Saturday 26 January 2013

छिटपुट छेड़छाड़ के बावजूद अमन से निबटा जुलूसे मोहम्मदी



बरेली-पैगम्बरे इस्लाम हुजूर मोहम्मद मुस्तफा (सल्ला0) यौमे ज़हूर के मौके पर बरेली और आसपास के जिलों आशिकाने नबीये करीम (सल्ल0) पूरी शानो शौकत से जुलूस मुहम्मदी निकालते हैं। आजका जुलूस छिटपुट छेड़छाड़ के बावजूद पूरी तरह अमन से गुजर गया। बरेली के थाना किला के कुछ गांवों में जुलूस के दौरान छेड़छाड़ की गयी, पत्थराव व फायरिंग हुई, लेकिन प्रशासन की मुस्तैदी ने खुराफातियों के हौसलों को कुचल दिया। कुछ लोग जख्मी हुए।
1980 से बरेली शहर में और 1979 से बरेली के कस्बा सिरौली में जुलूस उठ रहा है।

जुलूस का इतिहासः-
दुनिया का सबसे पहला जुलूसे मोहम्मदी हुजूर (सल्ल0) की आमद (पैदाइश) से एक हजार साल पहले मदीने में उठाया गया। एक यहूदी बादशाह तमाम देशों को लूटकर गुलाम बनाता हुआ मदीने पहुंचा। क्योंकि उस जमाने में फौजे किसी देश पर हमला करने से पहले अपनी मांग सामने रखती थीं अगर लोग बात मान लेते तो जंग नहीं होती वरन्ा जगंे होती थीं। इसी उसूल के तहत उस बादशाह ने मदीने वालों को संदेश भेजा कि ‘‘ मदीने वाले गुलामी कबूल करें या फिर जंग करें ’’, मदीने के लोगों ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और रात के अंधेरे में लुटेरे बादशाह की फौजों के शिविरों के बाहर खजूरों से भरे बोरे रखवा दिये, सुबह फौजियों ने खजूरे देखी तो बहुत खुश होकर खाईं, अगले रात मदीने वालों ने फिर खजूरे रखवा दीं सुबह फिर फोजियों ने खाई इसी तरह तीसरी रात भी मदीने वालों ने लुटेरी फौज के शिविरों के बाहर खजूरें रखवा दीं। चैथे दिन यहूदी राजा बहुत चैंका और अपने कुछ सिपाहियों को साथ लेकर मदीने शहर में गया और वहां लोगों से पूछा कि ‘‘ हम आपको  लूटने आये हैं और आप हमें खजूरे खिला रहे हैं क्या मामला है? इसपर मदीने वालों ने उससे कहा कि ‘‘ यह वह शहर है जहां एक ऐसा नबी आयेगा जो अपने घर आये दुश्मन को भी मोहब्बत करेगा और खातिरदारी करेगा, इसलिए हम उस प्यारे नबी की ही सुन्नत पर चल रहे है ’’। यह सुनकर यहूदी बादशाह नबीये करीम पर ईमान ले आया और अपनी फौज व मदीने के लोगों के साथ मदीने में आमद रसूल (सल्ल0) की खुशी में जुलूस निकाला। यानी आमद रसूल से एक हजार साल पहले ही खुशी का जुलूस निकाला गया।

हिन्दोस्ता में जुलूसे मुहम्मदीः-
हिन्दोस्तान में सबसे पहला जुलूस बरेली की आवंला तहसील के कस्बा सिरौली के मोहल्ला प्यास में मदरसा ‘‘ गुलिस्ताने शाहजी ’’ से उठा। हिन्दोस्तान का सबसे पहला जुलूस 10 फरवरी 1979 को उठा। मदरसे के संस्थापक हाफि़ज़ कारी अल्लामा नज़ीर अहमद शेरी साहब और उत्तर प्रदेश के स्वास्थ विभाग के प्रान्तीय स्तर के कर्मचारी नेता स्व0 एम.ए.सिद्दीकी (सिद्दीकी डाक्टर साहब) ने काफी कोशिश से ईद मीलादुन्नबी का जुलूस निकाला। हालांकि इस जुलूस को रोकने के लिए सिरौली के कुछ खुराफातियों ने जोर लगाये लेकिन सिरौली थानाध्यक्ष श्री ईश्वर सिंह की संस्तुति पर तत्कालीन जिलाधिकारी ने स्व0 सिद्दीकी की जिम्मेदारी पर स्व0 डाक्टर साहब ओर हाफिज नजीर अहमद शेरी साहब के नेतृत्व के साथ जुलूस उठाने की परमीशन देदी। तब से सिरौली में दिन दूनी रात चैगुनी तरक्की के साथ जुलूस निकलता आ रहा है। सिरौली में जुलूस निकलने के अगली साल यानी 1980 में बरेली, मुरादाबाद में जुलूस निकलना शुरू हुआ उसके बाद देश के काफी जिलों में जुलूस निकलना शुरू हुआ। यानी हिन्दोस्तान का सबसे पहला जुलूस सिरौली में उठा। हिन्दोस्तान में जुलूस के बानी (संस्थापक) स्व0 एम.ए.सिद्दीकी साहब और हाफिज़ नज़ीर अहमद शेरी साहब है।
सिरौली में आज भी पूरी शानो शौकत के साथ सुबह नौ बजे मदरसा ‘‘ गुलिस्ताने शाहजी ’’ से निकला इस साल जुलूस स्व0 सिद्दीकी के पुत्र और अन्याय विवेचक के प्रकाशक/सम्पादक इमरान नियाजी की कयादत में उठाया गया।

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