सूबे में जब जब सपा की सरकार बनी तब तब हैल्मेट का भूत बाहर निकल आया और इस भूत के बाहर निकलने के साथ ही वर्दी की कमाई में भी खासा इजाफा हो जाता है। इन दिनों फिर यह भूत लखनऊ से चलकर सूबे की गुलाम जनता को गुलामी टैक्स भरने पर मजबूर करने के लिए अपनी डरावनी शक्ल दिखाने लगा। इस बार शासन ने अपने दामन को आरोपों से बचाये रखने के लिए वर्दी को उगाही की छूट देने वाले अपने निर्देश में यह जरूर कहा है कि ‘‘वर्दी वाले भी लगायेगें हैल्मेट’। दरअसल सपा के एक कददावर नेता की लोकल क्वालिटी के हैल्मेट बनाने वाली फैक्ट्री है और इस फैक्ट्री के हैल्मेट बिकवाकर अपने नेता को मोटी कमाई कराना सपा मुखिया और सूबे के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है इसलिए सपा की सरकार आते ही सूबे में हैल्मेट का प्रकोप बढ़ जाता है इस बार तानाशाही के बल पर गुलाम जनता को हैल्मेट खरीदने पर मजबूर किये जाने की कोशिश है सरकार ने कल कहा कि बिना हैल्मेट पैट्रोल नही मिलेगा। दरअसल देश की खादी और खाकी अच्छी तरह जानती है कि जनता गुलामी में जी रही है जैसा मन करे गुलामों को नचाया जा सकता है। अन्याय विवेचक अखिलेश यादव से पूछना चाहता है कि तीन बार उनके पिता और अब सात माह की उनकी अपनी सरकार में सूबे के कितने रोड ऐसे बनाये गये जहां कोइ्र भी वाहन (खासकर निजि वाहन और ट्रक तेज गति से चल सकते हों ? सूबे भर की सड़को की हालत यह है कि उनपर चलना ही मुश्किल है तेज गति से दौड़ना तो दूर की बात है।
वैसे भी वर्दी पर कानून लागू नही होता। देश का हर कानून और नियम केवल शरीफो गरीबों की जिन्दगी गुजारने वाले गुलामों पर ही लागू होता है। यहां हम कई सारे उदाहरण दे रहे हैं। पहला सूबे के वर्दी वालों में चालीस फीसद जिन वाहनों का प्रयोग करते हैं उनके कागज नहीं होते, ये वाहन या तो चोरी के होते है या फिर लावारिस बरामद हुए होते हैं। लाखों बार हर मोड़ पर कारों व दुपहिया वाहनों की रोज चैंकिग होती है आजतक किसी वर्दी वाले से नहीं पूछा गया कि जिस वाहन पर सवार हो उसके पेपर हैं या नही या किसकी है वाहन। खुलेआम धड़ल्ले से दौड़ाते हैं वर्दी वाले वाहन। गुजरे विधान सभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने कारों की सघन चैंकिग करके धन प्रयोग पर रोक लगाने के साथ ही कारों से अवैघ हूटर भी नुचवाये। पुलिस ने बड़ी लगन से चैकिंग की कारों की तलाशिया ली हूटरों के साथ साथ बैक गियर बजर व सैन्टर लाक सिस्टम तक नोच लिये लेकिन उन कारों को नहीं रोका जिनपर पुलिस लिखा था या पुलिस का निशान बना था या फिर उसमें कोइ्र वर्दी वाला बैठा था। कुछ उम्मीदवारों ने भी इसका पुरा फायदा उठाया, जिसे मोटी रकमें लेकर चलना था उन्होंने किसी न किसी पुलिस वाले के वाहन का प्रयोग किया और रकम सकुशल व सुरक्षित तरह से ठिकाने तक ले गये।
बरेली में पूर्व एसएसपी ने चीता मोबाइल (सरकारी मोटर साइकिलों) पर हूटर लगवाकर अपने मातहतों की हनक में इजाफा किया। एसएसपी ने तो केवल सरकारी मोटर साईकिलों पर हूटर लगाने का आदेश किया लेकिन लगा लिये गये निजि बाइको पर भी। बरेली में ही कम से कम दर्जन भर पुलिस वालों की मोटर साईकिलों पर दो तीन साल से न तो नम्बर ही लिखाये गये है और हूटर सभी पर लगाये गये है इन बाईको से उगाही का काम किया जा रहा है।
इन दो तीन उदाहरणों को देखने के बाद सरकार के इस फरमान पर किस तरह भरोसा किया जा सकता है। दरअसल अखिलेश यादव ने सिार्फ मीडिया में सरकार की छीछे लेदर होने से बचने के लिए यह बात कही है। वह भी उस काम को करने की जो खुद मुख्यमंत्री भी नहीं कर सकते।
दूसरी तरफ अगर गुजरे विस चुनावों में सपा को उम्मीद से ज्यादा सीटें मिलीं थी तो अगले लोक लोकसभा और विधान सभा चुनाव सपा के पतन की दास्तान भी लिखते नजर आ रहे है क्योंकि तानाशाही ने ही मायावती और कांग्रेस का सफाया कराया है।
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