Saturday 25 August 2012

क्या यह भी पाकिस्तानी साजि़श है गृह सचिव जी?

22 अगस्त को बीबीसी के न्यूज़ पोर्टल पर खबर आई कि ‘‘असम में लोगों ने रेल की एक बोगी पर कब्जा करके उसमें बैठे लोगों की पहचान करके मुसलमानों को चलती रेल से नीचे फेंक दिया’’। यह खबर बीबीसी ने दी है। बाकी की खबरों को तो केन्द्रीय गृह सचिव पाकिस्तान की साजिश करार दे दिया अब इस खबर को किसकी साजिश कहेंगे श्रीमान जी। क्या बीबीसी जैसे जिम्मेदार और बड़ी संस्था भी पाकिस्तान के इशारे पर झूठी खबरे देने लगी है? क्या बीबीसी की साईट पर पाकिस्तान को कुछ भी अपलोड करने का अधिकार है? जाहिर है कि नहीं। यह एक सच्चाई है जो बीबीसी ने दुनिया को दिखाई। अब क्या कहेगी सरकार, आईबी, केन्द्रीय गृह सचिव और अमरीका व गुजरात पोषित मीडिया धड़े? क्या है यह इसे क्या नाम देंगे। इसे आतंकवाद कहने की तो जुर्रत नहीं है। क्या नाम देंगे इस आतंक को ‘आपसी झगड़ा या चुनावी रंजिश, या फिर पैसे का लेनदेन? कोई तो नाम देना ही होगा। तीन दिन गुजर गये अभी तक आतंकियों के नाम सामने नही आये, न सरकार व जांच एजेंसियों ने नाम बताये और न ही मीडिया न जिम्मेदारों की घोषणा की, क्यों, क्या डर लग रहा है? डर लगना स्वभाविक भी है देखिये न शहीद श्री हेमन्त करकरे ने भी आतंकियों को बेनकाब करने की गलती की थी क्या मिला उनको, भरी जवानी में मौत।
असम में किये जा रहे मुस्लिमों के कत्लेआम की खबरों को केन्द्रीय गृह सचिव ने आसानी से पाकिस्तानी साजिश करार दे दिया तो क्या बीबीसी भी साजिश में शामिल है? सबसे ज्यादा चैकाने वाली बात यह है कि पाकिस्तान जैसे दुश्मन देश से आने वाले एजेंटों को सरकार महमान की तरह पाल रही है ये पाकिस्तानी एजेंट आते तो हैं तीर्थ यात्रा के वीजे पर और यहां वीजा समाप्त होने के बाद भी सरकारी महमान बने रहते है। भारत में होने वाली छोटी से छोटी अपराधिक घटना को पाकिस्तान की साजिश करार देने वाली भारत की सरकारें, आईबी और अमरीका व गुजरात पोषित मीडिया पाकिस्तानी एजेंटों को भगवान मानकर पूजा करती नजर आ रही है। अब जब कि असम आतंक की खबरें फैली तो तुरन्त उसे पाकिस्तान पर थोंपते हुए काफी साईटों को ब्लाक करने का इरादा भी जाहिर कर दिया गया। जबकि इसी दौरान फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साईट पर खुलकर भड़काने का काम बादस्तूर जारी है आजतक इनपर किसी के कान तले जूं नहीं रेंगी। हां अगर खलबली पड़ी तो इस बात से कि असम में हो रही आतंकियों की करतूतों की खबर कैसे फैल रही है, इसे कैसे रोका जाये। केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य सरकार और उसकी मशीनरी को कोई तरकीब नहीं सूझी तो पाकिस्तान का नाम लेकर ही इन्टरनेट सेवाओं को बन्द करने की जुगाड़े लगाने के साथ साथ मोबाईल धारकों पर भी गैरकानूनी मनमाना आदेश लागू कर दिया।
इन सब कारनामों के बाद सवाल यह पैदा होता है कि ‘‘जब हमें पता है कि पाकिस्तान हमारे खिलाफ साजिशें करता रहता है तो फिर हम पाकिस्तान से आने वाले पाकिस्तानी एजेंटों को महीनों से क्यों पाल रहे हैं? क्यों आने दिया जा रहा है इन एजेंन्टों को, और क्यों उगलने दिया जा रहा है जहर? तीर्थयात्रा का वीजा लेकर आने वालों को इधर ऊधर क्यों घमने दिया जा रहा है, क्यों प्रेस कांफ्रेसें करने दी जा रही हैं? और उनकी मनगढ़न्तों को क्यों उछालने दिया जा हरा है? पाकिस्तानी हैं इनपर क्यों विश्वास करा जाये। क्या सिर्फ इसलिए कि ये हिन्दू हैं? अगर ऐसा है तो साफ हो जाता है कि भारत की सरकारों, सचिवालयों और कथित मीडिया को पाकिस्तान से एलर्जी नहीं एलर्जी सिर्फ मुसलमान से है।
‘बरमा’ एंव ‘असम’ आतंक की खबरें अमरीका व गुजरात पोषित मीडिया धड़े प्रकाशित व प्रसारित करके अपने आकाओं के गुस्से का शिकार बनना नहीं चाहते। जिसपर गुलाम जनता के लोगों ने ही इन्हें आगे बढ़ाना शुरू कर दिया जोकि केन्द्रीय गृह सचिवालय को काफी नागवार गुजर रहा है के0गृह सचिव ने आनन फानन में ऐसे सभी एकाउन्ट ओर साईटें बन्द कराना शुरू कर दीं जिनपर असम व बरमा के आतंक के शिकार लोगों के जख्म दिखाई दे रहे हैं, एक कहावत है कि ‘‘ज़बर मारे और रोने भी न दे।’’ गौरतलब पहलू यह है कि असम व म्यांमार के आतंक की खबरों को के0गृह सचिव ने अफवाह मान लिया तो उन अपलोड पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही जिनमे लावारिस लाशों की तस्वीरों के साथ साफ शब्दों में लिखा जा रहा है कि ‘‘इसे देखकर जिस हिन्दू का खून न खौले वह हिन्दू नहीं......है।
’’
दूसरी बात चलिये मान लेते हैं कि बरमा और असम से जुड़ी तस्वीरें पाकिस्तान की साजिश है तो असम व बरमा का सच क्या है यह केन्द्रीय गृह सचिव क्यों नहीं बता रहे?
कुल मिलाकर दो बातें साफ तौर पर सामने आ गयी हैं।
1 भारत की सरकारों, सरकारी मशीनरियों, और मीडिया को पाकिस्तान से कोइ्र परेशानी नहीं सारी परेशानी एलर्जी सिर्फ मुसलमान से है।
2 भारत के संविधान की धर्मनिर्पेक्षता सिर्फ किताबों और भाषणों तक ही सीमित है वास्तविक रूप में मुस्लिम विरोधी है।
3 मारना वाला मुसलमान हो तो आतंकी और मरने वाले मुसलमान हों तो मारने वाला माननीय। यह है कानून का सच या फिर सरकारों का असल रूप।
4 अगर मुसलमानों के कत्लेआम पर आह करने पर पाबन्दी के लिए ‘‘अभिव्यक्ति की आजादी’’ को कुचला जा सकता है। मुसलमानों को बदनाम करने के लिए बेबुनियादी प्रचार करके भड़काने की पूरी छूट।

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