देश की राजधानी में हुए परम्मपरागत कार्य बस बालात्कार के बाद दिल्ली व केन्द्र की सरकारों समेत दूसरे राजनैतिक दल बलात्कार पर फांसी की सज़ा का प्रावधान होने की मांग करते दिख रहे हैं। बड़ी ही अजीब और चैकाने वाली बात यह है कि यह मांग गुलाम जनता करे तो समझ में आता है लेकिन अगर कोई खददरधारी बलात्कार बलात्कार, अपहरण, कत्ल, सम्पत्ति कबजाने जैसे मामलों में फोसी की सज़ा के प्रावधान की बात करे तो अटपटा सा लगना स्वभाविक ही है। अगर एक दो नाम छोड़ दें तो देश के खददरधारी बलात्कार, अपहरण, कत्ल, घोटालों वगैरा में महारत हासिल करने के बाद ही विधायक, सांसद या मंत्री की कुर्सी तक पहुंचता है लगभग सभी इन महान उपाधियों के धारक हैं और कुछ तो आज भी बादस्तूर अपनी महारत को ताजा रखने के आदी हैं। शायद ही कोई ऐसा खददरधारी हो जिसने ये कार्य न किये हो, खासतौर पर बलात्कार। बलात्कार तो बलात्कार है वह चाहे चाकू बन्दूक की नोक पर किया गया हो या अपने पद और पहुंच के झांसे में लेकर किया गया हो या फिर सुरक्षा वर्दी के बल पर किया जाता हो। या गुजरात में आतंकियों ने किये और कराये हों, आखिर होते तो बलात्कार ही हैं। दिल्ली बस रेप काण्ड के बाद जहां गुलाम जनता सड़को पर आकर फांसी के प्रावधान की मांग कर रही है वहीं संसद में बैठे लोग भी फांसी की मांग करने लगे। बलात्कार की सजा फांसी हो यह मांग गुलाम हिनेस्तानी कर रहे हैं तो बात समझ में आती है लेकिन देश के खददरधारी या वर्दीधारी यह मांग करें तो बात हजम नहीं होती। ऐसी क्या मजबूरी है कि लोग अपनी ही करतूतों के खिलाफ ही कड़े कानून वह भी फांसी की सजा की मांग कर रहें हैं। दिल्ली बस गैंगरेप में ही ऐसी क्या खास बात है कि संसद से सड़क तक सभी बलात्कार की सजा फांसी की मांग करने लगे। बलात्कार तो बलात्कार है। कोई करे, कहीं करे, किसी से करे। जुर्म तो बराबर ही है। आज दिल्ली बस गैंगरेप को लेकर मालिक और गुलाम सभी चीखते दिख रहे हैं लेकिन कल जब गुजरात में आतंकियों ने दर्जनों मासूमों को बलात्कार का शिकार बनाया, कश्मीर में अकसर सुरक्षा बलों के लोग मासूमों का बलात्कार करते रहते हैं, मणिपुर में भी वर्दीधारी बलात्कार करते हैं। किसी की आवाज नहीं निकली, किसी ने आज तक फांसी तो बड़ी बात गिरफ्तारी तक की मांग नहीं की, क्यों ? क्या कानून सिर्फ गुलाम जनता के ही कुछ लोगों पर लागू होता है ? क्या सिर्फ दिल्ली बस काण्ड करने वालों ने ही गलत किया बाकी गुजरात कश्मीर, मणिपुर वगैरा में बलात्कार करने वाले सही हैं। उनके लिए क्यों किसी की हिम्मत नही होती फांसी की सजा की मांग करने की। आज बीजेपी कुलाचे भर रही है, गुजरात आतंकी हमले के समय तो खुद बीजेपी केन्द्र में काबिज थीक्यों नहीं देदी उन आतंकियों को फांसी ? अगर कांगे्रस की बात करें तो कांग्रेस तो उस समय ओकात पर थी लेकिन जैसे ही सरकार में पहुंची तो कांग्रेस ने सबसे पहले आतंकियों के मास्टर माइण्ड को सम्मान पुरूस्कार तो दिसया ही साथ ही अभयदान भी दिया। आज उसी कांग्रेस की सरकार बलात्कार की सजा फांसी की बात ही नही कर रही बल्कि बिल भी नचा रही है।
मांग अच्छी है और इसी तरह के सख्त कानून होना भी चाहिये। लेकिन कानून को पूरी तरह से अंधा होना चाहिये, कानून को अपराधी के पद, धर्म, उसके पहुंच या उसकी शक्ति और उसके देश को देखकर सजा या मज़ा का फैसला नहीं करना चाहिये जैसे कि भारत के दूसरे कानून करते रहे हैं। न्यायसंगत कानून का मतलब यह नहीं होना चाहिये कि संसद, विधानसभाओं, परिषदों, निगमों में बैठे खददरधरियों, गुजरात, मालेगांव, दरगाह अजमेर शरीफ, समझौता एक्सप्रेस हमलों के आतंकियों को दस्यों साल तक सरकारी खर्च पर पाले, सम्मान पुरूस्कार दे, हुकूमत करने में मदद करे और गुलाम जनता के किसी व्यक्ति को, उसकी नागरिकता उसके धर्म उसकी हैसियत पर हावी होकर चन्द दिनों के अन्दर ही सजा दे। अभी तक तो जितने भी कानून देखे गये हैं उनका यही हश्र होते देखा गया। मिसाल के तौर पर देखें कि 20-25 साल पहले जिन पाकिस्तानी महिलाओं ने भारत के पुरूषों से शादिया करके भारत में ही बस गयीं थी, उनके छोटे छोटे बच्चे हैं भारत के कानून ने उन्हें उनके बच्चों तक को छोड़कर देश से जाने पर मजबूर किया, वायोवृद्ध कैंसर से पीडि़त हवलदार खां को सिर्फ इसलिए बरेली में वर्षों तक सड़ाया गया उनका सही ईलाज तक नहीं कराया गया उनपर आरोप लगाया गया कि वे पाकिस्तानी है और वीजा अवधि समाप्त होने के बाद भी देश में रह रहे हैं यहां कुछ माह पहले उनकी मौत हो गयी ये सिर्फ इसलिए किया गया कि वे सभी महिलायें और स्व0 हवलदार खां मुसलमान थे जबकि इसके विपरीत गुजरे साल पाकिस्तान का एक देशद्रोही जाकि पाकिस्तान की सरकार में मंत्री था अपने देश पाकिस्तान से गददारी करने के लिए भारत आया यहां की सरकारों ने उसे सरकार महमान बनाकर रखा, उसकी वीजा अवधि की समाप्ती की कोई चिन्ता नही हुई उसे वापिस नहीं भेजा गया उसके बाद पाकिस्तान के सैकड़ों गददार इस वर्ष आये और उन्हें भी लम्बे समय से पाला जा रहा है, क्यों ? क्योंकि वे सभी हिन्दू हैं, उनपर वीजा कानून लागू नहीं होता जबकि इन पाकिस्तानी देशद्रोहियों ने भारत में ऐसी मनगंढ़तें सेनाकर भारत की शान्ति को भी पलीता लगाने की कोशिशें की। अगर बात करें आतंकवाद की तो भारत के कानून में मुसलमान एक दो गैरमुस्लिमों का कत्ल करे तो वह आतंकवादी, मुसलमान अपना हक और इंसाफ मांगे तो आतंकी लेकिन हिन्दू हजारों की संख्या में कत्लेआम करे तो वह माननीय, सम्मान व पुरूस्कार का हकदार। कस्साब ने कुछ लोगों की जाने लीं तो चन्द दिनों में ही सज़ाये मौत, कयोंकि वह मुसलमान था। आतंकी असीमानन्द, प्रज्ञा ठाकुर, विनय समेत गुजरात आतंकियों ने हजारों का कत्लेआम किया तो सम्मान व पुरूस्कार और सिंहासन, क्योंकि ये सभी मुसलमान नहीं हैं। गोधरा में की गयी साजिश की जांच नानावटी व रगंनाथ मिश्र आयोगों ने करके अपनी आख्याओं में मोदी की साजिशों को बेनकाब कर दिया, रगंनाथ मिश्र ने तो यह तक कहा था कि मोदी को हिरासत में रखकर मुकदमा चलाया जाना चाहिये। इन रिपोर्टों को मनमोहन सिंह सरकार ने दफनाकर मोदी को अभयदान जारी रखा, क्यों ? क्योंकि मोदी मुसलमान नही है यही साजिश अगर फारूख अबदुल्ला, या उमर अबदुल्ला ने की होती तो शायद वे अबतक फांसी पर झूल गये होते या कम से कम जेल में तो सड़ाये ही जा रहे होते।
अब देखिये वर्दी के सामने कानून की नामर्दी। बरेली के थाना सीबी गंज के पूर्व थानाध्यक्ष वीएस सिरोही ने एक पत्रकार परिवार से खुलेआम 20 हजार रूपये की फिरौती की मांग की इसकी शिकायतों समाचारों को पढ़ने के बावजूद सीओ से डीजीपी तक, सिटी मजिस्ट्रेट से मुख्य सचिव तक और गृहसचिव से प्रधानमंत्री तक पूरा साल गुजर जाने के बावजूद किसी की हिम्मत नही हो रही कि उसके खिलाफ मुकदमा तो दूर विभागीय कार्यवाही भी कर सके। जबकि जबकि पत्रकार को झूठा केस आजानी से बनाकर दर्ज कर दिया गया।
हमारी बात का मतलब यह नहीं कि बलात्कार के खिलाफ सख्त कानून न हो। कानून होना चाहिये। हम तो कहते हैं कि इस्लामी कानून को अपनाया जाये क्योंकि दुनिया के कानूनों में सिर्फ इस्लामी कानून ही एक ऐसा कानून है जिसके चलते अपराध होते ही नहीं अगर कोई गलती से कर भी दे तो उसकी सज़ा को देखकर दूसरे समय से पहले ही सुधर जाते हैं यह और बात है कि भारत और अमरीका के कुछ आतंकियों को इन सज़ाओं से मिर्ची लगती है।
दिल्ली बस काण्ड पर फांसी की सज़ा की मांग करने वालों से हमारा सवाल है कि सोचिये कि अगर फांसी की सज़ा का प्रावधान आया तो पार्लियामेन्ट, विधानसभाओं, निगमों, परिषदों का क्या होगा कौन बैठेगा ? सुरक्षा बलों की तादाद न के बराबर रह जायेगी। किर क्या होगा ? जाहिर है कि खददरधारी इस तरह का कानून पास नहीं कर सकते, करेंगे लेकिन इस तरह से कि उसका मर्दानगी सिर्फ गुलाम जनता तक ही होगी। खादी और वर्दी के सामने उसकी कोई औकात नहीं होगी।