेट सेवाओं को बन्द करने की जुगाड़े लगाने के साथ साथ मोबाईल धारकों पर भी गैरकानूनी मनमाना आदेश लागू कर दिया।
इन सब कारनामों के बाद सवाल यह पैदा होता है कि ‘‘जब हमें पता है कि पाकिस्तान हमारे खिलाफ साजिशें करता रहता है तो फिर हम पाकिस्तान से आने वाले पाकिस्तानी एजेंटों को महीनों से क्यों पाल रहे हैं? क्यों आने दिया जा रहा है इन एजेंन्टों को, और क्यों उगलने दिया जा रहा है जहर? तीर्थयात्रा का वीजा लेकर आने वालों को इधर ऊधर क्यों घमने दिया जा रहा है, क्यों प्रेस कांफ्रेसें करने दी जा रही हैं? और उनकी मनगढ़न्तों को क्यों उछालने दिया जा हरा है? पाकिस्तानी हैं इनपर क्यों विश्वास करा जाये। क्या सिर्फ इसलिए कि ये हिन्दू हैं? अगर ऐसा है तो साफ हो जाता है कि भारत की सरकारों, सचिवालयों और कथित मीडिया को पाकिस्तान से एलर्जी नहीं एलर्जी सिर्फ मुसलमान से है।
‘बरमा’ एंव ‘असम’ आतंक की खबरें अमरीका व गुजरात पोषित मीडिया धड़े प्रकाशित व प्रसारित करके अपने आकाओं के गुस्से का शिकार बनना नहीं चाहते। जिसपर गुलाम जनता के लोगों ने ही इन्हें आगे बढ़ाना शुरू कर दिया जोकि केन्द्रीय गृह सचिवालय को काफी नागवार गुजर रहा है के0गृह सचिव ने आनन फानन में ऐसे सभी एकाउन्ट ओर साईटें बन्द कराना शुरू कर दीं जिनपर असम व बरमा के आतंक के शिकार लोगों के जख्म दिखाई दे रहे हैं, एक कहावत है कि ‘‘ज़बर मारे और रोने भी न दे।’’ गौरतलब पहलू यह है कि असम व म्यांमार के आतंक की खबरों को के0गृह सचिव ने अफवाह मान लिया तो उन अपलोड पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही जिनमे लावारिस लाशों की तस्वीरों के साथ साफ शब्दों में लिखा जा रहा है कि ‘‘इसे देखकर जिस हिन्दू का खून न खौले वह हिन्दू नहीं......है।
’’
दूसरी बात चलिये मान लेते हैं कि बरमा और असम से जुड़ी तस्वीरें पाकिस्तान की साजिश है तो असम व बरमा का सच क्या है यह केन्द्रीय गृह सचिव क्यों नहीं बता रहे?
कुल मिलाकर दो बातें साफ तौर पर सामने आ गयी हैं।
1 भारत की सरकारों, सरकारी मशीनरियों, और मीडिया को पाकिस्तान से कोइ्र परेशानी नहीं सारी परेशानी एलर्जी सिर्फ मुसलमान से है।
2 भारत के संविधान की धर्मनिर्पेक्षता सिर्फ किताबों और भाषणों तक ही सीमित है वास्तविक रूप में मुस्लिम विरोधी है।
3 मारना वाला मुसलमान हो तो आतंकी और मरने वाले मुसलमान हों तो मारने वाला माननीय। यह है कानून का सच या फिर सरकारों का असल रूप।
4 अगर मुसलमानों के कत्लेआम पर आह करने पर पाबन्दी के लिए ‘‘अभिव्यक्ति की आजादी’’ को कुचला जा सकता है। मुसलमानों को बदनाम करने के लिए बेबुनियादी प्रचार करके भड़काने की पूरी छूट।

Tuesday 21 August 2012

नफरत बढ़ाने वालों की सरकारी महमान नवाज़ी-इमरान नियाज़ी

                     गुजरे तीन चार हफतों के दरमियान पाकिस्तान से तीर्थ यात्रा का वीजा लेकर भारत आने वाले लोग मनगढ़त कहानियां सुनाकर भारत में जन्म से ही रह रहे मुसलमानों को परेशान करने की कोशिश में जुटे हैं। इनके ड्रामें को गुजरात व अमरीका पोषित मीडिया मसाले दार बनाकर लोगों को भड़काकर मुस्लिमों पर हमले कराने में जुट गयी है ये मीडिया के वही धड़े है जिन्हें आसाम, और बरमा में हो रही आतंकी कर्तूत नहीं दिख रही। हिन्द पाक के बीच नफरत की खाई को बढ़ाने की कोशिश करने वाले पाकिस्तानी देशद्रोहियों की भारत की कांग्रेस सरकार खातिर दारी में लगी है। मीडिया के कथित धड़े इन पाकिस्तानियों के नाटकीय कहानियों को खूब मिर्च मसाले के साथ पेश कर रहे हैं। अब सरकार ने भी पाकिस्तानियों की हिमायत की तरफदारी करना शुरू कर दी।
                      याद दिलादें कि यह भारत का वही धर्म निर्पेक्ष संविधान के नाम से मशहूर संविधान है कि जो पाकिस्तानियों को आतंकी बताता है पाकिस्तानी महिलाओं को उनके बच्चे छोड़कर जाने पर मजबूर करता रहा है। गुजरे आठ महीने के दौरान वहीं संविधान पाकस्तिानी देशद्रोहियों को सरकारी खर्च पर पालने में जुटा है। लगभग सात महीने पहले पाकिस्तान सरकार का एक देशद्रोही जोकि पाकिस्तान सरकार में मंत्री भी था वह भागकर भारत आया और उसने यहां लोगों को भड़काना शुरू कर दिया, भारत के कानून ने इसको गोद ले लिया और सरकारी महमान बनाकर पालने लगी।
                      आपको यह भी याद दिलादें कि बीसों साल पहले भारतीय पुरूषों से शादिया करके रह रही पाकिस्तानी महिलाओं को उनके नन्हें नन्हें बच्चों को छोड़कर पाकिस्तान जाने पर मजबूर किया जाता रहा है। लेकिन उसी पाकिस्तान से आने वाले गद्दारों को सरकारी महमान बनाकर रखा जा रहा है। मुस्लिमों पर जुल्म की बात को भड़काऊ कहा जाता है जबकि सोशल नेटवर्किंग साईटों व कथित मीडिया के जरिये लोग किसी भी लावारिस लाश का फोटो लगाकर लिखते हैं कि ‘‘इसको देखकर जिस हिन्दू का खून न खौले वह खून नहीं पानी है’’। इसी तरह की सैकड़ों तस्वीरें और टिप्पणियां अपलोड की जा रही हैं, ऐसा भी नहीं कि यह हरकतें सिर्फ संघ, विहिप या भाजपा के लोग ही करते हो बल्कि समाजवादी पार्टी, कांग्रेस के लोग भी खुलेआम कर रहे हैं। आजतक किसी पर भी किसी तरह कोई अंकुश नहीं लगाया गया। न ही किसी सचिवालय को एतराज हुआ न ही मंत्रालय को कोई आपत्ति हुई। क्या म्यामार या असम में मुसलमानों का कत्लेआम नही किया जा रहा, क्या गुजरात में आतंकियों ने बेगुनाहों का कत्लेआम नहीं किया? क्या सभी बातें पाकिस्तान की साजिशी अफवाह हैं? अगर ये सारे कत्लेआम पाकिस्तान की साजिशी अफवाहें है तो सच क्या है केन्द्रीय गृह सचिव सबूत के साथ देश के मुसलमानों को बतायें कि म्यांमार असम का सच क्या है। अगर मान लिया जाये कि असम और मयांमार में कत्लेआम नहीं (गृहसचिव के कथनानुसार) हो रहा तो ठीक है गुजरात में आतंकियों की कर्तूतों से तो इंकार नहीं कर सकते केन्द्रीय गृह सचिव। क्या किया उन्होंने गुजरात आतंकियों के खिलाफ? यही न कि नानावटी आयोग और मिश्र आयोग की रिपोर्टों पर भी कोई अमल नहीं किया गया आजतक। जब सोशल नेटवर्किंग साईटों पर मौजूद बरमा व असम की तस्वीरें एंव वीडियो देखे तो वे तस्वीरें और लेख भी जरूर देखे होंगे जिनमें लिखा गया है कि ‘‘इसे देखकर जिस हिन्दू का खून न खौले वह खून नही पानी है।’’ क्या कार्यवाही की ऐसे भड़काने वालों के खिलाफ?
                      दरअसल यह साबित हो चुका है कि भारत के नेताओं, सरकारी मशीनरी को पाकिस्तान से कोई नफरत नहीं है। नफरत मुसलमान से है। जिसका सबूत यह है कि उन पाकिस्तानी औरतों को उनके बच्चों तक को छोड़कर जाने पर मजबूर किया जाता है जो बीसों साल पहले यहां शादियां करके रह रही हैं, एक 80 वर्षीय वृद्ध को पाकिस्तानी बताकर यह कहकर कई साल तक जेल में सड़ाया गया कि वह वीजा अवधि खत्म होने के बाद भी आजतक रह रहा था यहां तक कि गुजरे महीने उसकी जेल में ही मौत हो गयी। जबकि पाकिस्तान से सात आठ महीने पहले पाकिस्तान से वहां का एक देशद्रोही भागकर आया जोकि वहां की सरकार में मंत्री भी था उसे आजतक बादस्तूर सरकारी महमान बनाकर खातिर की जा रही है, और अब तीर्थ यात्रा करने आने वालों की कहानियों को सरकारी तौर पर भी तूल दिया जा रहा है, जबकि ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा अगर पाकिस्तान में ऐसा कुछ होता तो सबसे पहले तो मुस्लिम देशों का सबसे बड़ा दुश्मन अमेरिका और वहां की मीडिया ही चीखना शुरू कर देती साथ ही दूसरे देशों की मीडिया भी मिर्च मसाले के साथ जमकर उछालती, लेकिन आजतक कोई खबर नहीं मिली। अब तीर्थयात्रा वीजा पर भारत आकर लोग नाटक फैला रहंे हैं हम पाकिस्तान जैसे देश के लोगों पर कैसे विश्वास करलें। क्या गारन्टी है कि ये लोग पाकिस्तान से सिर्फ भारत में आतंक मचाने नहीं आये। हम यह बात इसलिए कह रहे हैं कि भारतीय सरकार और खुफिया तन्त्र के अनुसार भारत में सारे क्राईम पाकिस्तान इशारे पर होते हैं तो फिर आतंक की पनाहगाह पाकिस्तान के लोगों पर विश्वास क्यों करें आखिर हैं तो सब ही आतंकी, वह चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम। अगर गृह सचिव का यह मानना है कि पाकिस्तानी हिन्दू शरीफ हैं तो फिर यह साफ हो गया कि भारत की सरकारों और सरकारी मशीनरी एंव मीडिया को पाकिस्तान से कोई एलर्जी न होकर सिर्फ मुसलमान से है। अगर ऐसा नहीं है तो अबतक जितने भी पाकिस्तानी देशद्रोही भारत में महीनों से सरकारी महमान बनाकर रखे जा रहे हैं इन सबको भारत से निकाल दिया जाना चाहिये, लेकिन ऐसा न किया गया और न ही किया जायेगा। इन सब हालात के बाद किस मुंह से कहा जाता है कि भारत का संविधान धर्मनिर्पेक्ष है। किसी भी बात से से साबित नहीं होता कि देश का कानून धर्मनिर्पेक्ष है। ऐसे लाखों उदाहरण हैं जो यह साबित कर देते हैं कि कानून धर्मनिर्पेक्ष नहीं है। एक ताजा प्रमाण यही देखिये कि बरेली में 20 अगस्त को ईद के दिन कर्फयु में ढील सिर्फ शाम छः बजे तक ही दी गयी, जबकि आठ दिन पहले ही रक्षाबन्धन के अवसर पर कर्फयु में ढील रात नौ बजे तक दी गयी थी।

Monday 20 August 2012

कर्फयु में ढील को लेकर व्यापक रोष

बरेली-हफता भर से शहर के चार थाना क्षेत्र में चल रहे कर्फयु में आज ईद के त्योहार पर सिर्फ शाम 6-30 बजे तक की ढील से मुसलमानों में काफी रोष के साथ साथ प्रशासन पर पक्षपात के आरोप भी लग रहे हैं। पेशे से डाक्टर इसरार बेग नूरी का कहना है कि ईद मुसलमानों का बड़ा त्योहार है इस दिन लोग एक दूसरे के घरों पर जाकर मिलते है मुबारक बाद देते हैं सुबह नमाज से निबटने में ही ग्यारह बज जाते हैं और शाम छः बजे से कैद किया जाना गलत है। एक दूसरे डा0 एम.ए.सिददीकी का भी यही कहना है। आटो मकेनिक इरफान खां ने कहा कि प्रशासन पक्षपात कर रहा है हफता भर पहले रक्षा बन्धन के दिन नौ बजे तक ढील दी गयी थी लेकिन ईद पर सिर्फ छः बजे तक की ढील देने से प्रशासन का पक्षपात ही कहा जा सकता है। ठेकेदारी करने वाले कासिम हुसैन का कहना है कि यह मुसलमानों को सपा को वोट देने का सिला है कि रक्षा बन्धन पर छूट नौ बजे तक और ईद पर 6-30 बजे तक ही। इसी तरह के बात लगभग सभी मुस्लिमों में महसूस की जा रही है।
    एक तरहसे तो मुसलमानों में यह रोष स्वभाविक है और जायज है कि ईद के दिन भी दिन से ही कैद करने का फरमान प्रशासन व शासन की निष्पक्षता पर उंगली उठाने के लिए काफी है। मानना पड़ेगा कि शायद मायाराज में इतना फर्क न किया जाता। जाहिर है कि इसका सीधा असर 2014 के लोकसभा चुनावों में सपा पर पड़ना लगभग तय माना जा रहा है।

Sunday 19 August 2012

कर्फयु में ढील का एक और अजूबा

बरेली-हफता भर से चल रहे रहे कर्फयु में कल ईद के दिन ढील दिये जाने में भी प्रशासन ने अजूबा कर दिया। खास ईद के दिन ढील का समय सुबह 5 बजे से शाम 6-30 दिया है। त्योहार के दिन भी शाम होने से पहले ही कैद होने की मजबूरी। यही अगर सुबह पांच बजे की जगह छः बजे से रात 8 बजे तक ढील दी जाती तब शायद ढील आसानी से हजम हो जाती। प्रशासन की इस अनोखी कार्यवाही से जनता में खासकर मुसलमानों में शासन के लिए क्या संदेश जायेगा इसका अनुमान प्रशासन ने नही लगाया और शायद शासन को भी अंदाजा नहीं कि इसका क्या असर होगा। जबकि अभी 2014 सामने है।

Saturday 18 August 2012

खुलकर बिकी जमकर चली शराब

बरेली-हफ्ता भर से चले आ रहे कर्फयु में प्रशासन ने दो दिन से कुछ ढील देनी शुरू की तो सबसे पहले खुली शराब की दुकानें और सबसे बाद में बन्द की गयी। जमकर बेची गयी, ज्यादा कीमतों में बेची गयी पुलिस देखती रही और शराब की दुकानों पर भीड़ जमी रही।
नियमानुसार कर्फयु में ढील दिये जाने का केवल एक ही उद्देश्य होता कि गुलाम जनता के लोग खाने पीने के सामान व दवाईयां आदि अति आवश्यक चीजें खरीद सके न कि शराब की दुकान खुलने दी जावें। कल लोगों ने शराब न सिर्फ पी बल्कि अधिक से अधिक मात्रा में घर भी ले गये। ऐसा भी नहीं कि धारा 144 लगी होने के बावजूद शराब की खुली और प्रशासन को पता नहीं चला, प्रशासन मौजूद रहा और शराब बिकती रही।


Thursday 16 August 2012

कल कर्फयु में ढील एक अजूबा, नमाजों का वक्त 12-30 से 3-30 तक है और ढील सुबह 5 से 11 बजे तक

   बरेली-गुजरे छः दिनों से शहर के चार थाना क्षेत्रों कोतवाली, प्रेमनगर, किला और बारादरी में कर्फयु लगा है। दो दिन से अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग समय पर ढील दी गयी। कल शुक्रवार रमजान माह का आखिरी जुमा यानी अलविदा है। कल कर्फयु में सुबह पांच बजे से ग्यारह बजे तक ही छूट दी जायेगी। यानी अलविदा की नमाज से पहले ही ढील खत्म कर दी जायेगी। हांलाकि प्रशासन का कहना है कि जुमे की नमाज अदा करने जाने पर रोकटोक नहीं होगी। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि मोहल्ले की करीबी मस्जिदों में नमाज पढ़े। बड़ी हैरानी वाली बात है कि नमाज पर भी अंकुश लगाया जाने लगा कि कहां पढ़े ओर कहां न पढ़े।
    आज छूट का ऐलान सुनने के बाद खानकाहे आलिया नियाजिया के सरकार शब्बू मियां साहब की उस बात को दम मिलता है जो उन्होने कल अन्याय विवेचक से बात करते हुए कहा था कि ‘‘प्रशासन पर सरकार का कोई दबाव नजर नहीं आ रहा। साथ ही यह भी हो सकता है कि यह अजीबो गरीब फैसला शासन की मर्जी से लिया गया हो। जो भी हो ढील का टाईम है बड़ा ही चैकाने वाला।

चीता मोबाईल पर मुखबिर का आराम-यह कैसा कर्फयु

बरेली शहर के चार थाना क्षेत्रों में पांच दिन से चल रहे कर्फयु के कई रंग कई कानून देखने को मिल रहे है। कहीं कर्फयु की वजह से जनाजों को दफनाने के लिए दस से ज्यादा लोगों के जाने की इजाजत नहीं तो कहीं शोभायात्राओं में हजारों लोगों कोसड़क पर घूमने की छूट। कहीं बिना पास के बाहर निकलने पर पिटाई, पास धारक के साथ बीमार परिजन को अस्पताल जाने की इजाजत नहीं तो कहीं वर्दी वालों वालों को पूरी छूट कि वह जवान महिलाओं को लेकर कहीं भी घूमे या बिना पास की कारों में मित्रों को लेकर कर्फयु ग्रस्त शहर का नजारा कराते फिरे।
अब इस फोटों को ही देखिये यह थाना किला की पुलिस चैकी गढ़ी के सामने का है चीता मोबाइल बाइक पर एक मुखबिर आराम कर रहा है बच्चे भी मस्ती से खेल कुद रहे है वह भी पुलिस चैकी के ठीक सामने पुलिस की मौजूदगी में।

Wednesday 15 August 2012

सरकार का खौफ नही है प्रशासन पर-शब्बू मियां



बरेली-पन्द्रह दिन में ही दोबार कर्फयु लगने पर बेहद खुद जताते हुए खानकाहे आलिया नियाजिया के मुन्तजिम सरकार सिबतैन मियां नियाजी उर्फ शब्बू मियां साहब आज कहा कि बड़े ही शर्म की बात है कि चन्द नेता लोग अपने मुफाद के लिए अवाम को बहका लेते है और परेशानी जिल्लत तकलीफ भुगतनी पड़ती हैं अवाम को खासतौर पर गरीब मजदूर को। कर्फयु में आज पांचवे दिन दी गयी ढील के समय को अलग अलग रखे जाने पर शब्बू मियां साहब ने कहा कि यह गलत है ढील सभी जगह एक साथ दी जानी चाहिये जिससे कि जो लोग इधर ऊधर फंसे है वे सुरक्षित तरह से अपने ठिकानों तक पहुंच जाये, जो लोग दूध डेरी का काम करते हैं और उनकी डेरियां दूसरे मुहल्लों में हैं उनके जानवर पांच दिन से भूखे प्यासे पड़े हैं वे अपने जानवरों की देखभाल करने नहीं जा सकते। स्वतन्त्रता दिवस के बारे में पूछे गये एक सवाल के जवाब में शब्बू मियां साहब ने कहा इसे आजादी नही कहा जा सकता क्ेसी आजादी है मुसलमान हिन्दू इलाको में जाने में डर रहे है हिन्दू मुस्लिम इलाकों में जाने से डर रहे हैं, इसे आजादी नहीं कहा जा सकता आजादी तो जब होगी कि हर शख्स अपने मजहबी उसूलों के साथ बेखौफ होकर जिये।
एक सवाल के जवाब में शब्बू मियां साहब ने साफ तोर पर कहा कि सरकारी अफसरान को मौजूदा सरकार को कोइ्र खौफ नहीं है सब अपने मनमाने काम करतते दिख रहे हैं जबकि मायावती सरकार में अफसरों को फौरन सजा मिलने का डर रहता था। उनका कहना है कि ‘‘सरकार सख्ती और दुकान नर्मी से चलती है’’।
सरकार शब्बू मियां साहब ने बरेली के बाशिन्दों से अपील की कि जिस तरह कुछ साल पहले रहते थे वैसे ही आपस में प्यार से रहें नेताओं के बहकावे में आकर कोइ कदम न उठावें नेता अपने मुफाद के लिए लड़ाते है। सरकार शब्बू मियां साहब अन्याय विवेचक से बात कर रहे थे।

Tuesday 14 August 2012

वर्दी पर लागू नहीं होता कानून--- सगे सम्बंधियों को इधर ऊधर पहुंचाने में लगी दिखी वर्दी


बरेली-आज से 69 साल पहले सन् 1947 की 14 व 15 अगस्त की मध्यरात्री में गांधी जी ने घोषणा की कि ‘‘आज से ‘‘हम’’ आजाद हैं। गांधी जी के इस ‘‘हम’’ शब्द ये उनका अर्थ था ‘‘खादी और खाकी’’। मतलब यह कि 15 अगस्त 1947 के बाद से मेरी खादी पहनने वाले और उनकी भगवान खाकी आजाद हो गयी है इनपर कोई कानून प्रभावी नही होगा। इसका जीता जागता प्रमाण बरेली में तीन दिन से देखने को मिल रहा है।
कर्फयु के चलते जहां एक तरफ पुलिस किसी को भी घर से निकलने नहीं दे रही, यहां तक कि मीडिया कर्मियों से अभद्रता की जा रही है। वहीं दूसरी तरफ वदी्र वाले अपने सगे सम्बंिधयों को उनके कार्य स्थलों पर पहुंचाने के काम में लगी है।
दरअसल वर्दी पर कोई कानून लागू नहीं होता। कर्फयु ग्रस्त क्षेत्र में घर से निकलने के लिए पास का होना अनिवार्य है लेकिन यह कानून वर्दी पर लागू नहीं होता। बाकी चाहे किसी भी विभाग का कोई बड़े से बड़ा अफसर क्यों न हो बिना पास नहीं निकल सकता। पिछली बार लगाये गये कर्फयू के दौरान एक पास धारक पत्रकार अपने बीमार पिता को बाईक से लेकर जा रहा था तो उसको मढ़ीनाथ मोड़ पर रोक कर एक प्रशासनिक अुसर ने उसका पास निरस्त करके यह कहते हुए वापिस कर दिया कि पास आपके लिए है परिवार वालों को लाने ले जाने के लिए नहीं’’। लेकिन दूसरी तरफ वर्दी वाले रोज किसी न किसी रिश्तेदार या सम्बंधी को बाईक कार से लाते ले जाते दिखाई पड़ रहे हैं इसपर किसी अधिकारी को कोइ्र आपत्ति नहीं। उदाहरण के लिए कल यानी सोमवार को जगतपुर के एक परिवार को दूसरे थाने के दो सिपाही निजि कार में गैर सरकारी तौर पर लेकर आये उन्हें किसी ने नही रोका जबकि इन दो सिपाहियों की न तो बारादरी में तैनाती है और न ही कर्फयु ग्रस्त क्षेत्र में कहीं पर डियुटी। इसी तरह थाना सीबी गंज क्षेत्र में रहने वाली एक युवा नर्स जाकि कर्फयु ग्रस्त क्षेत्र के किसी निजि अस्पताल में नौकरी करती है उसे रोज सुबह अस्पताल पहुंचाने व वापिस लाने का काम एक सिपाही कर रहा है। गौरतलब बात यह है कि सिपाही जिस महिला को लाना ले जाना कर रहा है वह न तो उसकी रिश्तेदार और न ही धर्म जाति की। जिला प्रशासन ने इस महिला को कर्फयु पास नहीं दिया तो क्या उसे क्र्फयु रोक सका। उसने भी ऐसी हस्ती का सहारा लिया जिसपर न तो कोई कानून लागू होता है ओर न ही किसी की जुर्रत है जो रोक सके।

Monday 13 August 2012

संगीनों के साये में निकली गंगा महारानी की शोभा यात्रा


बरेली-गुजरे शनिवार को श्री कृष्ण की झांकी के रास्ते को लेकर हुए बवाल, पुलिस पर पथराव के बाद शहर के चार थाना बारादरी, कोतवाली, प्रेमनगर व किला क्षेत्रों में कर्फयु लगा दिया गया। इसी बीच सिटी बिहारीपुर क्षेत्र से आज सोमवार को ‘‘गंगा महारानी’’ की शोभायात्रा भी निकाली जानी थी जो किला तक जानी थी। इस शोभायात्रा को लेकर कल से ही पुलिस व जिला प्रशासन के हाथ पैर फूले नजर आ रहे थे।
कांवर यात्रा और श्रीकृष्ण झांकी शोभायात्रा में हो चुकी चूक को अफसरान दोहराना नहीं चाहते थे। इस बार अफसरान ने पूरी मुस्तैदी दिखाते हुए पूरे मार्ग को संगीनों के हवाले कर दिया। प्रशासन की मुस्तैदी का नतीजा यह हुआ कि यह शोभयात्रा शान्तिपूर्ण तरह से निबट गयी।
दूसरी तरफ थाना किला के मोहल्ला मलूकपुर में छेड़छाड़ की गयी जिसे अफसरों ने तुरन्त ही दबा लिया। कुल मिलाकर आज का कहीं से किसी खुराफात की खबर नहीं है।

Sunday 12 August 2012

पूरा दिन घेरे रखा पत्रकारों को



बरेली-तीन दिन बाद ही शहर के चार थाना क्षेत्रों में दोबारा लगे कर्फयू की कवरेज जानबूझ कर बाधित की गयी। देर रात लगाये गये कर्फयू के बाद आज सुबह से ही मीडिया कर्मी जिला प्रशासन से पास जारी करने की मांग करते रहे, लेकिन पूरा दिन पत्रकारों को कलैक्ट्रेट में ही घेरे रखा गया। पास दिये जाने में लगातार हीलाहवाली की जाती रही। सुबह से शाम सात बजे तक इन्तेजार करने के बाद पत्रकारों ने कोतवाली में बैठे जिला अधिकारी को घेर लिया, काफी हील हुज्जत के बाद डीएम ने पास देने की हामी भरी तब कहीं रात नौ बजे तक पास दिये गये। हालांकि डीएम ने गुजरी रात तो मोखिक रूप से यह कहा था कि मीडिया कर्मी अपने पहचान पत्रों के साथ ही कवरेज कर सकते हैं लेकिन पुलिस ने डीएम के इस आदेश को ठुकराते हुए पत्रकारों को कर्फयू ग्रस्त क्षेत्र में जाने नहीं दिया कई जगह पत्रकारों से अभद्रता की गयी। इस कारण पत्रकार पास बनवाने पहुंचे। इसके बाद काफी देर बाद दिये गये पास किन्तु केवल उन्हीं पत्रकारों को पास दिये गये जिन्हें गुजरे कर्फयु में पास दिये गये थे। जो पत्रकार पिछले कर्फयु में बरेली से बाहर थे वे अब किस तरह कवरेज करेंगे इसका जवाब न अखिलेश सरकार के पास है और न ही जिला प्रशासन के पास।
दूसरी तरफ यह कुछ खास ही वजह थी कि दिन भर पत्रकारों को उलझा कर रखा गया। ऐसी कोैन सा काम अंजाम दिया जा रहा था जिसे पत्रकारों की नजर से छिपाने के लिए दिन भर पत्रकारों को उलझाकर रखा गया।

फिर बरेली शहर कर्फयु के हवाले

जन्माष्टमी पर दो दिन से हो रही खुराफात के मददेनजर जिला प्रशासन ने पहले थाना बारादरी क्षेत्र ओर फिर देर रात पूरे शहर में कर्फयु की घोषण कर दी।

Saturday 11 August 2012

लीजिये नया हफता वसूली मार्ग

उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्गों पर गुलामों से हफता वसूली की बाड़ सी आ गयी है। दिल्ली से लखनऊ मार्ग पर आठ नौ जगह गुलाम जनता से सरकारी तौर पर हफता वसूली के केन्द्र स्थापित थे ही । गुजरे गुरूवार को मार्ग चालू कर दिया गया जिसपर कम से कम चार जगह गुलामों से उगाही करने का लाईसेंस सरकार ने अपने चहेते पूंजी पतियों को दे दिया है जिसका उदघाटन सूबे के मालिक अखिलेश यादव ने गुरूवार को किया।
मायाराज की हठधर्मी और कदम कदम पर गुलामों से की जाने वाली उगाही से ऊब कर गुलामों ने इस बार सपा को रोजगार दे दिया गुलाम जनता को गलत फहमी थी कि अखिलेश को सूबे का महाराज बना देने से गुलामों को कुछ राहत मिलेगी, लेकिन गुलामों के अरमान गन्दे नाले में बह गये। उगाही बादस्तूर जारी है और पूंजि पतियों की तिजोरियों को अखिलेष यादव की सरकार भी भरने लगी।

फिर माहोल बिगाड़ने की कोशिश

बरेली-(अनूप सकसेना) लगातार हफता भर कर्फयु की मार ओर तीन जान लेकर भी खुराफातियों को सकून नहीं मिला। थाना बारादरी के मोहल्ला हजियापुर में आज शाम लगभग आठ बजे अमन दुश्मनों ने माहोल बिगाड़ने की कोशिश की। घण्टा भर बाद भारी फोर्स के साथ पहुंचे पुलिस व जिला प्रशासन के अफसरान ने मामले को ठण्डा कराकर काबू पा लिया, मौके पर भारी फोर्स तैनात कर दिया गया है।
दो हफते पहले ही आंवला में कांवडि़यों से शुरू हुई खुराफात ने चन्द घण्टों में ही पूरे शहर को लपेटे में लेकर कर्फयू के हवाले कर दिया था। हफता भर कर्फयु की मार झेल चुके मजदूर अभी ठीक से संभल नही पाये थे कि आज शाम आठ बजे के लगभग कुछ शरारतियों ने दूसरे समुदाय धार्मिक उत्सव में बज रहे डीजे की आवाज कम करने को कहा। इसी को लेकर कहा सुनी होने के बाद दोनो पक्ष आमने सामने आ गये और जमकर पथराव, फायरिंग की जाने लगी। फोन पर पुलिस को सूचना दी लगभग घण्टा भर बाद फोर्स के साथ आला अफसरान ने मोके पर पहुंचकर काबू किया। फिलहाल हालात काबू में हैं। तीन चार युवकों के घायल होने की खबर है। खबर लिखे जाने तक कोई गिरफतारी नही हो सकी थी।

Thursday 9 August 2012

भारी पड़ गयी चकल्लस


बरेली-(रिपोर्ट एम.के.अली व सलमान खान) थाना सीबी गंज क्षेत्र में स्थित माचिस फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर द्वारा अपने साथी मजदूर से की गयी मजाक दोनों को ही भारी पड़ गयी, एक की जान गयी तो दूसरे पर मुकदमा लद गयी।
फैक्ट्री में ठेकेदार मुशर्रफ अली के दर्जनों मजदूर काम करते हैं। लगभग सभी मजदूर आसपास के गांवों से आते हैं। गुजरी 7 अगस्त को भी लेवर काम कर रही थी इन्हीं में थाना क्षेत्र के गांव जोगीठेर के शहनूर का तीस वर्षीय पुत्र तसलीम और गांव सनैया रानी के लालशाह का बेटा हामिद अली भी काम कर रहा था। इन्हीं के साथ काम कर रहे गांव पस्तौर के सुशील कुमार ने बताया कि दोपहर के समय हम सभी प्रेशर से सफाई कर रहे थे कि तसलीम ने मजाक करते हुए प्रेशर का पाईप हामिद के शौच की रास्ते में डाल दिया, कुछ ही सैकेण्ड में हामिद चीख मार कर गिर गया ओर दर्द से तड़पने लगा, हम सभी मजदूर, ठेकेदार व फैक्ट्री के कुछ कर्मचारी हामिद को तुरन्त ही बीमा अस्पताल (ईएसआई डिस्पैंसरी) लेकर गये जहां डाक्टर ने जिला अस्पताल रैफर कर दिया, यहां कोई देखरेख होने की जगह उल्टे डाक्टर ने हम लोगों से अभद्रव्यवहार किया। परेशान होकर हम हामिद को एक निजि अस्पताल ले गये। 8 तारीख को उसका आप्रेशन किया गया और आज वह खत्म हो गया। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम कराकर परिजनों को सौंप दिया। जिसे आज रात दस बजे सुपुर्दे खाक कर दिया गया। खबर लिखे जाने तक तसलीम गिरफतार नहीं हो सका था पुलिस दबिशें दे रही है।

Wednesday 8 August 2012

विद्रोह के लिए उकसाने का साधन बनी सोशल नेटवर्किंग साईटें


    आजकल लोग देश की शान्ति को तबाह करने और विद्रोह के लिए लोगों को उकसाने के लिए फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साईटों का सहारा लिए हुए है। फेसबुक पर जमकर बेबुनियाद तस्वीरें लोड करके उन्हें पाकिस्तान की होना बताकर लोगों को देशद्रोह के लिए खुले शब्दों में उकसाने का काम कर रहे है।
    देखने वाली बात तो यह है कि इनपर न तो किसी कानून को एतराज है और न ही किसी सुरक्षा एजेंसी को ही आपत्ति है। लेकिन जब कोई मुसलमान, सिर्फ मुसलमानों से ही धर्म का पालन कड़ाई से करने के लिए कहता है तो वह सुरक्षा एजेंसिंयो के साथ साथ कानून, मीडिया को भी आतंकी दिखने लगता है।
    बरेली के कुछ लोग तो लोगों को विद्रोह के लिए उकसाने के काम में ही व्यस्त है।

Tuesday 7 August 2012

लौटती अमन को वापिस ढकेलने की कोशिश

बरेली-तीन बेकसूरों की जान जाने और हफते भर तक कर्फयु की मार झेल चुके
शहर में पूर्व जिला अधिकारी व एसएसपी की मेहनत के नतीजे के तोर पर अमन
वापिस लौटने लगी। मजदूरों के घरों में समय से बच्चों को रोटी मिलने लगी।
लेकिन यह शहर के ही कुछ लोगों को पच नहीं रही।शहर में लौटती अमन को वापिस
ढकेलने के प्रयास शुरू हो गये।
आज शिव सेना ने एक अजीबो गरीब मांग के साथ जिला प्रषासन को ज्ञापन दिया
जिसमें मांग की गयी कि मस्जिदों पर लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल पर रोक लगाई
जावे। साथ ही जोगी नवादा के इमरान के कातिलों की हिमायत करते हुए उनकी
सुरक्षा की बात भी कही गयी।
इसमें कोइ्र दो राय नहीं कि शहर में साजिश के तहत फैलाई गयी गुण्डा
गर्दी से निबटने के लिए पूर्व डीएम व एसएसपी ने काफी हद तक सूझबूझ के साथ
काम लेते हुए जल्दी ही शान्ति बनाने के भरसक प्रयास किये। आज के इस नये
शिगूफे के बाद अन्दूनी तनाव जाग उठा है। साथ ही प्रशासन के सामने फिर से
नया चैलेंज खड़ा हुआ है।

Sunday 5 August 2012

जो आता है लूटने वाला आता है-अपनी इस तकदीर की मारी दिल्ली में।


    इतिहास गवाह है कि दिल्ली के तख्त पर जो आया वह देश की जनता को गुलाम बनाकर लूटता हुआ ही आया। चाहे वो विदेशी हो या देसी। लूटा सभी ने और आज भी लूट बदस्तूर जारी है। फर्क सिर्फ इतना है कि विदेशी तलवारों के बल पर लूटते थे और देसी करों (टैक्सेज) के बल पर गुलामों को लूट रहे हैं। और कम से कम गुजरे आठ साल में कदम कदम पर लूट को सरकारी जामा पहना दिया गया है। दरअसल बाबरी मस्जिद को शहीद कराने की साजिश रचने के बाद देश के शरीफ गुलाम वोटरों ने कांग्रेस के हाथ में कटोरा थमा दिया। लगभग पन्द्रह साल तक कांग्रेस औकात पर रही, क्योंकि इस अर्से में कांग्रेस के पास कोई घडि़याली आंसू बहाने वाला नमूना नहीं था फिर सोनियां गाधी ने गुलाम जनता को उल्लू बनाने की ट्रेंिग हासिल करके घडि़याली आंसू बहाना शुरू कर दिये मेरे सीधे साधे गुलाम देषवासी एक बार फिर कांग्रेस के झांसे में आ गये, और दे दिया कांग्रेस के हाथ में देश को लूटने का मौका। बस क्या था कांग्रेस ने मचा दी लूट। रोज सुवह को हर चीज के दाम बढ़े मिलते हैं खास तौर पर डीजल, पैट्रौल, रसोई गैस पर। बढ़ौतरी भी चवन्नी अठन्नी की नहीं सीधे सीधे पांच दस पन्द्रह रूपये की। जाहिर सी बात है कि डीजल के दामों में की जा रही अंधाधुन इजाफे का सीधा असर गरीब गुलामों पर पड़ता है। डीजल पर तीन रूपये प्रति लीटर बढ़ने पर आटो, बस वाले प्रति सवारी एक से पांच रूपये बढ़ा देते है अब जिस गरीब के पास दस रूपये ही हों वह पन्द्र रूपये आटो को कहां से दे।
    दरअसल सोनिया गांधी नामक रिमोट से चलने वाली केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य मनमोहन सिंह सरकार बड़े उद्योगपतियों को सैटिंग के साथ माल कमवाने का काम कर रही है जाहिर है कि इससे सरकार में बैठे और सरकार के कन्ट्रोल रूम को भी बड़ा फायदा पहुंचता है बरना बेवजह कोई किसी को लूट मचाने की छूट नहीं देता। मिसाल के तौर पर जब जब तेल या गैस पर दाम बढ़ाये गये तब तब पैट्रौल पम्पों, गैस एजेंसियों को एक रात में ही लाखों रूपये का मुनाफा हुआ। सरकार ने कभी यह हिसाब नहीं देखा कि जिस पम्प या एजेंसी के पास दाम बढ़ने से पहले का जो स्टाक मौजूद है उसपर गुलामों को क्यों लूटा जा रहा है।
    केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य मनमोहन सिंह सरकार ने बड़े उद्योगपतियों के माल में चैगुना इजाफा करने के लिए देश में राज्य मार्गों के निमार्ण का ठेका इन्हें दिया, ठेका यानी लूटने का सरकारी लाईसेंस। इन कम्पनियों ने जगह जगह मार्गों को सुधार कर हर पचास किलोमीटर की दूरी पर एक लूट केन्द्र स्थापित कर दिया। हर आने जाने वाले वाहन से 21 रूपये से 200 रूपये तक प्रतिगुजर का हफता वसूली की जाने लगी। सरकारों द्वारा कराई जा रही इस हफता वसूली पर सवाल यह पैदा होता है कि ‘‘किस नियम के आधार पर वसूला जा रहा है गुलामी टैक्स? वाहनों से पहले ही रोड टैक्स लिया जाता है साथ ही सैकड़ों तरह के दूसरे टैक्स भी गुलाम देते ही है तो फिर सड़के देना सरकार का उत्तरदायित्व है। अगर सरकार किसी सड़क को या शहर को अच्छा बना देती है तो उसपर या उसमे से गुजरने का टैक्स वसूला जाना कतई गैर कानूनी और तक विहीन ही नहीं बल्कि सीधी भाषा में लूट ही कहा जायेगा।
    दिल्ली से लखनऊ की दूरी लगभग 500 किलोमीटर है। इस मामूली से दूरी तय करने आपको कमसे कम आठ जगह गुलामी टैक्स अदा करना पड़ेगा। दिल्ली से निकलते ही नोयडा से लखनऊ तक कम से कम आठ जगह बड़े उद्योगपतियों को लूट करने का लाईसेंस दिया गया है। बताते चलें कि यह लूट सिर्फ गुलामों से ही की जाती है खादी और खाकी से हफता वसूली नहीं की जाती। बाकी गुलाम चाहे एम्बूलेंस में ही क्यों न हो इन लुटेरों को हफता दिये बिना नही जा सकता।
    ज़रा सोचिये कि एक ट्रक कुछ माल लाद कर दिल्ली से लखनऊ जाये और उसे रास्ते में डीजल खर्च के अलावा पुलिस एंव आरटीओ की सेवा के साथ साथ कम से कम दो हजार रूपये उद्योगपतियों को हफता के रूप में अदा करना पड़ेगा तो वह भाड़ा बढ़ायेगा और जब माल ढुलाई का भाड़ा बढ़ेगा तो दुकानदार माल बेचेंगे भी महंगा, सोचिये लुटा कौन.... गुलाम ही। खादी और खाकी को 95 फीसद चीजें खरीदकर लेनी नहीं पड़ती, इसलिए खादी या खाकी पर राज्य मार्गों पर कराई जा रही हफता वसूली का फर्क नहीं पड़ता। ऐसा भी नहीं कि यह सिर्फ केन्द्र का ही काम हो बल्कि इस काम में सूबाई सरकारें भी दो कदम आगे ही रहने की कोशिश में नजर आती हैं।

Sunday 29 July 2012

वीरपाल सिंह यादव को देखने आये शिवपाल यादव गुलामों पर अहसान-तीन को सहायता, एक को ठेंगा




बरेली-सपा के जिलाध्यक्ष व सांसद वीरपाल सिंह यादव आजकल बीमार हैं और शहर के एक निजि अस्पताल में भर्ती हैं। वीरपाल का कुशलक्षेम जानने पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के भाई और मौजूदा सीएम के चाचा सरकार के मंत्री शिवपाल सिंह यादव बरेली आये शिपाल यादव ने लगे हाथों गुजरे हफ्ते भर से दंगे की आग में झुलस रहे बरेली की सूबाई सरकार की तरफ से गुलाम जनता पर एक अहसान कर दिया। वह यह कि दंगे में मारे गये तीन युवकों इमरान, फरहान, इमरान व रिक्शा पोलर पप्पू के परिवारों में से मुस्तफानगर के फरहान, जोगीनवादा के इमरान व रिक्शा पोलर पप्पू के घर वालों को तीन तीन लाख रूपये की आर्थिक सहायता के चैक दिये। पहले ही दिन मस्जिद में घुसे कांवरियों को निकालने का प्रयास करते समय कत्ल कर दिये गये इमरान के परिवार को नजर अंदाज कर दिया गया।
बताते चलें कि रिक्शा चालक पप्पू का शव बरामद हुआ था। इसकी हत्या कैसे हुई किसने की या क्यों की गयी, यह अभी राज ही है गम्भीरता से जांच के बाद ही पता चलेगा कि उसकी मौत का कारण दंगा था या कोई रंजिश। फिलहाल तो उसके परिवार वालों को पांच लाख मिल ही गये।
थाना सुभाषनगर के मोहल्ला मुस्तफानगर में शिवपाल यादव मृतक फरहान के घर चैक देने पहुंचे। फरहान के परिवार वालों ने मंत्री से परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की मांग की जिसपर मंत्री जी चुप्पी साध गये।
उन्होंने मीडिया से बात करते हुए दंगे का सीधा आरोप बीजेपी पर लगाया साथ ही बीएसपी सरकार पर 25 हजार करोड़ के घोटाले का आरोप भी लगाया।

दुख भरी खबर



बरेली-बरेली नगर को नरक बनाने के लिए गठित ‘‘नरक निगम या नंगा निगम’’ के कर्मचारी कर्फयु की भेंट चढ़ गये तो गुलाम जनता के लोग खुद ही निकल पड़े अपने मोहल्लों की सफाई करने। फोटो-एम.के.अली

Saturday 28 July 2012

कांवरियों के सामने पुलिस ने घुटने टेके

बरेली-कांवर को लेकर छिडे़ बवाल के बाद पांच दिन से कर्फयु की मार झेल रही बरेली की अखिलेश पुलिस ने 27 जुलाई को रामपुर मार्ग से लगभग 40 कांवरिये नाचते गाते आये शहर में प्रवेश करने से पहले ही मिनीबाई पास मोड़ पर पुलिस ने उन्हें रोककर कफर््यू के मददेनजर मिनी बाईपास से होकर जाने को कहा जिसपर वे ऊधम करने लगे और बीच रोड पर बैठ गये। जाम लगता देख पुलिस काफी देर तक कांवरियों से प्रार्थनांए करती रही। लेकिन शहर जला देने पर आमादा कांवरिये नही मानें। पुलिस ने उनकी सुरक्षा की बात कही तो आजमनगर सिकलापुर का रहने वाला एक कांवरिया आगे बढ़ा और बोला कि हमें पुलिस की मदद की जरूरत नहीं हम हम खुद निबट लेंगे हमारे पास सब इन्तेजाम है। यह सुनकर पुलिस के हाथ पांव फुल गये और खुशामन्द करके डीजे बन्द करा दिया और उनकी इच्छानुसार रास्तों पर नाचते गाते हुल्लड़ करते हुए गुजरने की छूट देदी।

Friday 27 July 2012

यही शायद अहले वतन चाहते हैं।।

महकता गुलों से चमन चाहते हैं।
बरेली शहर में अमन चाहते हैं।।

वो ही प्यार आपस में हो भाईचारा।
वो ही शहर में बांकपन चाहते हैं।।

दिलों में मोहब्बत के हों दीप रौशन।
उजाले की ऐसी किरन चाहते हैं।।

न हो कोई नफरत न कोई कदूरत।
मोहब्बत की सच्ची लगन चाहते हैं।।

गले मिलके शिकवे सभी भूल जायें।
यही शायद अहले वतन चाहते हैं।।

(गयास शाद शमसी)

संगीनों के बल पर प्रशासन ने रखवाई नई बुनियाद

बरेली-कांवर को लेकर बरेली में फैले फसाद के बाद चार रोज से लगातार चल
रहे कर्फयु और हर रोज एक हत्या के बावजूद पुलिस ने आज संगीनों के साये
में एक नया काम शुरू कराया। याद दिलादें कि लगभग एक दशक से धर्म से जुड़ी
किसी भी तरह की नई शुरूआत प्रतिबन्धित है। लेकिन यह भी बतादें कि यह
प्रतिबधं केवल वर्ग विशेष पर ही लागू होता है जिसके लाखों प्रमाण हमारे
पास होने के साथ साथ आज एक जीता जागता सबूत यह है कि आज पहली बार थाना
किला क्षेत्र के मोहल्ला बाकरगंज से कांवरियों का जत्था गुजरवाया। यह
जत्था गांव सैसिया हुसैनपुर से आया था। नये नींव डाले जाने का कोई विरोध
न कर सके इसलिए आज सुबह से ही बाकरगंज को संगीनों से पाट दिया गया था।
अखिलेश यादव की पुलिस ने आज संगीनों के बल पर जो नया काम शुरू कराया है
उसका आगे चलकर क्या परिणाम् गरीब तबके को भुगतने पड़ेंगे यह तो भविष्य
में ही पता चलेगा।

Wednesday 25 July 2012

फैजान ने दम तोड़ा

बरेली-दंगे के दूसरे दिन यानी सोमवार को थाना सुभाषनगर के मोहल्ला
मुस्तफा नगर के रहने वाले रेवले कर्मचारी अनवार अहमद के 17 वर्षीय पुत्र
को कांवरियों बुरी तरह पीटा और मरा समझकर छोड़ गये। राहगीरों और उसके साथ
चल रहे मित्र ने उसे उठाकर करीबी अस्पताल में भर्ती कराया जहां उसे रैफर
कर दिया तो उसके परिवार वालों ने उसे शहर के ही एक निजि हास्पिटल में
भर्ती कराया गया। लगभग 24 घण्टे तक बेहोशी की हालत में जिन्दगी से जूझते
हुए आज दोपहर बाद फैजान ने दम तोड़ दिया।
थाना सुभाष नगर के मोहल्ला मुस्तफा नगर के रहने वाले रेल कर्मी अनवार
अहमद का छोटा बेटा फैजान 12वीं का स्टूडेंट था, उसके दूसरे समुदाय के एक
लड़के मनोज से बचपन की दोस्ती थी। कल दोपहर बाद मनोज फैजान के पास आया और
बदायंु रोड पर कुछ काम से साथ ले गया। फैजान चूंकि फैजान का रोजा था
इसलिए वह सिर पर टोपी लगाये हुए था। पूरा सुभाष नगर इलाका दोनों ने पार
किया किसी ने एक शब्द भी नहीं कहा लेकिन जैसे ही दोनो बदायुं रोड पहुंचे
कि सामने से आ रहे कांवरियों ने दोनो का पकड़ लिया और दोनों के नाम पूछे।
दोनों ने अपने अपने नाम बताये फैजान का नाम सुनते ही गुण्डे उस पर टूट
पड़े और उसे जमीन पर गिरा कर पीटने लगे। दो चार हाथ मनोज को इसलिए जड़
दिये क्योंकि वह फैजान के साथ प्रेम से चल रहा था।
मृतक के परिवार वालों ने बताया कि मनोज व कुछ राहगीरों ने फैजान को करीब
में ही मौजूद अस्पताल में ले गये जहां डाक्टर ने रैफर कर दिया। इसी बीच
मनोज ने फैजान के परिवार वालों को सूचना दी जिससे वे लोग आनन फानन में
हस्पताल पहुंच गये और फैजान को शहर के ही एक निजि हास्पिटल में भर्ती
कराया, जहां उसने आज दोपहर दम तोड़ दिया।
फैजान की मौत की खबर जंगल की आग की तरह कुछ ही मिनटों में शहर में फैल
गयी। पुलिस व जिला प्रशासन के आला अफसरान भारी फोर्स के साथ अस्पताल
पहुंचे। डीआईजी ने बताया कि मुख्य आरोपी को पकड़ लिया गया है, छानबीन की
जा रही है दूसरे हमलावरों को भी जल्दी ही पकड़ लिया जायेगा।
ऊधर फैजान की मौत की खबर के साथ ही प्रशासन चैकस हो गया। सख्ती बढ़ा दी
गयी। मृतक के परिवार को दो लाख रूपये मुआवजा देने की बात कही गयी।

यह कैसा कर्फयु

Tuesday 24 July 2012

नेताओं की मर्जी से दिये जा रहे कर्फयु पास

बरेली-आवश्यक सेवाऐं जारी रखने व मीडिया को कर्फयु पास दिये जाने का नियम
है। लेकिन इस बार कर्फयु पास को लेकर प्रशासन भी खासी मुश्किल में नजर आ
रहा है। दरअसल सपा व भाजपा के नेता ऐसे लोगों को पास दिलवाने में जुटे
हैं जो हमेशा से ही खुराफात का कारण रहे हैं। नेताओं के दबाव में उन
लोगों को पास देने पर प्रशासन मजबूर हो रहा है जिनको पास दिया जाना ही
खतरे की घण्टी है।

सपा के राज में उ0प्र0 को गुजरात बनाने की कोशिश

आंवला में ड्रामा-बरेली में कफर््यू
बरेली-कांवड़ लेकर गुजर रहे कांवडि़यों ने आंवला के मोहल्ला फूटा दरवाजा
स्थित मस्जिद के सामने उस समय नाचना गाना शुरू कर दिया जिस समय मस्जिद
में नमाज हो रही थी। मस्जिद के सामने रूककर नाचने गाने को मना करने पर
कांवडि़यों ने अपनी वाहनों से अस्लाहे निकाल कर फायरिंग शुरू कर दी, जवाब
में दूसरे पक्ष ने पथराव किया। इसी बीच कुछ कांवडि़यों ने मोहल्ला कच्चा
कटरा में अपने वाहनों में रखा बीसों लीटर पैट्रौल लेकर कम से कम आधा
दर्जन घरों में घुसकर आग लगा दी जिससे दूसरे पक्ष के लोग भड़क गये और
आगजनी कर रहे कांवडि़यों को खदेड़ना शुरू कर दिया। मौके पर पहुंची पुलिस
ने कांवडि़यों की खुशामद करके वहां से हटा दिया। इसकी खबर बरेली पहुंचने
पर बरेली कांवडि़यों ने मोहल्ला बानखाना, सिटी स्टेशन, रबड़ी टोला, मठ
की चैकी, ब्राहमपूरा, शाहबाद आदि में जमकर हंगामा किया। सिटी स्टेशन,
रबड़ी टोला, गुलाबनगर स्थित मस्जिदों में कांवडि़यों ने घुसकर तोड़फोड़
की। सूचना पर मौके पर पहुंची पुलिस पर हमला किया जिसमें पांच छः सिपाही
घायल हो गये, एसपी सिटी की गाड़ी पर हमला किया गाड़ी के शीशे तोड़ दिये।
फोर्स की मौजूदगी में लगातार फायरिंग होती रही। बारादरी के मोहल्ला
रबड़ीटोला में मस्जिद में घुसे कांवडि़यों को निकालने की कोशिश कर रहे
लोगों पर अंधाधुन गोलियां दागनी शुरू कर दी कई लोग घायल हो गये गम्भीर
घायलों को निजि अस्पतालों में भरती कराया गया जहां देर रात रबड़ीटोला के
एक युवक ने दम तोड़ दिया। किला चैपुला रोड स्थित शमशान भूमि फाटक के पास
मौजूद मस्जिद पर हमला किया गया। यहां भी पुलिस ने खुशामदें करके वहां से
हटाया।
देर रात प्रशासन ने शहर के सभी थाना क्षेत्रों में कफर््यु की घोषणा कर
दी। इसके बाद भी नाचना गाना बदस्तूर जारी रहा। ऊधर थाना सीबी गंज के
हमेशा ही शान्त रहने वाले गांव अटरिया में मार्निगवाक कर रहे के
रोजदारोें को पुलिस ने बेवजह ही लठिया दिया जबकि कांवडि़यों का जत्था
पहली बार इस क्षेत्र में नाचगाना करने पहुंचा, जबकि इससे पहले कभी इस
क्षेत्र में ऐसा कुछ नहीं हुआ। नया काम होने देने की प्रशासन से छूट मिली
रही।
ऊधर मीडिया को कवरेज करने देने में भी खुला भेदभाव किया गया। जो समाचार
पत्र व चैनल शासन प्रशासन की मर्जी के मुताबिक खबरों को लिखते दिखाते हैं
सिर्फ उन्हीं को कबरेज करने दी गयी और जो सच्चाई को उजागर करने की बीमारी
से ग्रस्त हैं उन्हें काम नहीं करने दिया गया। दूसरी तरफ कहने को तो सूबे
में सपा का शासन है लेकिन बरेली में हुए बलवे में पुलिस ने गुजरात
आतंकवाद की यादें ताजा करते हुए कांवडि़यों के साथ मिलकर दूसरे पक्ष पर
जमकर पथराव किया।
गौरतलब है कि जहां जहां भी हंगामा हुआ वहां वहां देखा गया कि कांवडि़यों
के जत्थे अपने वाहनों में अस्लाह व पैट्रौल आदि लेकर चल रहे हैं और उसका
खुलकर इस्तेमाल करते दिखाई पड़े। सवाल यह पैदा होता है कि धर्म यात्रा
करने वाले अस्लाह बारूद क्यों लेकर चल रहे हैं।
दूसरी तरफ कफर््यु के दूसरे दिन यानी सोमवार को भी नमाज के समय पुलिस की
मौजूदगी में मस्जिदों के सामने नाचने गाने डीजे, ढोल ताशे बजाने का विरोध
कर रहे रोजदारों को पुलिस द्वारा एक तरफा कार्यवाही के तहत पीटे जाने के
विरोध में हंगामा व पथराव जैसे हालत बने। ऊधर संजयनगर क्षेत्र में एक
दुकान आग के हवाले कर दी गयी फायरब्रिगेड घण्टों तक आग से जूझती रही कई
घण्टों की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका। थाना बारादरी के
मोहल्ला कांकर टोला में शाम के समय घर के सामने की मस्जिद से नमाज पढ़कर
लौट रहे रोजदार तीन युवकों को पुलिस ने बेवजह ही पीटा और उठाकर ले गयी
देर रात तक प्रशासन का कोई भी अधिकारी यह नहीं बता रहा था कि तीनों
रोजदारों को कहां रखा गया, उनके रोजे खुलवाये गये या नहीं। सैटेलाइट पर
लगभग दो घण्टे तक चारों रास्ते जाम करके कांवरिये नाच गाना करते रहे, जाम
लम्बा हो जाने पर पुलिस जागी और समझाने की कोशिश की लेकिन न मानने पर
पुलिस ने मामूली सख्ती करके वहां से हटाया जिसे गुजरात व अमरीका पोषित
कुछ अखबारों ने पुलिस पर मनचाहे आरोप जड़ दिये। कांकर टोला से बेवजह ही
ले जाये गये तीनों युवको की देर राततक कोई जानकारी नही दी गयी।

Monday 23 July 2012

आंवला में ड्रामा-बरेली में कफर््यू

बरेली- आंवला में कांवडि़यों द्वारा उस समय मोहल्ला फूटा दरवाजा स्थित
मस्जिद के सामने रूककर नाचना गाना शुरू कर दिया जिस समय मस्जिद में
तरावीह की नमाज हो रही थी दूसरे पक्ष द्वारा खदेड़ जाने पर कांवडि़यों ने
मोहल्ला कच्चा कटरा में आठ दस घरों में घुसकर आग लगा दी। बरेली महानगर
में भी कई जगह मस्जिदों में घुसे। थाना बारादरी क्षेत्र में पुलिस पर
हमला किया जिसमें पांच छः सिपाही घायल हो गये, एसपी सिटी की गाड़ी पर
हमला किया गाड़ी का शीशा तोड़ दिया। पूरे क्षेत्र में कफर््यु लगा दिया
गया। पुलिस व अर्द्धसैनिक बल तैनात।

Saturday 21 July 2012

ठेंगे पर कलक्टर का हुक्म

बरेली- जब मामला धार्मिक द्वेष का हो तो सीबी गंज व किला क्षेत्र के
विद्युत उपकेन्द्रों के स्टाफ जिला अधिकारी के आदेश को भी ठोकर पर रखने
से पीछे नहीं रहता। माया व अखिलेख सरकार में कानून से आजाद कर दिये जाने
वाले सरकारी कर्मचारी व अधिकारी बड़े से बड़े और कड़क से कड़क अधिकारी को
भी ठेंगा दिखाना नहीं भूलते। शायद इसी कारण आज रमजान की तरावीह का पहले
दिन ही ठीक नमाज के वक्त दो घण्टे सप्लाई बन्द रखकर सीबी गंज व किला के
उपकेन्द्रों ने कलक्टर साहब को आगाह कर दिया किया कमसे कम पांच साल तक
डीएम साहब की एक नहीं चलने वाली।
गुजरे हफ्ते ही जिला अधिकारी ने बिजली वालों को चेताया था कि रमजान में
सहरी व अफतार के समय किसी भी हालत में कटौती न की जावे। लेकिन किला व
सीबी गंज उपकेन्द्रों ने आज रमजान की पहली तरावीह के समय ही दो घण्टे
अनावश्यक रूप से सप्लाई बन्द करके डीएम साहब को बता दिया कि अगले पांच
साल तक के लिए हम मनके राजा है।

Wednesday 11 July 2012

सूचनायें देने से कतरा रहे है अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी

बरेली-जिला अल्प संखयक कल्याण अधिकारी गुजरे तीन महीने से कुछ सूचनायें
देने में कतराने में जुटे हुए है। इसका क्या कारण है। क्या मांगी गयी
सूचनाओं से सम्बन्धित रिकार्ड किसी विशेष कारण से नष्ट कर दिया गया है?
या रिकार्ड में कुछ ऐसा है जिससे सार्वजनिक करने में खतरा दिख रहा है।
अन्याय विवेचक ने तीन माह पहले इस कार्यालय से सूचनायें मांगी थी जिसे
देने की बजाये अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी लगातार तीन में से नये नये
ड्रामें कर रहे हैं। अब वही सूचनायें एक बीपीएल कार्ड धारक ने मांगी है।
गौरतलब बात यह है कि मांगी गयी सूचनायें देने की बजाये अल्प संख्यक
कल्याण अधिकारी ने कानून का मुंह काला करते हुए बीपीएल कार्ड धारक से भी
पोस्टल आर्डर और शुल्क की मांग कर डाली।
दरअसल सूबे भर के अधिकारी सूचना के अधिकार अधिनियम को जूटे की नोक पर
रखने के लिए स्वतंत्र कर दिये गये है। इन्हें यह आजादी स्ंवय राज्य सूचना
आयोग ने प्रदान की है, जब आयोग स्ंवय ही दो-तीन साल तक सूचनायें न देता
हो तो उस आयोग का किसी दूसरे अधिकारी को क्या डर हो सकता है।

Monday 18 June 2012

पुलिस के सामने रोडवेज बस पर हमला-- नियमित उगाही से बेबस पुलिस हाथ मलती रही

बरेली - चैपुला, सैटेलाईट, चैकी चैराहा, किला की ही तरह रामपुर रोड पर
मिनी बाईपास मोड़ पर पुलिस व आरटीओ की नियमित सेवा करने वाले
थ्रीव्हीलरों, जीपों का अड्डा बना हुआ है। सिविल पुलिस, यातायात पुलिस और
आरटीओ ने शहर के सभी रोड और चैराहे सुविधा शुल्क के नियमित उपभोक्ताओं
थ्रीव्हीलरों जीपों आटो वालों के नाम वक्फ कर दिये है। जिससे कि इन्हें
पूरी छूट है कि जहां चाहें जैसे चाहे या जब चाहें अपने वाहनों को खड़ा
करके सवारी भर सकते है। इसी आजादी से प्राप्त शक्ति का फायदा उठाते हुए
आज दोपहर लगभग 2-30 पर मिनी बाईपास मोड़ पर पुलिस बूथ के सामने टीएसआई व
सिपाहियों की मौजूदगी में रोडवेज बस में जमकर तोड़फोड की और परिचालक के
हाथ से सरकारी कैश लूटने की कोशिश के साथ साथ चालक परिचालक की लाठी
डण्डों पिटाई भी की। इस दौरान वर्दी वाले बेबस खड़े तमाशा देखते रहे।
सड़क पर वाहनों की लम्बी कतार लगती देख टीएसआई ने मामला रफा दफा कराया।
रोडवेज के परिचालक ने मौजूद टीएसआई को लिखित शिकायत भी देदी लेकिन
थ्रीव्हीलर को पुलिस ने नही रोका और वह चला गया।
हमेशा की तरह मिनी बाईपास मोड पर टैम्पू व जीपों वाले कई कई लाईनों में
खड़े होकर सवारिया भरने में लगे थे इन्हीं में विक्रम थ्रीव्हीलर न0
UP25AT 1575 भी बीच सड़क पर खड़ा सवारिया भर रहा था बतादें कि इस
थ्रीव्हीलर में पहले से ही ग्यारह सवारियां भरी थी पीछे पांच-सात
सवारियां खड़ी करने के लिए पुलिस व आरटीओं द्वारा लगवाई गयी फुटरेस पर
सवारियां खड़ी कर रहा था। रोड पर दूसरे वाहनों के गुजरने के लिए जगह नही
थी कि इसी बीच बरेली से दिल्ली जा रही रोडवेज बस न0 UP21AN 2187 के चालक
ने बस निकालने की कोशिश की जिससे के बस का पिछला कोना थ्रीव्हीलर से लग
गया इसपर थ्रीव्हीलर चालक बौखला उठा और उसने दूसरे टैम्पू वालों को इकटठा
करके लाठी डण्डों से बस चालक पर हमला बोल दिया। बस में बैठी सवारियों के
बीच बचाव करने पर उनपर भी हमलावर हुए। इसी बीच एक टैम्पू चालक ने बस
कण्डैक्टर से कैश छीनने की कोशिश की लेकिन सवारियों व राहगीरों ने बचा
लिया।

Thursday 14 June 2012

एटीएम कार्ड मिला

अन्याय विवेचक के एक कर्मचारी को पीलीभीत बस अडडे पर एक एटीएम कार्ड पड़ा
मिला है। कार्ड 'आशुतोष गौतम के नाम है तथा इसकानम्बर 459150000541 है।
सम्पर्क करें-9410404892

Wednesday 13 June 2012

क्षेत्रीये खेल कार्यालय की अनियमिताओं से ऊबकर मांगी सूचनायें

बरेली-स्पोर्ट स्टेडियम में व्याप्त अनियमिताओं से तंग आकर एडवोकेट वाई.
एस. चैहान ने आरटीआई का सहारा लिया। श्री चैहान ने क्षेत्रीये खेल
अधिकारी से 8 बिन्दुओं पर सूचनाये मांगी हैं। यह और बात है कि कार्यालय
सूचनायें देने की कार्यवाही के स्थान पर मामला सुलटाने की कोशिश में लग
गया है। श्री चैहान ने सभी सूचनायें प्रमाणित रूप में मांगी है जिससे
कार्यालय में हड़कम्प मचा हुआ है।
बताते चलें कि सूबे के दूसरे विभागों की तरह ही खेल विभाग भी भ्रष्टाचार
का कारखाना बना हुआ है यहां नियम कानून की कोई औकात नहीं। स्टेडियम में
उसका राज चलता है जिसकी जेब भारी हो या शासन में अच्छी पकड़ हो।
देखना यह है कि मांगी गयी सूचनायें दी जाती है या फिर...............।
याद दिला दें कि बरेली जिले में आरटीआई की कोई औकात नहीं खुद जिला
अधिकारी कार्यालय भी सूचनायें नहीं देता। इसके पीछे सबसे बड़ा हाथ सूचना
आयोग का है जब आयोग ही दो दो साल का समय बातने के बाद भी सूचनाये न देता
हो तो अन्य कार्यालयों को किसका डर रहेगा, सभी बेलगाम हो चुके है।

Tuesday 29 May 2012

माज़ा मतलब ‘‘कूड़े’’ का रस


गर्मी की तेजी के साथ ही कोल्ड ड्रिंक का कारोबार भी शबाब पर आ चुका है लोग गर्मी से कुछ राहत पाने के सपने के साथ ही माजा, फैन्टा, पेप्सी पीने लगते हैं लेकिन उन्हें नही पता कि वे जिसे ठण्डा समझकर पी रहे हैं वह असल में कूडे कचरे का जूस है। बरेली की एक कोल्ड ड्रिंक की दुकान पर माजा, फैन्टा की धड़ल्ले से बिक्री होती है। 
 गुजरी 10 मई को जब अन्याय विवेचक के दो पत्रकार ठण्डा पीने के लिए उस दुकान पर पहुंचे और माजा व फैण्टा की एक एक बोलत मांगी। दुकानदार फ्रिज से बोतले निकाल कर खोलने ही वाला था कि पत्रकार कामरान अली की नजर दुकानदार के हाथ में मौजूद माजा की बोतल पर पड़ी जिसमें कुछ पड़ा दिखाई दिया। तुरन्त ही फैन्टा की बोतल देखी तो उसमें भी कूड़ा मौजूद था। पत्रकारों ने दोनो बोतले खरीद ली और फैक्ट्री से सम्पर्क किया। पत्रकारों के सवालों से घिरी फैक्ट्री अजय नामक व्यक्ति ने पत्रकारों से मुलाकात की तथा दोनो बोतले देखीं। अजय जो कि स्ंवय को सप्लाई आफीसर बता रहा था उसने दोनों पत्रकारों से लेनदेन कर मामला दबाने का प्रयास किया। इसपर पत्रकारों ने मुख्य खादय निरीक्षक व सिटी मजिस्ट्रेट से बात की। मु0खा0नि0 ने पत्रकारों को सलाह दी कि फैक्ट्री से सौदा कर लें। ऊधर सिटी मजिस्ट्रेट इस तरह के जनहित जैसे छोटे मामला में पड़कर समय नष्ट करना नहीं चाहते।
दूसरी तरफ अन्याय विवेचक के पास पैप्सी की एक बोतल भी सुरक्षित है जिसमें पीतल की राड पड़ी है पैप्सी के सप्लाई आफीसर का कहना है कि फैक्ट्री से रोजाना लाखों बोतल तैयार होती है किसी बोतल में कुछ गिर जाये तो इसे इतना गम्भीर नही समझना चाहिये।
दरअसल फैक्ट्रियां मजबूत है सम्बन्धित अधिकारियों की महरबानियों पर। बोतलों में कुड़ा देखने के बाद भी मु0खा0नि0 या सिटी मजिस्ट्रेट के कान तले जूं नहीं रेंगी।

Friday 25 May 2012

इन्हें कौन सा हैल्मेट पहनायेंगे साहब


 बरेली पुलिस को दुपहिया वाहन चालकों की जान की परवाह नहीं बल्की फड़ों पर 100 से 200 रूपये की कीमत में बेचे जा रहे हैल्मेट बिकवाने की चिन्ता है। 
  ये फड़ों पर बिकवाये जा रहे हैल्मेट जो हाथ से छूटकर अगर गिर जाते हैं तो टुकड़े-टुकड़े  हो जाते हैं,
   अब सोचिये कि जो हैल्मेट गिरने से ही टूट जाता हो वह इंसान के सिर को क्या बचा पायेगा।
       कारण यह कि दुपहिया वाहन वाले पुलिस की ‘‘आजादी सुविधा’’ के नियमित उपभोक्ता नहीं है जैसे कि थ्री व्हीलरए डग्गामार जीपे आदि है जिन्हें पुलिस मनचाही ओवर लोडिंग करने, तीव्र गति से दौड़ने, मनमर्जी जगह पर रूककर सवारियां भरने के साथ साथ फिटनैस कराने से भी छूट देती है।

 अगर दुपहिया वाहन भी पुलिस की इन सुविधाओं के नियमित उपभोक्ता बन जावे तो उन्हें भी छूट मिल सकती है।
       ऊपर दी गयी तस्वीरों को देखिये जीपो और टैम्पुओं पर किस तरह बाहर तक सवारियां लटकी है पुलिस भी मौजूद है लेकिन किसी को हैल्मेट की याद नहीं आरही,
ऐसा लग रहा है कि मानों जीपों, टैम्पुओं के पीछे लटक कर चलने वालीसवारियों के जीवन की गारन्टी पुलिस ने ले रखी है।
      बरेली जहां बीस किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से चल पाना पहाड़ ढाने जैसा है वहां दुपहिया
सवारों की जाने की चिन्ता एसपी यातायात को है और उनकी इच्छा है कि सुरक्षित रहे वह भी जगह जगह फड़ों पर बिकवाये जा रहे नकली हैल्मेटों से।
       भारत में खादी और खाकी को छोड़कर हर आदमी गुलाम है इस लिए गुलामों को जैसा चाहे नाच नचा लें।