Sunday 18 August 2013

गुलामी में आज़ादी का जश्न

लो, 66वीं बार, एक बार फिर मनाने लगे जश्न आज़ादी (स्वतन्त्रता दिवस), बड़ी ही धूम मची है ऐसा लगता है मानों कोई धार्मिक त्योहार हो या घर घर में शादी हो। सबसे ज्यादा चैकाने वाली बात यह है कि आज़ादी के इस जश्न को सबसे ज्यादा धूम से मनाने वाले वे लोग है जो आजतक आज़ाद हुए ही नहीं। 15 अगस्त 1947 से पहले और बाद में फर्क सिर्फ इतना हुआ कि पहले विदेशियों की गुलामी में थे और अब 66 साल से देसियों की गुलामी में जीना पड़ रहा है। किसी भी तरह का जश्न मनाने से पहले यह जानना जरूरी है कि जिस बात का हम जश्न मना रहे हैं आखिर वह है क्या, हमसे उसका क्या ताआल्लूक (सम्बन्ध) है उसने हमे कया दिया है, या हमें क्यों मनाना चाहिये उसका जश्न?...... तो आईये सबसे पहले यह जाने कि आज़ादी और गुलामी कया है? गुलामी का मतलब है कि हम अपनी मर्जी से जीने का कोई हक (अधिकार) नहीं, हम अपनी मर्जी से खा नहीं सकते पहन नही सकते, पढ़ नहीं सकते रहने के लिए घर नहीं बना सकते, अपने ही वतन में घूम फिर नहीं सकते। अगर कहीं जाते हैं तो उसका टैक्स देना पड़ता है। कुछ खरीदते या बेचते हैं तो उसका टैक्स देना पड़ता है। इसी तरह की सैकड़ों बाते हैं जो यह बताती है कि हम किसी की गुलामी में है। आज़ादी उसे कहते हैं जिसमें लोग अपनी मर्जी के मालिक होते हैं। जैसा चाहें खायें पहने जैसे चाहें जियें, कहीं घूमें फिरें वगैरा वगैरा। आईये अब देखें कि जिस आज़ादी के नाम पर हम जश्न मना रहे हैं वह हमें मिली या नही.......? 66 साल के लम्बे अर्से में देखा यह गया है कि हिन्दोस्तान का आम आदमी ज्यों का त्यों गुलाम ही है ठीक वैसे ही हालात हैं जैसे 15 अगस्त 1947 से पहले थे। 15 अगस्त 1947 के बाद से फर्क सिर्फ इतना हुआ है कि 1947 से पहले हम विदेशियों के गुलाम थे और इसके बाद से देसियों के गुलाम बना दिये गये हैं। हिन्दोस्तानियों पर बेशुमार कानून लादे गये ओर लगातार लादे जा रहे हैं आजतक कोई भी ऐसा कानून नहीं बना जिसमें आम आदमी को आज़ादी के साथ जीने का अधिकार दिया गया हो, खादी ओर वर्दी को आज़ादी देने के लिए हर रोज़ नये से नया कानून बनाया जाता रहा है, ऐसे कानूनों की तादाद इतनी हो गयी कि गिनती करना मुश्किल है। किसी भी विषय को उठाकर देखिये, आम आदमी को कदम कदम पर उसके गुलाम होने का एहसास कराने वाले ही नियम मिलेंगे, वे चाहे आय का विषय हो या व्यय का, खरीदारी का मामला हो या बिक्री का, वतन के अन्दर घूमने फिरने की बात हो या फिर रहने बसने की, इबादतों का मामला हो या रोजीरोजगार का, सफर करने की बात हो या ठहरने की। कोई भी मामला ऐसा नहीं जिसमें आम जनता को उसके गुलाम होने का एहसास नहीं कराया जाता। किसी भी नजरिये से देख लीजिये। आप अपने घर से निकलये आपको हर पन्द्र बीस किलोमीटर की दूरी पर टौल टैक्स देना होता है, जबकि ये टैक्स वर्दी और खादी से नहीं लिये जा सकते, रेल रिजर्वेशन कराये तो वहां भी खादी और वर्दी के लिए किराये में बड़ी रियायत के साथ कोटा मौजूद रहता है। आम हिन्दोस्तानी को उसके गुलाम होने का एहसास कराये जाने का एक सबूत यह भी है कि खददरधारी जब पैदल होते हैं और दर बदर वोट की भीख मांगते हैं तब ये खददरधारी जिन गुलामों के बिना किसी खौफ, और वर्दी वालों की लम्बी चैड़ी फौज को साथ लिये बिना ही उस ही गुलाम जनता के बीच फिरते दिखाई पड़ते हैं जो गुलाम जनता इन्हें कुर्सी मिलते ही दुश्मन लगने लगती है, गुलाम वोटरों से इन्हें बड़ा खतरा होता है। यानी कुर्सी मिलते ही गुलाम जनता को उसकी औकात ओर गुलाम होने का एहसास कराया जाता है। ट्रेनों में सुरक्षा बलों के जवान और सिविल पुलिस वर्दी धारी गुलाम भारतीयों को बोगी से उतारकर पुरी बोगी पर कब्ज़ा करके कुछ सीटों पर आराम से खुद लेटते हैं बाकी सीटें पैसे लेले कर सवारियों को बैठने की इजाजत देते है यह कारसाज़ी लखनऊ के स्टेशनों पर अकसर रात में देखी जाती है। अगर बात की जाये विदेश यात्रा के लिए पासपोर्ट बनवाने की तो यहां भी खददर धारियों को पासपोर्ट पहले दिया जाता है और आवेदनों की जांच बाद में जबकि गुलामों को पुलिस, एलआईयू का पेट भरना जरूरी होता है तब कहीं जाकर पासपोर्ट मिल पाता है, साल भर पहले तक तो पासपोर्ट बनाने का काम सरकारी दफ्तरों में किया जाता था गुलामों को सरकारी बाबुओं की झिड़कियां खानी पड़ती थी, लेकिन लगभग साल भर पहले यह काम भी कमीशन खाने के चक्कर में निजि हाथों में दे दिया गया। बिजली उपभोग का मामला देखिये गुलाम जनता का कोई उपभोक्ता बिल जमा करने में देरी करदे तो तुरन्त उसे सलाई से वंचित करते हैं जबकि खददरधारियों और वर्दीधारियों के यहां बिजली सप्लाई निःशुल्क है, गुलाम जनता के लोग पड़ोस के घर से सप्लाई लेले तो दोनों के खिलाफ
बिजली चोरी का मुकदमा ओर वर्दीधारियों के यहां खुलेआम कटिया पड़ी रहती है बरेली की ही पुरानी पुलिस लाईन में सैकड़ों की तादाद में कटिया डाली हुई हैं सारे ही थानों में ऐसे ही उपभोग की जाती है बिजली कभी कहीं की लाईन नहीं काटी जाती। गुलाम जनता के मासूम बच्चे भूखे पेट सो सो कर कुपोषण की गिरफ्त में आ जाते हैं जबकि खददरधारियों, और वर्दीधारियों के घरों पर पाले जा रहे कुत्ते भी दूध, देसी घी, के साथ खाते हैं फिर भी सोच यहकि हम आजाद हैं। किसी भी नजरिये से देखा जाये आम आदमी गुलाम ओर खादी, वर्दी मालिक दिखाई पड़ती है। एक छोटा सा उदाहरण देखें शहरों में जगह जगह वाहन चैकिंग के नाम पर उगाही किये जाने का नियम है, गुलाम जनता का कोई भी शख्स किसी भी मजबूरी के तहत अगर दुपहिया पर तीन सवारी बैठाकर जा रहा है तो उसका तुरन्त चालान या गुलामी टैक्स की मोटी वसूली जबकि वर्दी वाले खुलेआम तीन सवारी लेकर घूमते रहते है किसी की हिम्मत नहीं जो उन्हें रोक सके। सबसे बड़ी बात तो यह कि वर्दी वालों को अपने निजि वाहनों पर भी हूटर घनघनाने का कानून, जबकि गुलाम जनता को तेज आवाज के हार्न की भी इजाजत नहीं। राजमार्गो पर हर पन्द्र-बीस किमी की दूरी पर सरकारी हफ्ता वसूली बूथ लगाये गये हैं इनपर बड़े बड़े होर्डिंग लगाये गये हैं जिनपर साफ साफ लिखा गया है कि किस किस के वाहन को छूट है इनमें खादी व वर्दी धारी मुख्य हैं। किसी भी पर्यटन स्थल पर देख लीजिये वहां प्रवेश के नाम पर उगाही, यहां पर भी गांधी की खादीधारियों एंव पुलिस को छूट होने का संदेश लिखा रहता है। लेखिन नारा वही कि आजाद हैं। खददरधारी कत्लेआम करे, और वर्दीधारी सरेआम कत्ल करें तो सज़ा तो दूर गिरफ्तारी तक करने का प्रावधान नहीं जबकि गुलाम जनता के किसी शख्स एक दो कत्ल कर दे तो उसको आनन फांनन में फांसी के बहाने कत्ल कर दिया जाता है। अदालतें भी खादी, वर्दी वालों के सामने बेबस ओर लाचार दिखाई पड़ती है जबकि गुलाम जनता के लिए पूरी शक्ति व सख्ती दिखाती देखी गयी हैं। लेकिन हमारा नारा वही कि आजाद हैं। 15 अगस्त की रात ब्रिटिशों के जाने के बाद गांधी जी ने घोषणा की थी कि "आज से हम आज़ाद हैं" गांधी के इस 'हम' से बेचारे सीधे साधे हिन्दोस्तानी समझ बैठे कि सब भारतीय। लेकिन गांधी के 'हम' का मतलब था कि गांधी की खादी पहनने वाले और उनको लूट, मनमानी करने में ताकत देने वाली वर्दी। आम हिन्दोस्तानी ज्यों का त्यों गुलाम ही रखा गया, फर्क सिर्फ इतना हुआ कि 15 अगस्त 1947 से पहले विदेशी मालिक थे और अब देसी मालिक हैं देश के। यह हिन्दोस्तानियों का कितना बड़ापन है कि गुलाम रहकर भी आजादी का जश्न मनाते हैं कितने महान हैं और कितनी महान है इनकी सोच। लेकिन हर बात की एक हद होती है 200 साल तक ब्रिटिशों की मनमानी गुण्डागर्दी, लूटमार को बर्दाश्त करते रहे और जब बर्दाश्त से बाहर हुआ तो  चन्द दिनों में ही हकाल दिया ब्रिटिशों को। 

Friday 16 August 2013

खुलकर बिकवाई, जमकर चलवाई
15 अगस्त पर आबकारी व पुलिस का देश को तोहफा

कप्तान के फोन पर पहुंचे सिपाहियों ने दिलवाई पत्रकारों दो हजार रिश्वत

पत्रकारों ने तुरन्त एसएसपी को दिये वो रूपये
बरेली-कहा जाता है कि 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन शराब की बिक्री पूरी तरह प्रतिबन्धित रखी जाती है, लेकिन शायद हमारा बरेली जिला भारत की सीमाओं से बाहर कर दिया गया है, इसीलिए यहां इन दिवसों पर शराब की खुलेआम बिक्री कराई जाती है। हम गुजरे कई साल से यह नजारा समाज व प्रशासन को दिखा रहे हैं। आज 15 अगस्त के दिन फिर खुलेआम बिकवाई गयी शराब। बेशर्मी की हदें तो तब टूटीं जब पत्रकारों के
फोन पर कप्तान ने थाना पुलिस को आदेशित किया जिसपर शरब की खुली दुकान पर पहुंचे थाना बारादरी के तीनों सिपाहियों ने दुकानदार से दो हज़ार रूपये लेकर पत्रकारों को दिये। थाना बारादरी के क्षेत्र शहामत गंज (शाहजहां पुर रोड पर) स्थित मधुवन टाकीज के सामने मौजूद शराब की दुकान दिन भर खुलेआम शराब बेची जाती रही। दोपहर लगभग 1-30 बजे पत्रकारों ने जब यह नजारा देखा तब पहले वीडियों ग्राफी की, शराब खरीदी और उसके बाद फोन पर एसएसपी को सूचित किया। चूंकि उस समय एसएसपी शहर में मौजूद नहीं थे, एसएसपी ने तत्काल थाना बारादरी को फोन किया आनन फानन में तीन सिपाही पहुंचे ओर दुकानदार से कहा कि दो हज़ार रूपये निकालो, दुकानदार ने पांच-पांच सौ रूपये के चार नोट सिपाही को दिये सिपाही ने वह रूपये पत्रकार की जेब में डालते हुए निवेदन किया कि ‘‘छोडि़ये भाई साहब और करने दी
जिये बेचारे को अपना काम।’’ पत्रकार वह रूपये लेकर सीधे कप्तान के निवास पर गये ओर एसएसपी के उप्लब्ध न होने पर एसएसपी के पीआरओ के पास जमा कर दिये तथा पूरी बात फोन पर एसएसपी को बताई। एसएसपी ने सख्त कार्यवाही का वादा किया। अब देखना यह है कि एसएसपी की तरफ से क्या कदम उठाये जाते हैं। दूसरी तरफ पत्रकारों का एक ग्रुप आबकारी विभाग के आफिस पहुंचा जहां पर कोई अधिकारी नहीं था, आबकारी विभाग के अफसरान को फोन किये लेकिन किसी भी अफसर ने फोन रिसीव नहीं किया। आवकारी कार्यालय में मौजूद कर्मचारियों व इंस्पैक्टर ने कहा कि आज छुटटी है कल देखेंगे।