Sunday 5 August 2012

जो आता है लूटने वाला आता है-अपनी इस तकदीर की मारी दिल्ली में।


    इतिहास गवाह है कि दिल्ली के तख्त पर जो आया वह देश की जनता को गुलाम बनाकर लूटता हुआ ही आया। चाहे वो विदेशी हो या देसी। लूटा सभी ने और आज भी लूट बदस्तूर जारी है। फर्क सिर्फ इतना है कि विदेशी तलवारों के बल पर लूटते थे और देसी करों (टैक्सेज) के बल पर गुलामों को लूट रहे हैं। और कम से कम गुजरे आठ साल में कदम कदम पर लूट को सरकारी जामा पहना दिया गया है। दरअसल बाबरी मस्जिद को शहीद कराने की साजिश रचने के बाद देश के शरीफ गुलाम वोटरों ने कांग्रेस के हाथ में कटोरा थमा दिया। लगभग पन्द्रह साल तक कांग्रेस औकात पर रही, क्योंकि इस अर्से में कांग्रेस के पास कोई घडि़याली आंसू बहाने वाला नमूना नहीं था फिर सोनियां गाधी ने गुलाम जनता को उल्लू बनाने की ट्रेंिग हासिल करके घडि़याली आंसू बहाना शुरू कर दिये मेरे सीधे साधे गुलाम देषवासी एक बार फिर कांग्रेस के झांसे में आ गये, और दे दिया कांग्रेस के हाथ में देश को लूटने का मौका। बस क्या था कांग्रेस ने मचा दी लूट। रोज सुवह को हर चीज के दाम बढ़े मिलते हैं खास तौर पर डीजल, पैट्रौल, रसोई गैस पर। बढ़ौतरी भी चवन्नी अठन्नी की नहीं सीधे सीधे पांच दस पन्द्रह रूपये की। जाहिर सी बात है कि डीजल के दामों में की जा रही अंधाधुन इजाफे का सीधा असर गरीब गुलामों पर पड़ता है। डीजल पर तीन रूपये प्रति लीटर बढ़ने पर आटो, बस वाले प्रति सवारी एक से पांच रूपये बढ़ा देते है अब जिस गरीब के पास दस रूपये ही हों वह पन्द्र रूपये आटो को कहां से दे।
    दरअसल सोनिया गांधी नामक रिमोट से चलने वाली केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य मनमोहन सिंह सरकार बड़े उद्योगपतियों को सैटिंग के साथ माल कमवाने का काम कर रही है जाहिर है कि इससे सरकार में बैठे और सरकार के कन्ट्रोल रूम को भी बड़ा फायदा पहुंचता है बरना बेवजह कोई किसी को लूट मचाने की छूट नहीं देता। मिसाल के तौर पर जब जब तेल या गैस पर दाम बढ़ाये गये तब तब पैट्रौल पम्पों, गैस एजेंसियों को एक रात में ही लाखों रूपये का मुनाफा हुआ। सरकार ने कभी यह हिसाब नहीं देखा कि जिस पम्प या एजेंसी के पास दाम बढ़ने से पहले का जो स्टाक मौजूद है उसपर गुलामों को क्यों लूटा जा रहा है।
    केन्द्र की कांग्रेस बाहुल्य मनमोहन सिंह सरकार ने बड़े उद्योगपतियों के माल में चैगुना इजाफा करने के लिए देश में राज्य मार्गों के निमार्ण का ठेका इन्हें दिया, ठेका यानी लूटने का सरकारी लाईसेंस। इन कम्पनियों ने जगह जगह मार्गों को सुधार कर हर पचास किलोमीटर की दूरी पर एक लूट केन्द्र स्थापित कर दिया। हर आने जाने वाले वाहन से 21 रूपये से 200 रूपये तक प्रतिगुजर का हफता वसूली की जाने लगी। सरकारों द्वारा कराई जा रही इस हफता वसूली पर सवाल यह पैदा होता है कि ‘‘किस नियम के आधार पर वसूला जा रहा है गुलामी टैक्स? वाहनों से पहले ही रोड टैक्स लिया जाता है साथ ही सैकड़ों तरह के दूसरे टैक्स भी गुलाम देते ही है तो फिर सड़के देना सरकार का उत्तरदायित्व है। अगर सरकार किसी सड़क को या शहर को अच्छा बना देती है तो उसपर या उसमे से गुजरने का टैक्स वसूला जाना कतई गैर कानूनी और तक विहीन ही नहीं बल्कि सीधी भाषा में लूट ही कहा जायेगा।
    दिल्ली से लखनऊ की दूरी लगभग 500 किलोमीटर है। इस मामूली से दूरी तय करने आपको कमसे कम आठ जगह गुलामी टैक्स अदा करना पड़ेगा। दिल्ली से निकलते ही नोयडा से लखनऊ तक कम से कम आठ जगह बड़े उद्योगपतियों को लूट करने का लाईसेंस दिया गया है। बताते चलें कि यह लूट सिर्फ गुलामों से ही की जाती है खादी और खाकी से हफता वसूली नहीं की जाती। बाकी गुलाम चाहे एम्बूलेंस में ही क्यों न हो इन लुटेरों को हफता दिये बिना नही जा सकता।
    ज़रा सोचिये कि एक ट्रक कुछ माल लाद कर दिल्ली से लखनऊ जाये और उसे रास्ते में डीजल खर्च के अलावा पुलिस एंव आरटीओ की सेवा के साथ साथ कम से कम दो हजार रूपये उद्योगपतियों को हफता के रूप में अदा करना पड़ेगा तो वह भाड़ा बढ़ायेगा और जब माल ढुलाई का भाड़ा बढ़ेगा तो दुकानदार माल बेचेंगे भी महंगा, सोचिये लुटा कौन.... गुलाम ही। खादी और खाकी को 95 फीसद चीजें खरीदकर लेनी नहीं पड़ती, इसलिए खादी या खाकी पर राज्य मार्गों पर कराई जा रही हफता वसूली का फर्क नहीं पड़ता। ऐसा भी नहीं कि यह सिर्फ केन्द्र का ही काम हो बल्कि इस काम में सूबाई सरकारें भी दो कदम आगे ही रहने की कोशिश में नजर आती हैं।

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