Tuesday 14 August 2012

वर्दी पर लागू नहीं होता कानून--- सगे सम्बंधियों को इधर ऊधर पहुंचाने में लगी दिखी वर्दी


बरेली-आज से 69 साल पहले सन् 1947 की 14 व 15 अगस्त की मध्यरात्री में गांधी जी ने घोषणा की कि ‘‘आज से ‘‘हम’’ आजाद हैं। गांधी जी के इस ‘‘हम’’ शब्द ये उनका अर्थ था ‘‘खादी और खाकी’’। मतलब यह कि 15 अगस्त 1947 के बाद से मेरी खादी पहनने वाले और उनकी भगवान खाकी आजाद हो गयी है इनपर कोई कानून प्रभावी नही होगा। इसका जीता जागता प्रमाण बरेली में तीन दिन से देखने को मिल रहा है।
कर्फयु के चलते जहां एक तरफ पुलिस किसी को भी घर से निकलने नहीं दे रही, यहां तक कि मीडिया कर्मियों से अभद्रता की जा रही है। वहीं दूसरी तरफ वदी्र वाले अपने सगे सम्बंिधयों को उनके कार्य स्थलों पर पहुंचाने के काम में लगी है।
दरअसल वर्दी पर कोई कानून लागू नहीं होता। कर्फयु ग्रस्त क्षेत्र में घर से निकलने के लिए पास का होना अनिवार्य है लेकिन यह कानून वर्दी पर लागू नहीं होता। बाकी चाहे किसी भी विभाग का कोई बड़े से बड़ा अफसर क्यों न हो बिना पास नहीं निकल सकता। पिछली बार लगाये गये कर्फयू के दौरान एक पास धारक पत्रकार अपने बीमार पिता को बाईक से लेकर जा रहा था तो उसको मढ़ीनाथ मोड़ पर रोक कर एक प्रशासनिक अुसर ने उसका पास निरस्त करके यह कहते हुए वापिस कर दिया कि पास आपके लिए है परिवार वालों को लाने ले जाने के लिए नहीं’’। लेकिन दूसरी तरफ वर्दी वाले रोज किसी न किसी रिश्तेदार या सम्बंधी को बाईक कार से लाते ले जाते दिखाई पड़ रहे हैं इसपर किसी अधिकारी को कोइ्र आपत्ति नहीं। उदाहरण के लिए कल यानी सोमवार को जगतपुर के एक परिवार को दूसरे थाने के दो सिपाही निजि कार में गैर सरकारी तौर पर लेकर आये उन्हें किसी ने नही रोका जबकि इन दो सिपाहियों की न तो बारादरी में तैनाती है और न ही कर्फयु ग्रस्त क्षेत्र में कहीं पर डियुटी। इसी तरह थाना सीबी गंज क्षेत्र में रहने वाली एक युवा नर्स जाकि कर्फयु ग्रस्त क्षेत्र के किसी निजि अस्पताल में नौकरी करती है उसे रोज सुबह अस्पताल पहुंचाने व वापिस लाने का काम एक सिपाही कर रहा है। गौरतलब बात यह है कि सिपाही जिस महिला को लाना ले जाना कर रहा है वह न तो उसकी रिश्तेदार और न ही धर्म जाति की। जिला प्रशासन ने इस महिला को कर्फयु पास नहीं दिया तो क्या उसे क्र्फयु रोक सका। उसने भी ऐसी हस्ती का सहारा लिया जिसपर न तो कोई कानून लागू होता है ओर न ही किसी की जुर्रत है जो रोक सके।

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