Tuesday 18 July 2023

पूरी तरह प्री प्लान्टेड है ‘‘सीमा सचिन तमाशे की स्क्रिप्ट’’ - इमरान नियाज़ी



 

देश की पालतू मीडिया के साथ ही मोबाइल मीडिया भी पाकिस्तानी बताई जा रही सीमा नामक महिला और उसके आशिक की प्रेम गाथा में लीन नज़र आ रही है। इन नफरत जिहादियों की गुलाटियां मारने की दो खास वजह हैं। पहली यह कि महिला को मुसलमान बताया जाना और दूसरा पाकिस्तानी बताया जाना,। नफरत जिहादियों का मानसिक सन्तुलन बिगड़ने के लिए इतना ही काफी है। तमाम पालतू चैनलों पर मुजरे शुरू हो गये। सब इस तरह से उसकी वीर गाथा सुनाकर देश को किसी दलदल में ढकेलने की कोशिश की जा रही है कि मानो वह अपने परिवार देश से गददारी करके भाग कर नहीं आई बल्कि वीरता का कोई बड़ा एवार्ड जीत कर लाई हो। हमे शक ही नहीं बल्कि यक़ीन है कि ‘‘यह सब ड्रामा रचा जा रहा है 2024 लोकसभा चुनाव सिर पर है। यह बात हम इस लिए कह रहे हैं कि ‘‘यह महिला खास तौर से पाकिस्तान के खिलाफ बोलने के साथ ही यह भी बोल रही है कि उसे पाकिस्तान से धमकियां मिल रही हैं। 

दरअसल सारा मामला अच्छे से सोच समझकर तैयार किया गया लगता है। हो सकता है 2024 लोकसभा चुनावों की बुनियाद रखी गई हो। हमारा यह शक इसलिए मजबूती पर है कि क्योकि पालतू मीडिया यानी अफवाह जिहादियों के गैंग ने अपना काम शुरू कर दिया है। पालतू मीडिया का नफरत जिहादी गैंग पुरी ताकत के साथ इस भगोड़ी महिला के नाम के सहारे देश के हिन्दू समाज को भड़काने में लगा गया है। देश को बताया जा रहा है कि सीमा की वजह से पाकिस्तान में मन्दिारों पर हमले किये जा रहे है। दरअसल  अफवाह जिहादियों का ये गेंग ना सिर्फ पुलिस की आईटी सेल का पालतू है बल्कि प्रेस कौंसिल का भी पालतू है। अफवाह जिहादियों की इस अफवाह को देख कर हमने इन्टरनेट खंगाला। तब पाया कि अगस्त 2021 के बाद से आजतक पाकिस्तान में इस तरह की कोई घटना नहीं घटी।

महिला जो स्क्रिप्टेड कहानी सुना रही है वो किसी भी तरह गले नहीं ऊतर रही। महिला कहानी में कहती है कि ‘‘वह चार बच्चों के साथ पहले पाकिस्तान से शारजाह गई फिर शारजाह से नेपाल पहुंची, फिर नेपाल से भारत में घुस आई।’’ हालांकि यह बच्चों को अपना बता रही है, कोई गारन्टी नहीं कि बच्चे इसी के हैं। 

यह अपना नाम ‘‘सीमा हैदर’’ और उम्र 27 साल बता रही है। सिर्फ पांचवी पास बता रही है, लेकिन फर्राटे के साथ इंग्लिश और हिन्दी बोल रही है। इसको कम्पूटर की भी खासी जानकारी है। इसकी बात चीत में बिलकुल भी पाकिस्तानी अंदाज़ नहीं आता। अजीब बात है कि जहां पली बड़ी, आधी उम्र गुज़ारी वहां की भाषा और अन्दाज़ अचानक ही कैसे बदल गया ? सबसे चैंकाने वाली बात यह है कि ‘‘ जो महिला पाकिस्तान के मुस्लिम परिवार में जन्मी, पली बड़ी, उम्र के 27 साल वहीं गुज़ारे और आज उसे ना इस्लाम का कलमा याद है और ना ही नमाज़ों की गिनती याद है’’। क्या यह बात किसी को हजम हो सकती है जबकि नमाज़ों की गिनती, कलमा तो आज के दौर में गैर मुस्लिमों तक को याद हो चुका है। यह कह रही है कि इसके परिवार की माली हालत खस्ता था। चार चार मोबाइल फोन होने के सवाल पर यह कहती है कि तीन मोबाइल बच्चों के हैं। इश्क बाज़ी करना और हर रोज़ नये आशिक पकड़ना इसका शौक है यानी सचिन नामक व्यक्ति पहला शिकार नहीं है इससे पहले भी शिकार बनने वालों में अभी तक 6 नाम सामने आ चुके हैं।

इसके पास फर्ज़ी आईडी, पांच पासपोर्ट हैं। चार मोबाईल फोन हैं। कई सिम कार्ड हैं। इसका एक भाई पाकिस्तानी आर्मी में है।

अब सवाल ये पैदा होते हैं कि ‘‘यह चारों बच्चों के साथ घर से भागी, तब इसके परिवार ने गुमशुदगी दर्ज कराई होगी। चार बच्चों के साथ किसी महिला के गायब होने पर किसी भी देश की पुलिस में हड़कम्प मचना लाज़मी है। पाकिस्तान पुलिस में भी उथल पुथल हुई होगी। उसके परिवार ने पुलिस और मीडिया को ये भी बताया होगा, कि महिला और बच्चों के पासपोर्ट (अगर होंगे तो) लेकर गई है। पासपोर्ट के साथ भागने की खबर पर पुलिस ने सभी एम्बेसियों से सम्पर्क किया होगा। शारजाह गई तो वीज़ा लिया होगा। एम्बेसी ने पुलिस को बता ही दिया होगा कि शारजाह गई है। ऐसी हालात में किसी भी देश की पुलिस तत्काल उस देश से सम्पर्क करती है, तो पाकिस्तान पुलिस ने भी शारजाह सरकार से सम्पर्क जरूर किया होगा। क्योंकि बात सिर्फ भगोड़ी महिला तक की नहीं चार बच्चों की है। शारजाह पहुंचने पर कस्टम टीम ने इसके सामान की तलाशी भी गई होगी, तब फर्ज़ी आईडी, पांच पासपार्ट, कई सिम कार्ड, देखकर शारजाह पुलिस कैसे अनदेखा कर सकती है। साथ ही ऐसा तो सग्भव ही नहीं कि शारजाह एअरपोर्ट पर एक हवाई जहाज़ से ऊतर कर नेपाल जाने वाले जहाज़ में सवार हो गई होगी,। ज़ाहिर है हफता दस दिन शारजाह में रही होगी।

इसपर सवाल यह भी शाहजाह सरकार ने उसे हिरासत में लेकर वापिस क्यों नहीं भेजा ? जबकि शारजाह और पाकिस्तान के सम्बन्ध भी काफी बेहतर हैं।

नेपाल से भी वीज़ा लिया होगा। नेपाल पैदल तो पहुंची नहीं, जहाज से गई होगी। क्या बिना वीज़ा ही नेपाल पहुंची ? नेपाल पहुंची तो नेपाल एअरपोर्ट पर उसके पास पांच पासपोर्ट, कई सारे सिम कार्ड, आदि देखकर नेपाल कस्टम और पुलिस उसे हिरासत में क्यों नहीं लिया गया ? नेपाल के रास्ते भारत में घुसी, कई महीने से नोयडा में रह रही है। यहां सबसे अहम पहलू यह है कि ‘‘इसके मामले भारत की खुफिया एजेंसियां का भनक कैसे नहीं लगी। महीनों बाद पुलिस ने उसका दरवाज़ा खटखटाया और दो दिन दावत खिलाकर बिदा कर दिया। वह खुद बता रही है कि जेल स्टाफ और पुलिस बहुत अच्छी है, बहुत ध्यान रखा उसका। अवैध तरीक़े से देश में घुसकर महीनों से रहने वाली घुसपैठिया को इतनी आसानी और जल्दी ज़मानत केसे मिली ? जककि उसके पास से फर्ज़ी आईडी, पांच पासपोर्ट, आधा दर्जन सिम कार्ड, चार मोबाइल के साथ और भी बहुत कुछ बरामद हुआ तो उसको दो दिन में ही ज़मानत कैसे दी गई ? उसकी ज़मानत लेने वालों से कड़ी पूछताछ क्यों नहीं की गई ? इसकी वकालत करने वकील भी खड़े हो गये जबकि बहुत से मामलों में पूरी बार कौंसिल को हाथ खड़े करते देखा गया है।’’

जबकि हज़ारों पाकिस्तानियों को सालों साल जेल में ही सड़ाने के साथ ही उनको बुरी तरह टाॅर्चर भी किया जाता है, ‘‘गौर तलब बात यह है कि आखिर इसपर इतनी महरबानी क्यों ?’’

यहां याद दिलाते चलें कि लगभग बीस साल पहले भारत सरकार ने उन दर्जनों पाकिस्तानी महिलाओं को देश से निकाला था, जो पिछले 25 - 30 साल से यहां शादियां करके सकुन से रह रही थीं उनके कई कई बच्चे थे, उन्हें उनके नन्हें नन्हें बच्चों को भी छोड़कर जाने पर मजबूर किया गया था। दूसरा तरफ 2004 -05 के दौरान लगभग 130 पाकिस्तानी घुसपैठिये गुजरात आए, उन्हें हिरासत में लेने निकाले जाने की बजाए आजतक सरकारी दामाद की तरह पाला जा रहा है, इन घुसपैठियों में पाकिस्तान सरकार का एक मंत्री भी था। ठीक वही मामला इस महिला के साथ भी किया जा रहा है। इसे भी सरकारी मेहमान बनाकर रखा जा रहा है। ताज़ा मामला ही देखें कि गुज़रे हफ्ते ही यूपी के बरेली के कस्बा आंवला के पेन्टर तौहीद की गेम ओर सोशल मीडिया के जरिये पाकिस्तानी युवक से दोस्ती हुई। ये लोग दोस्ती के नाते अकसर बातचीत कर लेते। मुस्लिम निगरानी सेल यानी सरकारी आईटी सेल को हज़म नहीं हुई जुलाई के शुरू में ही एनआईए ने ताहीद के घर छापा माराकर उसे हिरासत में लिया माबाईल जब्त किया तलाशी ली, बेंक अकाउन्ट खंगाले जाने लगे ओर आजतक यही सब चल रहा है। जबकि तथाकथित सचिन पिछले तीन साल से लगातार रोजाना कई कई बार घण्टों तक इस महिला से चिपका रहता था तब आईटी सेल को दिक्कत क्यों नहीं हुई ?

आप इस बात को सेव करके रख लीजिये कि अभी कुछ दिनों तक सीमा के नाम के मुजरे किये जाते रहेंगे। 2024 शुरू होते ही इस महिला का पर्दा फाश किया जायेगा। तरह तरह के आरोप लगाये जायेंगे फिर नफरत जिकादियों को काम पर लगाकर मुसलमान पाकिस्तान के खिलाफ हिन्दू समाज को भड़काकर 2024 चुनाव पर हाथ साफ किया जायेगा।


Saturday 1 July 2023

‘‘हमारी क़ौम तो मुर्दा है एक ज़माने से, जो मर चुका है वो दोबारा मर नहीं सकता।’’ - इमरान नियाज़ी

 


‘‘फ़ुज़ूल आप पे इल्ज़ामे क़त्ल है  साहिब, मरे हुवों को कोई क़त्ल कर नहीं सकता।’’

‘‘हमारी क़ौम तो मुर्दा है एक ज़माने से, जो मर चुका है वो दोबारा मर नहीं सकता।’’


आज से लगभग तीस साल पहले लखनऊ यूनीवर्सिटी के मुशायरे में मशहूर शायर ‘‘मन्ज़र भोपाली’’ के पढ़े हुए ये शेर आज सौ फीसदी नक्शा हैं आज के उन लोगों के हालत का जो खुद को मुसलमान कहते फिरते है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि ये हकीकत काफी लोगों को बुरी लगेगी, कुछेक दुश्मन बन जायेंगे, लेकिन वक्त और हालात का तक़ाज़ा है कि ‘‘मुरदा बन चुकी क़ौम को आइना दिखाया जाए। दरअसल सच्चाई ये है कि मेरी क़ौम भैंसा खाती है तो उसकी खोपड़ी भी भैंसे की ही हो चुकी हैं। और इसी भैंसा खोपड़ी ने पूरी क़ौम को मुरदार बना दिया है। साथ ही साथ दुनिया की दूसरी बड़ी क़ौम को हिजड़ा बनाने में मुल्लाओं ओर मियाओं का बहुत बड़ा हाथ है। इन मुल्लाओं ओर मियाओं ने क़ौम को शिया और सुन्नी में बांटा। फिर बरेलवी, सुन्नी ग्रुप को वहाबी, देवबन्दी, अहले हदीस नाम के टुकड़ों में बांटा। इतने से भी इनको सकून नहीं मिला तब इन्होंने सकलैनी, मदारी, चिश्ती, नियाज़ी वगैराह को अलग कर दिया। कुल मिलाकर अपनी दुकाने चलाने और मालामाल बने रहने के साथ ही साथ भरपूर दबदबा बनाने के लिए दुनिया की दूसरी बड़ी कौम के सैकड़ों टुकड़े कर दिये। मशहूर शायर हाशिम फिरोज़ाबादी ने सच ही कहा था, कि 

‘‘सैकड़ों खुदा हैं जिनके वो एक जगह खड़े हैं’’  

‘‘एक  खुदा  वाले  सारे  बिखरे  हुए  पड़े हैं’’ 

मुल्ला और मियां तो अपने ऐश के लिए क़ौम की बलि दे रहे हैं, इन मुल्लाओं और मियांओं ने क़ौम का इस हद तक ब्रेन वाॅश कर दिया है कि क़ौम अपना अच्छा बुरा खुद सोचने समझने की सलाहियत पूरी तरह खो चुकी है। 35 करोड़ से ज़्यादा आबादी वाली कौम का ना तो अपना कोई खबरया चैनल है और ना ही मेन स्ट्रीम में कोई अखबार। और जो कुछ वीकली या पन्द्रह रोज़ा अखबार, पोर्टल वगैराह हैं तो उनमें 99 फीसदी तो दलाली करके कमाई में लगे हैं। इक्का दुक्का अखबार, पोर्टल हिम्मत करके क़ौम के मुद्दों को उठाते हैं तो क़ौम इनको सपोर्ट नहीं करती। कौम के व्यापारी, नेता, मुल्ला, मियां, विज्ञापन आरएसएस लाॅबी के अखबारों को देते हैं। मुस्लिम अखबारों को विज्ञापन नहीं देते, क्योंकि इन छोटे अखबारों में इनकी रंग बिरंगी फोटो नहीं छपती। जब जब मामला इस्लाम का होता है, तब ना कोई मुल्ला मुंह खोलने की जुर्रत करता है ना कोई मियां ही दम भरता है। हां अगर अपने खानदान या खुद की किसी कारगुज़ारी पर उंगली उठती है, तब ये लोग अपने गुर्गो को उंगली उठाने वाले के घरों पर हमले मारपीट तोड़फोड़ कराने में देर नहीं करते। हद तो ये है कि इनके अपने परिवार के खिलाफ मुंह खोलने वाले पर फौरन फतवे लगाकर उसके खिलाफ समाज को भड़काने में देरी नहीं की जाती लेकिन जिन मामलों में फतवे लगाना ज़रूरी होता हे वहां सांप सूंघा रहता है। हर रोज़ उर्स चादर जलसों मदरसों के नाम पर क़ौम के पैसे को हड़पना ही इनका पेशा है। कभी किसी मुल्ला या मियां ने कोशिश नहीं की कि कब्रों पर पचासों करोड़ कीमत के पत्थर लगाने से बेहतर है कि क़ौम के बच्चों के लिए अच्छे स्कूल कालेज खोलें कौम के बच्चों को आईएएस, आईपीएस, डाक्टर, इंजीनियर, वकील बनाने की कोशिश नहीं की। क्योंकि स्कूल कालेज जहालत को मिटा देंगे और जहालत खत्म होगी तो मियांओं मुल्लाओं के परिवारों को मस्ती, ऐशों आराम करने के लिए मिलने वाले माल में रूकावट आ जायेगी।

अब सवाल ये पैदा होता है कि मुल्ला या मियां तो अपनी दुकाने चलाने ओर क़ौम के माल पर ऐश करने के लिए सब करते हैं लेकिन इतनी बड़ी कौम जहालत की दलदल से क्यों बाहर नहीं आना चाहती। मान लिया कि बीस साल पहले तक पढ़ाई लिखाई कम थी इसलिए किसी की समझमें में इनकी करतूतें नहीं आती थीं, लेकिन अब तो पढ़े लिखे तबक़े की बड़ी तादाद बनकर खड़ी हो चुकी है, फिर भी क़ौम अपने हालात को बदलना नहीं चाहती। काफ़ी तादाद में लोग पढ़ लिखकर डाक्टर, इंजीनियर, वकील बन गये, लेकिन इनसे क़ौम को कोई फ़ायदा पहुंचने की बजाए ये सिर्फ और सिर्फ अपने भले में लगे हैं, ये लोग अपनी दुकानों के नाम मज़हबी रखकर क़ौम को ही नोचने में लगे दिखते हैं। इनका मक़सद सिर्फ माल कमाना ही होता है। जबकि दूसरी तरफ़ नज़र डालिये, खुले आम धर्मवाद फैलाते मिलते हैं, चाहे वे डाक्टर हों या वकील, जमकर धर्मवाद फैला रहे हैं। लेकिन हमारे वाले खुद कुछ करने की जगह उलटे दूसरों के हौसले भी कुचलने में लग जाते हैं। डाक्टर, इंजीनियर को छोड़िये, कम से कम वकील तो होते ही हैं कानून के जानकार, कभी किसी मामले में क़ौम के लिए नहीं खड़े होते। देश में एक दो बड़े मामले ऐसे भी हुए जिनमें मुस्लिम समझे जाने वाले वकीलों ने आरएसएस के वकीलों का साथ दिया, खुलेआम बेइंसाफी का नंगा नाच देखा, इनकी जुर्रत नहीं हुई कि इंसाफ कीे लिए कानूनी लड़ाई लड़ें। यही हालात मुस्लिम नाम वाले डाक्टरों के भी है। डा0 कफील पर हुए जुल्म के खिलाफ़ आवाज़ उठाने के नाम पर मुस्लिम नामों वाले डाक्टरों को सांप सूंघ गया, लेकिन आरएसएस की मेडीकल ब्रांच यानी आईएमए के हर तमाशे में ये आगे आगे कूदते दिखते हैं। चलिये ये बात तो थी पढ़े लिखे तबक़े की बुज़दिली और फ़र्ज़ी मुसलमानियत। अब बात करते हैं, उन लोगों की जो बड़ी ही शान से पत्रकार बनकर घूमते हैं। ये फौज तो क़ौम के सिर पर सिर्फ एक बोझ के सिवा कुछ नहीं। केवल उगाही तक ही है इनकी पत्रकारिता। सबसे बड़ी बात तो यह हे कि मुस्लिम नामों वाले स्वंयभू पत्रकारों की ये फौज भी मीडिया के चोले में छिपे दलालों और पालतुओं की ही राह पर चलती दिखती है। इनकी भी बड़ी मजबूरी है, मजबूरी ये है कि बेचारे आठवीं के बाद कभी स्कूल गये नहीं, लिख पढ़ नहीं सकते, तो हालात की जानकारी नहीं रख सकते। अफग़ानिस्तान लुटा मुसलमान मस्त रहा, गुजरात में मुसलमानों पर आतंक बरपाया गया मुसलमान अपनी मस्ती में मस्त रहा, कश्मीर, सीरिया, इराक, फिलिस्तीन में लगातार क़ौम को मिटाने की कोशिशें की जा रही हैं, मुसलमान को उर्स, चादर, जलसो,ं मज़ारों से फुर्सत नहीं। इतना ही नहीं बल्कि इस्लाम को मिटाने और मुस्लिम औरतों को इस्लामी कायदे क़ानून के खिलाफ़ खड़ा करने की साजिश के तहत कुछ पालतू चैनलों पर इस तरह के सीरियल दिन भर दिखाये जा रहे हैं। किसी मुसलमान ने ना विरोघ किया और ना ही अपने घरों में इन आतंकी चैनलों के चलाने पर रोक लगाई। हद तो ये है कि सीएए मामले में रिलायंस/जियों की मालिक नीता अम्बानी ने खुलकर ज़हरीली उल्टियां की, करोड़ों की तादाद में जियो सिम चलाने वाली जाहिल क़ौम में सिर्फ चार पांच ने ही जियो का बहिष्कार किया बाकी करोड़ों ज्यों के त्यों मस्त हैं। ‘‘आजतक, जी न्यूज़, एबीपी जैसे नफरती चैनलों में सैकड़ो की तादाद में मुस्लिम ग़ुलाम हैं किसी ने अपने ज़मीर को नहीं जगाया। ‘‘ज़ी’’ का इंटरटेंमेंन्ट चैनल मुस्लिम औरतों में इस्लाम के खिलाफ खुलकर ज़हर भर रहा है किसी को हरारत नहीं आई। अब अगर बात करें जन्नत के ठेकेदारों की तो ये फिल्म अदाकारों, नेकर पहनकर मज़दूरी करने वाले ग़रीबों पर, इनके परिवारों की किसी हरकत के खिलाफ़ मुंह खोलने वालों के खिलाफ़ फतवे लगाने में देरी नहीं करते लेकिन अपने खून से बन्दे मातरम लिखने, आसिफ़ा ओर बिलकीस के गुनाहगारों, नबी के खताकारों के मुस्लिम नाम वाले मददगारों के खिलाफ़ फतवे देने की हिम्मत नहीं है।

खुद अपनी बुज़दिली, जहालत, मुफत खोरी की वजह से क़ौम के गिरते हुए हालात का इलज़ाम आरएसएस/बीजेपी समेत दूसरे दुश्मनों पर थोपे जाते हैं। जब तुम खुद ही मुर्दा बन चुके हो तो अपने कुचले जाने का इलज़ाम किसी पर मत थोपो।