Saturday 25 August 2012

क्या यह भी पाकिस्तानी साजि़श है गृह सचिव जी?

22 अगस्त को बीबीसी के न्यूज़ पोर्टल पर खबर आई कि ‘‘असम में लोगों ने रेल की एक बोगी पर कब्जा करके उसमें बैठे लोगों की पहचान करके मुसलमानों को चलती रेल से नीचे फेंक दिया’’। यह खबर बीबीसी ने दी है। बाकी की खबरों को तो केन्द्रीय गृह सचिव पाकिस्तान की साजिश करार दे दिया अब इस खबर को किसकी साजिश कहेंगे श्रीमान जी। क्या बीबीसी जैसे जिम्मेदार और बड़ी संस्था भी पाकिस्तान के इशारे पर झूठी खबरे देने लगी है? क्या बीबीसी की साईट पर पाकिस्तान को कुछ भी अपलोड करने का अधिकार है? जाहिर है कि नहीं। यह एक सच्चाई है जो बीबीसी ने दुनिया को दिखाई। अब क्या कहेगी सरकार, आईबी, केन्द्रीय गृह सचिव और अमरीका व गुजरात पोषित मीडिया धड़े? क्या है यह इसे क्या नाम देंगे। इसे आतंकवाद कहने की तो जुर्रत नहीं है। क्या नाम देंगे इस आतंक को ‘आपसी झगड़ा या चुनावी रंजिश, या फिर पैसे का लेनदेन? कोई तो नाम देना ही होगा। तीन दिन गुजर गये अभी तक आतंकियों के नाम सामने नही आये, न सरकार व जांच एजेंसियों ने नाम बताये और न ही मीडिया न जिम्मेदारों की घोषणा की, क्यों, क्या डर लग रहा है? डर लगना स्वभाविक भी है देखिये न शहीद श्री हेमन्त करकरे ने भी आतंकियों को बेनकाब करने की गलती की थी क्या मिला उनको, भरी जवानी में मौत।
असम में किये जा रहे मुस्लिमों के कत्लेआम की खबरों को केन्द्रीय गृह सचिव ने आसानी से पाकिस्तानी साजिश करार दे दिया तो क्या बीबीसी भी साजिश में शामिल है? सबसे ज्यादा चैकाने वाली बात यह है कि पाकिस्तान जैसे दुश्मन देश से आने वाले एजेंटों को सरकार महमान की तरह पाल रही है ये पाकिस्तानी एजेंट आते तो हैं तीर्थ यात्रा के वीजे पर और यहां वीजा समाप्त होने के बाद भी सरकारी महमान बने रहते है। भारत में होने वाली छोटी से छोटी अपराधिक घटना को पाकिस्तान की साजिश करार देने वाली भारत की सरकारें, आईबी और अमरीका व गुजरात पोषित मीडिया पाकिस्तानी एजेंटों को भगवान मानकर पूजा करती नजर आ रही है। अब जब कि असम आतंक की खबरें फैली तो तुरन्त उसे पाकिस्तान पर थोंपते हुए काफी साईटों को ब्लाक करने का इरादा भी जाहिर कर दिया गया। जबकि इसी दौरान फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साईट पर खुलकर भड़काने का काम बादस्तूर जारी है आजतक इनपर किसी के कान तले जूं नहीं रेंगी। हां अगर खलबली पड़ी तो इस बात से कि असम में हो रही आतंकियों की करतूतों की खबर कैसे फैल रही है, इसे कैसे रोका जाये। केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य सरकार और उसकी मशीनरी को कोई तरकीब नहीं सूझी तो पाकिस्तान का नाम लेकर ही इन्टरनेट सेवाओं को बन्द करने की जुगाड़े लगाने के साथ साथ मोबाईल धारकों पर भी गैरकानूनी मनमाना आदेश लागू कर दिया।
इन सब कारनामों के बाद सवाल यह पैदा होता है कि ‘‘जब हमें पता है कि पाकिस्तान हमारे खिलाफ साजिशें करता रहता है तो फिर हम पाकिस्तान से आने वाले पाकिस्तानी एजेंटों को महीनों से क्यों पाल रहे हैं? क्यों आने दिया जा रहा है इन एजेंन्टों को, और क्यों उगलने दिया जा रहा है जहर? तीर्थयात्रा का वीजा लेकर आने वालों को इधर ऊधर क्यों घमने दिया जा रहा है, क्यों प्रेस कांफ्रेसें करने दी जा रही हैं? और उनकी मनगढ़न्तों को क्यों उछालने दिया जा हरा है? पाकिस्तानी हैं इनपर क्यों विश्वास करा जाये। क्या सिर्फ इसलिए कि ये हिन्दू हैं? अगर ऐसा है तो साफ हो जाता है कि भारत की सरकारों, सचिवालयों और कथित मीडिया को पाकिस्तान से एलर्जी नहीं एलर्जी सिर्फ मुसलमान से है।
‘बरमा’ एंव ‘असम’ आतंक की खबरें अमरीका व गुजरात पोषित मीडिया धड़े प्रकाशित व प्रसारित करके अपने आकाओं के गुस्से का शिकार बनना नहीं चाहते। जिसपर गुलाम जनता के लोगों ने ही इन्हें आगे बढ़ाना शुरू कर दिया जोकि केन्द्रीय गृह सचिवालय को काफी नागवार गुजर रहा है के0गृह सचिव ने आनन फानन में ऐसे सभी एकाउन्ट ओर साईटें बन्द कराना शुरू कर दीं जिनपर असम व बरमा के आतंक के शिकार लोगों के जख्म दिखाई दे रहे हैं, एक कहावत है कि ‘‘ज़बर मारे और रोने भी न दे।’’ गौरतलब पहलू यह है कि असम व म्यांमार के आतंक की खबरों को के0गृह सचिव ने अफवाह मान लिया तो उन अपलोड पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही जिनमे लावारिस लाशों की तस्वीरों के साथ साफ शब्दों में लिखा जा रहा है कि ‘‘इसे देखकर जिस हिन्दू का खून न खौले वह हिन्दू नहीं......है।
’’
दूसरी बात चलिये मान लेते हैं कि बरमा और असम से जुड़ी तस्वीरें पाकिस्तान की साजिश है तो असम व बरमा का सच क्या है यह केन्द्रीय गृह सचिव क्यों नहीं बता रहे?
कुल मिलाकर दो बातें साफ तौर पर सामने आ गयी हैं।
1 भारत की सरकारों, सरकारी मशीनरियों, और मीडिया को पाकिस्तान से कोइ्र परेशानी नहीं सारी परेशानी एलर्जी सिर्फ मुसलमान से है।
2 भारत के संविधान की धर्मनिर्पेक्षता सिर्फ किताबों और भाषणों तक ही सीमित है वास्तविक रूप में मुस्लिम विरोधी है।
3 मारना वाला मुसलमान हो तो आतंकी और मरने वाले मुसलमान हों तो मारने वाला माननीय। यह है कानून का सच या फिर सरकारों का असल रूप।
4 अगर मुसलमानों के कत्लेआम पर आह करने पर पाबन्दी के लिए ‘‘अभिव्यक्ति की आजादी’’ को कुचला जा सकता है। मुसलमानों को बदनाम करने के लिए बेबुनियादी प्रचार करके भड़काने की पूरी छूट।

Tuesday 21 August 2012

नफरत बढ़ाने वालों की सरकारी महमान नवाज़ी-इमरान नियाज़ी

                     गुजरे तीन चार हफतों के दरमियान पाकिस्तान से तीर्थ यात्रा का वीजा लेकर भारत आने वाले लोग मनगढ़त कहानियां सुनाकर भारत में जन्म से ही रह रहे मुसलमानों को परेशान करने की कोशिश में जुटे हैं। इनके ड्रामें को गुजरात व अमरीका पोषित मीडिया मसाले दार बनाकर लोगों को भड़काकर मुस्लिमों पर हमले कराने में जुट गयी है ये मीडिया के वही धड़े है जिन्हें आसाम, और बरमा में हो रही आतंकी कर्तूत नहीं दिख रही। हिन्द पाक के बीच नफरत की खाई को बढ़ाने की कोशिश करने वाले पाकिस्तानी देशद्रोहियों की भारत की कांग्रेस सरकार खातिर दारी में लगी है। मीडिया के कथित धड़े इन पाकिस्तानियों के नाटकीय कहानियों को खूब मिर्च मसाले के साथ पेश कर रहे हैं। अब सरकार ने भी पाकिस्तानियों की हिमायत की तरफदारी करना शुरू कर दी।
                      याद दिलादें कि यह भारत का वही धर्म निर्पेक्ष संविधान के नाम से मशहूर संविधान है कि जो पाकिस्तानियों को आतंकी बताता है पाकिस्तानी महिलाओं को उनके बच्चे छोड़कर जाने पर मजबूर करता रहा है। गुजरे आठ महीने के दौरान वहीं संविधान पाकस्तिानी देशद्रोहियों को सरकारी खर्च पर पालने में जुटा है। लगभग सात महीने पहले पाकिस्तान सरकार का एक देशद्रोही जोकि पाकिस्तान सरकार में मंत्री भी था वह भागकर भारत आया और उसने यहां लोगों को भड़काना शुरू कर दिया, भारत के कानून ने इसको गोद ले लिया और सरकारी महमान बनाकर पालने लगी।
                      आपको यह भी याद दिलादें कि बीसों साल पहले भारतीय पुरूषों से शादिया करके रह रही पाकिस्तानी महिलाओं को उनके नन्हें नन्हें बच्चों को छोड़कर पाकिस्तान जाने पर मजबूर किया जाता रहा है। लेकिन उसी पाकिस्तान से आने वाले गद्दारों को सरकारी महमान बनाकर रखा जा रहा है। मुस्लिमों पर जुल्म की बात को भड़काऊ कहा जाता है जबकि सोशल नेटवर्किंग साईटों व कथित मीडिया के जरिये लोग किसी भी लावारिस लाश का फोटो लगाकर लिखते हैं कि ‘‘इसको देखकर जिस हिन्दू का खून न खौले वह खून नहीं पानी है’’। इसी तरह की सैकड़ों तस्वीरें और टिप्पणियां अपलोड की जा रही हैं, ऐसा भी नहीं कि यह हरकतें सिर्फ संघ, विहिप या भाजपा के लोग ही करते हो बल्कि समाजवादी पार्टी, कांग्रेस के लोग भी खुलेआम कर रहे हैं। आजतक किसी पर भी किसी तरह कोई अंकुश नहीं लगाया गया। न ही किसी सचिवालय को एतराज हुआ न ही मंत्रालय को कोई आपत्ति हुई। क्या म्यामार या असम में मुसलमानों का कत्लेआम नही किया जा रहा, क्या गुजरात में आतंकियों ने बेगुनाहों का कत्लेआम नहीं किया? क्या सभी बातें पाकिस्तान की साजिशी अफवाह हैं? अगर ये सारे कत्लेआम पाकिस्तान की साजिशी अफवाहें है तो सच क्या है केन्द्रीय गृह सचिव सबूत के साथ देश के मुसलमानों को बतायें कि म्यांमार असम का सच क्या है। अगर मान लिया जाये कि असम और मयांमार में कत्लेआम नहीं (गृहसचिव के कथनानुसार) हो रहा तो ठीक है गुजरात में आतंकियों की कर्तूतों से तो इंकार नहीं कर सकते केन्द्रीय गृह सचिव। क्या किया उन्होंने गुजरात आतंकियों के खिलाफ? यही न कि नानावटी आयोग और मिश्र आयोग की रिपोर्टों पर भी कोई अमल नहीं किया गया आजतक। जब सोशल नेटवर्किंग साईटों पर मौजूद बरमा व असम की तस्वीरें एंव वीडियो देखे तो वे तस्वीरें और लेख भी जरूर देखे होंगे जिनमें लिखा गया है कि ‘‘इसे देखकर जिस हिन्दू का खून न खौले वह खून नही पानी है।’’ क्या कार्यवाही की ऐसे भड़काने वालों के खिलाफ?
                      दरअसल यह साबित हो चुका है कि भारत के नेताओं, सरकारी मशीनरी को पाकिस्तान से कोई नफरत नहीं है। नफरत मुसलमान से है। जिसका सबूत यह है कि उन पाकिस्तानी औरतों को उनके बच्चों तक को छोड़कर जाने पर मजबूर किया जाता है जो बीसों साल पहले यहां शादियां करके रह रही हैं, एक 80 वर्षीय वृद्ध को पाकिस्तानी बताकर यह कहकर कई साल तक जेल में सड़ाया गया कि वह वीजा अवधि खत्म होने के बाद भी आजतक रह रहा था यहां तक कि गुजरे महीने उसकी जेल में ही मौत हो गयी। जबकि पाकिस्तान से सात आठ महीने पहले पाकिस्तान से वहां का एक देशद्रोही भागकर आया जोकि वहां की सरकार में मंत्री भी था उसे आजतक बादस्तूर सरकारी महमान बनाकर खातिर की जा रही है, और अब तीर्थ यात्रा करने आने वालों की कहानियों को सरकारी तौर पर भी तूल दिया जा रहा है, जबकि ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा अगर पाकिस्तान में ऐसा कुछ होता तो सबसे पहले तो मुस्लिम देशों का सबसे बड़ा दुश्मन अमेरिका और वहां की मीडिया ही चीखना शुरू कर देती साथ ही दूसरे देशों की मीडिया भी मिर्च मसाले के साथ जमकर उछालती, लेकिन आजतक कोई खबर नहीं मिली। अब तीर्थयात्रा वीजा पर भारत आकर लोग नाटक फैला रहंे हैं हम पाकिस्तान जैसे देश के लोगों पर कैसे विश्वास करलें। क्या गारन्टी है कि ये लोग पाकिस्तान से सिर्फ भारत में आतंक मचाने नहीं आये। हम यह बात इसलिए कह रहे हैं कि भारतीय सरकार और खुफिया तन्त्र के अनुसार भारत में सारे क्राईम पाकिस्तान इशारे पर होते हैं तो फिर आतंक की पनाहगाह पाकिस्तान के लोगों पर विश्वास क्यों करें आखिर हैं तो सब ही आतंकी, वह चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम। अगर गृह सचिव का यह मानना है कि पाकिस्तानी हिन्दू शरीफ हैं तो फिर यह साफ हो गया कि भारत की सरकारों और सरकारी मशीनरी एंव मीडिया को पाकिस्तान से कोई एलर्जी न होकर सिर्फ मुसलमान से है। अगर ऐसा नहीं है तो अबतक जितने भी पाकिस्तानी देशद्रोही भारत में महीनों से सरकारी महमान बनाकर रखे जा रहे हैं इन सबको भारत से निकाल दिया जाना चाहिये, लेकिन ऐसा न किया गया और न ही किया जायेगा। इन सब हालात के बाद किस मुंह से कहा जाता है कि भारत का संविधान धर्मनिर्पेक्ष है। किसी भी बात से से साबित नहीं होता कि देश का कानून धर्मनिर्पेक्ष है। ऐसे लाखों उदाहरण हैं जो यह साबित कर देते हैं कि कानून धर्मनिर्पेक्ष नहीं है। एक ताजा प्रमाण यही देखिये कि बरेली में 20 अगस्त को ईद के दिन कर्फयु में ढील सिर्फ शाम छः बजे तक ही दी गयी, जबकि आठ दिन पहले ही रक्षाबन्धन के अवसर पर कर्फयु में ढील रात नौ बजे तक दी गयी थी।

Monday 20 August 2012

कर्फयु में ढील को लेकर व्यापक रोष

बरेली-हफता भर से शहर के चार थाना क्षेत्र में चल रहे कर्फयु में आज ईद के त्योहार पर सिर्फ शाम 6-30 बजे तक की ढील से मुसलमानों में काफी रोष के साथ साथ प्रशासन पर पक्षपात के आरोप भी लग रहे हैं। पेशे से डाक्टर इसरार बेग नूरी का कहना है कि ईद मुसलमानों का बड़ा त्योहार है इस दिन लोग एक दूसरे के घरों पर जाकर मिलते है मुबारक बाद देते हैं सुबह नमाज से निबटने में ही ग्यारह बज जाते हैं और शाम छः बजे से कैद किया जाना गलत है। एक दूसरे डा0 एम.ए.सिददीकी का भी यही कहना है। आटो मकेनिक इरफान खां ने कहा कि प्रशासन पक्षपात कर रहा है हफता भर पहले रक्षा बन्धन के दिन नौ बजे तक ढील दी गयी थी लेकिन ईद पर सिर्फ छः बजे तक की ढील देने से प्रशासन का पक्षपात ही कहा जा सकता है। ठेकेदारी करने वाले कासिम हुसैन का कहना है कि यह मुसलमानों को सपा को वोट देने का सिला है कि रक्षा बन्धन पर छूट नौ बजे तक और ईद पर 6-30 बजे तक ही। इसी तरह के बात लगभग सभी मुस्लिमों में महसूस की जा रही है।
    एक तरहसे तो मुसलमानों में यह रोष स्वभाविक है और जायज है कि ईद के दिन भी दिन से ही कैद करने का फरमान प्रशासन व शासन की निष्पक्षता पर उंगली उठाने के लिए काफी है। मानना पड़ेगा कि शायद मायाराज में इतना फर्क न किया जाता। जाहिर है कि इसका सीधा असर 2014 के लोकसभा चुनावों में सपा पर पड़ना लगभग तय माना जा रहा है।

Sunday 19 August 2012

कर्फयु में ढील का एक और अजूबा

बरेली-हफता भर से चल रहे रहे कर्फयु में कल ईद के दिन ढील दिये जाने में भी प्रशासन ने अजूबा कर दिया। खास ईद के दिन ढील का समय सुबह 5 बजे से शाम 6-30 दिया है। त्योहार के दिन भी शाम होने से पहले ही कैद होने की मजबूरी। यही अगर सुबह पांच बजे की जगह छः बजे से रात 8 बजे तक ढील दी जाती तब शायद ढील आसानी से हजम हो जाती। प्रशासन की इस अनोखी कार्यवाही से जनता में खासकर मुसलमानों में शासन के लिए क्या संदेश जायेगा इसका अनुमान प्रशासन ने नही लगाया और शायद शासन को भी अंदाजा नहीं कि इसका क्या असर होगा। जबकि अभी 2014 सामने है।

Saturday 18 August 2012

खुलकर बिकी जमकर चली शराब

बरेली-हफ्ता भर से चले आ रहे कर्फयु में प्रशासन ने दो दिन से कुछ ढील देनी शुरू की तो सबसे पहले खुली शराब की दुकानें और सबसे बाद में बन्द की गयी। जमकर बेची गयी, ज्यादा कीमतों में बेची गयी पुलिस देखती रही और शराब की दुकानों पर भीड़ जमी रही।
नियमानुसार कर्फयु में ढील दिये जाने का केवल एक ही उद्देश्य होता कि गुलाम जनता के लोग खाने पीने के सामान व दवाईयां आदि अति आवश्यक चीजें खरीद सके न कि शराब की दुकान खुलने दी जावें। कल लोगों ने शराब न सिर्फ पी बल्कि अधिक से अधिक मात्रा में घर भी ले गये। ऐसा भी नहीं कि धारा 144 लगी होने के बावजूद शराब की खुली और प्रशासन को पता नहीं चला, प्रशासन मौजूद रहा और शराब बिकती रही।


Thursday 16 August 2012

कल कर्फयु में ढील एक अजूबा, नमाजों का वक्त 12-30 से 3-30 तक है और ढील सुबह 5 से 11 बजे तक

   बरेली-गुजरे छः दिनों से शहर के चार थाना क्षेत्रों कोतवाली, प्रेमनगर, किला और बारादरी में कर्फयु लगा है। दो दिन से अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग समय पर ढील दी गयी। कल शुक्रवार रमजान माह का आखिरी जुमा यानी अलविदा है। कल कर्फयु में सुबह पांच बजे से ग्यारह बजे तक ही छूट दी जायेगी। यानी अलविदा की नमाज से पहले ही ढील खत्म कर दी जायेगी। हांलाकि प्रशासन का कहना है कि जुमे की नमाज अदा करने जाने पर रोकटोक नहीं होगी। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि मोहल्ले की करीबी मस्जिदों में नमाज पढ़े। बड़ी हैरानी वाली बात है कि नमाज पर भी अंकुश लगाया जाने लगा कि कहां पढ़े ओर कहां न पढ़े।
    आज छूट का ऐलान सुनने के बाद खानकाहे आलिया नियाजिया के सरकार शब्बू मियां साहब की उस बात को दम मिलता है जो उन्होने कल अन्याय विवेचक से बात करते हुए कहा था कि ‘‘प्रशासन पर सरकार का कोई दबाव नजर नहीं आ रहा। साथ ही यह भी हो सकता है कि यह अजीबो गरीब फैसला शासन की मर्जी से लिया गया हो। जो भी हो ढील का टाईम है बड़ा ही चैकाने वाला।

चीता मोबाईल पर मुखबिर का आराम-यह कैसा कर्फयु

बरेली शहर के चार थाना क्षेत्रों में पांच दिन से चल रहे कर्फयु के कई रंग कई कानून देखने को मिल रहे है। कहीं कर्फयु की वजह से जनाजों को दफनाने के लिए दस से ज्यादा लोगों के जाने की इजाजत नहीं तो कहीं शोभायात्राओं में हजारों लोगों कोसड़क पर घूमने की छूट। कहीं बिना पास के बाहर निकलने पर पिटाई, पास धारक के साथ बीमार परिजन को अस्पताल जाने की इजाजत नहीं तो कहीं वर्दी वालों वालों को पूरी छूट कि वह जवान महिलाओं को लेकर कहीं भी घूमे या बिना पास की कारों में मित्रों को लेकर कर्फयु ग्रस्त शहर का नजारा कराते फिरे।
अब इस फोटों को ही देखिये यह थाना किला की पुलिस चैकी गढ़ी के सामने का है चीता मोबाइल बाइक पर एक मुखबिर आराम कर रहा है बच्चे भी मस्ती से खेल कुद रहे है वह भी पुलिस चैकी के ठीक सामने पुलिस की मौजूदगी में।

Wednesday 15 August 2012

सरकार का खौफ नही है प्रशासन पर-शब्बू मियां



बरेली-पन्द्रह दिन में ही दोबार कर्फयु लगने पर बेहद खुद जताते हुए खानकाहे आलिया नियाजिया के मुन्तजिम सरकार सिबतैन मियां नियाजी उर्फ शब्बू मियां साहब आज कहा कि बड़े ही शर्म की बात है कि चन्द नेता लोग अपने मुफाद के लिए अवाम को बहका लेते है और परेशानी जिल्लत तकलीफ भुगतनी पड़ती हैं अवाम को खासतौर पर गरीब मजदूर को। कर्फयु में आज पांचवे दिन दी गयी ढील के समय को अलग अलग रखे जाने पर शब्बू मियां साहब ने कहा कि यह गलत है ढील सभी जगह एक साथ दी जानी चाहिये जिससे कि जो लोग इधर ऊधर फंसे है वे सुरक्षित तरह से अपने ठिकानों तक पहुंच जाये, जो लोग दूध डेरी का काम करते हैं और उनकी डेरियां दूसरे मुहल्लों में हैं उनके जानवर पांच दिन से भूखे प्यासे पड़े हैं वे अपने जानवरों की देखभाल करने नहीं जा सकते। स्वतन्त्रता दिवस के बारे में पूछे गये एक सवाल के जवाब में शब्बू मियां साहब ने कहा इसे आजादी नही कहा जा सकता क्ेसी आजादी है मुसलमान हिन्दू इलाको में जाने में डर रहे है हिन्दू मुस्लिम इलाकों में जाने से डर रहे हैं, इसे आजादी नहीं कहा जा सकता आजादी तो जब होगी कि हर शख्स अपने मजहबी उसूलों के साथ बेखौफ होकर जिये।
एक सवाल के जवाब में शब्बू मियां साहब ने साफ तोर पर कहा कि सरकारी अफसरान को मौजूदा सरकार को कोइ्र खौफ नहीं है सब अपने मनमाने काम करतते दिख रहे हैं जबकि मायावती सरकार में अफसरों को फौरन सजा मिलने का डर रहता था। उनका कहना है कि ‘‘सरकार सख्ती और दुकान नर्मी से चलती है’’।
सरकार शब्बू मियां साहब ने बरेली के बाशिन्दों से अपील की कि जिस तरह कुछ साल पहले रहते थे वैसे ही आपस में प्यार से रहें नेताओं के बहकावे में आकर कोइ कदम न उठावें नेता अपने मुफाद के लिए लड़ाते है। सरकार शब्बू मियां साहब अन्याय विवेचक से बात कर रहे थे।

Tuesday 14 August 2012

वर्दी पर लागू नहीं होता कानून--- सगे सम्बंधियों को इधर ऊधर पहुंचाने में लगी दिखी वर्दी


बरेली-आज से 69 साल पहले सन् 1947 की 14 व 15 अगस्त की मध्यरात्री में गांधी जी ने घोषणा की कि ‘‘आज से ‘‘हम’’ आजाद हैं। गांधी जी के इस ‘‘हम’’ शब्द ये उनका अर्थ था ‘‘खादी और खाकी’’। मतलब यह कि 15 अगस्त 1947 के बाद से मेरी खादी पहनने वाले और उनकी भगवान खाकी आजाद हो गयी है इनपर कोई कानून प्रभावी नही होगा। इसका जीता जागता प्रमाण बरेली में तीन दिन से देखने को मिल रहा है।
कर्फयु के चलते जहां एक तरफ पुलिस किसी को भी घर से निकलने नहीं दे रही, यहां तक कि मीडिया कर्मियों से अभद्रता की जा रही है। वहीं दूसरी तरफ वदी्र वाले अपने सगे सम्बंिधयों को उनके कार्य स्थलों पर पहुंचाने के काम में लगी है।
दरअसल वर्दी पर कोई कानून लागू नहीं होता। कर्फयु ग्रस्त क्षेत्र में घर से निकलने के लिए पास का होना अनिवार्य है लेकिन यह कानून वर्दी पर लागू नहीं होता। बाकी चाहे किसी भी विभाग का कोई बड़े से बड़ा अफसर क्यों न हो बिना पास नहीं निकल सकता। पिछली बार लगाये गये कर्फयू के दौरान एक पास धारक पत्रकार अपने बीमार पिता को बाईक से लेकर जा रहा था तो उसको मढ़ीनाथ मोड़ पर रोक कर एक प्रशासनिक अुसर ने उसका पास निरस्त करके यह कहते हुए वापिस कर दिया कि पास आपके लिए है परिवार वालों को लाने ले जाने के लिए नहीं’’। लेकिन दूसरी तरफ वर्दी वाले रोज किसी न किसी रिश्तेदार या सम्बंधी को बाईक कार से लाते ले जाते दिखाई पड़ रहे हैं इसपर किसी अधिकारी को कोइ्र आपत्ति नहीं। उदाहरण के लिए कल यानी सोमवार को जगतपुर के एक परिवार को दूसरे थाने के दो सिपाही निजि कार में गैर सरकारी तौर पर लेकर आये उन्हें किसी ने नही रोका जबकि इन दो सिपाहियों की न तो बारादरी में तैनाती है और न ही कर्फयु ग्रस्त क्षेत्र में कहीं पर डियुटी। इसी तरह थाना सीबी गंज क्षेत्र में रहने वाली एक युवा नर्स जाकि कर्फयु ग्रस्त क्षेत्र के किसी निजि अस्पताल में नौकरी करती है उसे रोज सुबह अस्पताल पहुंचाने व वापिस लाने का काम एक सिपाही कर रहा है। गौरतलब बात यह है कि सिपाही जिस महिला को लाना ले जाना कर रहा है वह न तो उसकी रिश्तेदार और न ही धर्म जाति की। जिला प्रशासन ने इस महिला को कर्फयु पास नहीं दिया तो क्या उसे क्र्फयु रोक सका। उसने भी ऐसी हस्ती का सहारा लिया जिसपर न तो कोई कानून लागू होता है ओर न ही किसी की जुर्रत है जो रोक सके।

Monday 13 August 2012

संगीनों के साये में निकली गंगा महारानी की शोभा यात्रा


बरेली-गुजरे शनिवार को श्री कृष्ण की झांकी के रास्ते को लेकर हुए बवाल, पुलिस पर पथराव के बाद शहर के चार थाना बारादरी, कोतवाली, प्रेमनगर व किला क्षेत्रों में कर्फयु लगा दिया गया। इसी बीच सिटी बिहारीपुर क्षेत्र से आज सोमवार को ‘‘गंगा महारानी’’ की शोभायात्रा भी निकाली जानी थी जो किला तक जानी थी। इस शोभायात्रा को लेकर कल से ही पुलिस व जिला प्रशासन के हाथ पैर फूले नजर आ रहे थे।
कांवर यात्रा और श्रीकृष्ण झांकी शोभायात्रा में हो चुकी चूक को अफसरान दोहराना नहीं चाहते थे। इस बार अफसरान ने पूरी मुस्तैदी दिखाते हुए पूरे मार्ग को संगीनों के हवाले कर दिया। प्रशासन की मुस्तैदी का नतीजा यह हुआ कि यह शोभयात्रा शान्तिपूर्ण तरह से निबट गयी।
दूसरी तरफ थाना किला के मोहल्ला मलूकपुर में छेड़छाड़ की गयी जिसे अफसरों ने तुरन्त ही दबा लिया। कुल मिलाकर आज का कहीं से किसी खुराफात की खबर नहीं है।

Sunday 12 August 2012

पूरा दिन घेरे रखा पत्रकारों को



बरेली-तीन दिन बाद ही शहर के चार थाना क्षेत्रों में दोबारा लगे कर्फयू की कवरेज जानबूझ कर बाधित की गयी। देर रात लगाये गये कर्फयू के बाद आज सुबह से ही मीडिया कर्मी जिला प्रशासन से पास जारी करने की मांग करते रहे, लेकिन पूरा दिन पत्रकारों को कलैक्ट्रेट में ही घेरे रखा गया। पास दिये जाने में लगातार हीलाहवाली की जाती रही। सुबह से शाम सात बजे तक इन्तेजार करने के बाद पत्रकारों ने कोतवाली में बैठे जिला अधिकारी को घेर लिया, काफी हील हुज्जत के बाद डीएम ने पास देने की हामी भरी तब कहीं रात नौ बजे तक पास दिये गये। हालांकि डीएम ने गुजरी रात तो मोखिक रूप से यह कहा था कि मीडिया कर्मी अपने पहचान पत्रों के साथ ही कवरेज कर सकते हैं लेकिन पुलिस ने डीएम के इस आदेश को ठुकराते हुए पत्रकारों को कर्फयू ग्रस्त क्षेत्र में जाने नहीं दिया कई जगह पत्रकारों से अभद्रता की गयी। इस कारण पत्रकार पास बनवाने पहुंचे। इसके बाद काफी देर बाद दिये गये पास किन्तु केवल उन्हीं पत्रकारों को पास दिये गये जिन्हें गुजरे कर्फयु में पास दिये गये थे। जो पत्रकार पिछले कर्फयु में बरेली से बाहर थे वे अब किस तरह कवरेज करेंगे इसका जवाब न अखिलेश सरकार के पास है और न ही जिला प्रशासन के पास।
दूसरी तरफ यह कुछ खास ही वजह थी कि दिन भर पत्रकारों को उलझा कर रखा गया। ऐसी कोैन सा काम अंजाम दिया जा रहा था जिसे पत्रकारों की नजर से छिपाने के लिए दिन भर पत्रकारों को उलझाकर रखा गया।

फिर बरेली शहर कर्फयु के हवाले

जन्माष्टमी पर दो दिन से हो रही खुराफात के मददेनजर जिला प्रशासन ने पहले थाना बारादरी क्षेत्र ओर फिर देर रात पूरे शहर में कर्फयु की घोषण कर दी।

Saturday 11 August 2012

लीजिये नया हफता वसूली मार्ग

उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्गों पर गुलामों से हफता वसूली की बाड़ सी आ गयी है। दिल्ली से लखनऊ मार्ग पर आठ नौ जगह गुलाम जनता से सरकारी तौर पर हफता वसूली के केन्द्र स्थापित थे ही । गुजरे गुरूवार को मार्ग चालू कर दिया गया जिसपर कम से कम चार जगह गुलामों से उगाही करने का लाईसेंस सरकार ने अपने चहेते पूंजी पतियों को दे दिया है जिसका उदघाटन सूबे के मालिक अखिलेश यादव ने गुरूवार को किया।
मायाराज की हठधर्मी और कदम कदम पर गुलामों से की जाने वाली उगाही से ऊब कर गुलामों ने इस बार सपा को रोजगार दे दिया गुलाम जनता को गलत फहमी थी कि अखिलेश को सूबे का महाराज बना देने से गुलामों को कुछ राहत मिलेगी, लेकिन गुलामों के अरमान गन्दे नाले में बह गये। उगाही बादस्तूर जारी है और पूंजि पतियों की तिजोरियों को अखिलेष यादव की सरकार भी भरने लगी।

फिर माहोल बिगाड़ने की कोशिश

बरेली-(अनूप सकसेना) लगातार हफता भर कर्फयु की मार ओर तीन जान लेकर भी खुराफातियों को सकून नहीं मिला। थाना बारादरी के मोहल्ला हजियापुर में आज शाम लगभग आठ बजे अमन दुश्मनों ने माहोल बिगाड़ने की कोशिश की। घण्टा भर बाद भारी फोर्स के साथ पहुंचे पुलिस व जिला प्रशासन के अफसरान ने मामले को ठण्डा कराकर काबू पा लिया, मौके पर भारी फोर्स तैनात कर दिया गया है।
दो हफते पहले ही आंवला में कांवडि़यों से शुरू हुई खुराफात ने चन्द घण्टों में ही पूरे शहर को लपेटे में लेकर कर्फयू के हवाले कर दिया था। हफता भर कर्फयु की मार झेल चुके मजदूर अभी ठीक से संभल नही पाये थे कि आज शाम आठ बजे के लगभग कुछ शरारतियों ने दूसरे समुदाय धार्मिक उत्सव में बज रहे डीजे की आवाज कम करने को कहा। इसी को लेकर कहा सुनी होने के बाद दोनो पक्ष आमने सामने आ गये और जमकर पथराव, फायरिंग की जाने लगी। फोन पर पुलिस को सूचना दी लगभग घण्टा भर बाद फोर्स के साथ आला अफसरान ने मोके पर पहुंचकर काबू किया। फिलहाल हालात काबू में हैं। तीन चार युवकों के घायल होने की खबर है। खबर लिखे जाने तक कोई गिरफतारी नही हो सकी थी।

Thursday 9 August 2012

भारी पड़ गयी चकल्लस


बरेली-(रिपोर्ट एम.के.अली व सलमान खान) थाना सीबी गंज क्षेत्र में स्थित माचिस फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर द्वारा अपने साथी मजदूर से की गयी मजाक दोनों को ही भारी पड़ गयी, एक की जान गयी तो दूसरे पर मुकदमा लद गयी।
फैक्ट्री में ठेकेदार मुशर्रफ अली के दर्जनों मजदूर काम करते हैं। लगभग सभी मजदूर आसपास के गांवों से आते हैं। गुजरी 7 अगस्त को भी लेवर काम कर रही थी इन्हीं में थाना क्षेत्र के गांव जोगीठेर के शहनूर का तीस वर्षीय पुत्र तसलीम और गांव सनैया रानी के लालशाह का बेटा हामिद अली भी काम कर रहा था। इन्हीं के साथ काम कर रहे गांव पस्तौर के सुशील कुमार ने बताया कि दोपहर के समय हम सभी प्रेशर से सफाई कर रहे थे कि तसलीम ने मजाक करते हुए प्रेशर का पाईप हामिद के शौच की रास्ते में डाल दिया, कुछ ही सैकेण्ड में हामिद चीख मार कर गिर गया ओर दर्द से तड़पने लगा, हम सभी मजदूर, ठेकेदार व फैक्ट्री के कुछ कर्मचारी हामिद को तुरन्त ही बीमा अस्पताल (ईएसआई डिस्पैंसरी) लेकर गये जहां डाक्टर ने जिला अस्पताल रैफर कर दिया, यहां कोई देखरेख होने की जगह उल्टे डाक्टर ने हम लोगों से अभद्रव्यवहार किया। परेशान होकर हम हामिद को एक निजि अस्पताल ले गये। 8 तारीख को उसका आप्रेशन किया गया और आज वह खत्म हो गया। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम कराकर परिजनों को सौंप दिया। जिसे आज रात दस बजे सुपुर्दे खाक कर दिया गया। खबर लिखे जाने तक तसलीम गिरफतार नहीं हो सका था पुलिस दबिशें दे रही है।

Wednesday 8 August 2012

विद्रोह के लिए उकसाने का साधन बनी सोशल नेटवर्किंग साईटें


    आजकल लोग देश की शान्ति को तबाह करने और विद्रोह के लिए लोगों को उकसाने के लिए फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साईटों का सहारा लिए हुए है। फेसबुक पर जमकर बेबुनियाद तस्वीरें लोड करके उन्हें पाकिस्तान की होना बताकर लोगों को देशद्रोह के लिए खुले शब्दों में उकसाने का काम कर रहे है।
    देखने वाली बात तो यह है कि इनपर न तो किसी कानून को एतराज है और न ही किसी सुरक्षा एजेंसी को ही आपत्ति है। लेकिन जब कोई मुसलमान, सिर्फ मुसलमानों से ही धर्म का पालन कड़ाई से करने के लिए कहता है तो वह सुरक्षा एजेंसिंयो के साथ साथ कानून, मीडिया को भी आतंकी दिखने लगता है।
    बरेली के कुछ लोग तो लोगों को विद्रोह के लिए उकसाने के काम में ही व्यस्त है।

Tuesday 7 August 2012

लौटती अमन को वापिस ढकेलने की कोशिश

बरेली-तीन बेकसूरों की जान जाने और हफते भर तक कर्फयु की मार झेल चुके
शहर में पूर्व जिला अधिकारी व एसएसपी की मेहनत के नतीजे के तोर पर अमन
वापिस लौटने लगी। मजदूरों के घरों में समय से बच्चों को रोटी मिलने लगी।
लेकिन यह शहर के ही कुछ लोगों को पच नहीं रही।शहर में लौटती अमन को वापिस
ढकेलने के प्रयास शुरू हो गये।
आज शिव सेना ने एक अजीबो गरीब मांग के साथ जिला प्रषासन को ज्ञापन दिया
जिसमें मांग की गयी कि मस्जिदों पर लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल पर रोक लगाई
जावे। साथ ही जोगी नवादा के इमरान के कातिलों की हिमायत करते हुए उनकी
सुरक्षा की बात भी कही गयी।
इसमें कोइ्र दो राय नहीं कि शहर में साजिश के तहत फैलाई गयी गुण्डा
गर्दी से निबटने के लिए पूर्व डीएम व एसएसपी ने काफी हद तक सूझबूझ के साथ
काम लेते हुए जल्दी ही शान्ति बनाने के भरसक प्रयास किये। आज के इस नये
शिगूफे के बाद अन्दूनी तनाव जाग उठा है। साथ ही प्रशासन के सामने फिर से
नया चैलेंज खड़ा हुआ है।

Sunday 5 August 2012

जो आता है लूटने वाला आता है-अपनी इस तकदीर की मारी दिल्ली में।


    इतिहास गवाह है कि दिल्ली के तख्त पर जो आया वह देश की जनता को गुलाम बनाकर लूटता हुआ ही आया। चाहे वो विदेशी हो या देसी। लूटा सभी ने और आज भी लूट बदस्तूर जारी है। फर्क सिर्फ इतना है कि विदेशी तलवारों के बल पर लूटते थे और देसी करों (टैक्सेज) के बल पर गुलामों को लूट रहे हैं। और कम से कम गुजरे आठ साल में कदम कदम पर लूट को सरकारी जामा पहना दिया गया है। दरअसल बाबरी मस्जिद को शहीद कराने की साजिश रचने के बाद देश के शरीफ गुलाम वोटरों ने कांग्रेस के हाथ में कटोरा थमा दिया। लगभग पन्द्रह साल तक कांग्रेस औकात पर रही, क्योंकि इस अर्से में कांग्रेस के पास कोई घडि़याली आंसू बहाने वाला नमूना नहीं था फिर सोनियां गाधी ने गुलाम जनता को उल्लू बनाने की ट्रेंिग हासिल करके घडि़याली आंसू बहाना शुरू कर दिये मेरे सीधे साधे गुलाम देषवासी एक बार फिर कांग्रेस के झांसे में आ गये, और दे दिया कांग्रेस के हाथ में देश को लूटने का मौका। बस क्या था कांग्रेस ने मचा दी लूट। रोज सुवह को हर चीज के दाम बढ़े मिलते हैं खास तौर पर डीजल, पैट्रौल, रसोई गैस पर। बढ़ौतरी भी चवन्नी अठन्नी की नहीं सीधे सीधे पांच दस पन्द्रह रूपये की। जाहिर सी बात है कि डीजल के दामों में की जा रही अंधाधुन इजाफे का सीधा असर गरीब गुलामों पर पड़ता है। डीजल पर तीन रूपये प्रति लीटर बढ़ने पर आटो, बस वाले प्रति सवारी एक से पांच रूपये बढ़ा देते है अब जिस गरीब के पास दस रूपये ही हों वह पन्द्र रूपये आटो को कहां से दे।
    दरअसल सोनिया गांधी नामक रिमोट से चलने वाली केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य मनमोहन सिंह सरकार बड़े उद्योगपतियों को सैटिंग के साथ माल कमवाने का काम कर रही है जाहिर है कि इससे सरकार में बैठे और सरकार के कन्ट्रोल रूम को भी बड़ा फायदा पहुंचता है बरना बेवजह कोई किसी को लूट मचाने की छूट नहीं देता। मिसाल के तौर पर जब जब तेल या गैस पर दाम बढ़ाये गये तब तब पैट्रौल पम्पों, गैस एजेंसियों को एक रात में ही लाखों रूपये का मुनाफा हुआ। सरकार ने कभी यह हिसाब नहीं देखा कि जिस पम्प या एजेंसी के पास दाम बढ़ने से पहले का जो स्टाक मौजूद है उसपर गुलामों को क्यों लूटा जा रहा है।
    केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य मनमोहन सिंह सरकार ने बड़े उद्योगपतियों के माल में चैगुना इजाफा करने के लिए देश में राज्य मार्गों के निमार्ण का ठेका इन्हें दिया, ठेका यानी लूटने का सरकारी लाईसेंस। इन कम्पनियों ने जगह जगह मार्गों को सुधार कर हर पचास किलोमीटर की दूरी पर एक लूट केन्द्र स्थापित कर दिया। हर आने जाने वाले वाहन से 21 रूपये से 200 रूपये तक प्रतिगुजर का हफता वसूली की जाने लगी। सरकारों द्वारा कराई जा रही इस हफता वसूली पर सवाल यह पैदा होता है कि ‘‘किस नियम के आधार पर वसूला जा रहा है गुलामी टैक्स? वाहनों से पहले ही रोड टैक्स लिया जाता है साथ ही सैकड़ों तरह के दूसरे टैक्स भी गुलाम देते ही है तो फिर सड़के देना सरकार का उत्तरदायित्व है। अगर सरकार किसी सड़क को या शहर को अच्छा बना देती है तो उसपर या उसमे से गुजरने का टैक्स वसूला जाना कतई गैर कानूनी और तक विहीन ही नहीं बल्कि सीधी भाषा में लूट ही कहा जायेगा।
    दिल्ली से लखनऊ की दूरी लगभग 500 किलोमीटर है। इस मामूली से दूरी तय करने आपको कमसे कम आठ जगह गुलामी टैक्स अदा करना पड़ेगा। दिल्ली से निकलते ही नोयडा से लखनऊ तक कम से कम आठ जगह बड़े उद्योगपतियों को लूट करने का लाईसेंस दिया गया है। बताते चलें कि यह लूट सिर्फ गुलामों से ही की जाती है खादी और खाकी से हफता वसूली नहीं की जाती। बाकी गुलाम चाहे एम्बूलेंस में ही क्यों न हो इन लुटेरों को हफता दिये बिना नही जा सकता।
    ज़रा सोचिये कि एक ट्रक कुछ माल लाद कर दिल्ली से लखनऊ जाये और उसे रास्ते में डीजल खर्च के अलावा पुलिस एंव आरटीओ की सेवा के साथ साथ कम से कम दो हजार रूपये उद्योगपतियों को हफता के रूप में अदा करना पड़ेगा तो वह भाड़ा बढ़ायेगा और जब माल ढुलाई का भाड़ा बढ़ेगा तो दुकानदार माल बेचेंगे भी महंगा, सोचिये लुटा कौन.... गुलाम ही। खादी और खाकी को 95 फीसद चीजें खरीदकर लेनी नहीं पड़ती, इसलिए खादी या खाकी पर राज्य मार्गों पर कराई जा रही हफता वसूली का फर्क नहीं पड़ता। ऐसा भी नहीं कि यह सिर्फ केन्द्र का ही काम हो बल्कि इस काम में सूबाई सरकारें भी दो कदम आगे ही रहने की कोशिश में नजर आती हैं।