Sunday 28 May 2023

राजतन्त्र और सामन्तवाद की तरफ घसीटा जा रहा है देश - इमरान नियाज़ी

‘‘सुप्रीम कोर्ट के आर्डर को पलटना एक करारा तमाचा है उन जजों के मुंह पर जिन्होंने महाराज अधिराज को खुश करके न्याय शब्द का मुंह काला करते हुए मनमानी थोपी और बेकसूरों को मौत के घाट उतरवा दिया’’

दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र के नाम से जाना जाने वाला भारत 2014 से लगातार राजतन्त्र की तरफ घसीटा जा रहा है। हमने 2016 में ही कहा था कि भारत से लोकतन्त्र को खत्म करके सामन्तवाद में दाखिल किये जाने की कोशिशें की जा रही हैं। उस वक्त किसी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। लेकिन तिगड़ी अपनी कोशिशों में लगी रही और लगभग 50 फीसदी कामयाब भी हो गई। मकसद में कामयाबी के लिए तिगड़ी ने किराये के भांडों को परमानेन्टली खरीदकर वीरगाथा शुरू कराई साथ ही विदेशी मालिकों की नीति पर चलकर ‘‘फूट डालो राज करो’’ का फार्मूला अपनाया, देश को बांट दिया जिससे बगावत के हालात ही ना पैदा हो सकें। फिर नोटबन्दी, लाॅकडाऊन, खेती बिल, देश की धरोहरों का बेचा जाना, दान में मिली आक्सीजन पर अपना नाम चिपकाकर बेचा जाना, गांव से गांव को मिलाने वाले लिंक रास्तों तक पर गुलामी टैक्स वसूला जाना, विरोधियों को सरकारी शूटरों के हाथों मौत के घाट उतरवाना, संविधान को खत्म किया जाना,  अदालतों को गुलाम बनाकर रखना, वगैरा ये सब राजतन्त्र और सामन्तवाद की सीढ़ियां है जो तिगड़ी आसानी से चढ़ती चली गई।

खेती बिल को छोड़कर बाकी सभी सीढ़ियां बिना ही किसी विरोध के आसानी से इतनी सीढ़ियां चढ़ लेने से तिगड़ी के होसले बुलन्द हुए। अगर बात करें अदालत नाम के उन कमरों की जिसकी कुर्सी को भगवान की कुर्सी माना जाता है तो तिगड़ी और उसके कारिन्दों ने उन भगवानों को ही खरीदकर और डराकर जेब में डाल लिया, जिनपर लोग अटूट भरोसा करके उन्हें निष्पक्ष मानते थे। वे छोटे से बड़े भगवान तक बिककर या डरकर तिगड़ी की मंशा के मुताबिक न्याय का मुंह काला करने लगे। ‘‘जिस देश में निचली अदालतें कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को ठुकराकर मालिकों के इशारे पर किसी धर्म स्थल की खुदाई कराये, या उसको छीनकर एक पक्ष को देने के काम करती हो’’,

जिस देश की सुप्रीम कोर्ट ये कहते हुए किसी को मौत दे कि ‘‘आरोपी के आतंक होने या किसी आतंकी संगठन से जुड़े होने का कोई सबूत नहीं पाया गया’’, ‘‘जिस देश की सुप्रीम कोर्ट देश के सबसे बड़े कत्लेआम से जुड़े सभी मामलों को बन्द करा दे’’, ‘‘जिस देश की सबसे बड़ी अदालत 5 सौ साल के इतिहास को ही किनारे करके मनमानी थोपती हो।’’ ‘‘जिस देश में किसी गैंगस्टर के सत्तारूढ़ दल का नेता बनने उसपर चल रहे तमाम केसों को बन्द कर देती हों।’’ ‘‘जिस देश की अदालतें देश में बम धमाके करने वालों को देश की सबसे बड़ी विधायिका में बैठाने की इजाज़त देती हों।’’ उस देश में लोकतन्त्र की मोजूदगी मान लेना खुली आंखों से देखा जाने वाला सपना ही है। भारत में लोकतन्त्र से निकालकर राजतन्त्र या सामन्तवाद में दाखिल करने की कोशिशें गुज़रे नो साल से चल ही रही हैं। इसका सबसे बड़ा सबूत हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटना है। यानी अगर देश की सबसे बड़ी अदालत लोकतन्त्र के संविधान के मुताबिक सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ़ फैसला देगी तो उसको सरकार नहीं मानेगी। मतलब साफ है कि सरकार खुद को सर्वोपरि मानती है और सुपर पावर बनाये रखना चाहती है। ऐसा लगने लगा है कि सुप्रीम कोर्ट ना होकर कोई छोटा अफसर है जिसे सिर्फ सरकार की ही तरफ दारी करनी है चाहे वो संविधान की भावना और प्रावधानों के खिलाफ़ ही क्यों ना हो। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बैंच के फैसले को पलटकर सरकार ने उन जजों के मुंहों पर ज़ोर दार तमाचा जड़ा है, जो सरकार को खुश रखने के लिए बेकसूरों को मौत देने, इतिहास को मिटाने, और हज़ारों पीड़ितों को न्याय की जगह ठेंगा दिखाते रहे। हम ये बिल्कुल भी नहीं कह रहे कि सभी जजों ने किसी फायदे के लिए इंसाफ का मुंह काला किया, हो सकता है कि कुछ ने लालच में किये, तो कुछ ने खौफ़ से किये। आज उन्हीं तमाम कारगुज़ारियों का अन्जाम सबके सामने हैं। दरअसल तिगड़ी शुरू से ही देश में राजतन्त्र और सामन्तवाद लाने की कोशिशों में लगी है। इसके लिए तिगड़ी ने सबसे पहले चुनाव आयोग को जेब में डाला, फिर मेन स्ट्रीम की मीडिया को पालतू बनाया, इसके बाद जांच एजेंसियों का विलय कराया, धर्मवाद के हथियार से एक बड़ी तादाद में आम जन मानस का ब्रेनवाॅश करके उनके दिमाग़ों में भरा कि ‘‘धर्म की रक्षा इन्हीं के हाथों में है।’’ फिर धीरे धीरे अपने मिशन की तरफ बढ़ने लगी तिगड़ी। देश की धरोहरें बेची, कोई विरोध नहीं हुआ, चुपके चुपके मनमाने बिल पास किये कोई विरोध नहीं, चीन को देश में कब्ज़े कराये गये देश सोता रहा, कश्मीर हिमांचल में सेब सन्तरे आदि की खेती पर मुंह चढ़ों को कब्ज़े कराये गये इसपर भी सन्नाटा रहा, अगर बदकिस्मती से देश की खेती का 90 फीसद किसान सिख और जाट ना होते तो देश के अन्नदाताओं को भी लाला का गुलाम बना दिया गया होता। सलाम है सिखों की हिम्मत और देश प्रेम को जिन्होंने दुम सीधी करके ही मैदान छोड़ा। निचली अदालतों से सुप्रीम कोर्ट तक को इशारों पर नचा लेने से गदगद होकर तिगड़ी ने सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक लोकतान्त्रिक संस्था को भी खत्म करने का क़दम उठा दिया, अगर मान भी लिया जाये कि राजतन्त्र और सामन्तवाद लागू करने में अभी कुछेक साल का वक़्त लग सकता है तब भी सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ क़दम उठाकर तिगड़ी ने आने वाले उन जजों की हिम्मतों और ईमानदारियों को पहले ही कुचलने की कोशिश की जो कभी सीजेआई चन्द्रचूड़ के नक्शे कदम पर चलने की कोशिश कर सकते थे। अगर तिगड़ी ने राज्यसभा के पटल से अपनी मंशा के अनुरूप पास कराकर सीधे राजतन्त्र और सामन्तवाद लागू कर दिया जायेगा।

अब सवाल ये पैदा होता है कि अगर तिगड़ी अपने मकसद में कामयाब हो जाती है तो उनका क्या होगा जो इस वक्त तिगड़ी को ही धर्म और भगवान मानकर पूजने में लगे हैं ? या उन वैल एजूकेटेड लोगों यानी आईएएस, आईपीएस और कानून के अच्छे जानकार यानी जजों का क्या होगा जो आज तिगड़ी को खुश करने के लिए संविधान, इंसाफ और देश को रौंदते दिख रहे हैं ? उन खद्दरधारियों का क्या हाल होगा जो आज तिगड़ी की हर तरह से मदद में मस्त हैं ? यहां तककि राष्ट्रपति जैसी संवैधानिक कुर्सी पर आसीन होकर भी तिगड़ी की जी हजूरी में बिना सोचे समझे दस्तखत करते रहे ? इस सवाल के जवाब में हम दावे के साथ कह सकते हैं, कि सबसे ज्यादा बुरे दिन इन्हीं लोगों पर आयेंगे, बाकी आम जनता तो 1947 से पहले भी गुलाम थी, 1947 के बाद आज तक गुलाम ही है तो भविष्य में भी रह लेगी, देश का आम आदमी तो पहले से ही मानसिक गुलाम है इसलिए उसे कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला।


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