Friday 15 March 2013

ईमानदारों अफसरों के कत्ल क्यों ?-इमरान नियाज़ी


हमारे महान भारत की महानता यह है कि ईमानदारी से कानून के दिशा निर्देश के मुताबिक अपना फर्ज अदा करना आत्महत्या करने की कोशिश बन गया है। यानी टुसरान की ईमानदारी और निषक्षता उनकी जान की दुश्मन बन जाती है वह चाहे शहीद हेमन्त करकरे हो या फिर डीएसपी जिया उल हक़। असल गुनाहगारों को बेनाकाब करना या करने की तरफ कदम बढ़ाने का सीधा मतलब है अपना कत्ल कराने की सुपारी देना। ईमानदारी चाहे आतंकवादियों को बेनकाब करने में बरती जाये या किसी डान की करतूतें खोलने में, नतीजा सिर्फ मौत। खासतौर पर आरएसएस लाबी के किसी भी ग्रुप या व्यक्ति को बेनकाब करना या करने की तरफ कदम उठाना आत्महत्या करने के बराबर है।
देश में होने वाले धमाकों के असल जिम्मेदारों को बचाने के लिए खुफिया एजेंसियां और जांच एजेंसियां हमेशा ही बेगुनाह मुस्लिमों को फंसाती रही है और आज भी वही कर रही हैं यहां तक कि अगर मौका लगा तो सीधे कत्ल ही कर दिया। लेकिन साजिशी तौर पर फर्जी फंसाया जाने के बावजूद बेगुनाहों ने किसी भी जांच अधिकारी का आजतक कत्ल नहीं हुआ, जबकि देश में धमाके करने वाले असल आतंकियों को बेनकाब करने वाले शहीद हेमन्त करकरे को कत्ल करने के लिए पूरी नाटक रचा गया। मक्का मस्जिद, मालेगांव, अजमेर दरगाह, समझौता एक्सप्रेस समेत देश में जगह जगह धमाके करने वाले यह जानते थे कि इस समय बम्बई के ताज होटल में कुछ पाकिस्तानी नागरिक ठहरे हुए हैं इस इसी का फायदा उठाते हुए ड्रामा तैयार किया गया और और मौका मिलते ही हेमन्त करकरे पर गोलियां दाग दी गयी, क्योंकि हत्यारे अच्छी तरह से जानते थे कि हेमन्त करकरे की हत्या का इल्जाम सीधे सीधे पाकिस्तानी अजमल कस्साब पर ही थुपेगा, आतंकी अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब हुए। यानी देश में धमाके और आतंकी हमले करने वालों को बेनकाब करने वाले को भी ठिकाने लगा दिया आतंकी इस काम में भी कामयाब हुए। हेमन्त करकरे के कत्ल से डरकर अब कोई भी अफसर ईमानदारी दिखाने की जुर्रत नहीं कर पा रहा, यहां तककि वकील भी सहमें हुए दिखे, मिसाल के तौर पर अफजल गुरू का मामला बारीकी से देखें। क्षेत्रीय थाना पुलिस से लेकर राष्ट्रपति तक सब ही करते गये जो आतंकी और उनके आका चाहते थे। दिल्ली हाईकोर्ट, और हाल ही में हैदराबाद में किये गये धमाकों समेत देश के सभी धमाकों के मामलों में खुफिया एजेंसियां, जांच एजेंसियां वही करती चली आ रही हैं जो धमाके करने वाले चाहते हैं। क्योंकि हेमन्त करकरे का हश्र देखकर हर अफसर समझ चुका है कि जरा भी ईमानदारी दिखाने का नतीजा सिर्फ मौत है।
इसी तरह इमानदारी दिखाने की कोशिश करके उ0प्र0 के डीएसपी जि़या उल हक़ ने अपनी जान गवां दी। जिला उल हक काफी ईमानदार अफसर थे और ऐसे मामले की जांच कर रहे थे जिसके तार सीधे उ0प्र0की अखिलेश यादव की सपाई सरकार के बाहुबली मंत्री राजा भैया से जुड़े हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी खददरधारी के खिलाफ कोई जांच किसी ईमानदार अफसर के हाथ में हो और वह अफसर दुनिया में रहे। बस यही एक वजह थी कि जिया साहब को भून दिया गया। जिया साहब के कत्ल में उनके अपने ही साथी भी कम जिम्मेदार नहीं। तआज्जुब की ही बात है कि भारी भरकम फोर्स की मोजूदगी में एक पुलिस अफसर पर गोलिया दागी जांए और पुलिस कुछ न करे, कोई दूसरा पुलिस वाला न मरे, कोई हमलावर न मरे.....? कुल मिलाकर हम  सिर्फ यही कह सकते हैं कि जिया उल हक साहब को दुश्मन कोई इंसान नहीं थी बल्कि खुद उनकी इमानदारी थी, इसलिए किसी को दोष देना ही बेकार है।
हेमन्त करकरे ओर जिया उल हक के कत्ल में एक बात कामन ह यहकि हेमन्त करकरे ने आरएसएस के आतंकियों को बेनकाब किया था, तो जिया उल हक आरएसएस बैकग्राउण्ड वाले मंत्री राजा भैया को बेनकाब करने की तरफ बढ़ रहे थे।

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