Tuesday 30 May 2023

कुकुरमुतो की तरह फैले मोबाइल मेडेड स्वंयभू पत्रकारों का सच

 

आपको याद होगा कि लगभग दस साल पहले घुमन्तु भिकारियों की टोलियां बाज़ारों में दुकानों पर मांगती थी। जब दुकानदार "चवन्नी" (25 पैसे का सिक्का) देता तब टोली का मुखिया कहता कि  "4 लोग है" - "5 लोग हैं"  मतलब टोली के  "बन्दों की गिनती बताता"  तब दुकानदार 25 पैसे प्रति बन्दे के हिसाब से दे देते।

दिन ग़ुज़रते गये। इण्डिया डिजीटल होने लगा। मज़दूरों की जगह मशीनों ने लेली। कार्बन और टाईप राईटर की जगह कम्पूटर ने लेली। जब सब का डिजीटली करण हुआ तब उन घुमन्तू भिकारियों का भी डिजीटली करण हुआ।  "मेरा भारत बदल रहा है"  की चपेट में घुमन्तुओं की टोली भी आ गई।
घुमन्तुओं की टोलियों का आधूनिकी करण होकर नाम हो गया  "पत्रकार",  जी हां पत्रकार। हम बात कर रहे हैं उन घुमन्तुओं की जो  "पत्रकार बनाने वाली मशीन"  यानी  "एण्ड्रायड फोन"  से पत्रकार बन गये हैं।
दूसरी तरफ़ घुमन्तुओं की झोली और कटोरे का आधूनिकी करण होकर "पिट्ठू बैग और माईक आई डी"  का रुप ले लिया। ये सारे महाज्ञानी वैल एजूकेटेड स्वंभू पत्रकार वे हैं जिन्हें "पत्रकार" शब्द की ना परिभाषा ही मालूम है ना ही पत्रकार शब्द का अर्थ ही पता है। योग्यता का स्तर यह है कि किसी भी घटना को  "खबरिया भाषा"  में लिख नहीं सकते। खैर - परिभाषा या अर्थ पता होना इनके लिए ज़रुरी भी नहीं है क्योंकि इन्हें घटनाओं या हालात से कोई सरोकार भी नहीं होता। इनको तो सुबह से शाम तक किसी भी तरह 500 - 1000/ रुपये कमाने होते है। 
घुमन्तू बाज़ारों में दुकानदारों से अपनी टोली की गिनती के हिसाब से मांगते थे आधुनिकिकरण होने पर ये दुकानदारों की जगह चुनावी उम्मीदवारों के दरवाज़ों पर पहुंचने लगे। घुमन्तुओं की तरह  "टोली के सदस्यों की तादाद" की जगह "आईडी की तादाद" बताई जाने लगी यानी  "सर 4 आईडी हैं - 6 आईडी हैं"। इनकी अभूतपूर्व पत्रकारिता की योग्यता को बताता है इनकी लेखनी जैसे :- ख़बर में खद्दरधारियों/अफ़सरान यहां तक कि प्रधान व सभासद प्रत्याशियों के लिए "माननीय / महोदय / जी / श्रीमान" जैसे शब्दों का प्रयोग साथ ही किसी अफ़सर या पुलिस की तैयार की हुई स्क्रिप्ट को ही सम्पूर्ण मानकर फेसबुक / WhatsApp पर दौड़ाने लगना। इन महामुनियों ने तो Twitter जैसे प्लेटफार्म को भी चैनल या अख़बार समझ लिया है।
हमारी बात लगभग सभी को बुरी लगी है लेकिन सच तो सच है।


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